हिंडनबर्ग रिपोर्ट से कम नहीं है अजित पवार का खुलासा, अडानी का नाम लेने से महाराष्ट्र चुनाव पर कितना असर होगा? । Opinion

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महाराष्ट्र के चुनाव में इस बार अजित पवार सबसे कमजोर चेहरे हो सकते हैं पर सबसे मजेदाऱ और चर्चित खबरें उनके पास से ही आ रहीं हैं. महायुति में रहते हुए जिस तरह वो बीजेपी की लंका लगा रहे हैं उसमें पब्लिक को बहुत मजा आ रहा है. 2019 में अविभाजित एनसीपी में अपने छोटे से विद्रोह और फिर बाद में बीजेपी को धोखा देकर एनसीपी में वापसी को सुनियोजित बताकर एक बार फिर उन्होंने बखेड़ा कर दिया है. पर 2019 में महाराष्ट्र में सरकार बनवाने में देश के सबसे बड़े उद्योगपित का दर्जा प्राप्त कर चुके गौतम अडानी का नाम लेकर उन्होंने बीजेपी को मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा है. ये कुछ-कुछ वैसीही परिस्थिति है, जैसीहिंडनबर्ग रिपोर्ट आने के बाद थी. अजित पवार की बातें कितनी सच है, यह कोई नहीं जानता, लेकिन उनके बयान ने महाराष्‍ट्र चुनाव में भूचाल ला दिया है.अजित पवार की यही कला उन्हें महाराष्ट्र की राजनीति में अपने चाचा शरद पवार का असली उत्तराधिकारी साबित करा रही है. अजित पवार के दावे के चलते विपक्ष को मौका मिल गया है कि वह उन आरोपों को और हवा देकि गौतम अडानी और मोदी सरकार के बीच बहुत मधुर संबंध यूं ही नहीं है.

गौरतलब है कि अजित पवार ने एक वेबसाइट को दिए एक साक्षात्कार में कहा है कि हर कोई जानता है कि 2019 में महाराष्ट्र की सरकार बनवाने के लिएबैठक कहां हुई थी... सभी लोग वहां थे. अजित कहते हैं कि मुझे फिर से कहने दीजिए. अमित शाह वहां थे, गौतम अडानी वहां थे, प्रफुल पटेल वहां थे, देवेंद्र फडणवीस वहां थे, अजित पवार वहां थे, पवार साहेब (शरद पवार) वहां थे. उन्होंने यह भी कहा कि उस समय बीजेपी के साथ जाने का निर्णय शरद पवार की जानकारी में किया था, और एक पार्टी कार्यकर्ता के रूप में अपने नेता का अनुसरण किया था.

1- यदि अजित पवार की बात सही है तो अडानी की भूमिका पर सवाल लाजमी

2019 में महाराष्ट्र की सरकार बनाने के लिए हो रही बैठक में अगर देश के सबसे बड़े उद्योगपति गौतम अडानी उपस्थित थे तो इसका मतलब है कि सरकार बनवानेमें उनकी भूमिका भी रही होगी. अगर ये बात साबित होती है तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी की बातों पर मुहर लग जाएगी. राहुल गांधी बहुत समय से ये मुद्दा उठा रहे हैं कि अडानी और अंबानी सरकार चला रहे हैं. जाहिर इस तरह की बातें अगर अजित पवार ऐन चुनावों के मौके पर करेंगे तो बीजेपी के लिए नुकसान तय है. इस पर प्रतिक्रिया देने वाले पहले लोगों में राज्यसभा सांसद और शिवसेना (यूबीटी) प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी थीं, जिन्होंने X पर पोस्ट किया कि कैबिनेट के एक वरिष्ठ मंत्री द्वारा एक डिजिटल प्लेटफॉर्म को दिए गए साक्षात्कार के अनुसार, गौतम अडानी ने महाराष्ट्र में बीजेपी को सत्ता में लाने के लिए असंभव गठबंधनों को बनाने की बातचीत में हिस्सा लिया था. यह गंभीर सवाल उठाता है कि क्या वह बीजेपी के अधिकृत वार्ताकार थे? क्या उन्हें गठबंधन बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी? एक व्यवसायी महाराष्ट्र में किसी भी कीमत पर बीजेपी को सत्ता में लाने के लिए इतनी गहरी दिलचस्पी क्यों ले रहा था?

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2. क्या बीजेपी और महायुतिकी लंका लगाने आए हैं अजीत पवार

अजित पवार के खुलासे ने महायुति, खासकर बीजेपी के लिए धर्मसंकट की स्थिति बना दी है. केंद्र सरकार और अडानी के बीच मिलीभगत के आरोपों को मोदी के खिलाफ विपक्ष की साजिश बताने वाली बीजेपी अब किस मुंह से कहेगी कि उसके अपने सहयोगी अजित पवार जो कह रहे हैं, वो गलत है. इस मामले में बीजेपी यदि चुप्‍पी साधना भी चाहे, तो वह ऐसा कब तक कर पाएगी? अजित पवार की बात और उनके शब्‍दों पर गौर करें, तो यह नजर आता है कि उन्‍होने अडानी का उल्‍लेख बीजेपी को उलझाने के लिए ही किया है. यदि वे अडानी का नाम नहीं भी लेते तो भी NCP और BJP के बीच गठबंधन की किस्‍सा मुकम्‍मल हो जाता. लेकिन अडानी का नाम लेने से कहानी में एक्स्ट्रा ट्विस्‍ट आ गया. यदि अडानी वाकई उस बैठक में मौजूद थे, तो यह भी साबित होता है कि ऐसा दोनों पक्षों से उनकी करीबी के कारण हुआ होगा. लेकिन, इस समय सवाल तो उनकेऔर बीजेपी के रिश्ते पर उठ रहा है.

अजित पवार के खुलासे से अकेले बीजेपी ही क्‍यों, एकनाथ शिंदे के लिए भी संकट खड़ा हो गया है. सीएम रहते शिंदे अडानी के धारावी प्रोजेक्‍ट की वकालत कर चुके हैं. अब जबकि अजित पवार के बयान नेअडानी की भूमिका को चर्चा में ला दिया है तो शिंदे और उनकी पार्टी किस तरह अपने आप को इस विवाद से दूर रख पाती है, देखना दिलचस्‍प होगा.

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2- चाचा शरद पवार को भी लपेटा, लेकिन इससे होगा क्‍या?

महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजित पवार ने अपने इस साक्षात्कार में जिस तरह अपने चाचा शरद पवार को भी घसीटाहै,वो इस बुजुर्ग मराठा नेताके लिए एक तरीका सेटबैक ही है. क्योंकि 2019 की इस घटना के बाद शरद पवार कई बार कह चुके हैं कि 2019 के उस राजनीतिक घटनाक्रम के जिम्मेदार वो नहीं थे. जबकि उनके भतीजे अजित कहते हैं कि मुझे फिर से कहने दीजिए. अमित शाह वहां थे, गौतम अडानी वहां थे, प्रफुल पटेल वहां थे, देवेंद्र फडणवीस वहां थे, अजित पवार वहां थे, पवार साहेब (शरद पवार) वहां थे. उन्होंने यह भी कहा कि उस समय बीजेपी के साथ जाने का निर्णय शरद पवार की जानकारी में किया था, और एक पार्टी कार्यकर्ता के रूप में अपने नेता का अनुसरण किया था. हालांकि जो लोग शरद पवार और अजित पवार को अच्छी तरह से जानते हैं उन्हें इस बात में कोई संदेह नहीं है. ये सभी जानते हैं कि शरद पवार और गौतम अडानी अकसर मिलते रहे हैं. दूसरे महाराष्ट्र की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार और उनके भतीजे अजित पवार के लिए जरूरी है कि प्रदेश सरकार में उनके घर से कोई न कोई सत्ता में बना रहे है. दूसरी बात अजित पवार में आज भी इतनी कूवत नहीं है कि वो प्रदेश के डिप्टी सीएम भी बन सकें. लोकसभा चुनावों में अकेले लड़कर अजित पवार अपनी हैसियत देख चुके हैं.

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यह पूछे जाने पर कि शरद पवार ने बाद में हिचकिचाहट क्यों दिखाई और भाजपा के साथ क्यों नहीं गए, अजित ने कहा कि उन्हें इसका कारण नहीं पता. अजित कहते हैं कि 'पवार साहब एक ऐसे नेता हैं जिनके दिमाग को दुनिया में कोई नहीं पढ़ सकता. यहां तक कि हमारी आंटी (शरद पवार की पत्नी प्रतिभा) या हमारी सुप्रिया (सुले) भी नहीं'. शरद पवार की बेटी और एनसीपी (शरद पवार) सांसद सुप्रिया सुले ने कहा कि उन्हें ऐसी किसी बैठक की जानकारी नहीं है. मैं बिल्कुल स्पष्ट करना चाहूंगी कि मुझे अजित द्वारा साक्षात्कार में उल्लिखित किसी भी बैठक के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

3- राहुल गांधी के पास मौका है खुद को सही साबित करने का, लेकिनक्‍या वे शरद पवार को नाराज करेंगे?

राजनीति मौके का नाम है. मोदी पर निशाना साधने के लिए अडानी पर हमलावर राहुल गांधी के लिए अजित पवार का खुलासा हिंडनबर्ग रिपोर्ट से कम नहीं होगा.देश का कोई भी ऐसा मंच नहीं होगा जहां राहुल गांधी ने अडानी और मोदी सरकार के संबंधों को लेकर बीजेपी पर हमला न किया हो. लेकिन, अ‍जित पवार के खुलासे में अडानी के साथ शरद पवार का भी जिक्र है. तो सवाल उठता है कि क्‍या राहुल गांधी इस बात की परवाह करेंगे?राहुल गांधी इस मामले में ज्‍यादा धैर्य नहीं रखने वाले हैं. उनकी प्राथमिकता में अडानी और बीजेपी के रिश्‍ते को साबित करने से ज्‍यादा अहम कुछ नहीं है. और राहुल गांधी ही क्‍यों, उद्धव ठाकरे भी अजित पवार के खुलासे को हाथोंहाथ लेंगे. धारावी प्रोजेक्‍ट के कारण अडानी उद्धव ठाकरे के निशाने पर रहे हैं. जाहिर है कि शरद पवार का जिक्र किए बिना राहुल और उद्धव को बीजेपी पर हमलावर होंगे ही.

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हालांकि मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष और सांसद वर्षा गायकवाड़ ने कहा, गौतम अडानी कोक्या अधिकार था?वह सरकार गठन को लेकर बैठकों में क्यों बैठे थे? मैं फिर से दोहराती हूं, एमवीए सरकार को केवल अडानी के लिए अस्थिर किया गया था, ताकि वेधारावी और अपनी इच्छानुसार कोई भी अन्य प्रोजेक्‍टहासिल कर सकें. इसलिए हम कहते हैं, यह महाराष्ट्र सरकार नहीं, बल्कि अडानी सरकार है. अब सच्चाई सबके सामने है.

4- तो क्या इस बार भी महायुतिमें अजीत पवार अपने चाचा के कहने पर आए?

अजित पवार के इस खुलासे के बाद जाहिर है कि यह संदेह और गहरा हो गया है कि क्या इस बार भी अजित पवार महायुति में अपने चाचा के कहने से आए हैं. क्योंकि जिस तरह से लगातार महायुति में अजित पवार ऐसे कार्य करते रहे हैं जो एंटी बीजेपी जैसा है. बार-बार ऐसा लगता है कि अजित पवार जो कदम उठाते हैं उसमें महायुति के बजाए एमवीए का ही फायदा है. महायुति में आने के बाद ऐसे कई मौके आए जब चाचा और भतीजे की मुलाकात हुई है. एनसीपी में अजीत पवार अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को पहले ही बोल चुके हैं कि शरद पवार के बारे में कोई ऐसी बात नहीं की जाएगी जिससे मान मर्दन हो.साक्षात्कार में यह पूछने पर कि क्या पवार परिवार फिर से एक साथ आ सकता है? अजित कहते हैं कि 'मैंने अभी इस बारे में नहीं सोचा है. अभी मेरा ध्यान चुनावों और महायुति को 175 सीटें जीतने पर है. उनके उत्तर से लगता है कि संभावनाओं का द्वार खुला हुआ है.विचारधारा के मामले में अजित ने जो जवाब दिया उसका भी मतलब कुछ ऐसा ही है कि वापसी कभी भी संभव है. साक्षात्कार में अजित कहते हैं कि शिवसेना ने एमवीए शासन के दौरान 2.5 साल तक कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन कैसे किया? 'विचारधारा के बारे में मत पूछिए. महाराष्ट्र की राजनीति बदल गई है. हर कोई सत्ता चाहता है और विचारधारा को किनारे रख दिया है. वे सरकार बनाना और चलाना चाहते हैं'.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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