अडानी को लेकर राहुल गांधी की तमाम बातें 5 कारणों से वोटरों के गले नहीं उतरती हैं । Opinion

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राहुल गांधी ने महाराष्‍ट्र चुनाव से ठीक पहले वोटरों को ये समझाने की कोशिश की थी कि 'एक हैं तो सेफ हैं' का असली मतलब क्‍या है. वो मोदी और अडानी के रिश्‍ते को चुनावी मुद्दा बनाना चाह रहे थे. लेकिन, एग्जिट पोल के रुझान बता रहे हैं कि महाराष्‍ट्र और झारखंड में वोटरों को उनकी बात समझ नहीं आई. पर आज गुरुवार को जिस तरह से राहुल गांधी आक्रामक थे वह अभूतपूर्व था. राहुल गांधी ने गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार में गौतम अडानी के साथ मिले हुए हैं. उन्होंने अमेरिका में रिश्वतखोरी के आरोप लगने के बाद उद्योगपति की गिरफ्तारी की मांग की. राहुल गांधी ने कहा कि अडानी 2,000 करोड़ रुपये के घोटाले और कई अन्य मामलों में नाम आने के बावजूदवह खुलेआम घूम रहे हैं क्योंकि उन्हें पीएम मोदी द्वारा संरक्षण दिया जा रहा है. सवाल उठता है कि राहुल गांधी जिस तरह हमले कर रहे हैं वह आम लोग समझक्यों नहीं कर रहे हैं? आइये देखते हैं कि वो कौन से कारण है कि राहुल गांधी के अडानी राग को जनता स्‍वीकारनहीं कर पा रही है.

1-कांग्रेस सरकार वाले राज्‍यों में अडानी का निवेश होना

दरअसल एक तरफ तो राहुल गांधी,अडानी और नरेंद्र मोदी के बीच सांठगांठ होने का आरोप लगाते हैं,दूसरी तरफ उन्हीं की पार्टी के लोग अडानी की जय जय करते हैं. राहुल कहते हैं कि अडानी ने मोदी सरकार को हाईजैक कर रखा है. पर जब आम लोग देखते हैं कि कांग्रेस के चीफ मिनिस्टर खुद अडानी का स्वागत करते हैं और उन्हें अपने राज्य में निवेश कराने के लिए लालायित रहते हैं तो जनता को यह विरोधाभासपसंद नहीं आता है. राजस्थान का मुख्यमंत्री रहते हुए अशोक गहलोत, छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री रहते हुए भूपेश बघेल ने और कर्नाटक की कांग्रेस सरकारों ने हजारों करोड़ रुपये अडानी से निवेश करवाया है. हाल ही में बनी तेलंगाना सरकार ने भी कई हजार करोड़ का निवेश करवाने की प्लानिंग तो की ही है,मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी की सरकार ने अडानी से 100 करोड़ का डोनेशन भी लियाहै.

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2- जिन राज्यों को रिश्वत देने के आरोप उनमें बीजेपी का एक भी नहीं

अडानी पर आरोप है कि उसने एक अमेरिकी फर्म एज़्योर पावर के साथ मिलीभगत करके जुलाई 2021 से फरवरी 2022 के बीच ओडिशा (बीजद शासित), तमिलनाडु (डीएमके शासित), छत्तीसगढ़ (कांग्रेस) और आंध्र प्रदेश (वाईएसआरसीपी शासित) में वितरण कंपनियों को करीब 26 करोड़ डॉलर का भुगतान किया. बीजेपी नेता अमित मालवीय ने कांग्रेस को घेरते हुए लिखते हैंकि 'यहां जिन राज्यों की बात की गई है, वे सभी उस समय विपक्षी कांग्रेस या उसके सहयोगियों द्वारा शासित थे. इसलिए कांग्रेस को उपदेश देना बंद करना चाहिए और कांग्रेस और इसके सहयोगियों को मिली रिश्वत की जानकारी देनी चाहिए. इसके अलावा, कोई भारतीय अदालत भी वैध आधार पर अमेरिकी फर्म पर बाजार तक पहुंच बनाने के लिए अमेरिकी अधिकारियों को रिश्वत देने का आरोप लगा सकती है. भाजपा नेता लिखते हैं कि बेवजह उत्साहित न हों. संसद सत्र और डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति पद से ठीक पहले ये कार्रवाई होना कई सवाल खड़े करता है. कांग्रेस को जॉर्ज सोरोस और उनके गुटों के हाथों की कठपुतली नहीं बनना चाहिए.

3-विपक्षी पार्टियों में अडानी को लेकर राहुल गांधी जैसी रुचि नहीं

उद्योगपति गौतम अडानी पर हमला करने के मामले में राहुल गांधी नितांत अकेले पड़ चुके हैं. उनका साथ देने के लिए कांग्रेस में भी मुट्ठी भर लोग ही रह गए हैं. विपक्ष तो अडानी का नाम भी नहीं लेता है. बल्कि कई बार तो ऐसा होता है कि अडानी का नाम लेने के चलते विपक्ष के नेताओं से राहुल को नाराजगी का सामना करना पड़ा है. अगर आप याद करें तो लोकसभा चुनावों के पहले इंडिया गठबंधन के शुरूआती दिनों में एक बैठक में राहुल ने विपक्ष के नेताओं की मंजूरी के बिना अडानी का मुद्दा पीसी के दौरान उठा दिया था. इस बात को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एतराज जता दिया था. उन्होंने इसके विरोध स्वरूप अगली बैठक में भाग भी नहीं लिया था. दरअसल अडानी के खिलाफ अभी तक कोई ठोस मामला राहुल गांधी उठा नहीं सके हैं. अभी तक अडानी के खिलाफ जब जब मामला उठाया गया है देश की जनता का ही नुकसान हुआ है. इसके पहले जॉर्ज सोरोस की संस्था हिंडनबर्ग यह काम करती रही है. सोरोस खुलकर स्वीकर करते रहे हैं कि दूसरे देशों में मार्केट को गिराना उनका काम रहा है. अमेरिका और ब्रिटेन में वह यह काम कई बार कर चुके हैं. हिंडनबर्ग के चलते कई बार करोड़ों भारतीय निवेशकों का नुकसान हो चुका है.कांग्रेस की सहयोगी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने अमेरिकी संस्था हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को लेकर अदाणी मामले पर संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी की मांग को खारिज कर दिया था .शायद यही कारण है कि राहुल गांधी के अडानी विरोध का कांग्रेस पार्टी आज तक लाभ नहीं उठा सकी है.

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4-अडानी और मोदी के बीच राहुल वैसा रिश्‍ता नहीं बता पाते जैसा कथित रूप से गांधी परिवार और क्‍वात्रोची के बीच था

राहुल गांधी के पिता पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के राजनीति को खत्म करने में सबसे बड़ी भूमिका बोफोर्स घोटाले की थी. इस सौदे में दलाली खाने वालों में एक नाम क्वात्रोची का भी था. 1974 के आसपासमोलिनारी नामक एक इटालियन ने क्वात्रोची को राजीव गांधी और सोनिया गांधी से मिलवाया था. उसके बाद क्वात्रोची फैमिली राजीव गांधी और सोनिया गांधी से मिलने लगे. दोनों पक्षों के बच्चे अक्सर एक-दूसरे से मिलने आते थे. उस समय राजीव गांधी इंडियन एयरलाइंस में पायलट थे. राजीव गांधीमंत्रिमंडल में वित्त मंत्री रहे वी.पी. सिंह ने कहा था कि क्वात्रोची ने कई मौकों पर उनसे मिलने का समय मांगा था, लेकिन उन्होंने उसे कोई समय नहीं दिया. इसके बाद राजीव गांधी ने उन्हें क्वात्रोची से मिलने के लिए कहा था. इन सौदों में सरकारी कर्मचारियों, राजनेताओं और क्वात्रोची के बीच संबंध बहुत स्पष्ट तौर पर सामने आए थे.पर जिस तरह क्वात्रोची और गांधी फैमिल के रिश्ते को खुद कांग्रेस और विपक्ष ने बाहर की दुनिया के सामने लाया उस तरह मोदी और अडानी के रिश्ते को सार्वजनिक करने में कांग्रेस असफल रही है. यही कारण रहा कि आज तक जनता के सामने अडानी विलेन नहीं बन सके.

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5-राफेल मुद्दे पर राहुल गांधी को मुंह की खानी पड़ी थी, अन्य उद्योगपतियों पर भी लगातेरहे हैं आरोप

राहुल गांधी केलल अडानी को ही निशाना नहीं बनाते रहे हैं. वो देश के चुनिंदा उद्योगपतियों को कोसने का काम इसके पहले भी करते रहे हैं. राफेल विमान सौदे के समय वह अनिल अंबानी के पीछे पड़ गए थे और यहां तक कहते थे कि प्रधानमंत्री मोदी ने आम जनता का पैसा खुद अपने हाथों से अनिल अंबानी की जेब में डाल दिया है. इसी तरह किसान आंदोलन के समय तीन नए कृषि कानून बनाने के पीछे गौतम अडानी के साथ मुकेश अंबानी का नाम लेने लगे थे. राहुल आरोप लगाते थे कि मोदी सरकार ने इन कृषि कानूनों के जरिये किसानों की जमीन छीनकर अडानी और अंबानी को देने की प्लानिंग कर रखी है. हालांकि राफेल विमान सौदे में उन्हें मुंह की खानी पड़ी. इतना ही नहीं राफेल मामले में सुप्रीम कोर्ट की अवमानना से बचने के लिए उन्हें माफी भी मांगनी पड़ी थी.

और,जब-जब राहुल गांधी अडानी को लेकर बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी पर आरोप लगाते हैं, तो भाजपा की तरफ से पलटकर यही कह दिया जाता है कि देखिये, कौन बोल रहा है. जो भ्रष्‍टाचार के मामले में खुद जमानत पर छूटा हुआ है. ऐसा कहने भर से राहुल गांधी का सारा नैरेटिव धाराशायी हो जाता है. क्‍योंकि, लोगों को नेशनल हैराल्‍ड की संपत्ति हड़पने का केस अच्‍छी तरह याद है. जिसके आरोपी राहुल गांधी और सोनिया गांधी जमानत पर रिहा किये गए हैं. इसके अलावा गांधी परिवार पर पूर्व में लगे भ्रष्‍टाचार के आरोप याद दिला दिये जाते हैं. कुलमिलाकर, मोदी को दागदार साबित करने के लिए राहुल का बेदाग न होना भी आड़े आ रहा है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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