पिछले साल संक्रामक और पैरासाइट से जुड़ीं बीमारियों से दिल्ली में हुईं थीं 21 हजार मौतें, यकीन न हो तो आंकड़े देख लीजिए

नई दिल्ली: दिल्ली में संक्रामक और पैरासाइट से जुड़ीं बीमारियां अभी भी एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या बनी हुई हैं। 2023 में दिल्ली में अस्पतालों में हुई हर चार मौतों में से एक मौत इन बीमारियों के कारण हुई है। दिल्ली सरकार के अर्थशास्त्र और सांख्यिकी नि

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नई दिल्ली: दिल्ली में संक्रामक और पैरासाइट से जुड़ीं बीमारियां अभी भी एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या बनी हुई हैं। 2023 में दिल्ली में अस्पतालों में हुई हर चार मौतों में से एक मौत इन बीमारियों के कारण हुई है। दिल्ली सरकार के अर्थशास्त्र और सांख्यिकी निदेशालय (Directorate of Economics And Statistics) ने मृत्यु के कारणों के चिकित्सा प्रमाणन पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है।
रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 21,000 लोग संक्रामक और परजीवी बीमारियों(Parasite Dieseases) से काल के गाल में समा गए। इनमें हैजा, टाइफाइड, दस्त, आंत्रशोथ, टीबी, कुष्ठ रोग, डिप्थीरिया, टेटनस, सेप्टीसीमिया, हेपेटाइटिस बी, एचआईवी, मलेरिया जैसी बीमारियां शामिल हैं। यह कुल संस्थागत मौतों का लगभग 24% है। सेप्टीसीमिया से सबसे ज्यादा 15,332 जबकि टीबी से 3,904 मौतें हुईं।

किन बीमारियों से हुई सबसे ज्यादा मौतें
2022 की तुलना में 2023 में संक्रामक और पैरासाइट से जुड़ी बीमारियों से अधिक लोगों की मृत्यु हुई। 2022 में, इन बीमारियों से 17,117 लोगों की मृत्यु हुई थी, जो उस वर्ष शहर में दर्ज 81,630 संस्थागत मौतों का 21% था। 2022 में जहां 16,982 (20.8%) लोग संचार प्रणाली के रोगों पुरानी दिल की बीमारी, हाई ब्लड प्रेशर के चलते हृदय रोग आदि बीमारियों के चलते अपनी जान गंवाई, वहीं 2023 में उनकी संख्या घटकर 15,714 हो गई। नियोप्लाज्म कैंसर और कैंसर से संबंधित बीमारियों के कारण संस्थागत मौतों की संख्या 2023 के दौरान 6,054 दर्ज की गई, जो 2022 में दर्ज की गई 5,409 से लगभग 12% अधिक थी।

2023 में देश की राजधानी दिल्ली में कुल 1,32,391 मौतें दर्ज की गईं, जो 2022 में 1,28,106 मौतों की तुलना में 3% अधिक है। इनमें से 88,628 या 66.9% स्वास्थ्य केंद्रों में पंजीकृत थीं, जबकि शेष 43,763 या 33.06% घरेलू मौतें थीं। रिपोर्ट विशेष रूप से दिल्ली में संस्थागत मौतों के आंकड़ों पर आधारित थी। शिशुओं में, सबसे ज्यादा मौतें भ्रूण की धीमी वृद्धि(Slow Foetal Growth), भ्रूण कुपोषण(Foetal Malnutrition) और अपरिपक्वता (1,517) के कारण हुईं, इसके बाद निमोनिया (1,373), सेप्टीसीमिया (1,109), और हाइपोक्सिया, जन्म के समय श्वासावरोध(Birth Asphyxia) और अन्य श्वसन स्थितियां (704) का स्थान रहा।

88,628 संस्थागत मौतों के आयु-वर्ग के अनुसार विश्लेषण से पता चला कि 2023 में रिपोर्ट की गई हर तीसरी संस्थागत मृत्यु 45-64 आयु वर्ग में हुई। जहां पिछले साल इस श्रेणी में 28,611 (32.3%) पुरुषों और महिलाओं की मृत्यु हुई, वहीं 65 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग में 26,096 (29.4%) और 25-44 आयु वर्ग में 16,950 (19.1%) मौतें दर्ज की गईं। 2022 में, 81,630 संस्थागत मौतों में से 26,266 (32.2%) 45-64 वर्ष की आयु वर्ग में हुईं, इसके बाद 65 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग में 23,113 (28.3%) और 25-44 वर्ष की आयु वर्ग में 15,727 (19.3%) मौतें हुईं।

क्यों जरूरी थी ये रिपोर्ट?
रिपोर्ट के प्रकाशन से जुड़े एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि डेटा सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों की प्रभावशीलता का आकलन करने में मदद करता है और भविष्य की नीति और साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने और कार्यान्वयन के लिए प्रतिक्रिया प्रदान करता है। अधिकारी ने कहा कि रिपोर्ट डेटा बेहतर स्वास्थ्य योजना और प्रबंधन और स्वास्थ्य और चिकित्सा अनुसंधान कार्यक्रमों की प्राथमिकताओं को तय करने के लिए एक शर्त थी। दूसरे अधिकारी ने कहा कि मृत्यु के कारण के चिकित्सा प्रमाणन की प्रणाली कारण-विशिष्ट मृत्यु दर प्रोफाइल प्रदान करती है, जो वैज्ञानिक तरीके से जनसंख्या के स्वास्थ्य के रुझानों का विश्लेषण करने के लिए एक प्रमुख संकेतक है। विभिन्न आयु समूहों में मृत्यु के कारणों के विश्लेषण का सार्वजनिक स्वास्थ्य योजनाकारों और प्रशासकों, चिकित्सा पेशेवरों, महामारी विज्ञानियों और शोधकर्ताओं के लिए बहुत महत्व है।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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