नौकरानी को खौलते तेल की बड़ी कड़ाही में क्यों डाला...वैज्ञानिक को जिंदा जलाया, बर्बर युग में कैसे आईं न्याय की देवी

नई दिल्ली: साल 1500 की बात है, जब इंग्लैंड में हेनरी अष्टम का राज हुआ करता था। उनके शासनकाल में खाने में जहर मिलाने का एक आरोपी पाया गया। उसे मौत की सजा के तौर पर खौलते तेल की बड़ी सी कड़ाही में डाल दिया गया। इसके ठीक दो साल बाद ही 1542 में मार्

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नई दिल्ली: साल 1500 की बात है, जब इंग्लैंड में हेनरी अष्टम का राज हुआ करता था। उनके शासनकाल में खाने में जहर मिलाने का एक आरोपी पाया गया। उसे मौत की सजा के तौर पर खौलते तेल की बड़ी सी कड़ाही में डाल दिया गया। इसके ठीक दो साल बाद ही 1542 में मार्गरेट डेवी नाम की नौकरानी पर मालकिन के खाने में जहर मिलाने के आरोप लगे। उसे खौलते पानी में तब तक उबाला गया, जब तक कि वह मर नहीं गई। इन कानूनों से इंग्लैंड की दुनिया में इतनी थू-थू हुई कि ऐसी सजा देने वाले कानूनों को 1547 में कूडें में डाल दिया गया। इसके बाद जब इंग्लैंड समेत पूरी दुनिया में पुनर्स्वर्णिम भारत न्यूज़ का दौर शुरू हुआ तो लोकतांत्रिक सजाओं की नींव पड़नी शुरू हो गईं। तब पूरी दुनिया को न्याय की देवी की याद आई, जिनकी शुरुआत ग्रीक देवी जस्टीशिया से हुई थी। भारत समेत पूरी दुनिया में न्यायिक व्यवस्था में मौजूद न्याय की देवी यानी लेडी जस्टिस के बारे में जानते हैं।

जब इटली के वैज्ञानिक को जिंदा जलाया

1600 में इतालवी वैज्ञानिक और दार्शनिक जियार्दनो ब्रूनो को भी जिंदा जला दिया गया था। इसके अलावा कई देशों में जादू-टोना करने के आरोप में भी लोगों को सजा के तौर पर जलाकर मार दिया गया था। इसी तरह यूरोपीय देश फ्रांस में सजा के तौर पर एक मशीन में गर्दन रखकर तोड़ दी जाती थी।

मौत की किताब में मिलता है न्याय का जिक्र

प्राचीन मिस्र की मृतकों की किताब में एक दृश्य में न्याय व्यवस्था को दर्शाया गया है, जिसमें एक मृत व्यक्ति के दिल को सच्चाई के पंख के सामने तौला जाता है। हजारों साल पुरानी सभ्यता और गीजा के पिरामिड के रचनाकारों ने भी न्याय की अजब व्यवस्था अपनाई थी, जिसका फैसला तलवारों और खंजरों के दम पर ही होता था।
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सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी के हाथ में संविधान

लेडी ऑफ जस्टिस यानी न्याय की देवी की नई मूर्ति अब सुप्रीम कोर्ट में लगा दी गई है। इस मूर्ति की आंखों से पट्‌टी हटा दी गई है, जिसे लेकर अक्सर ये कहा जाता था कि कानून अंधा है। वहीं, उसके हाथ में तलवार की जगह संविधान की किताब दी गई है। यह मूर्ति सुप्रीम कोर्ट के जजों की लाइब्रेरी में लगाई गई है। बताया जा रहा है कि इस मूर्ति को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया यानी CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने ऑर्डर देकर बनवाया है। मकसद यह मैसेज देना है कि देश में कानून अंधा नहीं है और यह सजा का प्रतीक नहीं है। जानते हैं कि न्याय की देवी की यह अनोखी कहानी।
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अमेरिका, यूरोप और एशिया में लेडी जस्टिस की प्रतिमा

प्राचीन ग्रीक के रोमन साम्राज्य से लेकर मिस्र की सभ्यताओं तक में न्याय की देवी की प्रतिमा नजर आती रही है। यह प्रतिमा पेंटिंग, मूर्तिकला और धातु की मूर्तियों के रूप में दुनिया भर में पाई जाती रही हैं। ये प्रतिमा आपको भारत के अलावा उत्तरी या दक्षिणी अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका, मध्य पूर्व, दक्षिणी और पूर्वी एशिया और ऑस्ट्रेलिया तक के न्यायालयों, कानूनी दफ्तरों और कानूनी व शैक्षणिक संस्थानों में देखने को मिलेगी। न्याय की महिला की प्रतिमा का इतिहास कई हजार साल पुराना है और वह आम तौर पर न्याय के प्रतीक के तौर पर देखी जाती रही हैं।

लेडी जस्टिस की अवधारणा रोमन देवी जस्टीशिया से आई

न्याय की देवी की अवधारणा बहुत पुरानी है, जो प्राचीन ग्रीक और मिस्र के समय से चली आ रही है। ग्रीक देवी थीमिस कानून, व्यवस्था और न्याय का प्रतिनिधित्व करती थी, जबकि मिस्र के लोगों के पास मात थी, जो व्यवस्था का प्रतीक थी। इसी मात से बाद में मजिस्ट्रेट शब्द ईजाद हुआ, जो कई मौकों पर न्याय करता था। यह देवी तलवार और सत्य का पंख दोनों रखती थी। लेडी जस्टिस या न्याय की रोमन देवी जस्टीशिया यही है।
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न्याय की देवी के तीन प्रतीक, तराजू, तलवार और आंख पर पट्टी

न्याय की देवी की पुरानी मूर्ति की आंख पर पट्‌टी ये दर्शाती थी कि कानून की नजर में सब बराबर हैं, जबकि तलवार अथॉरिटी और अन्याय को सजा देने की शक्ति का प्रतीक थी। हालांकि, नई मूर्ति के दाएं हाथ में तराजू बरकरार रखा गया है, क्योंकि यह समाज में संतुलन का प्रतीक है। तराजू दर्शाता है कि कोर्ट किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले दोनों पक्षों के तथ्यों और तर्कों को देखते और सुनते हैं।

संतुलित तराजू का यह है मतलब जानिए

लेडी जस्टिस के संतुलित तराज का मतलब है निष्पक्षता और कानून का दायित्व। ये दर्शाते हैं कि अदालत में प्रस्तुत साक्ष्य को तौलना चाहिए। कानूनी मामले के प्रत्येक पक्ष को देखा जाना चाहिए और न्याय करते समय तुलना की जानी चाहिए।


तलवार हिंसा नहीं, बल्कि पारदर्शिता का प्रतीक

न्याय की देवी के हाथ में तलवार का सांकेतिक मतलब यह है कि यह कानून लागू करने और सम्मान का प्रतीक है। इसका अर्थ है कि न्याय की देवी अपने निर्णय और फैसले पर कायम है और कार्रवाई करने में सक्षम है। तलवार का मतलब बेहद साफ है कि न्याय पारदर्शी है और इसे कोई डरा नहीं सकता है। दोधारी तलवार यह दर्शाती है कि न्याय की देवी सबूतों के अध्ययन के बाद किसी भी पक्ष के खिलाफ फैसला सुना सकता है। यह फैसले को लागू करने के साथ-साथ निर्दोष पक्ष की रक्षा या बचाव करने के लिए बाध्य है।

आंखों पर पट्टी कब और कैसे लगी

पहली बार 16वीं शताब्दी में लेडी जस्टिस की मूर्ति की आंखों पर पट्टी बांधी गई थी। इसका मूल मकसद यह था कि न्यायिक प्रणाली कानूनी पहलुओं के दुरुपयोग या अज्ञानता को सहन कर रही थी। हालांकि, आधुनिक समय में आंखों पर पट्टी कानून की निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता का प्रतिनिधित्व करती है और यह सियासी रसूख, दौलत और ताकत जैसे बाहरी फैक्टर्स के चलते अपने निर्णयों को प्रभावित नहीं होने देती है।

भारतीय न्याय संहिता आने के साथ बदली मूर्ति

ब्रिटिश काल की विरासत को पीछे छोड़ने की कोशिश इस मूर्ति को ब्रिटिश शासन की विरासत को पीछे छोड़ने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। हाल ही में भारत सरकार ने ब्रिटिश शासन के समय से लागू इंडियन पीनल कोड (IPC) कानून की जगह भारतीय न्याय संहिता (BNS) कानून लागू किया था। लेडी ऑफ जस्टिस की मूर्ति में बदलाव करना भी इसी कड़ी के तहत उठाया कदम माना जा सकता है।

रोम के सम्राट न्याय की देवी को देते अहमियत

रोम के सम्राट ऑगस्टस न्याय को प्रमुख गुणों में से एक मानते थे। उन्होंने न्याय की देवी की मूर्ति अपने दरबार में लगवाई थी। उनके बाद सम्राट टिबेरियस ने रोम में जस्टीशिया का एक मंदिर बनवाया था। जस्टीशिया न्याय के उस गुण का प्रतीक बन गई, जिसके साथ हर सम्राट अपने शासन को जोड़ना चाहता था। वहीं, सम्राट वेस्पासियन ने उनकी छवि के साथ सिक्के बनाए, जहां वह एक सिंहासन पर बैठी थीं जिसे 'जस्टीशिया ऑगस्टा' कहा जाता था। उनके बाद कई सम्राटों ने खुद को न्याय का संरक्षक घोषित करने के लिए न्याय की देवी का इस्तेमाल किया।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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