झारखंड का सियासी त्रिकोण... आज तक अकेले किसी को नहीं मिला बहुमत, 10 के आंकड़े के पार भी सिर्फ 4 दल

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झारखंड. 24 साल पुराने राज्य ने 13 मुख्यमंत्री देखे, तीन बार राष्ट्रपति शासन देखा और निर्दलीय विधायक को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होते भी देखा. राज्य का नाम आते ही जेहन में तस्वीर उभरती है सियासी लिहाज से अस्थिर राज्य की. लेकिन इस अस्थिरता के पीछे क्या है? इस अस्थिरता के पीछे है सूबे की सत्ता का वह अंकगणित, जिसे साध कोई भी सियासी दल बहुमत के लिए जरूरी 41 के जादुई आंकड़े तक नहीं पहुंच सका. चार चुनाव बीत चुके हैं और प्रदेश पांचवी बार अपना भाग्य विधाता चुनने के लिए वोट करने जा रहा है. ऐसे में बात चुनावी अतीत की भी हो रही है. झारखंड का चुनावी अतीत क्या कहता है?

झारखंड में कभी किसी दल को नहीं मिला बहुमत

झारखंड विधानसभा की कुल सदस्य संख्या 81 है. 81 सदस्यों वाले सदन में बहुमत के लिए जरूरी जादुई आंकड़ा 41 सीटों का है. देखने में यह संख्या भले ही कम लग रही हो लेकिन झारखंड के चुनावी समर में उतरने वाले हर दल के लिए यही संख्या किसी बहुत ऊंची पर्वत चोटी से कम नहीं. कम से कम अभी तक हुए चार विधानसभा चुनावों में तो कोई भी दल इस आंकड़े तक नहीं पहुंच सका है. झारखंड चुनाव 2014 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को 37 विधानसभा सीटों पर जीत मिली थी और यही सूबे के चुनावी इतिहास में किसी दल का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है.

एक चुनाव में 10 के पार पहुंचे थे चार दल

झारखंड चुनावों के अतीत पर नजर डालें तो सूबे में अब तक केवल एक चुनाव में ऐसा हो सका है जब चार पार्टियों को 10 या उससे ज्यादा सीटों पर जीत मिली थी. ऐसा 2009 के विधानसभा चुनाव में हुआ था जब बीजेपी और झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम), दोनों ही पार्टियों को 18-18 सीटों पर जीत मिली थी. तब कांग्रेस ने भी 14 और झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) ने 11 सीटें जीती थीं. 2009 के विधानसभा चुनाव से पहले या उसके बाद, ऐसा कभी नहीं हुआ जब तीन से ज्यादा पार्टियों की सीटें दो अंकों में पहुंची हों.

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दो बार 30 के फेर में फंसे दल

झारखंड के दो चुनाव ऐसे भी रहे जब सियासी दल 30 के फेर में फंसे. 2005 के झारखंड चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ा दल बनकर उभरी लेकिन सीटें उसकी 30 थीं. यही इतिहास दोहराया गया 2020 के विधानसभा चुनाव में भी. साल 2020 के झारखंड चुनाव में जेएमएम सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और उसकी सीटें भी 30 ही रहीं. 2005 में जेएमएम 17 सीटें जीतकर दूसरे नंबर पर रही थी और तीसरे नंबर की पार्टी कांग्रेस नौ सीटों के साथ सिंगल डिजिट में रही थी. 2020 के चुनाव में भी नंबर तीन कांग्रेस ही रही लेकिन सीटें इस बार 16 थीं.

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इस बार कैसी है सियासी तस्वीर

झारखंड के इस चुनाव में पुराने ट्रेंड को देखते हुए हर दल सतर्क है और उसी के हिसाब से रणनीति सेट कर, अलग-अलग दलों और छोटी पार्टियों को साथ लेकर चुनाव मैदान में उतरा है. बीजेपी ने सुदेश महतो की अगुवाई वाली ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) के साथ ही नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जनता दल (यूनाइटेड) और चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के साथ गठबंधन किया है.

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वहीं, सत्ताधारी जेएमएम के साथ कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल और लेफ्ट पार्टियां हैं. चुनाव के बाद सरकार गठन की कवायद जोड़तोड़ के फेर में ना फंसे, इसे लेकर सतर्क दोनों ही प्रमुख पार्टियों बीजेपी और जेएमएम ने चुनाव पूर्व छोटे-छोटे वोटबैंक को टार्गेट कर गठबंधन किया. अब गठबंधन का यह गणित किसके लिए कितना मुफीद साबित होता है, यह 23 नवंबर की तारीख बताएगी.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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