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पटना: अंततः केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने एनडीए की राजनीति में जो पलीता लगाया था उसमें धमाका भी हो गया। और यह धमाका किया जमुई से लोजपा(आर) के सांसद और चिराग पासवान के जीजा अरुण भारती ने। शह और मात की जो विसात केंद्रीय मंत्री जीतन राम ने बिछाई थी उसमे प्रारंभिक सफलता तो मिल गई। आइए जानते हैं कि इस शह और मात के खेल में जीतन राम मांझी का मकसद क्या था और इसके खिलाफ सांसद अरुण भारती ने क्या कहा ?
पशुपति पारस में कोई गुण नहीं- अरुण भारती
केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी के बयान पर पलटवार करते जमुई सांसद अरुण भारती ने कहा कि पशुपति पारस में कोई गुण नहीं है। रामविलास पासवान के उद्देश्य, राजनीतिक विरासत को चिराग ही आगे ले जा सकते हैं। देश में रामविलास के जाने से एक दलित नेता की जो कमी हुई है, उसकी भरपाई चिराग पासवान ही कर सकते हैं। जीतन राम मांझी के बयान का खंडन करते हुए सांसद अरुण भारती ने जीतन राम मांझी पर ही सवाल उठा दिया कि वो ऐसी बयानबाजी क्यों कर रहे हैं?
मांझी क्या करना चाहते हैं?
दरअसल ,बिहार में इन दिनों दलित राजनीति उफान पर है। और अभी देखे तो अलहदा रूप में दलित राजनीति के मुख्यतः दो प्लेटफार्म हैं। एक लोकजनशक्ति पार्टी और दूसरा हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा सेक्युलर। वर्तमान समय में लोजपा दो धड़ों में बंट गई है। चिराग के नेतृत्व में लोजपा(आर)और पशुपति पारस के नेतृत्व में लोजपा राष्ट्रीय ताल ठोक रही है। लोजपा के दो गुटों में बंटे रहने के कारण इनकी शक्ति का विभाजन होने की गुंजाइश भी है। ऐसे में जीतन राम मांझी का पशुपति पारस को रामविलास पासवान का राजनीतिक उत्तराधिकारी बताना एक रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
क्या ये है मांझी की रणनीति
चिराग और पशुपति के परिवार के बीच जो दरार है उसे और भी गहरा करना भी इस रणनीति का हिस्सा हो सकता है। कहा जा रहा है कि जीतन राम मांझी बहुत दूर की सोच रहे हैं। दरअसल बिहार की राजनीति में दलित राजनीति का स्पेस जो रामविलास पासवान छोड़ गए हैं उसकी हकदारी के लिए ही ये मारामारी है। चिराग पासवान युवा हैं और बिहार की दलित राजनीति में उनकी पैठ लोकसभा चुनाव में दिखी भी। लोजपा(आर) 100 फीसदी स्ट्राइक रेट दे कर दलित नेतृत्व पर वर्चस्व कायम करता दिखा। जीतन राम मांझी के पुत्र संतोष सुमन भी काफी पढ़े लिखे और अभी राज्य सरकार में मंत्री हैं। लोजपा विभाजित रहेगी तो हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा अपनी ताकत बढ़ा सकता है और इस ताकत की बदौलत भाजपा के और करीब भी आ सकता है। और ऐसे में संतोष सुमन को मांझी दलित राजनीति का एक अहम चेहरा बना सकते हैं।
कहीं ये सब भाजपा के इशारे पर तो नहीं?
पावर संतुलन के गेम में भाजपा का जवाब नहीं। कब किसको आगे बढ़ाना है और कब किसकी पीठ से हाथ हटा लेना है, ये पार्टी अच्छी तरह से जानती है। पिछले दिनों चिराग पासवान का काफी आक्रामक रुख दिखा था। तब केंद्र सरकार में मंत्री रहते हुए जातीय गणना, वक्फ बोर्ड, आरक्षण, लैटरल एंट्री पर चिराग पासवान विरोधियों के सुर में सुर मिला रहे थे। यह वही समय था जिसके बाद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने पशुपति पारस से मुलाकात कर चिराग पासवान को इशारों-इशारों में समझा दिया था। सवाल ये कि क्या मांझी को आगे करना भाजपा की संतुलन नीति का दूसरा झटका तो नहीं?
पशुपति पारस में कोई गुण नहीं- अरुण भारती
केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी के बयान पर पलटवार करते जमुई सांसद अरुण भारती ने कहा कि पशुपति पारस में कोई गुण नहीं है। रामविलास पासवान के उद्देश्य, राजनीतिक विरासत को चिराग ही आगे ले जा सकते हैं। देश में रामविलास के जाने से एक दलित नेता की जो कमी हुई है, उसकी भरपाई चिराग पासवान ही कर सकते हैं। जीतन राम मांझी के बयान का खंडन करते हुए सांसद अरुण भारती ने जीतन राम मांझी पर ही सवाल उठा दिया कि वो ऐसी बयानबाजी क्यों कर रहे हैं?मांझी क्या करना चाहते हैं?
दरअसल ,बिहार में इन दिनों दलित राजनीति उफान पर है। और अभी देखे तो अलहदा रूप में दलित राजनीति के मुख्यतः दो प्लेटफार्म हैं। एक लोकजनशक्ति पार्टी और दूसरा हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा सेक्युलर। वर्तमान समय में लोजपा दो धड़ों में बंट गई है। चिराग के नेतृत्व में लोजपा(आर)और पशुपति पारस के नेतृत्व में लोजपा राष्ट्रीय ताल ठोक रही है। लोजपा के दो गुटों में बंटे रहने के कारण इनकी शक्ति का विभाजन होने की गुंजाइश भी है। ऐसे में जीतन राम मांझी का पशुपति पारस को रामविलास पासवान का राजनीतिक उत्तराधिकारी बताना एक रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।क्या ये है मांझी की रणनीति
चिराग और पशुपति के परिवार के बीच जो दरार है उसे और भी गहरा करना भी इस रणनीति का हिस्सा हो सकता है। कहा जा रहा है कि जीतन राम मांझी बहुत दूर की सोच रहे हैं। दरअसल बिहार की राजनीति में दलित राजनीति का स्पेस जो रामविलास पासवान छोड़ गए हैं उसकी हकदारी के लिए ही ये मारामारी है। चिराग पासवान युवा हैं और बिहार की दलित राजनीति में उनकी पैठ लोकसभा चुनाव में दिखी भी। लोजपा(आर) 100 फीसदी स्ट्राइक रेट दे कर दलित नेतृत्व पर वर्चस्व कायम करता दिखा। जीतन राम मांझी के पुत्र संतोष सुमन भी काफी पढ़े लिखे और अभी राज्य सरकार में मंत्री हैं। लोजपा विभाजित रहेगी तो हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा अपनी ताकत बढ़ा सकता है और इस ताकत की बदौलत भाजपा के और करीब भी आ सकता है। और ऐसे में संतोष सुमन को मांझी दलित राजनीति का एक अहम चेहरा बना सकते हैं।कहीं ये सब भाजपा के इशारे पर तो नहीं?
पावर संतुलन के गेम में भाजपा का जवाब नहीं। कब किसको आगे बढ़ाना है और कब किसकी पीठ से हाथ हटा लेना है, ये पार्टी अच्छी तरह से जानती है। पिछले दिनों चिराग पासवान का काफी आक्रामक रुख दिखा था। तब केंद्र सरकार में मंत्री रहते हुए जातीय गणना, वक्फ बोर्ड, आरक्षण, लैटरल एंट्री पर चिराग पासवान विरोधियों के सुर में सुर मिला रहे थे। यह वही समय था जिसके बाद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने पशुपति पारस से मुलाकात कर चिराग पासवान को इशारों-इशारों में समझा दिया था। सवाल ये कि क्या मांझी को आगे करना भाजपा की संतुलन नीति का दूसरा झटका तो नहीं?आज भी चाचा-भतीजे में बातचीत बंद
बता दें कि पशुपति कुमार पारस और चिराग पासवान के बीच बातचीत तक बंद है। रामविलास का कुनबा बिखर चुका है। पारस की पार्टी आरएलजेपी है जबकि चिराग की पार्टी एलजेपी रामविलास है। रामविलास पासवान के निधन के बाद पार्टी टूट गई थी। 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए में पारस को एक भी सीट नहीं दी गई थी। चिराग को पांच सीटें मिलीं और सब पर जीत हुई। इसके बाद चिराग को केंद्रीय मंत्री बनाया गया। वैसे अब सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या चिराग को कंट्रोल में रखने के लिए मांझी ने इस तरह का बयान दिया है?
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