भारत में क्यों पनप रहा है ड्रग्स का कारोबार? इन आंकड़ों से समझिए

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इंडिया में नाइट लाइफ, ड्रग्स का धंधा और युवा पीढ़ी एक खतरनाक त्रिकोण के रूप में उभर रहे हैं, क्योंकि इन तीनों का गहरा संबंध है. छोटे-बड़े शहरो में नाइट लाइफ और पब-क्लब कल्चर का आकर्षण बढ़ा है. ये एक ऐसी दुनिया है जहां युवा मदमस्त हो जाना चाहता है. वहीं दूसरी ओर तेजी से पनप रहा ड्रग्स का धंधा ऐसे ही ठिकानों और युवाओं को टारगेट कर रहा है. जहां आसानी से हाई-फाई पार्टियों, क्लबों और पब्स में नशीले पदार्थों को पहुंचाया जा सके. जिंदगी के तनाव और दबाव से मुक्ति पाने के लिए पब और क्लबों में मस्ती और रोमांच की तलाश में आ रहे युवा ड्रग्स के जाल में फंस जाते हैं.

नाइट लाइफ, पब कल्चर, डांस बार और रेस्ट्रोरेंट की ओर भारतीय युवा तेजी से आकर्षित हो रहे हैं. यहीं वजह है कि कोविड के बाद भारत में पब और बार-रेस्ट्रोरेंट्स की संख्या में इजाफा देखने को मिला है. नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया (एनआरएआई) की 2024 की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर में महामारी के बाद लोगों के बाहर खाने के पैटर्न में 32% बढ़ावा देखने को मिला है.

तेजी से बढ़ रहा नाइट लाइफ का कल्चर
रिपोर्ट के मुताबिक मुंबई के फूड सर्विस इंड्रस्ट्री के संगठित क्षेत्र का बाजार अनुमानित रूप से ₹55,181 करोड़ मूल्य का है और यह संगठित खाद्य सेवा क्षेत्र में शीर्ष 21 शहरों में सबसे आगे है. मुंबई में कुल 1,41,456 रेस्तरां (संगठित + असंगठित दोनों क्षेत्रों में) हैं, जहां ज्यादातर लोग बाहर खाने के लिए फाइन डाइनिंग रेस्तरां को प्राथमिकता देते हैं. उसके बाद कैज़ुअल डाइनिंग रेस्तरां का स्थान आता है. घर से बाहर निकलकर नाइट लाइफ, पब कल्चर, की ओर युवाओं की दिलचस्पी सबसे ज्यादा है.

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भारत का पब, बार, कैफे और लाउंज (PBCL) बाजार
International Market Analysis Research and Consulting Group (IMARC) के अनुसार 2024 से 2032 के दौरान भारत में पब, बार, कैफे और लाउंज (PBCL) बाजार में 11.5% की कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट (CAGR) की वृद्धि की उम्मीद है. इसकी वजह है कि भारतीय युवाओं में मनोरंजन की प्रवृत्ति तेजी बढ़ी है. नाइटलाइफ और मिड-वीक पार्टीज़ का ट्रेंड शहरी क्षेत्रों में निरंतर बढ़ रहा है. दरअसल COVID-19 महामारी के कारण पूरे देश में सख्त लॉकडाउन लागू किया गया था, जिससे बार, रेस्ट्रोरेंट और कैफे, अस्थायी रूप से बंद हो गए या उनका कारोबार ठप पड़ गया था. जिससे पब, बार, कैफे और लाउंज के बाजार पर जबरदस्त नकारात्मक प्रभाव पड़ा था. लेकिन महामारी का दौर खत्म हुआ और लोग घरों से बाहर मनोरंजन, घूमने-फिरने और मौज-मस्ती के लिए निकल पड़े. जिससे इस उद्योग को सकारात्मक फायदा मिला.

Mordor Intelligence रिसर्च के मुताबिक भारत के कैफे और बार बाजार का आकार 2024 के आखिर तक 17.54 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है, और इसके 2029 तक 26.17 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है. इस अवधि के दौरान इसका सालाना विकास दर (CAGR) 8.33% रहेगा.

National Restaurant Association of India (NRAI) ने इंडिया फूड सर्विसेज रिपोर्ट 2024 के अनुसार, भारतीय खाद्य सेवा उद्योग का मूल्य वित्त वर्ष 2024 तक ₹5,69,487 करोड़ आंका है. इसके वित्त वर्ष 2028 तक ₹7,76,511 करोड़ तक बढ़ने का अनुमान है, जिससे कुल मिलाकर 8.1% की कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट (CAGR) हासिल होगी. संगठित क्षेत्र से 13.2% की CAGR के साथ सबसे तेज़ी से बढ़ने की उम्मीद जाहिर की गयी है.

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भारत में पनपता ड्रग्स का धंधा
वहीं दूसरी ओर भारत में ड्रग्स तस्करी का कारोबार तेजी से पैर पसार रहा है. ड्रग्स कारोबार के मामले में अंतरराष्ट्रीय सिंडिकेट्स और नेटवर्क्स के तार देश के कई शहरों से जुड़े हैं. हाल की घटनाओं पर नज़र डाले तो स्पष्ट हो जाएगा कि दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, भोपाल, अमृतसर और चेन्नई, यूपी के हापुड़ और गुजरात के अंकलेश्वर तक ड्रग्स तस्करों का नेटवर्क का भांडाफोड़ हुआ है. दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 13 दिनों में 13,000 करोड़ रुपये कीमत की कोकीन और 40 किलो हाइड्रोपोनिक थाईलैंड मारिजुआना जब्त की है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल द्वारा ₹13,000 करोड़ की ड्रग्स की जब्ती और इससे एक दिन पहले गुजरात पुलिस द्वारा ₹5,000 करोड़ की कोकीन बरामदगी की सराहना कर चुके हैं.

2004 से 2014 के बीच जब्त की गई ड्रग्स का मूल्य 5,900 करोड़ रुपए था, जबकि 2014 से 2024 के बीच जब्त की गई ड्रग्स का मूल्य 22,000 करोड़ रुपये है. गृह मंत्रालय के आंकड़ों पर नज़र डाले तो 2014 से दिसंबर 2023 के बीच NCB द्वारा ड्रग्स की जब्ती में 160% की वृद्धि दर्ज की गयी और इस अवधि में 210% अधिक मामले दर्ज हुए हैं, जो 2006-13 की अवधि की तुलना में काफी अधिक है. जब्त की गई ड्रग्स का कुल मूल्य ₹22,000 करोड़ रुपये है. जबकि पहले यह आंकड़ा ₹768 करोड़ ही था. गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2006 से 2013 के दौरान ड्रग्स कारोबार करने वालों के खिलाफ दर्ज मामलों की संख्या 1257 थी, जो वर्ष 2014-2023 के दौरान 3 गुना बढ़कर 3755 हो गयी.

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अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सीमाओं से ड्रग्स की तस्करी के कई मामले सामने आ चुके हैं. कई मामलों में पाकिस्तान से श्रीलंका ड्रग्स की खेप भेजी जाती है फिर समुद्री रास्ते से मछुवारो के जरिए ड्रग्स कन्साइनमेंट को भारत भेजा जा रहा है. ऐसे कई मामलों में गिरफ्तारियां भी हुई है. भारत-पाकिस्तान सीमा पर भी बीएसएफ का सख्त नाकेबंदी के बावजूद ड्रग्स भेजने के लिए चाइनीज़ ड्रोन का इस्तेमाल हो रहा है.

पाकिस्तान की ओर से पंजाब और राजस्थान जैसी सीमावर्ती राज्यों से अक्सर तस्करी के मामले सामने आते रहे हैं. हाल के समय में ड्रोन के जरिए ड्रग्स और हथियारों की तस्करी के मामलों में तेजी आयी हैं. ये तमाम घटनाएं इस ओर इशारा करते है कि युवा आबादी को नशे का आदी बनाकर भारत के लिए संकट पैदा करना है. पंजाब इसकी एक मिसाल है.

युवाओं की आबादी और ड्रग्स की बढ़ती समस्या
भारत में युवाओं की आबादी दुनिया के कई देशों से अधिक है. भारत की कुल जनसंख्या का करीब 65% हिस्सा 35 वर्ष से कम उम्र के लोगों का है. ड्रग्स की मांग का बड़ा हिस्सा देश के युवा वर्ग से आ रहा है. जो जिंदगी की चुनौतियों, तनावों, मौज-मस्ती और नशा एक फैशन के चक्कर में इसके आदी हो रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक नाइट क्लब, पब और पार्टियों में जाने वाले युवाओं को ड्रग्स सप्लायर आसानी से अपना टारगेट बनाते हैं. पहले उन्हे हल्के नशे की आदत डाली जाती है, फिर उसके बाद धीरे-धीरे उन्हें महंगे और खतरनाक हेरोइन, गांजा, चरस और अफीम के साथ म्याऊं-म्याऊं, सिरिंज, कोकीन और दूसरे नए-नए ड्रग्स उपलब्ध कराए जाते हैं. ग्राहकों से संपर्क करने के लिए डिलीवरी बॉय, ‘कॉलर्स’, ‘हाई-एंड स्टफ’ और कई तरह के कोडवर्ड यूज होते हैं. इस धंधे में ड्रग्स सप्लाई के लिए नेटवर्किंग के लिए वाट्सअप ग्रुप जैसी तकनीक का भी इस्तेमाल होता है.

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सरकार और पुलिस की जिम्मेदारी
हाल की घटनाओं से साफ हो गया है कि ड्रग्स के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जरूरत है. दिल्ली पुलिस और जांच एजेंसियों द्वारा की गई छापेमारी से बड़े नेटवर्क का खुलासा हुआ है. सरकार को भी ड्रग्स के प्रति जागरूकता फैलाने, नशामुक्ति केंद्रों का विस्तार करने, और युवाओं को सही दिशा देने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे. यह केवल कानून का उल्लंघन नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक और नैतिक संकट भी है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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