राहुल गांधी की जलेबी का इजरायल, लेबनान और ईरान से क्या है कनेक्शन, कभी कैदियों के लिए यह थी मौत

नई दिल्ली: जलेबी जितनी घुमावदार होती है, उसका सफर भी उतना ही चक्करदार है। कम ही लोग जानते होंगे कि चाशनी में डूबी जलेबी की यह मिठास एक समय दुनिया को जीतने के लिए खूनी जंग करने वाले तुर्की के मुसलमानों के लिए बेहद कड़वी हुआ करती थी। करीब 1000 साल

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नई दिल्ली: जलेबी जितनी घुमावदार होती है, उसका सफर भी उतना ही चक्करदार है। कम ही लोग जानते होंगे कि चाशनी में डूबी जलेबी की यह मिठास एक समय दुनिया को जीतने के लिए खूनी जंग करने वाले तुर्की के मुसलमानों के लिए बेहद कड़वी हुआ करती थी। करीब 1000 साल पहले जब ईरान को पर्शिया यानी फारस कहा जाता था, तब यह जलेबी आकार लेने लगी थी। उस वक्त इसे वहां पर जलाबिया या जुल्बिया कहा जाता था। यह जलाबिया ईरान से अरब व्यापारियों, आक्रमणकारियों की खून से सनी तलवारों के साथ भारत पहुंची। अब यही जलेबी हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद एक बार फिर से ट्रेंड में है।
दरअसल, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोनीपत के गोहाना में जलेबी खाई थी और मंच से जलेबी की फैक्ट्री लगाने और इससे मिलने वाले रोजगार के बारे में बात की थी। उनकी इस बात पर अब हरियाणा में कांग्रेस की हार के बाद सोशल मीडिया पर जमकर चुटकी ली गई।

मुस्लिम आक्रमणकारियों के कत्लेआम के बीच जलेबी की मिठास पॉपुलर

कहा जाता है कि भारत में आज जो जलेबी खाई जाती है, उस जलेबी की रेसिपी फारसी के जलाबिया या ज़ुल्बिया से ली गई है। ज़ुल्बिया का सबसे पुराना जिक्र 10वीं शताब्दी में फारसी रसोई से जुड़ी मुहम्मद बिन हसन अल बगदादी की किताब 'किताब अल-तबीख' में मिलता है। वहीं, इसी के समकालीन एक अरब लेखक इब्न सय्यर अल वरराक की किताब में भी जलेबिया का जिक्र आता है। ये वो दौर था, जब अरब के मुस्लिम आक्रमणकारी पूरी दुनिया में अपने तलवारों से कत्लेआम मचा रहे थे। उस वक्त यह रमजान के दिनों में बेहद चाव से खाई जाती थी। इसे तुर्की, ईरान, इजरायल और अरब देशों में मुशाबेक या जुल्बिया कहा जाता है।

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पाकिस्तानी कबायली नेता का दावा-ताकत का सोर्स है जलेबी

हॉब्सन-जॉब्सन (1903) जैसे ऐतिहासिक शब्दकोश के अनुसार, जलेबी शब्द अरबी शब्द ज़ुलाबिया या फारसी जुल्बिया से लिया गया है। पाकिस्तान में झेलम के कबायली नेता तनवीर बिन उद्दीन ने इसकी पॉपुलैरिटी में अहम भूमिका निभाई थी, जिसका मानना था कि जलेबी खाने से ताकत मिलती है। कहा जाता है कि यह जलेबी अरब जगत के खलीफाओं की भी पसंद थी।

कभी कैदियों को जलेबी खिलाकर मार डालते थे अंग्रेज

एक अंग्रेज लेखक नॉर्मन चेवर्स की किताब 'ए मैनुअल ऑफ मेडिकल ज्यूरिसप्रूडेंस फॉर इंडिया (1870)' में कहा गया है कि 1800 के दशक में भारत में कैदियों को जहर देने के एक ऐतिहासिक तरीके के रूप में जिलेबी का जिक्र किया गया है। यानी सजा के तौर पर जलेबी में जहर मिलाकर कैदियों को मारा जाता था।



भारत में जलेबी तुर्क और अरबों के जरिए पहुंची

माना जाता है कि जब भारत पर मुस्लिम आक्रमण हो रहे थे तो उस वक्त जलेबी सबकी जुबान में मिठास घोल रही थी। जलाबिया को मध्ययुगीन काल खासकर मुगलों के शासन में भारतीय व्यंजनों से मिलन करवाया गया और तब से यही जलाबिया जलेबी बन गई। उस वक्त यह जलेबी हर त्योहार पर खानपान का हिस्सा बन गई। देश के चर्चित फूड हिस्टोरियन केटी आचाया की किताब 'इंडियन फ़ूड: ए हिस्टोरिकल कंपेनियन' में कहा गया है कि जलेबी अरब और फारसी के अपभ्रंश से निकली है। यहां से दक्षिण भारत के तटों से होते हुए यह पूरे भारत में पॉपुलर हो गई।
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भारतीय व्यापारी हर सभा में खिलाते जलेबी

भारत में एक जैन लेखक हुए हैं जिनासुर। उन्होंने 15चीं सदी में एक ग्रंथ लिखा था 'प्रियमकर्णपकथा'। इसमें बताया गया है कि कैसे जलेबी धनी व्यापारियों की सभाओं में बेहद पॉपुलर थी। व्यापारी अपनी हर सभाओं में जब मंत्रणा करते तो उस वक्त जलेबी ही उन्हें एनर्जी देती।

जब इसे जलवल्लिका और कुंडलिका कहा गया

17वीं सदी के एक संस्कृत ग्रंथ 'गुण्यगुणबोधिनी' में मिठाई बनाने की सामग्री और विधि का उल्लेख है, जो मौजूदा जलेबी के बनाने की विधि जैसी ही है। कुछ प्राचीन भारतीय ग्रंथों में इसे जलवल्लिका या कुंडलिका भी कहा गया है, जो शादियों या अन्य समारोहों के दौरान परोसा जाने वाला एक खास व्यंजन है। यह नुस्खा हमारे देश में भले ही नहीं बना, मगर अपने 1000 से ज्यादा साल के सफर के दौरान यह दिवाली, दशहरे, होली जैसे त्योहारों में हमारे खानपान का अभिन्न हिस्सा बन चुका है।
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दक्षिणी भारत में जिलेबी तो बंगाली में जिलापी नाम

जलेबी पकवान का भारतीय संस्करण उत्तरी भारत में सदियों से लोकप्रिय रहा है, जबकि दक्षिणी भारत में इसे ज्यादातर जिलेबी कहा जाता है। चाहे वह रथयात्रा पर आयोजित मेले में परोसी जाने वाली बंगाली जिलापी हो या दशहरे पर फाफड़ा के साथ खाई जाने वाली गुजराती जलेबी हो, जलेबी अनिवार्य रूप से भारतीय आबादी के पेट में आराम फरमाती है।
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नेपाल में जेरी तो बांग्लादेश में जिलापी नाम

जलेबी को नेपाल में जेरी के नाम से जाना जाता है। यह शब्द मुगल शासक जहांगीर के नाम से आया, जिसे जलेबी बहुत पसंद थी। बांग्लादेश में इसे जिलापी कहा जाता है। बॉलीवुड फिल्म डबल धमाल में एक गाने में जलेबीबाई शब्द का इस्तेमाल किया गया है।

मुगल बादशाह जहांगीर को इतनी पसंद कि नाम पड़ा झांगिरी

हमारे देश में जलेबी के कई अवतार हैं, जो अलग-अलग रूपों में पॉपुलर हैं। इंदौर के रात के बाजारों से हेवीवेट जलेबा, बंगाल के प्रतिष्ठित मिठाई निर्माताओं की रसोई से छनार जिलिपि, मध्य प्रदेश की मावा जलेबी या हैदराबाद की खोवा जलेबी या आंध्र प्रदेश की इमरती या झांगिरी, जिसका नाम मुगल सम्राट जहांगीर के नाम पर रखा गया था। दरअसल, जहांगीर को जलेबी बहुत पसंद थी। उसके खाने में मीठे के रूप में जलेबी जरूर रखी जाती थी।

इजरायल, लेबनान समेत अरब देशों में शहद की चाशनी

इजरायल के साथ प्रॉक्सी वॉर में शामिल ईरान में यही जलेबी आज जलाबिया या ज़ुल्बिया के रूप में बेहद पॉपुलर है। हालांकि, इसकी बनावट भारतीय जलेबी से अलग है। इजरायल, लेबनान, जॉर्डन समेत कई अरब देशों में इसे बनाते वक्त गुलाब जल और शहद की चाशनी में डुबोया जाता है। जो इसे बेहद खास बना देती है। भारत में चीनी की चाशनी का इस्तेमाल होता है।

नेहरू, वाजपेयी और राजीव गांधी को पसंद थी जलेबी

जलेबी का सियासी नाता भी बेहद जबरदस्त रहा है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी और राजीव गांधी तक को जलेबी बेहद भाती रही है। बीते साल जब पीएम नरेंद्र मोदी ऑस्ट्रेलिया दौरे पर गए थे तो उन्होंने जयपुर की जलेबी का जिक्र करते हुए कहा कि इसका कोई जवाब नहीं। हाल ही में हरियाणा में चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी समेत कई नेताओं ने जलेबी खाई थी। राहुल तो अपनी बहन प्रियंका गांधी के लिए जलेबी लेकर गए थे। मगर, हरियाणा में बीजेपी की जीत के बाद यह जलेबी फिर चर्चा में आई।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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