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इस्लामाबाद: इस्लामाबाद में हो रही एससीओ समिट में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की भागेदारी ने खासतौर से चीन का ध्यान खींचा है। लंबे समय बाद किसी भारतीय नेता का पाकिस्तान जाना चीन को रास नहीं आया है। भारत के विदेश मंत्री की पाकिस्तान यात्रा पर बात करते हुए चीनी मीडिया ने कई सवाल खड़े किए हैं और तमाम आरोप लगाए हैं। पाकिस्तान में हाल के समय में चीनी नागरिकों पर हमले हुए हैं। कराची में हाल ही हुए एक हमले में दो चीनी नागरिक मारे गए थे। चीनी मीडिया और टिप्पणीकारों ने हमलों और जयशंकर की यात्रा को भी जोड़ दिया है। वहीं समिट में भी चीन को प्रभावी और भारत को कमतर दिखाने की कोशिश बीजिंग के टिप्पणीकार कर रहे हैं।द प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, एससीओ समिट के बीच चीनी भाषा के मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म कराची में हुए हालिया अटैक के पीछे भारतीय संलिप्तता की बात कह रहे हैं। भारत और अमेरिका को चीन-पाकिस्तान संबंधों में बाधा डालने वाले के रूप में पेश किया जा रहा है। कुछ टिप्पणीकारों ने भारत और बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) के बीच संबंध का आरोप लगाया है, ये गुट चीनियो को निशाना बनाता रहा है। इन विश्लेषकों ने जयशंकर की यात्रा के समय पर कहा है कि यह दुनिया का ध्यान इससे भटकाने की कोशिश है कि भारत और बीएलए के संबंध हैं।
कुछ चीनी टिप्पणीकारों ने एससीओ के प्रति भारत की दुविधा पर चर्चा की है। इनका कहना है कि भारत संगठन में चीन की प्रमुख भूमिका से असहज है। ऐसे में उसने असहमति के रूप में अपनी भागीदारी को कम कर दिया है। टिप्पणीकारों का तर्क है कि जैसे-जैसे बीजिंग का वैश्विक प्रभाव बढ़ रहा है, चीन के नेतृत्व के साथ भारत की बेचैनी भी स्पष्ट होती जा रही है।
रिपोर्ट कहती है कि चीन की कोशिश एससीओ के भीतर भारत की भूमिका को कमजोर करने की दिख रही है। इसे भारत, चीन और पाकिस्तान से जुड़े क्षेत्रीय तनावों तक सीमित करने की कोशिश हो रही है। नतीजे में एससीओ चीन-पाकिस्तान संबंधों की मजबूती को पेश करने का मंच दिख रहा है, जो भारत की चिंताओं को दरकिनार कर देता है। हालांकि ये देखने वाली बात है कि चीन कब तक पाकिस्तान को आतंकवाद पर जवाबदेही से बचा सकता है।
जयशंकर की यात्रा चीन में बौखला गया है
जयशंकर की इस्लामाबाद यात्रा के साथ ही चीन में ऑनलाइन चर्चा चीन और पाकिस्तान के बीच अटूट औ दोस्ती पर सिमट गई है। चीन-पाकिस्तान गठबंधन को मजबूत करने की आवाजें तेज हो गई हैं। इसमें सुरक्षा सहयोग बढ़ाने के सुझाव दिए गए हैं। साथ ही बाहरी प्रभावों खासकर भारत और अमेरिका से सतर्कता बरतने की बात कही गई है। विश्लेषकों का तर्क है कि चीन-पाकिस्तान संबंधों के गहरे होने से भारत चिंतित है।कुछ चीनी टिप्पणीकारों ने एससीओ के प्रति भारत की दुविधा पर चर्चा की है। इनका कहना है कि भारत संगठन में चीन की प्रमुख भूमिका से असहज है। ऐसे में उसने असहमति के रूप में अपनी भागीदारी को कम कर दिया है। टिप्पणीकारों का तर्क है कि जैसे-जैसे बीजिंग का वैश्विक प्रभाव बढ़ रहा है, चीन के नेतृत्व के साथ भारत की बेचैनी भी स्पष्ट होती जा रही है।
रिपोर्ट कहती है कि चीन की कोशिश एससीओ के भीतर भारत की भूमिका को कमजोर करने की दिख रही है। इसे भारत, चीन और पाकिस्तान से जुड़े क्षेत्रीय तनावों तक सीमित करने की कोशिश हो रही है। नतीजे में एससीओ चीन-पाकिस्तान संबंधों की मजबूती को पेश करने का मंच दिख रहा है, जो भारत की चिंताओं को दरकिनार कर देता है। हालांकि ये देखने वाली बात है कि चीन कब तक पाकिस्तान को आतंकवाद पर जवाबदेही से बचा सकता है।
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