Aligarh Muslim University: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर सुप्रीम फैसला आज यानी 8 नवंबर को फैसला सुनाने वाला है. इस फैसले की ओर सभी की निगाहें लगी हुईं हैं. जिसके बाद अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर चर्चा तेज हो गई है. सरकार इस मामले में अल्पसंख्यक दर्जा देने का विरोध कर रही है, जबकि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अपने पक्ष में फैसला चाहती है तो क्या है वह फायदा जिसको लेकर विवाद पहुंच गया सुप्रीमकोर्ट. तो आइए जानते हैं कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा मिल जाने से उसे क्या होने वाला है फायदा.
आज तय हो जाएगा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का भविष्य? अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के ‘अल्पसंख्यक दर्जे’ को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही थी, जिसको लेकर 8 नवंबर को प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ फैसला सुनाने वाली है. पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा भी शामिल हैं. उन्होंने आठ दिन तक दलीलें सुनने के बाद एक फरवरी को इस सवाल पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने दलील दी कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक राष्ट्रीय संस्थान है, अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एएमयू से यह बताने को कहा था कि अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में उसका दर्जा कैसे उचित है, ये बताइए. शीर्ष अदालत ने विशेष रूप से उल्लेख किया कि एएमयू की 180 सदस्यीय गवर्निंग काउंसिल में केवल 37 मुस्लिम सदस्य हैं. तो हम आपको ‘अल्पसंख्यक दर्जा’ कैसे दें.
जानिए क्या है ‘अल्पसंख्यक दर्जा’? भारत के संविधान का अनुच्छेद 30(1) सभी भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान चलाने और खोलने का अधिकार देता है. ये प्रावधान सरकार द्वारा अल्पसंख्यक समुदायों के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए किए गए हैं. इससे उन्हें शैक्षणिक संस्थान चलाने की आजादी मिलती है और यह भी आश्वासन है कि सरकार वित्तीय सहायता में भेदभाव नहीं करेगी क्योंकि यह एक ‘अल्पसंख्यक संस्था’ है.
‘अल्पसंख्यक दर्जा’ मिलने से क्या होता है फायदा? इंडियन एक्सप्रेस मे छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक अल्पसंख्यक संस्थान को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी उम्मीदवारों के लिए कोटा न देने की स्वतंत्रता है. जो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के लिए सबसे बड़ा फायदा है. वहीं एक मीडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक
अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान को कुल मिलाकर तीन लाभ मिलते हैं, जो अन्य संस्थानों को नहीं मिलते हैं.
मोदी सरकार ने अलीगढ़ यूनिवर्सिटी को 5 साल में दिए 5467 करोड़ टाइम्स ऑफ इंडिया में 1 फरवरी 2024 में छपी रिपोर्ट के मुताबिक वरिष्ठ अधिवक्ता गुरु कृष्ण कुमार ने इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि केंद्र सरकार ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के लगभग पूरे खर्चों को पूरा करने के लिए 2019-23 के दौरान 5,467 करोड़ रुपये प्रदान किए हैं. और और पूछा कि अगर यह अल्पसंख्यक सहायता प्राप्त संस्थान होता तो क्या इसे केंद्र से इतनी बड़ी धनराशि मिलती. उन्होंने कहना था कि संविधान निर्माताओं और बाद की सरकारों द्वारा एएमयू को लगातार उत्कृष्टता और राष्ट्रीय महत्व का संस्थान बताया गया है,
क्यों न मिले अल्पसंख्यक का दर्जा, वकील ने किया दी थी दलील? यह भारत के प्रत्येक नागरिक का है और इसे सांप्रदायिक आधार पर वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि 2019-23 के दौरान एएमयू की तुलना में राष्ट्रीय महत्व के अन्य संस्थानों को कम अनुदान मिला: जामिया मिलिया इस्लामिया - 1,805 करोड़ रुपये; मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय - 672 करोड़ रुपये और हैदराबाद विश्वविद्यालय - 1,361 करोड़ रुपये# हाईकोर्ट के समक्ष एक अन्य मूल याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज के कौल ने कहा कि ऐतिहासिक तथ्य यह है कि एएमयू की स्थापना अंग्रेजों ने एक क़ानून के ज़रिए की थी, विश्वविद्यालय के लिए पैरवी करने वाले आंदोलन के संरक्षकों द्वारा अल्पसंख्यक का दर्जा छोड़ दिया गया था, और लगातार सरकारों का यह लगातार रुख रहा है कि संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत यह अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है, जिसे संसद द्वारा 1981 में एएमयू अधिनियम, 1920 में संशोधन के ज़रिए समाप्त नहीं किया जा सकता था.
कब से शुरू हुआ विवाद ? अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर कानूनी विवाद 1967 में शुरू हुआ था. एएमयू (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे को पहली बार सुप्रीम कोर्ट में ‘एस. अजीज बाशा और अन्य बनाम भारत संघ’ मामले में चुनौती दी गई थी. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की तरफ से याचिकाकर्ताओं ने मुख्य रूप से इस आधार पर बहस किया था कि मुसलमानों ने एएमयू की स्थापना की थी और इसलिए इसे चलाना और प्रबंधन करना उनका अधिकार है.
अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का गठन कब और कैसे हुआ? अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की शुरुआत 1875 में मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज के रूप में हुई थी. सर सैयद अहमद खान ने शिक्षा में मुसलमानों का पिछड़ापन दूर करने और उन्हें सरकारी सेवाओं के लिए तैयार करने करने के लिए किया था. सर सैयद महिला शिक्षा के भी समर्थक थे. 1920 में इस संस्था को विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया. जब इसे विश्वविद्यालय का दर्जा मिला तो कॉलेज की सारी संपत्ति विश्वविद्यालय को दे दी गई.
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