धारावी का वो प्रोजेक्ट जिसपर राहुल गांधी ने अडानी और BJP को घेरा, पढ़ें- एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी-बस्ती की कहानी

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महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में इस बार धारावी रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट भी बड़ा मुद्दा बना हुआ है. महाविकास अघाड़ी का कहना है कि अगर वो सत्ता में आए तो अडानी ग्रुप को दिया गया धारावी प्रोजेक्ट का टेंडर रद्द कर दिया जाएगा.

अब सोमवार को कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस प्रोजेक्ट पर सवाल उठाए. राहुल ने कहा कि धारावी का भविष्य सेफ नहीं है. इस प्रोजेक्ट से धारावी की जनता को नुकसान होगा.

प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान राहुल गांधी ने बीजेपी के चुनावी नारे 'एक हैं, तो सेफ हैं' पर घेरा. राहुल ने एक पोस्टर निकाला, जिसमें धारावी का नक्शा बना था. इसे दिखाते हुए राहुल ने कहा कि अरबपति चाहते हैं कि मुंबई की जमीन उनके हाथ में चली जाए. अनुमान है कि एक अरबपति को एक लाख करोड़ रुपये दिए जाएंगे.

चुनाव प्रचार में विपक्षी पार्टियों ने धारावी रिडेवपलमेंट प्रोजेक्ट को बड़ा मुद्दा बनाया. धारावी में कांग्रेस की ज्योति गायकवाड़ और शिवसेना (शिंदे गुट) के राजेश खंडारे का मुकाबला है. धारावी सीट पर गायकवाड़ परिवार का दबदबा रहा है. 2004 से 2019 तक यहां वर्षा गायकवाड़ जीतती आ रही थीं. इस बार उनकी बहन ज्योति यहां से चुनाव लड़ रही हैं.

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साल 2002 में इस प्रोजेक्ट के लिए अडानी ग्रुप ने 5,069 करोड़ रुपये की बोली लगाकर टेंडर जीता था. धारावी को 'मुंबई का दिल' भी कहा जाता है. अंग्रेजों के काल में बसी ये बस्ती आज एशिया की सबसे बड़ी और दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी झुग्गी-बस्ती है. धारावी के रिडेवलपमेंट पर 20 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च होने का अनुमान है. इसमें अडानी ग्रुप शुरुआत में 5,069 करोड़ रुपये का इन्वेस्टमेंट करेगी.

क्या है ये धारावी प्रोजेक्ट?

1999 में जब महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना के गठबंधन की सरकार थी, तब पहली बार धारावी को रिडेवलप करने का प्रस्ताव रखा गया. इसके बाद 2003-04 में महाराष्ट्र सरकार धारावी का रिडेवलपमेंट प्लान लेकर आई.

सरकार चाहती है कि धारावी की गिनती सबसे बड़ी झुग्गी-बस्तियों में न हो, बल्कि इसे सबसे अच्छी बस्ती के नाम से पहचाना जाए. यहां झोपड़ियों की जगह घर बनाए जाएं और कमर्शियल कॉम्प्लेक्स भी.

धारावी रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट 20 हजार करोड़ रुपये का है और इसके 17 साल में पूरा होने की उम्मीद है. जबकि यहां रहने वाले लोगों को 7 साल में पक्के घरों में बसाने का टारगेट है. इस पूरे प्रोजेक्ट में 1 करोड़ वर्ग फीट से ज्यादा की जमीन आएगी.

इस प्रोजेक्ट के तहत, जो लोग 1 जनवरी 2000 या उससे पहले से धारावी में रह रहे होंगे, उन्हें धारावी में 350 वर्ग फीट का मकान दिया जाएगा. 1 जनवरी 2000 से 1 जनवरी 2011 के बीच जिन लोगों ने जमीन पर अपना मकान बनाया है, उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत धारावी के बाहर 300 वर्ग फीट का मकान मिलेगा. इसके लिए उन्हें ढाई लाख रुपये देने होंगे. वहीं, जिन भी लोगों का मकान ऊपरी मंजिल पर होगा या जिन्होंने 1 जनवरी 2022 के बाद यहां आकर बसे होंगे, उन्हें धारावी में कोई मकान नहीं मिलेगा.

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धारावी... मुंबई का दिल

धारावी को मुंबई का दिल भी कहा जाता है. अंग्रजों के काल में बसी ये बस्ती आज एशिया की सबसे बड़ी और दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी बस्ती है.

धारावी में कितने लोग रहते हैं? इसका सटीक आंकड़ा नहीं है. लेकिन अनुमान है कि यहां 6 से 10 लाख लोग रहते हैं. धारावी में 58 हजार परिवार और करीब 12 हजार कमर्शियल कॉम्प्लेक्स हैं.

1882 में अंग्रेजों ने धारावी को बसाया था. इसे बसाने का मकसद ये था कि मजदूरों को किफायती ठिकाना दिया जा सके. धीरे-धीरे यहां लोग बसने लगे और झुग्गी-बस्तियां बन गईं. धारावी की जमीन तो सरकारी है, लेकिन यहां लोगों ने अपने खर्चे से झुग्गी-बस्ती बनाई है.

यहां इतनी झुग्गी-बस्तियां हैं कि दूर से देखने पर जमीन दिखाई ही नहीं पड़ती. 550 एकड़ में फैली धारावी में एक किलोमीटर के दायरे में 2 लाख से ज्यादा लोग रहते हैं. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां कितनी घनी आबादी है.

धारावी में 100 वर्ग फीट की छोटी सी झुग्गी में 8 से 10 लोग एकसाथ रहते हैं. कुछ झुग्गियां तो ऐसी भी बनी हैं, जिनमें कारखाने भी हैं और घर भी. लगभग 80 फीसदी लोग पब्लिक टॉयलेट का इस्तेमाल करते हैं.

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धारावी लगभग 550 एकड़ में बसा हुआ है. (फाइल फोटो- इंडिया टुडे)

'जिद्दी' लोगों की बस्ती है धारावी

धारावी की पहचान झुग्गी-बस्ती की है. ये सच भी है. लेकिन असल में ये जिद्दी लोगों की बस्ती है. यहां की तंग गलियों में दिहाड़ी मजदूर भी रहते हैं और वो भी जो अपना कारोबार करते हैं. माहिम और सायन धारावी के दोनों ओर बने रेलवे स्टेशन हैं. यहीं से हर रोज लाखों लोग धारावी आते-जाते हैं. यहां इतनी भीड़ है न कि इसमें घुसने के लिए साहस और हौसला चाहिए.

मुंबई की तरह ही धारावी भी काम के पीछे भागने वाले लोगों की बस्ती है. फर्क इतना है कि मुंबई शहर में रहने वाले लोग फ्लैट और अच्छे घरों में रहते हैं और धारावी में रहने वाले तंग, छोटे और गंदी बस्तियों में. लेकिन ये जिद्दी लोगों की बस्ती है, जो कभी थमती नहीं है.

'स्लमडॉग' की बस्ती...

2008 में फिल्म आई थी 'स्लमडॉग मिलियनियर'. इस फिल्म की शूटिंग धारावी में ही हुई थी. फिल्म में दिखाया गया था कि कैसे इस झुग्गी-बस्ती में रहने वाला एक लड़का करोड़पति बन जाता है.

ये बस्ती ऐसे ही 'स्लमडॉग' की है. यहां हर चौथे घर में कोई एंटरप्रेन्योर मिल जाएगा. एक अनुमान के मुताबिक, यहां 22 हजार से ज्यादा छोटे-छोटे कारोबारी हैं.

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बस्ती में चमड़े की चीजें, गहने और मिट्टी के सजावटी बर्तन तैयार किए जाते हैं. इस बस्ती में बनी चीजें फिर देश-विदेशों में बिकने जातीं हैं.

रिपोर्ट्स बताती हैं कि इन झुग्गी-बस्तियों में 5 हजार से ज्यादा रजिस्टर्ड कारोबारी हैं. जबकि, 15 हजार से ज्यादा कारखाने तो एक-एक कमरे में बने हुए हैं. यहां की रिसाइक्लिंग इंडस्ट्री ही 2.5 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार देती है, जिसमें महिलाएं और बच्चे भी जुड़े हैं.

ऐसा माना जाता है कि धारावी की एक-एक इंच जमीन भी किसी न किसी प्रोडक्टिव काम के लिए इस्तेमाल होती है. एक अनुमान के मुताबिक, धारावी में हर साल 1 अरब डॉलर यानी लगभग 80 अरब रुपये का कारोबार होता है.

महामारिया आईं... लेकिन धारावी बना रहा

धारावी में इतनी ज्यादा भीड़ है न कि यहां गंदगी अक्सर बनी ही रहती है. यही वजह है कि यहां बीमारियां भी काफी तेजी से फैलती हैं.

1896 में जब दुनियाभर में प्लेग फैला था, तो उसका असर धारावी पर भी पड़ा था, क्योंकि यहां उस वक्त भी बहुत बड़ी संख्या में लोग रहते थे. प्लेग खत्म होने के बाद भी अगले 25 सालों तक धारावी में लोगों को अलग-अलग तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ा था.

1986 में जब हैजा फैला तो उसका असर भी सबसे ज्यादा धारावी पर ही हुआ. माना जाता है कि उस समय मुंबई के अस्पतालों में भर्ती होने वाले ज्यादातर लोग धारावी के ही थे.

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अप्रैल 2020 में धारावी में कोरोना का पहला मामला सामने आया था. उसके बाद तो यहां कोरोना बम फूट गया था. आए दिन मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही थी. सबसे बड़ी समस्या ये थी कि तंग गलियों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कैसे करवाया जाए. लेकिन धारावी ने कोरोना से लड़ाई लड़ी और जीती.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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