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नई दिल्ली: कश्मीर घाटी के मुसलमान बीजेपी को वोट क्यों नहीं देते हैं? ये एक बड़ा सवाल है, जब जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा चुनाव हुए और उसके नतीजे बीजेपी की उम्मीद के मुताबिक नहीं रहे। रिजल्ट में बीजेपी को जम्मू क्षेत्र में तो अच्छी बढ़त मिली, मगर कश्मीर घाटी में कमल नहीं खिल पाया। 90 सदस्यीय जम्मू-कश्मीर विधानसभा के नतीजों में बीजेपी महज 29 सीटें ही जीत पाई। ये सभी सीटें जम्मू क्षेत्र की हैं, जहां बीजेपी को बढ़त मिली। जम्मू क्षेत्र में कुल 43 विधानसभा सीटें हैं। वहीं कश्मीर क्षेत्र में भाजपा को एक भी सीट नसीब नहीं हुई है। यहां पर उसका अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन रहा है। ऐसा क्यों हुआ, यह समझते हैं।
किसे कितनी सीटें, बीजेपी को सबसे ज्यादा वोट शेयर
जम्मू-कश्मीर की 90 सदस्यीय विधानसभा में नेशनल कॉन्फ्रेंस को 42 सीटें, बीजेपी को 29, कांग्रेस को 6, पीडीपी को 3, जेपीसी को 1, माकपा को 1, आप को 1और निर्दलीय को 7 सीटें मिली हैं। बीजेपी को प्रदेश में सबसे ज्यादा वोट शेयर 25.64 फीसदी, जबकि नेशनल कॉन्फ्रेंस को 23.43 फीसदी मिले हैं।
कश्मीर घाटी में बीजेपी ने 19 प्रत्याशी ही खड़े किए थे
चुनाव विश्लेषक डॉ. राजीव रंजन गिरि कहते हैं कि कश्मीर घाटी की 47 सीटों पर बीजेपी ने 19 उम्मीदवार ही खड़े किए थे। यानी 28 सीटों पर बीजेपी ने उम्मीदवार ही नहीं उतारे। जो भी प्रत्याशी उतारे भी गए थे, उनमें से ज्यादातर मुसलमान थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह से लेकर पार्टी के कई बड़े नेताओं ने दावा किया था कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद से क्षेत्र में पहले की तुलना में शांति है और कश्मीर घाटी के लोगों का भी सरकार और भारतीय जनता पार्टी में भरोसा बढ़ा है। मगर, इन दावों पर कश्मीर घाटी के लोगों ने भरोसा नहीं किया।
गुज्जर-बकरवाल समुदाय को नहीं साध पाई भाजपा
जम्मू-कश्मीर चुनाव में जनजातीय समुदाय गुज्जर-बकरवाल की भूमिका हमेशा से काफी मायने रखती रही है। जम्मू-कश्मीर की सभी राजनीतिक पार्टियां इन दोनों ही समुदायों को साधने की कोशिश करती रही हैं। भाजपा ने गुज्जर वोट के लिए कई रणनीति बनाई थी, लेकिन पहाड़ी और गुज्जर वोट को साधने की भाजपा की रणनीति सिरे नहीं चढ़ी और राजौरी-पुंछ की आठ सीटों में से भाजपा के खाते में केवल एक सीट आई।
रशीद फैक्टर भी भाजपा के काम नहीं आया
डॉ. राजीव रंजन गिरि के अनुसार, इंजीनियर रशीद बड़ा फैक्टर नहीं बन पाए और यह साबित हो गया कि लोकसभा चुनाव में उनकी जीत केवल तात्कालिक माहौल के कारण ही थी। इंजीनियर रशीद की अगुआई वाली अवामी इत्तेहाद पार्टी और जमात-ए-इस्लामी के उम्मीदवार चुनाव में कोई खास प्रभाव नहीं डाल पाए। इंजीनियर रशीद की अवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी) ने 44 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। मगर, वो एक भी सीट नहीं जीत पाई।
पीडीपी के कमजोर होने से नेशनल कॉन्फ्रेंस को फायदा
महबूबा मुफ्ती की पीडीपी इस बार के चुनाव में बेहद कमजोर रही है। उसका प्रदर्शन बेहद खराब रहा। पीडीपी के खाते में केवल 3 सीटें ही आ पाईं। इसका फायदा नेशनल कॉन्फ्रेंस को ज्यादा मिला। नतीजा यह रहा कि उसे कुल 42 सीटें मिलीं। पीडीपी नेशनल कॉन्फ्रेंस की सीटें काट नहीं पाई।
अनुच्छेद 370 को भुनाना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती बना
बताया जा रहा है कि कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के गठबंधन ने भी कश्मीर में बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दीं। इस चुनावी गठबंधन से कश्मीर में बीजेपी विरोधी लहर और भी बढ़ गई है। लोगों को कांग्रेस-नेशनल कॉन्फ़्रेंस गठबंधन के तौर पर एक विकल्प मिलता नजर आया। बीजेपी के लिए अनुच्छेद 370 को भुनाना बड़ी चुनौती थी। डॉ. राजीव रंजन गिरि कहते हैं कि बीजेपी ने अनुच्छेद 370 खत्म कर देश के बाकी हिस्सों में एक नैरेटिव जरूर सेट किया, मगर कश्मीर घाटी में लोगों को यह बात नहीं समझा पाई कि 370 हटते ही कश्मीर के सारे मसले हल हो गए।
जम्मू ही बीजेपी का गढ़, वहां भी क्लीन स्विप नहीं
जम्मू-कश्मीर विधानसभा की 90 में से 43 सीटें जम्मू में हैं। जम्मू ही बीजेपी का असल वोट बैंक समझा जाता है। यहां हिंदुओं की अच्छी ख़ासी आबादी है। हालांकि, इस बार बीजेपी ने जम्मू-के पीरपंजाल में भी कई मुसलमान उम्मीदवारों को टिकट दिया था। पीरपंजाल मुस्लिम बहुल इलाका है। हिंदू बहुल इलाका होने के बाद भी जम्मू में बीजेपी को क्लीन स्विप मिलती नहीं दिख रही है। उसे 25-26 सीटें ही मिलती नजर आ रही थीं।
10 साल पहले क्या थी बीजेपी की स्थिति
जम्मू-कश्मीर में 10 साल पहले हुए पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी 25 सीटें जीतकर दूसरे सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी थी। उस वक्त महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने 28 सीटें जीती थीं। इसके बाद दोनों पार्टियों ने मिलकर सरकार बनाई थी। हालांकि, 2018 में आपसी मतभेदों के कारण ये गठबंधन सरकार गिर गई। तब से जम्मू-कश्मीर में चुनी हुई सरकार नहीं थी। इस बार बीजेपी को 4 सीटों का फायदा हुआ है। उसे इस बार 29 सीटें मिली हैं।
लोकसभा चुनाव में बीजेपी नहीं लड़ी थी कश्मीर घाटी में चुनाव
भाजपा ने इस बार कश्मीर में लोकसभा का चुनाव भी नहीं लड़ा था। हालांकि, भाजपा ने हिंदू बहुल जम्मू की दो सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। वहीं, मुस्लिम बहुल कश्मीर घाटी की तीनों सीटों में से एक सीट पर भी अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था। भाजपा ने तीसरी बार जम्मू और उधमपुर सीट पर जीत दर्ज की।
मुस्लिमों के गढ़ में मुस्लिम प्रत्याशी से हराने की रणनीति फेल
जम्मू-कश्मीर में बीजेपी ने काफी सोच-समझकर मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव खेला था। पार्टी ने लोकसभा चुनाव में जम्मू इलाके की दोनों सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। कश्मीर रीजन में मुस्लिम वोटों के सियासी प्रभाव को देखते हुए बीजेपी ने मुस्लिम कैंडिडेट उतारे। मगर, सभी के सभी हार गए। कश्मीर पंचायत चुनाव में भी बीजेपी ने मुस्लिम बहुल इलाकों में मुस्लिमों पर दांव खेला था, जिसमें कुछ हद तक कामयाब रही। यही वजह है कि विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने मुस्लिम मतदाताओं पर भरोसा जताया था।
क्या नहीं चल पाया मोदी का जादू, पर 'जीत' गए
बीजेपी ने अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर के माहौल में आए बदलाव, विकास की गाथा और कांग्रेस की परिवारवादी राजनीति के खात्मे को आधार बना रही है। बीजेपी पिछले पांच साल में आए बदलाव की तस्वीर जनता के सामने रखकर उनसे विकास या विनाश का विकल्प चुनने के लिए कह रही है। इसके अलावा जिस तरह से कश्मीर रीजन वाले इलाके की सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट उतारे गए हैं, उसको बीजेपी की सत्ता में वापसी का मूल मंत्र माना जा रहा था। मगर, बीजेपी का यह मंत्र काम नहीं आया। लोगों को रोजगार, आतंक और कश्मीर में बाहरी लोगों के प्रवेश से सख्त ऐतराज है। 2019 में 370 हटने के बाद से बीजेपी नौकरियां देने में विफल रही तो वहीं, आतंकी घटनाओं में भी इस दौरान कोई कमी नहीं आई। घाटी में भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू नहीं चल पाया, मगर मोदी सरकार घाटी समेत पूरे जम्मू-कश्मीर में शांतिपूर्ण चुनाव कराने में कामयाब रही। इसे एक तरह से बीजेपी की जीत माना जा रहा है।
किसे कितनी सीटें, बीजेपी को सबसे ज्यादा वोट शेयर
जम्मू-कश्मीर की 90 सदस्यीय विधानसभा में नेशनल कॉन्फ्रेंस को 42 सीटें, बीजेपी को 29, कांग्रेस को 6, पीडीपी को 3, जेपीसी को 1, माकपा को 1, आप को 1और निर्दलीय को 7 सीटें मिली हैं। बीजेपी को प्रदेश में सबसे ज्यादा वोट शेयर 25.64 फीसदी, जबकि नेशनल कॉन्फ्रेंस को 23.43 फीसदी मिले हैं।कश्मीर घाटी में बीजेपी ने 19 प्रत्याशी ही खड़े किए थे
चुनाव विश्लेषक डॉ. राजीव रंजन गिरि कहते हैं कि कश्मीर घाटी की 47 सीटों पर बीजेपी ने 19 उम्मीदवार ही खड़े किए थे। यानी 28 सीटों पर बीजेपी ने उम्मीदवार ही नहीं उतारे। जो भी प्रत्याशी उतारे भी गए थे, उनमें से ज्यादातर मुसलमान थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह से लेकर पार्टी के कई बड़े नेताओं ने दावा किया था कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद से क्षेत्र में पहले की तुलना में शांति है और कश्मीर घाटी के लोगों का भी सरकार और भारतीय जनता पार्टी में भरोसा बढ़ा है। मगर, इन दावों पर कश्मीर घाटी के लोगों ने भरोसा नहीं किया।गुज्जर-बकरवाल समुदाय को नहीं साध पाई भाजपा
जम्मू-कश्मीर चुनाव में जनजातीय समुदाय गुज्जर-बकरवाल की भूमिका हमेशा से काफी मायने रखती रही है। जम्मू-कश्मीर की सभी राजनीतिक पार्टियां इन दोनों ही समुदायों को साधने की कोशिश करती रही हैं। भाजपा ने गुज्जर वोट के लिए कई रणनीति बनाई थी, लेकिन पहाड़ी और गुज्जर वोट को साधने की भाजपा की रणनीति सिरे नहीं चढ़ी और राजौरी-पुंछ की आठ सीटों में से भाजपा के खाते में केवल एक सीट आई।रशीद फैक्टर भी भाजपा के काम नहीं आया
डॉ. राजीव रंजन गिरि के अनुसार, इंजीनियर रशीद बड़ा फैक्टर नहीं बन पाए और यह साबित हो गया कि लोकसभा चुनाव में उनकी जीत केवल तात्कालिक माहौल के कारण ही थी। इंजीनियर रशीद की अगुआई वाली अवामी इत्तेहाद पार्टी और जमात-ए-इस्लामी के उम्मीदवार चुनाव में कोई खास प्रभाव नहीं डाल पाए। इंजीनियर रशीद की अवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी) ने 44 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। मगर, वो एक भी सीट नहीं जीत पाई।पीडीपी के कमजोर होने से नेशनल कॉन्फ्रेंस को फायदा
महबूबा मुफ्ती की पीडीपी इस बार के चुनाव में बेहद कमजोर रही है। उसका प्रदर्शन बेहद खराब रहा। पीडीपी के खाते में केवल 3 सीटें ही आ पाईं। इसका फायदा नेशनल कॉन्फ्रेंस को ज्यादा मिला। नतीजा यह रहा कि उसे कुल 42 सीटें मिलीं। पीडीपी नेशनल कॉन्फ्रेंस की सीटें काट नहीं पाई।अनुच्छेद 370 को भुनाना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती बना
बताया जा रहा है कि कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के गठबंधन ने भी कश्मीर में बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दीं। इस चुनावी गठबंधन से कश्मीर में बीजेपी विरोधी लहर और भी बढ़ गई है। लोगों को कांग्रेस-नेशनल कॉन्फ़्रेंस गठबंधन के तौर पर एक विकल्प मिलता नजर आया। बीजेपी के लिए अनुच्छेद 370 को भुनाना बड़ी चुनौती थी। डॉ. राजीव रंजन गिरि कहते हैं कि बीजेपी ने अनुच्छेद 370 खत्म कर देश के बाकी हिस्सों में एक नैरेटिव जरूर सेट किया, मगर कश्मीर घाटी में लोगों को यह बात नहीं समझा पाई कि 370 हटते ही कश्मीर के सारे मसले हल हो गए।जम्मू ही बीजेपी का गढ़, वहां भी क्लीन स्विप नहीं
जम्मू-कश्मीर विधानसभा की 90 में से 43 सीटें जम्मू में हैं। जम्मू ही बीजेपी का असल वोट बैंक समझा जाता है। यहां हिंदुओं की अच्छी ख़ासी आबादी है। हालांकि, इस बार बीजेपी ने जम्मू-के पीरपंजाल में भी कई मुसलमान उम्मीदवारों को टिकट दिया था। पीरपंजाल मुस्लिम बहुल इलाका है। हिंदू बहुल इलाका होने के बाद भी जम्मू में बीजेपी को क्लीन स्विप मिलती नहीं दिख रही है। उसे 25-26 सीटें ही मिलती नजर आ रही थीं।10 साल पहले क्या थी बीजेपी की स्थिति
जम्मू-कश्मीर में 10 साल पहले हुए पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी 25 सीटें जीतकर दूसरे सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी थी। उस वक्त महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने 28 सीटें जीती थीं। इसके बाद दोनों पार्टियों ने मिलकर सरकार बनाई थी। हालांकि, 2018 में आपसी मतभेदों के कारण ये गठबंधन सरकार गिर गई। तब से जम्मू-कश्मीर में चुनी हुई सरकार नहीं थी। इस बार बीजेपी को 4 सीटों का फायदा हुआ है। उसे इस बार 29 सीटें मिली हैं।लोकसभा चुनाव में बीजेपी नहीं लड़ी थी कश्मीर घाटी में चुनाव
भाजपा ने इस बार कश्मीर में लोकसभा का चुनाव भी नहीं लड़ा था। हालांकि, भाजपा ने हिंदू बहुल जम्मू की दो सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। वहीं, मुस्लिम बहुल कश्मीर घाटी की तीनों सीटों में से एक सीट पर भी अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था। भाजपा ने तीसरी बार जम्मू और उधमपुर सीट पर जीत दर्ज की।मुस्लिमों के गढ़ में मुस्लिम प्रत्याशी से हराने की रणनीति फेल
जम्मू-कश्मीर में बीजेपी ने काफी सोच-समझकर मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव खेला था। पार्टी ने लोकसभा चुनाव में जम्मू इलाके की दोनों सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। कश्मीर रीजन में मुस्लिम वोटों के सियासी प्रभाव को देखते हुए बीजेपी ने मुस्लिम कैंडिडेट उतारे। मगर, सभी के सभी हार गए। कश्मीर पंचायत चुनाव में भी बीजेपी ने मुस्लिम बहुल इलाकों में मुस्लिमों पर दांव खेला था, जिसमें कुछ हद तक कामयाब रही। यही वजह है कि विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने मुस्लिम मतदाताओं पर भरोसा जताया था।क्या नहीं चल पाया मोदी का जादू, पर 'जीत' गए
बीजेपी ने अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर के माहौल में आए बदलाव, विकास की गाथा और कांग्रेस की परिवारवादी राजनीति के खात्मे को आधार बना रही है। बीजेपी पिछले पांच साल में आए बदलाव की तस्वीर जनता के सामने रखकर उनसे विकास या विनाश का विकल्प चुनने के लिए कह रही है। इसके अलावा जिस तरह से कश्मीर रीजन वाले इलाके की सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट उतारे गए हैं, उसको बीजेपी की सत्ता में वापसी का मूल मंत्र माना जा रहा था। मगर, बीजेपी का यह मंत्र काम नहीं आया। लोगों को रोजगार, आतंक और कश्मीर में बाहरी लोगों के प्रवेश से सख्त ऐतराज है। 2019 में 370 हटने के बाद से बीजेपी नौकरियां देने में विफल रही तो वहीं, आतंकी घटनाओं में भी इस दौरान कोई कमी नहीं आई। घाटी में भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू नहीं चल पाया, मगर मोदी सरकार घाटी समेत पूरे जम्मू-कश्मीर में शांतिपूर्ण चुनाव कराने में कामयाब रही। इसे एक तरह से बीजेपी की जीत माना जा रहा है।जम्मू-कश्मीर में 85 फीसदी आबादी मुस्लिमों की
2011 के जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर की कुल आबादी 1.25 करोड़ है। इसमें से करीब 85 लाख की आबादी मुस्लिमों की है, जो कुल आबादी का 68 फीसदी बैठता है। वहीं, हिंदुओं की आबादी करीब 35 लाख है, जो कुल आबादी का 28.4 फीसदी है। जम्मू संभाग में 62.5% आबादी हिंदू है। वहीं, कश्मीर घाटी में 96.4% आबादी मुस्लिम है। लद्दाख में 12.1% आबादी हिंदू है।
+91 120 4319808|9470846577
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