अमेरिकी चुनाव नतीजों में ट्रंप की जीत पर भारत को बहुत जश्न मनाने की जरूरत नहीं । opinion

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अमेरिकी चुनाव और उसके नतीजों के दौरान बहुत कुछ ऐसा हुआ, जिसने भारतीय चुनाव की यादें ताजा कर दीं. ईवीएम पर आरोप लगे. कॉर्पोरेट्स और नेताओं के गठजोड़ को मुद्दा बनाया गया. संविधान बदलने की आशंका जताई गई. घुसपैठियों की समस्‍या चर्चा में रही. लेकिन, इन सब आरोप-प्रत्‍यारोप के बीच US election results जिस तरफ जा रहे हैं, उससे यही लगता है कि डोनाल्‍ड ट्रंप दूसरी बार अमेरिका के राष्‍ट्रपति बनने जा रहे हैं. यानी, 'फिर एक बार ट्रंप सरकार'.

सितंबर 2019 में अमेरिका के टेक्सास प्रांत के ह्यूस्‍टन शहर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति ने 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम में शिरकत की थी. जिसमें मोदी ने बताया था कि उन्‍हें पता चला है कि 'भारत में उनके चुनाव की अमेरिका में भी कहा जा रहा है कि फिर एक बार ट्रंप सरकार'. हालांकि, 2020 के चुनाव में ऐसा हो न सका और उन्‍हें जो बाइडेन के हाथों पराजय का सामना करना पड़ा. लेकिन, इस बार कमला हैरिस के सामने उनकी उम्‍मीदवारी ज्‍यादा ताकतवर थी. उनके प्रचार को ज्‍यादा मारक और समन्‍वय वाला बताया गया. अब जबकि वे चुनाव जीतने के करीब हैं, तो भारत के नजरिये इसका विश्‍लेषण कई तरह से किया जा सकता है.

किन मुद्दों पर भारत को अमेरिका से सहयोग मिलेगा

दोस्‍ती- डोनाल्‍ड ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी के बीच काफी दोस्‍ताना संबंध रहे हैं. हाउडी मोदी के बाद ट्रंप 2020 की शुरुआत में भारत आए तो अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्‍टेडियम में हजारों की भीड़ के बीच हुई उनकी सभा को देखकर वे हैरान रह गए थे. अमेरिका जाकर उन्‍होंने इसका खास उल्‍लेख किया. कुछ दिन पहले अमेरिका में मीडिया से बातचीत करते हुए, उन्‍होंने मोदी की फिर तारीफ की. उन्‍हें एक ताकतवर नेता कहा. लेकिन, इन दोनों नेताओं के मधुर रिश्‍तों का एक तरफ करके यदि दोनों देशों के रिश्‍तों को देखें तो कई बातें सकारात्‍मक दिखाई देती हैं.

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चीन की चुनौती- डोनाल्‍ड ट्रंप के पहले कार्यकाल को देखें तो कई बातें आईने की तरह साफ हो जाती हैं. एक तो यह कि उनका प्रशासन एशिया में भारत को बड़ी ताकत के रूप में सम्‍मान देता रहा. खासतौर पर चीन की चुनौती के समक्ष ट्रंप भारत से सहयोग की अपेक्षा करते रहे. ट्रंप के दौर में एशिया-पेसिफिक रीजन की सुरक्षा के मद्देनजर बने रणनीतिक संगठन क्‍वाड में भारत और अमेरिका ज्‍यादा नजदीक आए. दोनों देशों के बीच रणनीतिक संबंध और मजबूत होने की उम्‍मीद की जा सकती है.

अवैध घुसपैठ के मुद्दे पर भी ट्रंप और मोदी एक ही सोच का प्रति‍निधित्‍व करते हैं. जहां अमेरिका में डोनाल्‍ड ट्रंप मेक्सिको से लगी सीमा पर दीवार बना रहे हैं. घुसपैठ को तो उन्‍होंने चुनाव में मुद्दा ही बनाया. वहीं भारत ने मोदी के दौर में CAA और NRC के जरिये घुसपैठ की समस्‍या को चुनौती दी है. यदि भारत कॉमन सिविल कोड के मुद्दे पर आगे बढ़ता है, तो उम्‍मीद की जाना चाहिए कि अमेरिकी डेमोक्रेटिक पार्टी के मुकाबले डोनाल्‍ड ट्रंप ज्‍यादा समर्थन में नजर आएंगे.

आर्म्‍स डील और टेक्‍नोलॉजी ट्रांसफर- ट्रंप के शासन में उम्‍मीद की जाना चाहिए कि भारत को अत्‍याधुनिक हथियारों की सप्‍लाय में अमेरिका से सहयोग मिलेगा. हां, वे हथियारों की टेक्‍नोलॉजी ट्रांसफर में कुछ आनाकानी कर सकते हैं, लेकिन फिर भी उन्‍हें मनाना ज्‍यादा मुश्किल नहीं होगा.

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आतंकवाद- ट्रंप आतंकवाद के खिलाफ काफी मुखर हैं. उन्‍होंने इस्‍लामिक आतंकवाद और जेहाद का बार-बार उल्‍लेख किया है. इसके लिए तो वे अमेरिका में मुस्लिम माइग्रेशन को खतरा बताते रहे हैं. ट्रंप की नीतियां अपनी जगह हैं, लेकिन भारत को पाकिस्‍तान प्रयोजित आतंकवाद के मामले में अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अमेरिका का मुखर सहयोग मिलेगा. आतंकवादियों को प्रश्रय देने के मामले में पाकिस्‍तान को चीन से मिलने वाली शह का मुकाबला करने में भी भारत को अमेरिका का साथ मिलेगा.

कनाडा और खालिस्‍तान- अमेरिका और कनाडा में खालिस्‍तानी गतिविधियां बढ़ने से पिछले दिनों भारत को काफी दिक्‍कतों का सामना करना पड़ा है. न सिर्फ दो देशों के रिश्‍ते खराब हुए हैं, बल्कि भारतीय हिंदुओं की सुरक्षा में खतरे में आ गई है. चूंकि, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की नीतियां अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी से काफी मेल खाती हैं, ऐसे में उम्‍मीद करना चाहिए कि ट्रंप के आने से भारत को कनाडा पर दबाव बनाने में मदद मिलेगी.

लेकिन,अमेरिका से चुनौतियां भीपेश आएंगी

ट्रंप का कोई भरोसा नहीं- वैसे तो डोनाल्‍ड ट्रंप भारत के दोस्त नजर आते हैं, लेकिन वे जिस तरह ताबड़तोड़ फैसले लेते हैं, कई बार उससे असहज स्थिति पैदा हो जाती है. जैसे अपने पहले कार्यकाल में उन्‍होंने इमरान खान को व्‍हाइट हाउस बुलवा लिया, और कश्‍मीर मामले में मध्‍यस्‍थता की इच्‍छा भी जता दी. बाद में भारत के ऐतराज पर अमेरिकी विदेश विभाग को इस मामले में सफाई देनी पड़ी. ज‍बकि, इसके उलट बाइडेन के कार्यकाल में अमेरिका ने पाकिस्‍तान को कोई भाव नहीं दिया.

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H1B वीजा- ट्रंप की नीतियां अप्रवासियों को लेकर काफी सख्‍त रही हैं. उनके दौर में भारतीय प्रोफेशनल्‍स को अमेरिका में काम करने के लिए मिलने वाले H1B वीजा लेने में काफी दिक्‍कत पेश आईं. ट्रंप के नए कार्यकाल में भी भारत सरकार को इस मामले में अमेरिकी सरकार से माथापच्‍ची करनी होगी. ट्रंप मानते हैं कि अमेरिकी नौकरियों पर पहला हक अमेरिका के नागरिकों का होना चाहिए. जबकि डेमोक्रेटिक पार्टी मानती है कि अमेरिका को टैलेंट की जरूरत है, और वह दुनिया में कहीं का भी हो, उसे यहां आने दिया जाना चाहिए.

अप्रवासियों की सुरक्षा- ट्रंप पर व्‍हाइट सुप्रिमेसी यानी गोरों के वर्चस्‍व वाली विचारधारा को बढ़ावा देने का आरोप लगता रहा है. उनके विपक्षी कहते हैं कि उनके कार्यकाल में अप्रवासियों के साथ न सिर्फ भेदभाव होता है, बल्कि उनके साथ हिंसा भी होती है. ऐसे में भारत को अमेरिका में रहने वाले भारतीय अप्रवासियों की सुरक्षा को लेकर चिंता होगी.

कारोबारी रिश्ते- भारत में अमेरिकी उत्‍पादों पर लगने वाले टैरिफ की डोनाल्‍ड ट्रंप आलोचना करते रहे हैं. उन्‍होंने भारत से स्‍टील और एल्‍यूमिनियम के आयात पर ड्यूटी लगा दी थी. इसके अलावा भारत के कई ड्यूटी फ्री प्रोडक्ट्स को टैक्‍स के दायरे में लाने की बात कही थी. ऐसे में ट्रंप जो कि 'मेक अमेरिका ग्रेट अगेन' के नारे के साथ सत्‍ता में लौट रहे हैं तो उनकी अमेरिका केंद्रित नीतियों में भारत के हितों का समावेश कराना टेढ़ी खीर होगा.

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कुलमिलाकर, ट्रंप की जीत के चलते भारत को कई मोर्चों पर काफी सहजता होगी. वही, ट्रंप की ओर से पेश आने वाली चुनौतियां भी कम नहीं होंगी. भारत के लिए संतुलन बैठाना आसा नहीं है. लेकिन, जैसे कि कहा जाता है- मोदी है तो मुमकिन है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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