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नई दिल्ली: नासा के एक वैज्ञानिक ने खुलासा किया है कि उत्तर भारत और पाकिस्तान के किसानों ने पराली जलाने के लिए सैटलाइट को भी चकमा देना सीख लिया है। वैज्ञानिक ने दावा किया है कि किसानों ने पराली जलाने का समय बदल दिया है, जिसके चलते पराली जलाने के सही आंकड़े सामने नहीं आ पा रहे हैं। हालांकि मौसम विभाग के वैज्ञानिकों का कहना है कि उनके डेटा में रात में भी आग लगने की घटनाएं शामिल हैं, इसलिए किसानों के चकमा देने की बात कुछ लोगों की कल्पना भी हो सकती है।एक्स पर नासा गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के एयरोसोल रिमोट सेंसिंग वैज्ञानिक हिरेन जेठवा ने कुछ सैटलाइट तस्वीरें शेयर की हैं। ये तस्वीरें नासा और साउथ कोरियाई सैटलाइट्स से मिली हैं। जेठवा का दावा है कि साउथ कोरिया के सैटलाइट से जो तस्वीरें मिली हैं, वो बताती हैं कि उत्तर भारत, खासकर पंजाब और पाकिस्तान के कुछ इलाकों के किसान दोपहर दो बजे के बाद पराली जला रहे हैं। वे ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्हें पता है कि नासा के सुओमी एनपीपी और एक्वा अर्थ-ऑब्जर्विंग सैटलाइट आमतौर पर दोपहर 1:30 से 2 बजे के बीच उत्तर-पश्चिम भारत और पाकिस्तान के ऊपर से गुजरते हैं। ये दुनिया में आग को पकड़ने वाले गिने-चुने सैटलाइट्स में हैं। वहीं साउथ कोरिया का सैटलाइट GEO-KOMPSAT-2A हर दस मिनट में उसी क्षेत्र की फोटो लेता है, जिससे पराली का जलना पकड़ में आया है।
हिरेन जेठवा ने सरकारी आंकड़ों पर भी सवाल उठाया है, जो कहते हैं कि साल दर साल पराली का जलना कम हुआ है। जेठवा के मुताबिक पराली का जलना अगर कम हुआ होता तो ऐरोसोल यानी हवा में मौजूद धुएं के कणों में यह दिखना चाहिए था। वैज्ञानिकों के मुताबिक इन दिनों इस ऐरोसेल से लगभग तीन किलोमीटर मोटी चादर वातावरण में फैली हुई है।
पिछले सोमवार को अकेले पंजाब में पराली जलाने की 7000 से अधिक घटनाएं रेकॉर्ड हुई थीं। भारतीय सैटेलाइट इनसैट-3डी/3डीआर हर 15-20 मिनट में डेटा तो देते हैं, लेकिन ऐरोसोल की इतनी मोटी चादर के पार जाकर बिखरी हुई आग का पता लगाना उनके लिए मुश्किल है। वहीं पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष प्रो. आदर्शपाल विज का कहना है कि पराली जलाने की घटनाएं कम हुई हैं। किसान सैटलाइट से बच रहे हैं, यह कुछ लोगों की कल्पना हो सकती है लेकिन इसका असलियत से कोई मतलब नहीं है।
- सरकारी आंकड़े खेतों में आग लगने की घटनाओं में कमी दिखाते हैं, पर यह नहीं बताते कि पिछले 6-7 साल में पंजाब और हरियाणा में ऐरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ यानी कणों की सांद्रता बदली क्यों नहीं? पराली जलनी कम हुई है तो यह भी कम होनी चाहिए थी।
हिरेन जेठवा ने सरकारी आंकड़ों पर भी सवाल उठाया है, जो कहते हैं कि साल दर साल पराली का जलना कम हुआ है। जेठवा के मुताबिक पराली का जलना अगर कम हुआ होता तो ऐरोसोल यानी हवा में मौजूद धुएं के कणों में यह दिखना चाहिए था। वैज्ञानिकों के मुताबिक इन दिनों इस ऐरोसेल से लगभग तीन किलोमीटर मोटी चादर वातावरण में फैली हुई है।
- प्रदूषण विभाग समाज के एक वर्ग का विरोध लेकर काम नहीं कर सकता। वह एक पूरे वर्ग को संगठित होकर उसे अपराध करने पर मजबूर कर रहा है। यह पर्यावरणीय मनोविज्ञान का मुद्दा है, किसान को अकेले दोषी ठहराना गलत है।
पिछले सोमवार को अकेले पंजाब में पराली जलाने की 7000 से अधिक घटनाएं रेकॉर्ड हुई थीं। भारतीय सैटेलाइट इनसैट-3डी/3डीआर हर 15-20 मिनट में डेटा तो देते हैं, लेकिन ऐरोसोल की इतनी मोटी चादर के पार जाकर बिखरी हुई आग का पता लगाना उनके लिए मुश्किल है। वहीं पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष प्रो. आदर्शपाल विज का कहना है कि पराली जलाने की घटनाएं कम हुई हैं। किसान सैटलाइट से बच रहे हैं, यह कुछ लोगों की कल्पना हो सकती है लेकिन इसका असलियत से कोई मतलब नहीं है।
- सैटलाइट की जानकारी ऑनलाइन है तो कोई भी जान सकता है। मुझे लगता है कि हमें आग के डेटा को नहीं देखना चाहिए, बल्कि यह देखना चाहिए कि कितना क्षेत्र जला है। इससे एकदम सटीक अंदाजा मिल सकता है क्योंकि यह डेटा कई सारे सैटलाइट्स से मिल जाता है। लेकिन इससे भी बड़ी बात यह है कि पराली वाली फसलों की जगह ऐसी खेती की जाए, जिससे ऐसी घटनाएं ही न हों।
किसानों को कैसे पता चला
हर सैटलाइट के गुजरने का वक्त पहले से ही तय होता है, जिन्हें नासा से लेकर इसरो आदि की वेबसाइट पर कोई भी चेक कर सकता है। ऐसे में कौन सा सैटलाइट किस जगह से किस वक्त गुजरता है, इसका पता कोई भी लगा सकता है।
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