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नई दिल्ली : महाराष्ट्र के साथ ही झारखंड में विधानसभा चुनाव की तारीख करीब आ चुकी है। इस बीच एक बार फिर से चुनावी रेवड़ी बनाम कल्याणकारी योजनाओं को लेकर बहस छिड़ गई है। कर्नाटक में कांग्रेस सरकार की तरफ से महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा योजना की समीक्षा को लेकर पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की नसीहत के बाद बीजेपी को कांग्रेस पर हमलावर होने का मौका मिल गया है।क्या कह रही बीजेपी?
कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी के शिवकुमार की तरफ से राज्य में महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा योजना में संशोधन का संकेत दिया गया। इस पर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने सार्वजनिक रूप से शिवकुमार को फटकार लगाई। खरगे ने पार्टी की असहजता को उजागर करते हुए कहा कि पार्टी नेतृत्व ने अपनी राज्य इकाइयों से केवल वही वादे करने को कहा है जो वित्तीय रूप से संभव हों। खरगे की इस टिप्पणी को बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ही बीजेपी नेतृत्व को कांग्रेस पर हमला करने का मौका मिल गया। बीजेपी ने कहा कि कांग्रेस को अब एहसास हो गया है कि बिना सोचे-समझे घोषणाएं नहीं करनी चाहिए। मोदी ने कहा कि कांग्रेस अब लोगों के सामने बुरी तरह से बेनकाब हो चुकी है। लोगों को 'कांग्रेस की तरफ से प्रायोजित झूठे वादों की संस्कृति के प्रति सतर्क रहना चाहिए।
मुफ्त की घोषणाओं पर बहस की जरूरत
ऐसा नहीं है कि लोगों के लिए मुफ्त के चुनावी वादे सिर्फ दल विशेष तक ही सीमित हों। कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों चुनाव में जनता के लिए चुनावी रेवड़ियों की घोषणा करते हैं। उंगली उठाने के अलावा, कोई भी पार्टी यह दावा नहीं कर सकती कि वह पूरी तरह से ईमानदार है। कांग्रेस पर हमला करने वाली बीजेपी के घोषणापत्र में गोगो दीदी योजना जैसी पहल का वादा किया गया है। इसके तहत महिलाओं को हर महीने 2,100 रुपये दिए जाएंगे। 'युवा साथी भत्ता' कार्यक्रम के तहत युवाओं को 2,000 रुपये का बेरोजगारी भत्ता दिया जाएगा। गैस सिलेंडर 500 रुपये में उपलब्ध कराने का भी वादा है। साथ ही त्योहारों के दौरान दो मुफ्त सिलेंडर दिए जाएंगे।
चुनाव से पहले राजनीतिक दल जीत के लिए मुफ्त की घोषणाओं के साथ ही कल्याणकारी योजनाओं पर अधिक निर्भर नजर आते हैं। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में ये योजनाएं चुनावी परीक्षा में फेल हो गईं। दोनों सरकार को सत्ता से बाहर का रास्ता देखना पड़ा। वहीं, मध्यप्रदेश में बीजेपी ने इनके दम पर सत्ता बरकरार की। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या दिशाहीन लोकलुभावन योजना अपने आप ही वोट में बदल जाती हैं। खासकर उस दल के लिए जो सत्ता में होता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह की घोषणाओं और इस प्रकार की योजनाओं के प्रभाव के साथ ही इसकी पहुंच पर बहस होनी चाहिए।
चुनाव आयोग के निर्देश का क्या हुआ?
यहां चुनाव आयोग के उस निर्देश को लेकर भी सवाल उठता है जिसमें आयोग ने राजनीतिक दलों से अपने घोषणापत्र के वादों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त संसाधन जुटाने के तरीके और साधन बताने को कहा गया था। इसमें यह भी बताने को कहा गया था कि घोषणापत्र में किए वादों का राज्य या केंद्र सरकार की वित्तीय स्थिरता पर क्या प्रभाव पड़ेगा? अक्टूबर 2022 में, चुनाव आयोग ने पार्टियों के लिए एक स्टैंडर्डराइज्ड डिस्क्लोजर प्रोफार्मा जारी किया था। इसमें वादा की गई योजना के कवरेज की सीमा और विस्तार, फिजिकल कवरेज की मात्रा और वित्तीय निहितार्थ और वादों को पूरा करने में होने वाले अतिरिक्त व्यय को पूरा करने के लिए संसाधन जुटाने के तरीकों और साधनों का डिटेल घोषित करना था।
पीएम मोदी ने शुरू की थी बहस
दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी ने ही 2022 में मुफ्त चीजों पर बहस शुरू की थी। उस समय उन्होंने 'रेवड़ी' कल्चर का मजाक उड़ाया था। इसका आशय राजनीतिक दलों की तरफ से दी जाने वाली मुफ्त चीजों का संदर्भ था। इसके बाद बीजेपी और विपक्षी दलों के बीच वाकयुद्ध शुरू हो गया था। कांग्रेस ने कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश में महिलाओं के लिए बेरोजगारी भत्ता और वित्तीय सहायता के बारे में इसी तरह के वादे किए थे। उस समय प्रधानमंत्री ने बेपरवाह वादे करने के लिए कांग्रेस की आलोचना की थी।
क्या कह रही बीजेपी?
कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी के शिवकुमार की तरफ से राज्य में महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा योजना में संशोधन का संकेत दिया गया। इस पर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने सार्वजनिक रूप से शिवकुमार को फटकार लगाई। खरगे ने पार्टी की असहजता को उजागर करते हुए कहा कि पार्टी नेतृत्व ने अपनी राज्य इकाइयों से केवल वही वादे करने को कहा है जो वित्तीय रूप से संभव हों। खरगे की इस टिप्पणी को बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ही बीजेपी नेतृत्व को कांग्रेस पर हमला करने का मौका मिल गया। बीजेपी ने कहा कि कांग्रेस को अब एहसास हो गया है कि बिना सोचे-समझे घोषणाएं नहीं करनी चाहिए। मोदी ने कहा कि कांग्रेस अब लोगों के सामने बुरी तरह से बेनकाब हो चुकी है। लोगों को 'कांग्रेस की तरफ से प्रायोजित झूठे वादों की संस्कृति के प्रति सतर्क रहना चाहिए।कांग्रेस पार्टी को यह एहसास हो रहा है कि झूठे वादे करना तो आसान है, लेकिन उन्हें सही तरीके से लागू करना मुश्किल या असंभव है। प्रचार के दौरान वह लोगों से ऐसे वादे करते हैं, जिन्हें वे कभी पूरा नहीं कर पाएंगे। अब कांग्रेस पार्टी लोगों के सामने बुरी तरह बेनकाब हो गई है।
मुफ्त की घोषणाओं पर बहस की जरूरत
ऐसा नहीं है कि लोगों के लिए मुफ्त के चुनावी वादे सिर्फ दल विशेष तक ही सीमित हों। कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों चुनाव में जनता के लिए चुनावी रेवड़ियों की घोषणा करते हैं। उंगली उठाने के अलावा, कोई भी पार्टी यह दावा नहीं कर सकती कि वह पूरी तरह से ईमानदार है। कांग्रेस पर हमला करने वाली बीजेपी के घोषणापत्र में गोगो दीदी योजना जैसी पहल का वादा किया गया है। इसके तहत महिलाओं को हर महीने 2,100 रुपये दिए जाएंगे। 'युवा साथी भत्ता' कार्यक्रम के तहत युवाओं को 2,000 रुपये का बेरोजगारी भत्ता दिया जाएगा। गैस सिलेंडर 500 रुपये में उपलब्ध कराने का भी वादा है। साथ ही त्योहारों के दौरान दो मुफ्त सिलेंडर दिए जाएंगे।चुनाव से पहले राजनीतिक दल जीत के लिए मुफ्त की घोषणाओं के साथ ही कल्याणकारी योजनाओं पर अधिक निर्भर नजर आते हैं। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में ये योजनाएं चुनावी परीक्षा में फेल हो गईं। दोनों सरकार को सत्ता से बाहर का रास्ता देखना पड़ा। वहीं, मध्यप्रदेश में बीजेपी ने इनके दम पर सत्ता बरकरार की। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या दिशाहीन लोकलुभावन योजना अपने आप ही वोट में बदल जाती हैं। खासकर उस दल के लिए जो सत्ता में होता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह की घोषणाओं और इस प्रकार की योजनाओं के प्रभाव के साथ ही इसकी पहुंच पर बहस होनी चाहिए।
चुनाव आयोग के निर्देश का क्या हुआ?
यहां चुनाव आयोग के उस निर्देश को लेकर भी सवाल उठता है जिसमें आयोग ने राजनीतिक दलों से अपने घोषणापत्र के वादों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त संसाधन जुटाने के तरीके और साधन बताने को कहा गया था। इसमें यह भी बताने को कहा गया था कि घोषणापत्र में किए वादों का राज्य या केंद्र सरकार की वित्तीय स्थिरता पर क्या प्रभाव पड़ेगा? अक्टूबर 2022 में, चुनाव आयोग ने पार्टियों के लिए एक स्टैंडर्डराइज्ड डिस्क्लोजर प्रोफार्मा जारी किया था। इसमें वादा की गई योजना के कवरेज की सीमा और विस्तार, फिजिकल कवरेज की मात्रा और वित्तीय निहितार्थ और वादों को पूरा करने में होने वाले अतिरिक्त व्यय को पूरा करने के लिए संसाधन जुटाने के तरीकों और साधनों का डिटेल घोषित करना था।महाराष्ट्र में मैंने कहा है कि उन्हें 5, 6, 10 या 20 गारंटी की घोषणा नहीं करनी चाहिए। उन्हें बजट के आधार पर गारंटी की घोषणा करनी चाहिए, नहीं तो दिवालियापन हो जाएगा। अगर सड़कों के लिए पैसे नहीं हैं, तो हर कोई आपके खिलाफ हो जाएगा। अगर यह सरकार विफल होती है, तो आने वाली पीढ़ी के पास बदनामी के अलावा कुछ नहीं बचेगा। उन्हें 10 साल तक निर्वासन में रहना होगा।
पीएम मोदी ने शुरू की थी बहस
दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी ने ही 2022 में मुफ्त चीजों पर बहस शुरू की थी। उस समय उन्होंने 'रेवड़ी' कल्चर का मजाक उड़ाया था। इसका आशय राजनीतिक दलों की तरफ से दी जाने वाली मुफ्त चीजों का संदर्भ था। इसके बाद बीजेपी और विपक्षी दलों के बीच वाकयुद्ध शुरू हो गया था। कांग्रेस ने कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश में महिलाओं के लिए बेरोजगारी भत्ता और वित्तीय सहायता के बारे में इसी तरह के वादे किए थे। उस समय प्रधानमंत्री ने बेपरवाह वादे करने के लिए कांग्रेस की आलोचना की थी।कांग्रेस की राह कैसे हो रही मुश्किल
मोदी की तरफ से लोकलुभावन योजनाओं को लेकर कांग्रेस पर निशाना साधने के बावजूद, बीजेपी इस महीने महाराष्ट्र में होने वाले चुनावों में एकनाथ शिंदे सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के साथ चुनाव प्रचार कर रही है। इसमें एक लड़की बहिन योजना भी है। राजनीतिक विश्लेषकों के साथ ही कांग्रेस नेताओं का भी मानना है कि बीजेपी के हमलावर रुख के बीच कांग्रेस आलाकमान को इस मोर्चे पर बीजेपी और उसके सहयोगियों का मुकाबला करने के लिए कुछ वादे करने होंगे। अगर ऐसा नहीं हुआ तो कांग्रेस के लिए चुनावी राज्यों में आगे की राह मुश्किल हो जाएगी।
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