डोनाल्ड ट्रंप का दोबारा अमेरिका का राष्ट्रपति चुना जाना दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक वापसी में से एकगिना जाएगा. उनके विरोधियों, बल्कि कहें उनके दुश्मनों, ने उन्हें रोकने के लिए हर संभव कोशिश की. उन्हें बदनाम किया गया. निशाने पर लिया गया. और, हर तरह से उनकीआलोचना की गई.
जब यह सभी नाकाफी साबित हुई, तो उन पर कानूनी कार्रवाई का एक ऐसा सिलसिला चलाया गया, जिसका लक्ष्य उन्हें जेल तक पहुंचानाथा. उन पर 6 जनवरी 2021 को हुए कथित बगावत के आरोप लगे, और लगभग उन्हें खत्म कर देने की कोशिश की गई. यहां तक कि उन्हें इतना बड़ा नफरत का चेहरा बना दिया गया कि उन पर हमला तक किया गया. लेकिन इन सबके बावजूद उन्होंने अपने समर्थकों के दिल में जगह बनाए रखी, जबकि उनके विरोधी उनका सही आकलन करने में नाकाम रहे. उनके विरोधी जनता की असल चिंताओं और असुरक्षाओं को समझ नहीं पाए.
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अब ट्रंप की दूसरी पारी पर अमेरिका के लेफ्ट-लिबरल्स और 'वोक' लोग भले ही नाराज हों, लेकिन दुनिया भी ये देख रही है कि इसका असर क्या होगा. ट्रंप का दूसरा कार्यकाल ऐसे समय में आ रहा है जब पूरी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में बदलाव हो रहा है. अमेरिका आज भी एक महाशक्ति है, लेकिन उसका प्रभाव कम होता जा रहा है. नई साझेदारियाँ और गठबंधन उभर रहे हैं, जो पुराने अमेरिकी नेतृत्व वाले विश्व व्यवस्था को चुनौती दे रहे हैं.
ट्रंप को इस बार नए संबंध बनाते समय ध्यान रखना होगा कि वह दूसरे देशों को अमेरिका से दूर न कर दें. इस बीच, भारत और अमेरिका के संबंध को भी गहराने का मौका मिल सकता है. हालांकि, व्यापार और अन्य मुद्दों पर भारत को अपने हितों को लेकर और मजबूत रुख अपनाना होगा.
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ट्रंप का लेन-देन का नजरिया बुरा नहीं है. अंतरराष्ट्रीय संबंध वैसे भी लेन-देन पर ही टिके होते हैं. जहां हित मिलते हैं, वहां दोनों देश एक-दूसरे के लिए व्यापार, सुरक्षा, या तकनीक में कुछ देने-लेने को तैयार रहते हैं. भारत-अमेरिका संबंधों में यह फायदा है कि ये केवल एक मुद्दे पर आधारित नहीं हैं, बल्कि सुरक्षा, व्यापार, तकनीक और जनता से जनता के संबंध भी जुड़ते हैं. ऐसे में, भारत को अब आत्मविश्वास से अमेरिका के साथ डील करनी चाहिए.
हालांकि, यह तय करना जल्दी होगा कि ट्रंप की इस पारी का रुख क्या रहेगा, लेकिन इस बार वे पहले से शांत और संतुलित नजर आ रहे हैं. वे व्यापार पर सख्त हो सकते हैं, लेकिन संभवतः अन्य मुद्दों पर दखल देने से बचेंगे. जो नैतिकता और लोकतंत्र के उपदेश देना आमतौर पर अमेरिकी डेमोक्रेट्स का चलन होता है, वह इस बार शायद कम देखने को मिलेगा.
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ट्रंप का एंटी-वार नजरिया भारत के लिए लाभदायक हो सकता है, खासकर अगर वह रूस के साथ कुछ शांति कायम करना चाहें. भारत पर रूस के खिलाफ दबाव कम हो सकता है. ऐसे में, अगर भारत को यूक्रेन युद्ध खत्म कराने में कोई भूमिका मिलती है, तो इसे केवल अच्छे संबंधों के लिए नहीं, बल्कि एक ठोस रणनीतिक लाभ के रूप में देखना चाहिए.
मध्य पूर्व भी एक अहम क्षेत्र है जहां ट्रंप ध्यान देंगे, खासकर इजराइल और ईरान के बीच तनाव को लेकर. हो सकता है कि वे ईरान पर आर्थिक दबाव डालने की रणनीति अपनाएं, हालांकि इसकी सफलता विवादित है. वहीं, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत का प्रभाव बढ़ सकता है, विशेषकर अमेरिका और चीन के बीच संभावित आर्थिक तनाव के कारण. लेकिन इसके लिए भारत को अपनी व्यापार व्यवस्था को सुधारने और अंतरराष्ट्रीय सप्लाई चेन में अपनी जगह बनाने पर काम करना होगा.
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चीन ने भारत को अमेरिका से दूर रखने के लिए दबाव डाला, लेकिन इसका उलटा असर हुआ. अब चीन भारत को और करीब आने से रोकने की कोशिश में संतुलित रुख अपना रहा है. यह एक ऐसा अवसर है, जिसका भारत फायदा उठा सकता है – चीन को अस्थिर रखते हुए अमेरिका और उसके सहयोगियों के साथ संबंध मजबूत करने का.
अंत में, डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच का संबंध भी महत्वपूर्ण हो सकता है. ट्रंप ने हमेशा मोदी के बारे में सकारात्मक बात की है. उन्हें पता है कि पीएम मोदी एक टफ निगोशिएटर हैं, लेकिन दोनों देशों के रिश्ते गहराने में रुचि रखते हैं.
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ट्रंप की टीम में कुछ लोग भारत समर्थक हो सकते हैं – जैसे तुलसी गेबार्ड और विवेक रामास्वामी. इसके अलावा उपराष्ट्रपति जेडी वेंस की पत्नी उषा वेंस का भारतीय कनेक्शन भी रिश्तों में मजबूती ला सकता है. कुल मिलाकर, ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भारत के पास काफी संभावनाएं हैं, हालांकि कुछ चुनौतियां भी आएंगी जिसके लिए लिए तैयार रहना होगा.
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