क्या अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के फाउंडर सर सैयद अहमद अंग्रेजों के पिट्ठू थे...जिन्ना ने इसे पाकिस्तान का शस्त्रागार क्यों कहा?

नई दिल्ली: 1857 में हिंदुस्तान में पहले स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों ने बांटों और राज करो की नीति अपनाई। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम को दबाने के बाद हिंदुओं और मुस्लिमों को बांटने की नीति पर काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने इसी नीति के तहत

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नई दिल्ली: 1857 में हिंदुस्तान में पहले स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों ने बांटों और राज करो की नीति अपनाई। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम को दबाने के बाद हिंदुओं और मुस्लिमों को बांटने की नीति पर काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने इसी नीति के तहत मुस्लिमों को आगे बढ़ाने का काम शुरू किया। इसी दौरान एक मुस्लिम विद्वान सर सैयद अहमद खान ने भारत के मुसलमानों की हालत में सुधार के लिए पश्चिमी शिक्षा को अपनाने और ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति वफादारी को बढ़ावा देने की योजना बनाई। सर सैयद अहमद खान का सबसे बड़ा योगदान 1877 में मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज (MAO) की स्थापना माना जाता है, जो आखिरकार 1920 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के रूप में विकसित हुआ। जानते हैं इस यूनिवर्सिटी की कहानी और इससे जुड़े विवाद के बारे में। अब इस यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा दिए जाने का मामला सुप्रीम कोर्ट में है। इसी साल फरवरी में सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ ने AMU को अल्पसंख्यक दर्जे की मांग वाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा था।

क्या अंग्रेजों के एजेंट थे सर सैयद अहमद खान

इतिहासकार डॉ. दानपाल सिंह के अनुसार, सर सैयद अहमद खान ब्रिटिश राज में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में सेवा करने वाले पहले मुस्लिम थे। मुगलों की ताकत में गिरावट को देखते हुए सर सैयद ने ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में प्रवेश करने का फैसला किया। उन्होंने मुस्लिम समाज में सुधार लाने और अंग्रेजी शिक्षा और सरकारी सेवा के प्रति विरोध को दूर करने के लिए एक आंदोलन शुरू किया, जिसे अलीगढ़ आंदोलन कहा गया। इस बात पर उन पर अंग्रेजों के एजेंट होने के आरोप भी लगे थे। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने भी एक बार कहा था कि सर सैयद अहमद खान ब्रिटिश एजेंट थे। उन्होंने कहा था कि एएमयू और बीएचयू की स्थापना डिवाइड एंड रूल के तहत की गई थी।
Sir Sayed Ahmed khan


महारानी विक्टोरिया के बर्थडे पर हुआ उद्घाटन

स्कूल का आधिकारिक उद्घाटन समारोह 24 मई, 1875 को महारानी विक्टोरिया के जन्मदिन पर हुआ। 1876 में सर सैयद रिटायर हो गए और स्थायी रूप से अलीगढ़ में बस गए। अलीगढ़ कॉलेज की नींव 8 जनवरी, 1877 को लॉर्ड लिटन ने रखी गई थी। हेनरी जॉर्ज इंपे सिडंस को कॉलेज का पहला प्रिंसिपल बनाया गया।

हैदराबाद के निजाम, पटियाला के महाराजा से जुटाया फंड

सर सैयद ने कॉलेज के लिए धन जुटाने के लिए पूरे भारत की यात्रा की और 1880 तक हैदराबाद के निजाम, पटियाला के महाराजा, रामपुर के नवाब और सालार जंग प्रथम से काफी चंदा जुटाया। उन्होंने व्यक्तिगत रूप से इमारतों के निर्माण का निरीक्षण भी किया। 1898 में सर सैयद की मृत्यु हो गई और उन्हें परिसर में मस्जिद के पास एक कब्र में दफनाया गया।

हिंदुओं से ज्यादा अंग्रेजों से संबंध सुधारने पर जोर

इतिहासकार डॉ. दानपाल सिंह के अनुसार, सर सैयद अहमद खान ने हिंदुओं से ज्यादा अंग्रेजों से संबंध सुधारने पर जोर दिया। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता की वकालत की और उनके साझा इतिहास और हितों पर ज़ोर दिया। उन्होंने धार्मिक और राजनीतिक मामलों को अलग रखने की वकालत की थी। उन्होंने अलीगढ़ आंदोलन के ज़रिए मुस्लिम पुनरुत्थान की कोशिश की।

क्या पाकिस्तान आंदोलन के जनक थे सर सैयद अहमद

दानपाल सिंह बताते हैं कि सर सैयद अहमद खान ने दो राष्ट्र सिद्धांत के बारे में आइडिया भी दिया था, जिसके लिए उन्हें 'पाकिस्तान आंदोलन का जनक' कहा जाता है। उन्होंने मुरादाबाद और गाजीपुर में एक स्कूल की स्थापना की और 1863 में अलीगढ़ में मुसलमानों के लिए वैज्ञानिक सोसायटी की स्थापना की।

ब्रिटिश राज में बने थे पहले मुस्लिम जज

1941 में मोहम्मद अली जिन्ना ने 'AMU को पाकिस्तान का शस्त्रागार' करार दिया था। यहां तक कि 31 अगस्त, 1941 को AMU के छात्रों को संबोधित करते हुए पाकिस्तान के पहले पीएम लियाकत अली खान ने AMU के छात्रों से कहा था कि हम मुस्लिम राष्ट्र की स्वतंत्रता की लड़ाई जीतने के लिए हर तरह के गोला-बारूद के लिए आपकी ओर देखते हैं।

मध्य पूर्व के लिए अलीगढ़ को अरबी कॉलेज बनाने का प्रस्ताव

1899 में एक अंग्रेज एजुकेशनिस्ट थियोडोर मॉरिसन को प्रिंसिपल बनाया गया। उन्होंने मध्य पूर्व यानी तत्कालीन अरब और इजरायल में ब्रिटिश शासन में पदों को भरने के लिए अलीगढ़ से उम्मीदवारों की भर्ती करने की सोची। उन्होंने इस संस्थान को एक अरबी कॉलेज में बदलने का प्रस्ताव तैयार किया। हालांकि, ऐसा नहीं हो पाया, मगर उनके प्रस्ताव के मुताबिक संस्थान में एक विभाग अरबी का भी बना दिया गया।

क्या था AMU का विवाद, इंदिरा सरकार ने दिलाया अल्पसंख्यक दर्जा

1967 में एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में 5 जजों की संविधान पीठ ने कहा था कि चूंकि AMU एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है। ऐसे में इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता। हालांकि, जब संसद ने 1981 में इंदिरा गांधी की सरकार के समय में तब AMU (संशोधन) अधिनियम पारित कर इसे अल्पसंख्यक दर्जा वापस दिला दिया। जनवरी 2006 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने AMU (संशोधन) अधिनियम, 1981 के तहत दिए जाने अल्पसंख्यक के दर्जे वाले प्रावधान को रद्द कर दिया।

अल्पसंख्यक दर्जे के लिए कांग्रेस सरकार गई थी कोर्ट

केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली UPA सरकार ने 2006 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील दायर की। AMU ने भी इसके खिलाफ अलग से याचिका दायर की। हालांकि, 2016 में मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा देने का कोई मतलब नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह था मामला

सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले में तय करेगा कि संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत किसी शैक्षणिक संस्थान को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने के मानदंड क्या हैं? साथ ही सुप्रीम कोर्ट ये भी तय करेगा कि क्या संसदीय कानून द्वारा निर्मित कोई शैक्षणिक संस्थान संविधान के अनुच्छेद 30 के अंतर्गत अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त कर सकता है?

AMU को लेकर केंद्र सरकार की दलील क्या है?

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के बारे में केंद्र सरकार का कहना है कि AMU एक राष्ट्रीय चरित्र का संस्थान है। संविधान सभा में बहस का हवाला देते हुए इसमें कहा गया है कि एक विश्वविद्यालय जो स्पष्ट रूप से राष्ट्रीय महत्व का संस्थान था और है, उसे एक गैर-अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय होना चाहिए। विश्वविद्यालय को सूची की प्रविष्टि 63 में शामिल करके एक विशेष दर्जा दिया गया है क्योंकि इसे राष्ट्रीय महत्व का संस्थान माना गया था।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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