हैरानी तो तब भी हुई थी जब नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पैर छूए थे, लेकिन बीजेपी नेता आरके सिन्हा का पैर छूकर नीतीश कुमार ने सस्पेंस रच दिया है. ऐसा भी नहीं हैं कि सिन्हा उम्र में नीतीश से बड़े हों. वे छह महीना छोटे ही हैं. तोआखिर क्या चल रहा है नीतीश कुमार के मन में या फिरये सब उनकी बढ़ती उम्र और भावनाओं के हावी होनेका तकाजाहै?
मोदी और सिन्हा में फर्क है, लेकिन नीतीश कुमार क्या कर रहे हैं?
चित्रगुप्त पूजा के मौके पर पटना में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. आयोजक थे बीजेपी के राज्यसभा सांसद रहे आरके सिन्हा जो मंदिर प्रबंधक समिति के अध्यक्ष भी हैं.
ये आयोजन शहर के नोजर घाट पर बने चित्रगुप्त मंदिर में हुआ. आरके सिन्हा के बुलावे पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी पहुंचे थे. आरके सिन्हा ने नीतीश कुमार को मंच पर बुलाकर स्वागत किया. मंदिर के इतिहास के बारे में बताते हुए आरके सिन्हा ने नीतीश कुमार के काम की तारीफ भी की. असल में, नीतीश कुमार के निर्देश पर ही मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था. आरके सिन्हा ने इस बात के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को धन्यवाद दिया.
अभी आरके सिन्हा भाषण दे ही रहे थे कि नीतीश कुमार ने उनके पैर ही छू लिये. मौके पर मौजूद लोगों के साथ साथ आरके सिन्हा भी ये नजारा देख कर थोड़े भौंचक्के नजर आये.
नीतीश कुमार के पैर छूने की इस घटना ने सबको चौंका दिया है. चौंके तो लोक तब भी थे जब नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पैर छूए थे. लोकसभा चुनाव के बाद संसद परिसर में एनडीए नेताओं की एक बैठक बुलाई गई थी, तभी बिहार के मुख्यमंत्री ने नीतीश कुमार ने मोदी के पैर छूए थे. वैसे प्रधानमंत्री ने नीतीश कुमार को रोकते हुए गले लगाने की कोशिश की थी.
नीतीश कुमार बार बार ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं?
जब नीतीश कुमार ने मोदी के पैर छूए थे, तब जन सुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर ने तीखा हमला बोला था. प्रशांत किशोर का कहना था, 13 करोड़ लोगों का नेता हम लोगों का अभिमान है, सम्मान है, मगर पूरे देश के सामने झुक कर मुख्यमंत्री बने रहने के लिए ये आदमी नरेंद्र मोदी के पैर छू रहा है.
मान लेते हैं, मोदी प्रधानमंत्री भी हैं, लेकिन आरके सिन्हा को अब बीजेपी में भी बहुत अहमियत नहीं मिल रही है. मोदी से तो ये डर भी हो सकता है, कहीं बीजेपी 2025 के लिए घोषित एनडीए का चेहरा वापस न ले ले. बीजेपी ने नीतीश कुमार को 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव के लिए नीतीश कुमार को एनडीए का चेहरा घोषित किया है - नीतीश कुमार के लेटेस्ट ऐक्ट ने तरह तरह के कयास लगाने का मौका तो दे ही दिया है.
1. कभी मोदी का हाथ अपने हाथ में ले लेना, कभी पैर पकड़ना, और अब आरके सिन्हा का पैर पकड़ लेना. ये सब क्या है. पहले तो ऐसे नहीं थे नीतीश कुमार. और ये भी देखा गया है कि नीतीश कुमार फालतू में एक शब्द भी नहीं बोलते. लोगों को लगता है कि यूं ही बोल दिये होंगे, तब भी कोई राजनीतिक बात जरूर होती है. भले अब तक लोग डिकोड करने की कोशिश कर रहे हों, आखिर नीतीश कुमार ने ये क्यों कहा था कि बीजेपी के बड़े नेता अमित शाह के कहने पर वो प्रशांत किशोर को जेडीयू में लिये थे.
2. नीतीश कुमार मौके की भी परवाह नहीं कर रहे हैं. बार बार यही बताने की कोशिश कर रहे हैं कि वो बीजेपी को छोड़ कर कहीं नहीं जा रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी के साथ होने पर ऐसा कई बार कह चुके हैं. ये भी बताते हैं कि गलती हो गई लेकिन, अब महागठबंधन में वापस कभी नहीं जाएंगे. क्या आरके सिन्हा का पैर छूना भी उसी कड़ी का एक हिस्सा है - और अगर ऐसा है तो अगली बार किसी बीजेपी विधायक के लिए भी ऐसी श्रद्धा देखी जा सकती है क्या?
3. क्या नीतीश कुमार अपनी 'पलटू कुमार' वाली छवि से निकलना चाहते हैं? क्या नीतीश कुमार को वाकई ये डर है कि कहीं बीजेपी नेतृत्व उनकी कुर्सी न छीन ले? या अपनी हनक बनाये रखने के लिए हमेशा की तरह नीतीश कुमार इस बार प्रेशर पॉलिक्स इस तरीके से कर रहे हैं.
क्या नीतीश कुमार पर उम्र हावी हो रही है?
हाल ही में जेडीयू की तरफ से लालू प्रसाद यादव को लेकर दावा किया गया था कि आरजेडी नेता को नजरबंद कर दिया गया है. वो कैद हैं, इसलिए बाहर नहीं निकल रहे हैं.
रामगढ़ में उपचुनाव का प्रचार करने पहुंचे बक्सर से आरजेडी सांसद सुधाकर सिंह ने जेडीयू पर पलटवार किया है, हमारे नेता लालू प्रसाद स्वास्थ्य कारणों से घोषित रूप से इलाज करा हैं... अभी तत्काल में उनकी बाईपास सर्जरी हुई है... उनके स्वास्थ्य के बारे में जनता जानती है लेकिन, जेडीयू को पता नहीं है... जेडूयू वालों से पूछा जाना चाहिये कि उपचुनाव में अब तक उनके नेता नहीं दिखे... उनके नेता चंद नौकरशाह और कैबिनेट मंत्रियों की कैद में अघोषित रूप हैं... उनको चंगुल से बाहर कैसे निकालें, ये बिहार की जनता सोच रही है.
कभी कभी नीतीश कुमार भी अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की तरह लगते हैं. कभी विधानसभा और कभी विधान परिषद में नीतीश कुमार ऐसी बातें करने लगते हैं जिसे सुनकर उनके अगल बगल बैठे लोग भी सहमे लगते हैं, भले ही उनके बचाव में लोग सेक्स एजुकेशन बताने लगते हैं. कभी अफसरों के सामने काम कराने के लिए हाथ जोड़ना भी कुछ कुछ ऐसा ही लगता है.
लोकसभा चुनाव के दौरान एक रैली में अन्य नेताओं के साथ साथ नीतीश कुमार के हाथ में भी बीजेपी का चुनाव निशान कमल पकड़ा दिया गया था. कुछ देर तक तो वो थामे रहे, लेकिन बाद में धीरे से छोड़ दिये. तब भी ये नहीं समझ आया था कि वो जान बूझ कर छोड़ दिये थे, या हाथ से छूट कर जमीन पर गिर गया था - क्योंकि दशहरे के मौके पर धनुष-बाण के साथ भी तो वैसा ही हुआ था.
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