महाराष्ट्र चुनाव में मोदी-राहुल का क्या काम है? जनता के बीच इसलिए है लोकल क्षत्रपों की डिमांड

4 1 21
Read Time5 Minute, 17 Second

भारतीय जनता पार्टी ही नहीं कांग्रेसने भी महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में लड़ाई का तरीका बदल दिया है.पार्टियांनए तरीके का माइक्रो मैनेजमेंट विकसित कर रही हैं. इसके तहतराष्ट्रीय नेताओं से ज्यादा स्थानीय नेताओं को महत्व देकर पार्टियांलोकल मुद्दों पर खेल रही है. हरियाणा में बीजेपीने राष्ट्रीय नेताओं विशेषकर पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को कम से कम यूज किया. उसी तर्ज पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महाराष्ट्र में 4 दिन में 11 रैलियां करेंगे जबकि स्थानीय नेताओं जैसे डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस के जिम्मे करीब 100 रैलियों को जिम्मेदारी दी गई. ऐसा केवल बीजेपी ही नहीं कर रही है. कांग्रेस भी स्थानीय मुद्दों पर ही फोकस कर रही है इसलिए राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के दौरे बहुत कम रखे गए हैं. महाराष्ट्र में केवल स्थानीय राजनीतिक कहांनियों की चर्चा है, जिन मुद्दों पर वोट पड़ने हैं वो कुछ इस प्रकार हैं. इन मुद्दों में दूर-दूर तक कहीं केंद्रीय नेताओंकी भूमिका नहीं है.

1-मराठा आरक्षण के मुद्देपर किस पार्टी को बढ़त

पिछले साल, मराठा कोटा कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल ने आरक्षणकी मांग पर फिर से आंदोलन शुरू कर दिया था. यही कारण है किइस समय मराठा वोटों को लेकर जरांगे पाटील केंद्र में हैं. सबसे पहले मराठा आरक्षण देवेंद्र फडणवीस की सरकार नेदिया पर कोर्ट के चलते यह लागू न हो सका. अब जरांगे के टार्गेट पर लगातार फडणवीस हैं. जरांगे ने उन्हें समुदाय के हितों का विरोधी बताया है . जरांगे पाटिल ने अचानक अपने कैंडिडेट उतारे और अचानक ही उन्होंने अपने उम्मीदवारों को वापस लेने का फैसला भी ले लिया. हालांकि जिस तरह वह कभी शिंदे सरकार के प्रति हमदर्दी जताते हैं उससे लगता है कि वे शिंदे सरकार के साथ हैं. पर राजनीतिक लोगों का मानना है कि वह एमवीए के समर्थन करने का संदेश दे रहे हैं. यदि उन्होंने स्वतंत्र मराठा उम्मीदवारों का समर्थन किया होता, तो वे मराठा वोटों को काट देते, जिससे महायुति को लाभ होता. एमवीए द्वारा गठित मराठा-मुस्लिम-दलित धुरी कांग्रेस और एनसीपी के लिए अतीत में एक जीत की धुरी रही है पर इस बार यह खतरे में हैं. क्योंकि कुछ लोगों का मानना है कि जरांगे पाटिल कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में शिंदे की मदद कर सकते हैं क्योंकि उनके मन में मुख्यमंत्री के प्रति एक नरम कोना है. उनका गुस्सा न तो शिंदे पर है और न ही अजित पवार पर. उनके लिए तो फडणवीस ही खलनायक हैं.इस तरह महाराष्ट्र विधानसभा की लड़ाई लोकल क्षत्रपों के लिए ज्यादा हो गई बनिस्बत सेंट्रल लीडरशिप के.

Advertisement

2-पार्टी और जाति से ऊपर उठकर क्या लड़की बहिन योजना को मिलेगासपोर्ट

महाराष्ट्र में लडकी बहिन योजना के कारण महिलाएं जाति और अन्य विभाजनों से हटकर वोट कर सकती हैं. महायुति को उम्मीद है कि महिलाएं एक संतुलनकारी शक्ति बनेंगी . प्रसिद्ध पत्रकार नीरजा चौधरी लिखती हैं कि छत्रपति संभाजीनगर जिसे पहले औरंगाबाद कहा जाता था के बाहरी इलाके मेंदर्जन भर महिलाएं जिनमें ज्यादातर दलित, नवबौद्ध या मातंग समुदाय की हैं वो महायुति को वोट देने की बात कहती हैं. ये महिलाएं कहती हैं कि उन्होंने लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को वोट दिया था, यह सोचकर कि अनुसूचित जातियों (एससी) के लिए आरक्षण खत्म हो सकता है. हमें यह लगा था कि राहुल गांधी सत्ता में आएंगे तो महंगाई कम कर देंगे. लेकिन इस बार हम अपने भाई एकनाथ शिंदे को वोट देंगे.एक महिला कहती है कि क्योंकि उसने हमारे हाथों में पैसे रखे. महिलाओं को लगता है कि अगर वह सत्ता में लौटे तो हमारे लिए और भी काम करेंगे. चौधरी लिखती हैं कि इस समूह में एकमात्र मराठा महिला की दुविधा स्पष्ट थी. क्योंकि उसके लिए जरांगे पाटिल का संदेश स्पष्ट था कि बीजेपी को हराना है.फिर भी वो कहती है कि हमने अपने हाथों में पैसे लिए हैं.

Advertisement

3-शरद पवार और अजित पवार की लड़ाई में कौन भारी

महाराष्ट्र की राजनीति में ग्राउंड लेवल पर पवार फैमिली के नाम पर भी वोट किसे देना है इसकी चर्चा हो रही है.
महाराष्ट्र के दूसरे उपमुख्यमंत्री अजित पवार को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. अजीत पवार ने क्लियर कर दिया है कि वह नहीं चाहते कि मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे वरिष्ठ बीजेपी नेता उनके पार्टी कोटे की सीटों पर प्रचार न करें क्योंकि वह नहीं चाहते कि उनके सांप्रदायिक बयान से उनके कोर वोटर मुस्लिम नाराज हो जाएं. उन्होंने अपने समर्थकों से शरद पवार पर भी व्यक्तिगत रूप से हमला न करने का भी निर्देश दिया है क्योंकि इससे उनके चाचा के प्रति सहानुभूति पैदा होती है. शरद पवार भी अपना इमोशनल कार्ड खेल चुके हैं. उन्होंने ऐसे संकेत दिए हैं कि यह लड़ाई उनकी अंतिम लड़ाई है. मुस्लिम वोटों के लिये भी उन्होंने अपनी मजबूत दावेदारी ठोंकी है. एक दिन तो सिनियर पवार ने यहां तक कह दिया कि उनके सत्ता में रहते हुए मुंबई विस्फोटों में कुल मरने वालों में एक मुस्लिम का नाम उन्होंने केवल इसलिए जुड़वा दिया था ताकि ये मामला केवल हिंदुओं पर हमले का न बन जाए. जाहिर है मुस्लिम वोटों की एनसीपी ( एसपी) भी तगड़ी दावेदार है.

Advertisement

4-उद्धव और शिंदे का संघर्ष

शिवसेना के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे हैं, जिन्हें मुख्यमंत्री माझी लडकी बहिन योजना के कारण सराहा जा रहा है. शिंदे धीरे-धीरे खुद को एक मराठा नेता के रूप में स्थापित कर रहे हैं. जैसा कि स्पष्ट है कि आरक्षण की मांग राज्य में मराठा शक्ति की पुनर्स्थापना के बारे में है. जिस पर कभी कांग्रेस और एनसीपी का एकाधिकार होता था. पर अब मराठों के बीच में शिंदे भी अपनी जगह बना लिए हैं. स्थानीय मराठे जरंगे पाटिल को शरद पवार के करीब मानते हैं, पर बहुत से मराठे यहा तक कहते हैं कि पवार, शिंदे और जरंगे एक हैं. सबसे गंभीर बात ये है कि उद्धव ठाकरे मराठ स्वाभिमान से परे हैं. वे अभी भी असली शिवसेना के रूप में पहचाने जाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उनके प्रति सद्भावना है, लेकिन लोकसभा चुनावों के दौरान जितनी थी उतनी अब नहीं रह गई है.

Live TV

\\\"स्वर्णिम
+91 120 4319808|9470846577

स्वर्णिम भारत न्यूज़ हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.

मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Laptops | Up to 40% off

अगली खबर

शेफाली जामवाल ने जीता मिसेज यूनिवर्स अमेरिका का टाइटल, इस जवाब ने बनाया विनर

मिसेज यूनिवर्स अमेरिका 2024 टाइटल के विनर का ऐलान हो चुका है. जिसे जम्मू की मूल निवासी शेफाली जामवाल ने अपने नाम किया है. उनके सिर मिसेज यूनिवर्स अमेरिका 2024 का ताज सजा है. शेफाली भारतीय सेना के ब्रिगेडियर (रिटायर्ड) की बेटी हैं.

जम्मू की म

आपके पसंद का न्यूज

Subscribe US Now