वायनाड से राहुल के बाद प्रियंका... क्‍या परिवारवाद के मुद्दे से बेफिक्र हो गई है कांग्रेस? | Opinion

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बीजेपी ने 2014 में केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के पहले से ही कांग्रेस के खिलाफ कैंपेन शुरू कर दिया था. कांग्रेस मुक्त भारत की मुहिम में भ्रष्टाचार और मुस्लिम तुष्टिकरण का इल्जाम तो शुमार था ही, सबसे ऊपर परिवारवाद की राजनीति का आरोप हुआ करता था, लेकिन लगता है अब ऐसी बातें अप्रासंगिक हो गई हैं. क्योंकि वंशवादी राजनीति का विरोध करने वाली बीजेपी ने हरियाणा विधानसभा चुनावों में कई ऐसे लोगों को टिकट दिये जो किसी न किसी नेता के रिश्तेदार थे. झारखंड में भी बीजेपी नेताओं के तमाम सगे संबंधियों को टिकट मिला है - वैसा ही नजारा महाराष्ट्र में भी देखने को मिल रहा है.

राहुल गांधी की छोड़ी हुई केरल की वायनाड सीट से कांग्रेस ने प्रियंका गांधी वाड्रा को उम्मीदवार बनाया है. प्रियंका गांधी के नामांकन के मौके पर पूरा गांधी परिवार वायनाड में नजर आया - लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा. कांग्रेस अध्यक्ष होने के नाते मल्लिकार्जुन खड़गे की मौजूदगी तो आवश्यक रूप से अनिवार्य रही होगी.

कांग्रेस नेतृत्व पहले से ही मानकर चल रहा है कि प्रियंका गांधी वाड्रा वायनाड से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंच जाएंगी, हालांकि चुनाव नतीजे आने पर ही ये औपचारिक स्वरूप में देखने को मिल सकता है. कहने को तो कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश भी कह चुके हैं कि प्रियंका गांधी तो कहीं से भी उपचुनाव जीतकर संसद पहुंच सकती हैं.

अगर चुनाव नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आते हैं तो प्रियंका गांधी ऐसे वक्त संसद में दाखिल होने जा रही हैं, जब लोकसभा में राहुल गांधी, और पहले से ही राज्यसभा में सोनिया गांधी मौजूद होंगी - और राजनीति में परिवारवाद का इससे अच्छा भला और क्या उदाहरण हो सकता है. वैसे तो मुलायम सिंह यादव सहित समाजवादी परिवार के पांच नेता संसद में बैठे हुए देखे जा चुके हैं.

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ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या कांग्रेस को अब परिवारवाद की राजनीति के आरोपों की बिलकुल भी परवाह नहीं रह गई है - और क्या इसकी वजह बीजेपी सहित तमाम दलों में मिल रही परिवारवाद की राजनीति के उदाहरण हैं?

महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनावों सहित देश के कई राज्यों में एक साथ उपचुनाव भी हो रहे हैं, और अगर उम्मीदवारों की सूची पर नजर डालें तो हर तरफ परिवारवाद की ही राजनीति नजर आ रही है.

परिवारवाद के मुद्दे से कांग्रेस बेफिक्र क्यों है?

हाल ही में हुए हरियाणा चुनाव में भी बीजेपी ने परिवारवाद की राजनीति से परहेज नहीं किया था, और वही हाल महाराष्ट्र और झारखंड में भी दिखाई दे रहा है. झारखंड में बीजेपी ने तीन-तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों के परिवार का पूरा ख्याल रखा है. अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा, रघुबर दास की बहू पूर्णिमा और चंपाई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन भी झारखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार बनाये गये हैं. रघुबर दास फिलहाल ओडिशा के राज्यपाल हैं.

ऐसे ही महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के लिए घोषित 99 उम्मीदवारों की सूची में बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण की बेटी श्रीजया चव्हाण का भी नाम शामिल है. श्रीजया चव्हाण परिवार की तीसरी पीढ़ी की नेता हैं जो खानदानी सीट भोकर से चुनाव मैदान में उतरने जा रही हैं. अशोक चव्हाण से पहले उनके पिता शंकरराव चव्हाण भी भोकर से विधायक रहे हैं. एक परिवार तो ऐसा भी है जिससे दो-दो उम्मीदवार मैदान में हैं. आशीष शेलार को बांद्रा वेस्ट से, तो उनके छोटे भाई विनोद शेलार मलाड से बीजेपी के उम्मीदवार बनाये गये हैं.

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कांग्रेस और बीजेपी से इतर नजर डालें तो बिहार में भी वही कहानी सुनने को मिल रही है. एनडीए में बीजेपी की सहयोगी हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के टिकट पर केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी की बहू दीपा मांझी इमामगंज से चुनाव मैदान में उतारी जा चुकी हैं. तरारी उपचुनाव में बाहुबली नेता और पूर्व विधायक सुनील पांडेय के बेटे विशाल प्रशांत को भी बीजेपी का टिकट मिला है.

और वैसे ही बेलागंज में आरजेडी सांसद सुरेंद्र यादव के बेटे विश्वनाथ यादव, रामगढ़ में आरजेडी नेता जगदानंद सिंह के बेटे अजीत सिंह आरजेडी के टिकट पर अपना अपना पारिवारिक गढ़ बचाने के मकसद से आरजेडी के टिकट पर मैदान में उतारे गये हैं.

क्या गांधी परिवार के हावी होने के बावजूद कांग्रेस इसलिए बेफिक्र हो गई है, क्योंकि विपक्ष तो विपक्ष बीजेपी भी परिवारवाद के हम्माम में अब कहीं से भी पार्टी-विद-डिफरेंस नहीं नजर आ रही है?

क्या 'गैर-गांधी कांग्रेस अध्यक्ष' अब अप्रासंगिक हो गया?

2017 का एक वाकया है. बार्कले में कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के एक कार्यक्रम में राहुल गांधी के सामने वंशवाद की राजनीति का सवाल उठा था. तब राहुल गांधी ने पूछा था कि ये सवाल सिर्फ उनसे ही क्यों पूछा जाता है, जबकि वंशवाद भारतीय राजनीति की हकीकत है. वैसे राहुल गांधी का आशय इसके किसी आवश्यक-बुराई जैसा होने से बिलकुल भी नहीं लगा था.

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राहुल गांधी का कहना था, 'अखिलेश यादव वंशवाद की बदौलत राजनीति में हैं. (एमके) स्टालिन और (प्रेमकुमार) धूमल के बेटे (अनुराग ठाकुर) भी वंशवाद के उदाहरण हैं... यहां तक कि अभिषेक बच्चन भी वंशवाद की ही उपज हैं... मैं भारत की स्थिति की बात कर रहा हूं... इसलिए सिर्फ मुझसे न पूछा जाये कि क्या चल रहा है?'

लेकिन तेलंगाना चुनाव के दौरान ये देखना भी काफी अजीब लगा कि बीआरएस नेता के. चंद्रशेखर राव पर परिवारवाद की राजनीति करने का इल्जाम लगा रहे थे, जबकि वो खुद देश के सबसे बड़े सियासी परिवार के वारिस होने की वजह से ही राजनीति में बने हुए हैं.

बीजेपी के परिवारवाद की राजनीति के आरोपों से बचने के लिए ही राहुल गांधी ने गांधी परिवार से अलग कांग्रेस अध्यक्ष बनाये जाने की जिद की, और ये भी मानना पड़ेगा कि राहुल गांधी ने जिद पूरी भी की - और उसी कारण मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के अध्यक्ष बने.

लेकिन प्रियंका गांधी वाड्रा के चुनावी मैदान में उतरने के बाद तो लगता है, 'गैर-गांधी कांग्रेस अध्यक्ष' का कंसेप्ट अब पूरी तरह अप्रासंगिक हो गया है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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