क्या AMU को मिलेगा अल्पसंख्यक दर्जा? लास्ट वर्किंग डे पर आज CJI सुनाएंगे फैसला, 57 साल पहले शुरू था विवाद

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अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे पर सुप्रीम कोर्ट आज फैसला सुनाएगा. इस मामले की सुनवाई करने वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ के अगुआ चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ 10 नवंबर को सेवानिवृत हो रहे हैं. इसका मतलब है कि टेक्निकली आज यानी शुक्रवार को उनका आखिरी वर्किंग डे होगा. इस मामले में सात जजों की पीठ ने आठ दिन सुनवाई कर एक फरवरी को फैसला सुरक्षित रखा था. अब नौ महीने बाद इसका फैसला आएगा.

अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि संविधान के अनुच्छेद-30 के तहत किसी शैक्षणिक संस्थान को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने के मानदंड क्या हैं. सर्वोच्च अदालत यह भी तय करेगी कि क्या संसदीय कानून द्वारा निर्मित कोई शैक्षणिक संस्थान संविधान के अनुच्छेद 30 के अंतर्गत अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त कर सकता है.

क्या है संविधान का अनुच्छेद 30?

संविधान का अनुच्छेद 30 भारत में धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक समुदायों को अपने धार्मिक और शैक्षिक अधिकारों का संरक्षण प्रदान करता है. इसे 'धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के शैक्षिक अधिकार' कहा जाता है. अनुच्छेद 30 के तहत, किसी भी अल्पसंख्यक समुदाय को यह अधिकार है कि वह अपनी धार्मिक और शैक्षिक गतिविधियों के लिए संस्थान स्थापित कर उनका संचालन कर सके. राज्य उन संस्थानों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता, जब तक कि वह संस्थान राष्ट्रीय हित और अन्य कानूनी मानकों के खिलाफ न हो. इस अनुच्छेद का उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदायों को उनके सांस्कृतिक, धार्मिक और शैक्षिक अधिकारों के संरक्षण की गारंटी देना है, ताकि वे अपनी पहचान बनाए रख सकें और प्रगति कर सकें.

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क्या है इतिहास और क्या है विवाद?

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना 1875 में सर सैयद अहमद खान द्वारा 'अलीगढ़ मुस्लिम कॉलेज' के रूप में की गई थी, जिसका उद्देश्य मुसलमानों के शैक्षिक उत्थान के लिए एक केंद्र स्थापित करना था. बाद में, 1920 में इसे विश्वविद्यालय का दर्जा मिला और इसका नाम 'अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय' रखा गया.

एएमयू अधिनियम 1920 में साल 1951 और 1965 में हुए संशोधनों को मिलीं कानूनी चुनौतियों ने इस विवाद को जन्म दिया. सुप्रीम कोर्ट ने 1967 में कहा कि एएमयू एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी है. लिहाजा इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता. कोर्ट के फैसले का अहम बिंदू यह था कि इसकी स्थापना एक केंद्रीय अधिनियम के तहत हुई है ताकि इसकी डिग्री की सरकारी मान्यता सुनिश्चित की जा सके. अदालत ने कहा कि अधिनियम मुस्लिम अल्पसंख्यकों के प्रयासों का परिणाम तो हो सकता है लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि विश्वविद्यालय की स्थापना मुस्लिम अल्पसंख्यकों ने की थी.

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2005 में संशोधन को किया खारिज

सर्वोच्च अदालत के इस फैसले ने एएमयू की अल्पसंख्यक चरित्र की धारणा पर सवाल उठाया. इसके बाद देशभर में मुस्लिम समुदाय ने विरोध प्रदर्शन किए जिसके चलते साल 1981 में एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा देने वाला संशोधन हुआ. साल 2005 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 1981 के एएमयू संशोधन अधिनियम को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर दिया. 2006 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी. फिर 2016 में केंद्र ने अपनी अपील में कहा कि अल्पसंख्यक संस्थान की स्थापना एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के सिद्धांतों के विपरीत है. साल 2019 में तत्कालीन CJI रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने मामले को सात जजों की बेंच के पास भेज दिया था. आज इस पर फैसला आने वाला है.

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कोर्ट में सरकार ने क्या दलीलें दीं?

सुनवाई के दौरान एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जे में रखे जाने पर आपत्ति जताते हुए केंद्र सरकार ने कहा था कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा देने का कोई मतलब नहीं है. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने भी किसी भी शिक्षण संस्थान को अल्पसंख्यक दायरे में सीमित रखने के बजाय सबके लिए खुला रखने की बात कही थी. सुप्रीम कोर्ट में लिखित दलीलें दाखिल करते हुए मौजूदा एनडीए सरकार ने दस साल पहले की यूपीए सरकार के विपरीत रुख दिखाया है.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के जरिए दाखिल की गई अपनी दलील में केंद्र सरकार ने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक का टैग न दिया जाए क्योंकि एएमयू का राष्ट्रीय चरित्र है. एएमयू किसी विशेष धर्म का विश्वविद्यालय नहीं हो सकता क्योंकि यह हमेशा से राष्ट्रीय महत्व का विश्वविद्यालय रहा है. मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि अपने 'राष्ट्रीय चरित्र' को देखते हुए, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता है. यह किसी विशेष धर्म का संस्थान नहीं हो सकता है.

यूपीए सरकार ने SC में दी थी हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की याचिका पर सात जजों की संविधान पीठ में सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस दीपांकर दत्ता, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा शामिल हैं.

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मामले में मोदी सरकार का रुख यूपीए सरकार के रुख से बिल्कुल उलट है जिसने 2005 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है. तत्कालीन यूपीए सरकार ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

'राष्ट्रीय महत्व का संस्थान'

हालांकि 2016 में, एनडीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि वह यूपीए सरकार द्वारा दायर अपील को वापस ले रही है. एसजी तुषार मेहता ने केंद्र की ओर से जब ये दलीलें दीं तो स्थिति पूरी तरह स्पष्ट हो गई. उन्होंने कहा कि एएमयू किसी विशेष धर्म या धार्मिक संप्रदाय का विश्वविद्यालय नहीं है और न ही हो सकता है क्योंकि कोई भी विश्वविद्यालय जिसे राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया है वह अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता है.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलें

अपनी लिखित दलील में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि विश्वविद्यालय हमेशा से राष्ट्रीय महत्व का संस्थान रहा है. यहां तक कि स्वतंत्रता-पूर्व युग में भी इसकी छवि और साख यही रही है. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना 1875 में हुई थी. भारत संघ के निवेदन के अनुसार, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एक राष्ट्रीय चरित्र का संस्थान है.

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दस्तावेज में कहा गया कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना से जुड़े दस्तावेजो और यहां तक कि तत्कालीन मौजूदा विधायी स्थिति का एक सर्वेक्षण बताता है कि एएमयू हमेशा एक राष्ट्रीय चरित्र वाला संस्थान था. संविधान सभा में बहस का हवाला देते हुए इसमें कहा गया है कि एक विश्वविद्यालय जो स्पष्ट रूप से राष्ट्रीय महत्व का संस्थान था और है, उसे एक गैर-अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय होना चाहिए.

विश्वविद्यालय को सूची की प्रविष्टि 63 में शामिल करके एक विशेष दर्जा दिया गया है क्योंकि इसे 'राष्ट्रीय महत्व का संस्थान' माना गया था. एसजी ने कहा कि संविधान ने इसे अल्पसंख्यक संस्थान या अन्यथा अर्थ वाला नहीं माना है.

(इनपुट: संजय शर्मा)

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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