यूपी उपचुनाव में अखिलेश के दांव के आगेकांग्रेस ने क्यों किया सरेंडर? । Opinion

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देश में बहुत तेजी से मजबूत हो रही कांग्रेस के लिय यह दु:स्वप्न जैसा ही है. विशेषकर यूपी कांग्रेस के लिए तो बहुत ही शॉकिंग खबर है. रण में उतरने से पहले ही जब योद्धा हार मान लेता है तो सैनिकों की स्थिति विकट हो जाती है.दरअसल 13 नवंबर को यूपी की 9 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है. अखिलेश यादव ने बुधवार देर रात एक बड़ा ऐलान करते हुए कहा कि सभी 9 सीटों पर गठबंधन के उम्मीदवार सपा के पार्टी सिंबल पर चुनाव लड़ेंगे. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक लंबी पोस्ट के जरिए अखिलेश यादव ने इसका ऐलान किया. सपा प्रमुख का ये ऐलान इसलिए अहम है क्योंकि सीट शेयरिंग को लेकर कांग्रेस और सपा में लंबे समय से खींचतान देखी जा रही थी. अब ऐसा लग रहा है कि इंडिया गठबंधन में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के दांव के आगे कांग्रेस चित हो गई या कांग्रेस ने लड़ने का मन ही नहीं बनाया.

क्या सही है यह फैसला,यह विवाद का विषय हो सकता है. पर कांग्रेस के लिए निश्चित ही यह शर्मिंदगी का विषय है. अगर समाजवादी पार्टी कुछ कमजोर सीटें कांग्रेस को दे रही थीं तो भी कांग्रेस को लड़ते हुए शहीद होना चाहिए था. क्या हुआ सीटें हार जातीं कम से कम कांग्रेस कार्यकर्ताओं का पार्टी को लेकर उत्साह तो बना रहता. यह तो बिना लड़े ही रण छोड़कर भागने जैसा है. और शर्मिंदगी से बचने के लिए समाजवादी पार्टी का पल्लू में मुंह छिपाने जैसा है.आखिर ऐसा क्यों और कैसे हुआ, कांग्रेस के लिए ये क्यों सेटबैक जैसा है ? आइये देखते हैं.

1- अखिलेश कहते हैं कि सपा के निशान पर संयुक्‍त उम्‍मीदवार उतरेंगे, जबकि हकीकत कुछ और

कांग्रेस के लिए एक भी ढंग की सीट नहीं देने के बाद अखिलेश यादव ने एक्स पर एक लंबी चौड़ी पोस्ट लिखकर कांग्रेसियों को सांत्वना देतेहैं.अखिलेश लिखते हैं कि...

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‘बात सीट की नहीं जीत की है’ इस रणनीति के तहत ‘इंडिया गठबंधन’ के संयुक्त प्रत्याशी सभी 9 सीटों पर समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह ‘साइकिल’ के निशान पर चुनाव लड़ेंगे. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी एक बड़ी जीत के लिए एकजुट होकर, कंधे से कंधा मिलाकर साथ खड़ी है. इंडिया गठबंधन इस उपचुनाव में, जीत का एक नया अध्याय लिखने जा रहा है. कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से लेकर बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं के साथ आने से समाजवादी पार्टी की शक्ति कई गुना बढ़ गयी है. इस अभूतपूर्व सहयोग और समर्थन से सभी 9 विधानसभा सीटों पर ‘इंडिया गठबंधन’ का एक-एक कार्यकर्ता जीत का संकल्प लेकर नयी ऊर्जा से भर गया है. ये देश का संविधान, सौहार्द और PDA का मान-सम्मान बचाने का चुनाव है. इसीलिए हमारी सबसे अपील है : एक भी वोट न घटने पाए, एक भी वोट न बंटने पाए. देशहित में ‘इंडिया गठबंधन’ की सद्भाव भरी ये एकता और एकजुटता आज भी नया इतिहास लिखेगी और कल भी.

अखिलेश यादव अपने इस पोस्ट में कहते हैं कि' बात सीट की नहीं जीत की है’ . मतलब अखिलेश समझते हैं कि कांग्रेस के प्रत्याशी जिताऊ नहीं हैं? क्या अखिलेश को यह नहीं पता है कि लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को मरी सीटों पर कितने वोट मिले थे?सवाल उठता है कि कांग्रेस को एक दो सीट ढंग की क्यों नहीं ऑफर किए ?

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अखि्लेश यादव लिखते हैं कि कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से लेकर बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं के साथ आने से समाजवादी पार्टी की शक्ति कई गुना बढ़ गयी है. अखिलेश किससे यह बात कह रहे हैं. अखिलेश ही नहीं प्रदेश की जनता को भी क्यायह पता नहीं है कि कांग्रेस में बूथ स्तर पर अब कोई कार्यकर्ता नहीं बचा है. पार्टी की सिर्फ यही कमजोरी है. अन्यथा कांग्रेस के कोर वोटर्स तो अब उसके पास आ ही रहे हैं. शायद अखिलेश शायद इसी के चलते कांग्रेस को मजबूत होते नहीं देखना चाहते हैं. अखिलेश जानते हैं कि अगर कांग्रेस को जरा भी मौका मिला यूपी में समाजवादियों का पूरा बेस ही हिल जाएगा. क्योंकि लोकसभा चुनावों में जो दलितों का वोट समाजवादी पार्टी को मिला वो अखिलेश यादव के कारण नहीं मिला था. कांग्रेस और राहुल गांधी के चलते दलितों ने कांग्रेस के साथ समाजवादी पार्टी को भी भर-भर कर वोट दिए. मुस्लिम वोट्स का भी यही हाल रहा. आज स्थित यह होने जा रही है कि मुसलमान को समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में से किसी एक को चुनना पड़े तो कांग्रेस पार्टी उनकी पहली पसंद होगी.

2- ये कांग्रेस के लिए सीधे-सीधे मैदान छोड़ना है

दरअसल, आशंका जताई जा रही थी कि मन मुताबिक सीटें न मिलने की वजह से कांग्रेस पार्टी ने उपचुनाव को लड़ने से इनकार कर दिया है. ऐसा समझा जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी हारी हुई हुई सीट पर दांव नहीं लगाना चाहती थी. अखिलेश यादव ने कांग्रेस के लिए गाजियाबाद और खैर की सीट छोड़ी थी. जैसा सभी जानते है्ं कि इन दोनों सीटों पर कांग्रेस का जीतना लगभग असंभव है. पर जिस तरह लोकसभा चुनावों में कई ऐसी सीटों पर जहां कांग्रेस को प्रत्याशी ढूंढे नहीं मिल रहे थे वहां कांग्रेस ने बराबर की टक्कर दी थी. अगर गाजियाबाद और खैर को कांग्रेस पार्टी ऐसी सीट मान रही थी जिसे जीतना लगभग नामुमकिन था तो भी पार्टी को प्रत्याशी तो खड़ा ही करना चाहिए था. और जमकर लड़ाई भी लड़नी चाहिए थी.
कांग्रेस पार्टी अगर अपनी इज्जत बचाने के लिएसांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे वाला खेल खेल रही है तो यह उसे गर्त में ले जाने के लिए काफी है. इससे पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल डाउन होता है. अखिलेश यादव को भी कम से कम एक सीट ऐसी देनी चाहिए थी जहां से कांग्रेस को विजय निश्चित दिखाई दे रही होती. जैसे फूलपुर और मीरापुर जैसी सीटें अगर कांग्रेस को मिलतीं तो वो यहां जीत भी सकतीं थीं. फिलहाल अखिलेश यादव ने गठबंधन धर्म नहीं निभाया. हो सकता है कि ऐसा उन्होंने इसलिए किया होगाक्योंकि कांग्रेस ने भी उनके साथ कई राज्यों में गठबंधन धर्म नहीं निभाया था.

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3- जिस तरह कांग्रेस ने घुटने टेके हैं, क्‍या कभी यूपी मेंखड़ी हो पाएगी?

कहा जाता है कि पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव नहीं चाहते थे कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस मजबूत हो . क्योंकि वो समझतेथे कि अगर यूपी में कांग्रेस मजबूत होगी तो सरकार में उनकी स्थिति कमजोर होगी. उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया. और करीब-करीब सारी सीटें बहुजन समाज पार्टी को दें दीं. कांग्रेस के लिए 10 परसेंट से भी कम सीटें पर चुनाव लड़ने के लिए वो राजी हो गए. इस तरह नरसिम्हा राव अपने इरादे में सफल हुए. नतीजा ये हुआ कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस खत्म हो गई. आज तक कांग्रेस उत्तर प्रदेश में खड़ा नहीं हो पाई है. उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में समाजवादी पार्टी के सामने घुटने टेकना भी कुछ उसी तरह का इफेक्ट देने वाला है.पर आज कांग्रेस के साथ ऐसी कोई मजबूरी नहीं है. राहुल गांधी को पता है कि केंद्र में अगर उन्हें कभी सरकार बनानी है तो उसका रास्ता यूपी से जाता है.

4- क्‍या कांग्रेस का प्रदेश संगठन और वोटर इस फैसले को स्‍वीकारेंगे?

किसी भी पार्टी का कार्यकर्ता पार्टी के साथ-साथ अपना भी उत्थान चाहता है. आज के दौर में तो वैसे भी किसी के पास इतना धीरज नहीं है कि वो पांच साल औरइंतजार कर ले. पार्टी कार्यकर्ता जब देखेगा कि नेतृ्त्व समाजवादी पार्टी के आगे घुटने टेक रहा है तो वो कांग्रेस में रहने से बेहतर समाजवादी पार्टी में जाने के बारे में सोचेगा. जैसा नरसिम्हा राव के फैसले के बाद हुआ था. जब कांग्रेस ने अपने को बहुजन समाज पार्टी को सौंप दिया था. कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय लगातार यह कह रहे थे कि यूपी के उपचुनावों की वो तैयारी कर रहे हैं. अजय राय को ही नहीं तमाम कार्यकर्ता और राजनीतिक विश्लेषक भी यह मानकर चल रहे थे कि कांग्रेस को कुछ सीटें तो मिलेंगी ही. पर इस तरह पार्टी घुटने टेक देगी यह किसी ने नहीं सोचा था.

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5- संयुक्‍तप्रत्‍याशी उतारने का ऐलान राहुल गांधी करते तो ज्‍यादा बेहतर होता

अगर संयुक्त प्रत्याशी खड़ा करने की योजना कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच बातचीत के बाद आपसी रजामंदी से आई है तो इसे राहुल गांधी को पीसी करके जनता के सामने लाना चाहिए था. ऐसा न होने के चलते लोगों में यह संदेश जा रहा है कि यह मजबूरी का फैसला है.इस तरह तो हर राज्य में जहां जो पार्टी मजबूत है वो चाहेगीकि कांग्रेस को कुछ सीटें देने की बजाए संयुक्त प्रत्याशी ही खड़े कर दिए जाएं. ऐसा होने लगा तो कांग्रेस के लिए इससे बुरे दिन की कल्पना नहीं की जा सकती .उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के दिन अभी इतने खराब नहीं हुए थेकि उसे दूसरे के सिंबल पर चुनाव लड़ना पड़े. लोकसभा चुनावों में कांग्रेस प्रत्याशियों को मिले वोट यही बताते हैं कि पार्टी के नाम पर कई कैंडिडेट्स को वोट मिले हैं. प्रत्याशी बेहद कमजोर थे पर जनता ने उन्हें भर-भर कर वोट दिया.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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