क्या पिछले कुछ सालों में सुधरी है छात्राओं के लिए स्कूल में टॉयलेट की व्यवस्था? सामने आए ये आंकड़े

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खुले में शौच करना न केवल बीमारियों का खतरा बढ़ाता है, बल्कि महिलाओं और खासकर स्कूली छात्राओं की सुरक्षा के लिए भी गंभीर चिंता का विषय है. जब स्कूलों में छात्राओं के लिए शौचालय की उचित व्यवस्था नहीं होती है, तो उनकी सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है. इसे ध्यान में रखते हुए, पिछले कुछ सालों में स्कूलों में विशेष रूप से छात्राओं के लिए शौचालय बनाए गए हैं.

हाल ही में एक जनहित याचिका (पीआईएल) के जवाब में, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि भारत के 97.5% से अधिक स्कूलों में अब छात्राओं के लिए अलग शौचालय की व्यवस्था है. यह आंकड़ा दर्शाता है कि देशभर के सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त और निजी स्कूलों ने लड़कियों की स्वच्छता और गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिए बड़े कदम उठाए हैं.

कई राज्यों ने उल्लेखनीय प्रगति की है. दिल्ली, गोवा, और पुडुचेरी जैसे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने 100% लक्ष्य प्राप्त कर लिया है, यानी इन इलाकों के सभी स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय मौजूद हैं. इसी तरह, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में भी प्रभावशाली प्रदर्शन देखने को मिला है, जहां 99.9% और 98.8% स्कूलों में यह सुविधा है. तमिलनाडु (99.7%), केरल (99.6%), और गुजरात (99.5%) भी लगभग पूर्ण अनुपालन के करीब पहुंच चुके हैं.

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जम्मू कश्मीर में स्थिति अभी भी कमजोर

अन्य राज्यों जैसे कर्नाटक, मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी सुधार हुआ है, जहां छात्राओं के लिए शौचालय की उपलब्धता 98.7%, 98.6%, और 98% है. हालांकि, पूर्वोत्तर राज्यों और जम्मू-कश्मीर में स्थिति अभी भी थोड़ी कमजोर है, जहां केवल 89.2% स्कूलों में ही यह सुविधा है.

इन चुनौतियों के बावजूद, राष्ट्रीय औसत अब 98% तक पहुंच चुका है. यह स्कूलों के बुनियादी ढांचे में बड़ा सुधार दर्शाता है, जिससे छात्राओं को स्वच्छ और सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराने के प्रयास सफल हो रहे हैं. यह सरकार की ओर से किए गए ठोस उपायों का परिणाम है, जो देशभर में महिलाओं और लड़कियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा को प्राथमिकता देने के लिए उठाए गए हैं.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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