दिल्ली में पराली जलाने की बजाए गलाने का प्रयोग हुआ फ्लॉप? जानें रियलिटी चेक में क्या मिला

4 1 7
Read Time5 Minute, 17 Second

दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में पराली जलाने की घटनाएं हमेशा से चिंता का विषय रही हैं, लेकिन पूसा बायो डिकंपोजर के आने के बाद एक उम्मीद की किरण जगी थी. यह प्रोजेक्ट 2020 में उत्तर पश्चिम दिल्ली के हिरनकी गांव से आरंभ हुआ, जहां तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने खुद इसकी शुरुआत की थी. उस समय ऐसा लग रहा था कि बायो डिकंपोजर पराली जलाने की समस्या का हल निकाल सकता है.

चार साल बाद, जब हम ग्रामीण इलाकों की वास्तविक स्थिति जानने पहुंचे, तो हमें बदलती हकीकत दिखाई दी. हिरनकी गांव में रहने वाले उमेश के खेत की पराली स्पष्ट रूप से दिखा रही थी कि बायो डिकंपोजर का छिड़काव इस बार नहीं हुआ. उमेश ने निराशा व्यक्त की और बताया कि इस साल उन्हें बायो डिकंपोजर उपलब्ध ही नहीं कराया गया. सरकारी अधिकारियों की ओर से कोई संपर्क नहीं हुआ, जिससे किसानों में निराशा का माहौल है.

यह भी पढ़ें: प्रदूषण दिल्ली की अपनी खेती है, बेकसूर पराली तो बस यूं बदनाम है | Opinion

उसी गांव के किसान राहुल ने पहले दो वर्षों में बायो डिकंपोजर के फायदों का जिक्र किया. उनके अनुभव में, बायो डिकंपोजर ने फसल की पैदावार बढ़ाने में मदद की. लेकिन इस बार, न केवल हिरनकी बल्कि आसपास के गांवों में भी बायो डिकंपोजर नहीं पहुंचा. किसानों को अब निजी प्रयासों से पराली के निपटान के विकल्प खोजने होंगे.

Advertisement

दिल्ली में भी पराली जलाने के मिले सबूत

हिरनकी गांव में बायो डीकंपोजर के उपयोग की उम्मीद के साथ पहुंचे थे, परंतु वहां इसका कोई संकेत नहीं मिला. ऐसे में हमने और गांवों का दौरा करना तय किया और कुछ किलोमीटर आगे बढ़कर मुखमेलपुर गांव पहुंचे, जहां एक अलग ही तस्वीर देखने को मिली. मुखमेलपुर में भी हमें खेतों में पराली नजर आई, जो कि दूर-दूर तक फैली हुई थी. एक खेत ऐसा भी था जहां पराली जलाने के निशान स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे थे. यह हालात राजधानी दिल्ली के हैं, जहां हरियाणा और पंजाब की तरह किसान जलाकर पराली का निपटान कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें: पराली जलाने की समस्या का समाधान क्या है? देखें पंजाब के किसानों से बातचीत

वहां मौजूद स्थानीय किसानों से बातचीत करने पर उन्होंने बताया कि उनके पास पराली नष्ट करने का और कोई विकल्प नहीं बचा है. उनका कहना था कि यदि पराली नहीं जलाई गई, तो गेहूं की बुवाई करना बेहद मुश्किल हो जाएगा. इसलिए चोरी-छिपे ही सही, उन्हें पराली जलानी पड़ती है. यह स्थिति बायो डीकंपोजर के प्रभावी उपयोग की कमी को दर्शाती है, जो कि पराली नष्ट करने का -अनुकूल समाधान हो सकता है.

पूसा संस्थान में अब भी उम्मीद है बरकरार

Advertisement

पूसा कृषि संस्थान (Indian Agricultural Research Institute) में बायो डीकंपोजर के प्रभावशाली उपयोग को लेकर हमारा दौरा काफी रोचक रहा. इस संस्थान में इस तकनीक पर गहन कार्य कर रहीं डॉ. लिवलीन शुक्ला का कहना है कि बायो डीकंपोजर की मांग कई राज्यों में तेजी से बढ़ रही है. संस्थान के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में, हमने देखा कि कर्मचारी लगातार इस डीकंपोजर की पैकिंग में व्यस्त थे, ताकि बढ़ती मांग को पूरा किया जा सके.

शुरुआती दिनों में, इस बायो डीकंपोजर का उपयोग किसानों के लिए चुनौतीपूर्ण था. इसके घोल को तैयार करने में लगभग दो हफ्ते लग जाते थे और फिर खेतों में डालने के बाद इसे 20 दिनों तक छोड़ना पड़ता था. इस प्रक्रिया से किसान संतुष्ट नहीं थे. इसके बावजूद, संस्था ने कैप्सूल के रूप में इसे तैयार किया पर इसे भी घोल में बदलना पड़ता था. हाल ही में, पूसा संस्थान ने 750 ग्राम का पाउडर पैकेट विकसित किया है, जिसे सीधे एक एकड़ जमीन में पानी के साथ मिलाकर डाला जा सकता है. 20 दिनों में यह पूरी पराली को प्रभावी तरीके से गलाने में सक्षम है.

यह भी पढ़ें: Stubble Burning: पराली क्यों जलाई जाती है, क्या दिल्ली-NCR को गैस चैंबर सिर्फ किसान बना रहे? देखें

Advertisement

संस्थान ने यह सुनिश्चित किया है कि तापमान में बदलाव आने पर भी इसके माइक्रोऑर्गेनाइज्म पराली को गलाने के लिए सक्रिय रहे. हालांकि, अलग-अलग राज्यों में पराली जलाने की समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है. इस पर डॉ. लिवलीन का मानना है कि यह संस्थान की नहीं, बल्कि राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे किसानों को बायो डीकम्पोजर के प्रयोग के लिए प्रेरित करें और स्वस्थ पर्यावरण के लिए प्रयासरत रहें.

Live TV

\\\"स्वर्णिम
+91 120 4319808|9470846577

स्वर्णिम भारत न्यूज़ हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.

मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Laptops | Up to 40% off

अगली खबर

साहित्य आजतक 2024: फिर लौट रहा शब्द-सुरों का महाकुंभ, यहां करें रजिस्ट्रेशन

आपके पसंद का न्यूज

Subscribe US Now