Shiromani Akali Dal Future: अकाल तख्त की ओर से 'तनखैया' (सिख धार्मिक संहिता का उल्लंघन करने का दोषी) घोषित किए जाने के करीब 2 महीने बाद पंजाब के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल (Sukhbir Singh Badal) ने शिरोमणि अकाली दल (SAD) के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है. पार्टी के वरिष्ठ नेता दलजीत सिंह चीमा ने बताया कि बादल ने पार्टी की कार्यसमिति को अपना इस्तीफा सौंप दिया. बादल के इस्तीफे से नए पार्टी प्रमुख के चुनाव का रास्ता साफ हो गया है. चीमा ने बताया कि उन्होंने अपने नेतृत्व में विश्वास जताने और पूरे कार्यकाल में तहेदिल से समर्थन तथा सहयोग देने के लिए पार्टी के सभी नेताओं एवं कार्यकर्ताओं का आभार जताया है.
कौन बनेगा अकाली दल का नया अध्यक्ष?
सुखबीर सिंह बादल (Sukhbir Singh Badal) ने अकाल तख्त द्वारा अपना फैसला सुनाए जाने से एक दिन पहले 29 अगस्त को वरिष्ठ नेता बलविंदर सिंह भुंडर (Balwinder Singh Bhunder) को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया था. पैनल सोमवार को चंडीगढ़ में एक आपातकालीन बैठक करेगा. पार्टी हर पांच साल में पार्टी अध्यक्ष पद के लिए चुनाव कराती है और अगला चुनाव 14 दिसंबर को होना है.
क्या है अकाल तख्त से जुड़ा मामला और बादल पर आरोप?
सुखबीर सिंह बादल (Sukhbir Singh Badal) का यह फैसला पार्टी नेतृत्व के एक वर्ग के विरोध के बीच आया है. पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने से कुछ दिन पहले बादल ने अकाल तख्त के जत्थेदार से धार्मिक कदाचार के आरोपों में उन्हें सजा सुनाने का आग्रह किया था. सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह ने 2007 से 2017 तक अकाली दल और उसकी सरकार की ओर से की गई 'गलतियों' के लिए बादल को 30 अगस्त को 'तनखैया' घोषित किया था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, आरोप बादल की कथित गलतियों से जुड़े हैं, जिन्हें अकाल तख्त ने 'पंथ की छवि को गहरा नुकसान पहुंचाने और सिख हितों को नुकसान पहुंचाने' वाला माना था. इसमें 2015 की बेअदबी की घटनाओं के लिए जिम्मेदार लोगों को दंडित करने में विफलता और 2007 के ईशनिंदा मामले में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को माफ करना शामिल है. जत्थेदार ने अभी तक बादल के लिए 'तनखा' (धार्मिक सजा) की घोषणा नहीं की है.
बादल के अकाल तख्त से कोई अस्थायी राहत पाने में नाकाम रहने के बाद अकाली दल ने 24 अक्टूबर को घोषणा की थी कि वह उपचुनाव नहीं लड़ेगा. एक जुलाई को पूर्व सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) की पूर्व प्रमुख बीबी जागीर कौर सहित कई बागी अकाली दल के नेता अकाल तख्त के सामने पेश हुए थे. उन्होंने 2007 से 2017 तक पार्टी की सरकार की ओर से की गई 'गलतियों' के लिए माफी मांगी थी.
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बादल के इस्तीफे से दोराहे पर खड़ा है अकाली दल
सुखबीर सिंह बादल (Sukhbir Singh Badal) के इस्तीफे ने शिरोमणि अकाली दल (SAD) को दोराहे पर खड़ा कर दिया है, क्योंकि 1996 से ही उनका परिवार पार्टी के अध्यक्ष पद पर बना हुआ है. बादल को अपने नेतृत्व के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि पार्टी का चुनावी प्रभाव तेजी से कम हो रहा है. साल 2022 से विधानसभा चुनावों में यह रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया, जब पार्टी पंजाब में सिर्फ तीन सीटें ही जीत पाई. इस साल हुए लोकसभा चुनाव में अकाली दल (SAD) का वोट शेयर घटकर 13.4 प्रतिशत रह गया, जो 2019 में 27.5 प्रतिशत था. साथ ही अकाली दल राज्य की 13 लोकसभा सीटों में से सिर्फ एक पर जीत हासिल कर पाई.
बागियों ने भी बढ़ाई अकाली दल की मुसीबत
जुलाई में, बागियों के एक समूह ने अकाली दल (SAD) नेतृत्व की आलोचना की थी कि पार्टी नेता इकबाल सिंह झुंडन के नेतृत्व वाली छह सदस्यीय समिति की सिफारिशों को लागू नहीं किया गया, जिसने 2022 के चुनावी हार के बाद 100 विधानसभा क्षेत्रों का दौरा किया था. बागियों ने दावा किया कि रिपोर्ट में कहा गया है कि इन सीटों के लोग नेतृत्व में बदलाव चाहते थे, लेकिन रिपोर्ट के प्रस्तावों को लागू नहीं किया गया. असंतुष्ट नेताओं में वरिष्ठ नेता गुरप्रताप सिंह वडाला, जागीर कौर, प्रेम सिंह चंदूमाजरा और परमिंदर सिंह ढींडसा शामिल हैं. अकाली दल ने इन आठ बागियों को अगस्त में निष्कासित कर दिया था, कुछ ही हफ्तों बाद उन्होंने अकाली दल सुधार लहर नामक एक अलग समूह का गठन किया था.
पिछले महीने, जब सुखबीर सिंह बादल (Sukhbir Singh Badal) ने आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार के खिलाफ दो धरनों में भाग लिया था तो सुधार लहर समूह के नेताओं ने इस घटनाक्रम पर आपत्ति जताई थी. बादल और अकाली दल द्वारा आरोप लगाया गया था कि सत्तारूढ़ पार्टी उम्मीदवारों को पंचायत चुनावों के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने की अनुमति नहीं दे रही है. बाद में अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह ने स्पष्ट किया कि पूर्व उपमुख्यमंत्री को तब तक किसी भी राजनीतिक गतिविधि में भाग लेने की अनुमति नहीं है, जब तक उनका 'तनखैया' दर्जा प्रभावी रहेगा. अकाली दल ने 20 नवंबर को होने वाले चार विधानसभा उपचुनावों में भी चुनाव न लड़ने का फैसला किया है.
तो क्या बादल के इस्तीफे से स्थिति हो जाएगी ठीक?
अकाली दल (SAD) के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद सुखबीर सिंह बादल (Sukhbir Singh Badal) को उम्मीद होगी कि स्थिति शांत हो जाएगी. बादल के इस्तीफे का स्वागत करते हुए गुरप्रताप सिंह वडाला ने कहा कि यह 'पार्टी कार्यकर्ताओं की भावनाओं' के अनुरूप है और उन्होंने पार्टी की कार्यसमिति से इसे 'तुरंत स्वीकार' करने का आग्रह किया है. उन्होंने चेतावनी दी कि इस्तीफे के इर्द-गिर्द कोई भी राजनीतिक चालबाजी (बादल के अगले महीने फिर से अकाली दल के अध्यक्ष चुने जा सकते हैं) बर्दाश्त नहीं की जाएगी. उन्होंने कहा, 'पंथिक और पार्टी समर्थक व्यक्तियों के परामर्श से एक नई रणनीति तैयार की जाएगी और पंजाब के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य पर चर्चा के लिए सुधार लहर की एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई जाएगी.'
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क्या फिर से पार्टी अध्यक्ष बनेंगे सुखबीर सिंह बादल?
बादल का बचाव करते हुए बलविंदर सिंह भुंडर ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, 'सुखबीर सिंह बादल, उनके पिता प्रकाश सिंह बादल और यहां तक कि सुखबीर के दादा का भी सिस्टम से लड़ने का इतिहास रहा है. सुखबीर के कार्यकाल में राज्य में सड़क नेटवर्क, अतिरिक्त बिजली आदि के मामले में उल्लेखनीय विकास हुआ. मौजूदा हालात में उन्होंने पार्टी के व्यापक हित में इस्तीफा दे दिया. जब 2012 में अकाली-भाजपा गठबंधन ने पंजाब में दोबारा अपना कार्यकाल पूरा करके इतिहास रचा, तो इसका सारा श्रेय सुखबीर को ही दिया गया. इसलिए हार-जीत तो जीवन का हिस्सा है. कार्यकारी अध्यक्ष होने के नाते मैंने 18 नवंबर को कार्यसमिति की आपात बैठक बुलाई है. समिति इस्तीफे पर विचार करेगी और नए पार्टी अध्यक्ष के लिए चुनाव कराने समेत अगली रणनीति तय करेगी.
पार्टी के वरिष्ठ नेता दलजीत सिंह चीमा ने बताया कि इस प्रक्रिया के तहत पार्टी सबसे पहले सदस्यता अभियान चलाएगी और फिर सर्किल प्रतिनिधियों का चुनाव करेगी. ये प्रतिनिधि जिला प्रतिनिधियों का चुनाव करेंगे, जो राज्य प्रतिनिधियों का चुनाव करेंगे. राज्य प्रतिनिधि, जो आम सभा का गठन करेंगे, पार्टी के अध्यक्ष और पदाधिकारियों के साथ-साथ नई कार्यसमिति का चुनाव करेंगे.
सुखबीर सिंह बादल का राजनीतिक करियर
सुखबीर सिंह बादल (Sukhbir Singh Badal) ने साल 1996 में अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत की थी, जब वे फरीदकोट से सांसद चुने गए थे. साल 1999 में वे इस सीट से हार गए और 2001 में राज्यसभा सांसद के रूप में संसद गए. उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय मंत्री के रूप में काम किया. 2004 में सुखबीर सिंह बाद ने फरीदकोट से फिर जीत दर्ज की.
पांच साल बाद वे जलालाबाद उपचुनाव जीतकर राज्य की राजनीति में वापस आए और अगस्त 2009 से मार्च 2017 तक पंजाब के उपमुख्यमंत्री रहे. अकाली दल के अध्यक्ष के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान अकाली दल और बीजेपी गठबंधन ने 2012 के चुनावों में जीत हासिल की, लेकिन बाद में दोनों दलों का गठबंधन टूट गया. अकाली दल के चुनावी ग्राफ में गिरावट के साथ उन्हें अपने नेतृत्व के लिए लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ा और पार्टी में कई विभाजन हुए, जिसमें 2018 में SAD (टकसाली) और 2020 में SAD (संयुक्त) जैसे अलग-अलग समूह सामने आए. (इनपुट- न्यूज़ एजेंसी भाषा)
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