पश्चिम एशिया में हाल ही में हुई उथल-पुथल, खासकर 18 सितंबर को लेबनान में इलेक्ट्रॉनिक उपकरण में हुए धमाकों ने कई देशों में नैतिक बहस छेड़ दी है. लेकिन इस दौरान चीन में इस बात पर चर्चा थी कि क्या यह घटना चीन के घटते मोबाइल फोन निर्यात को नया मौका दे सकती है.
चीन का अनुमान है कि 2015 में चीन ने सबसे ज्यादा 1.343 अरब मोबाइल फोन निर्यात किया था. इसके बाद से चीन का निर्यात लगातार घटता जा रहा है. 2022 तक चीन ने करीब 822 मिलियन मोबाइल फोन निर्यात किए, जो कि 39 प्रतिशत की गिरावट को दिखाता है. 2023 में 40 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट के साथ ये संख्या 800 मिलियन से भी पर पहुंच गया. इस दौरान कुछ फायदा भारत को हुआ क्योंकि दुनिया भर में 'चाइना+1' (C+1) ट्रेंड तेज हो रहा है.
कुछ चीनी रणनीतिकार मानते हैं कि पश्चिम एशिया में बदलते हालात, खासकर लेबनान में पेजर और वॉकी-टॉकी के विस्फोट की घटनाएं, चीन के विनिर्माण उद्योग के लिए एक अच्छा मौका साबित हो सकती है. उनका कहना है कि इन घटनाओं से दुनिया भर के इलेक्ट्रॉनिक्स बाजार में 'विश्वास का संकट' पैदा हो सकता है. हो सकता है कि लोग समझने लगें कि अमेरिकी या पश्चिमी देशों में बने इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद पूरी तरह सुरक्षित नहीं होते और उनमें सुरक्षा से जुड़े खतरे हो सकते हैं.
उदाहरण के तौर पर पेकिंग यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मेई हुआलोंग ने कहा कि इस घटना से 'खेल के नियम' बदल सकते हैं और इसका असर धीरे-धीरे सामने आ सकता है. उन्होंने इसे 9/11 हमले के बाद एविएशन सेक्टर में आए बदलावों जैसा बताया.
चीन के पास पश्चिमी के इलेक्ट्रॉनिक्स को चुनौती देने का मौका
चीनी विशेषज्ञों का कहना है कि इस विस्फोट और लगातार हो रही हत्याओं ने अरब देशों के ग्रहकों को पश्चिमी इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की सुरक्षा को लेकर चिंतित कर दिया है. सोशल मीडिया पर कई लोग पश्चिमी इलेक्ट्रॉनिक्स का बहिष्कार करने और हुवावे जैसी कंपनियों की तरफ रुख करने की बात कर रहे हैं.
चीनी विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि यह पहला मौका नहीं है जब पश्चिम एशिया के देश इजरायल द्वारा कम्युनिकेशन सिस्टम में छेड़छाड़ का शिकार हुए हैं. सीरिया, जॉर्डन, मिस्र और तुर्की लंबे समय से इसका सामना कर रहे हैं. इन देशों के पास स्वतंत्र तकनीक और एक मजबूत औद्योगिक चेन नहीं है, जिससे वे खुद को सुरक्षित रख सकें.
ईरान, सीरिया, इराक और लेबनान में डेटा लीक से हुई हत्याओं और हमलों ने खाड़ी देशों में भी चिंता बढ़ा दी है. अब लगभग सभी पश्चिम एशियाई देश एक सुरक्षित और विश्वसनीय संचार और ऊर्जा उद्योग की तलाश में हैं. ऐसे में चीन खुद को 'सबसे अच्छा विकल्प' बता रहा है.
चीनी रणनीतिकार पश्चिमी सप्लाई चेन को अस्थिर और अविश्वसनीय बताने की कोशिश कर रहे हैं. उनका कहना है कि सप्लाई चेन के लिए असली खतरा पश्चिमी देश हैं, न कि चीन. वे एक नई सप्लाई चेन की व्यवस्था को बढ़ावा देना चाहते हैं, जहां कुछ गैर-पश्चिमी देशों में डी-वेस्टर्नाइजेशन (पश्चिमीकरण से दूरी) का चलन बढ़े.
फुदान यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर शेन यी ने कहा, 'चीन-अमेरिकी व्यापार युद्ध के बाद, अब दुनिया में दो तकनीकी प्रणाली, दो मानक, और दो इकोसिस्टम वाला तंत्र है. चीन अमेरिकी मानकों से कैसे मुकाबला कर सकता है? हां, हमारे तकनीकी मापदंड उनके जितने ऊंचे नहीं हो सकते, लेकिन हम यह गारंटी दे सकते हैं कि हमारे उत्पाद सुरक्षित हैं और फटेंगे नहीं. अगर आप बम से उड़ना नहीं चाहते, तो आप हमारे उत्पाद इस्तेमाल कर सकते हैं.'
इसलिए चीनी विशेषज्ञ 'मेड इन चाइना' को न सिर्फ सस्ता और अच्छा बताने की कोशिश कर रहे हैं, बल्कि उसे 'तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर, स्वतंत्र, सुरक्षित और विश्वसनीय' के तौर पर भी पेश कर रहे हैं. उनका कहना है कि चीन के सभी इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद चीन में ही बनाए और असेंबल किए जाते हैं, जिससे बाहरी देशों के हस्तक्षेप की संभावना कम हो जाती है. इसलिए पश्चिम एशिया के उपभोक्ता चीनी उत्पादों को चुन सकते हैं.
क्या यह चीनी रणनीति काम करेगी? इसका जवाब समय ही बताएगा. हालांकि, भारत जो कि स्मार्टफोन और इलेक्ट्रॉनिक्स के निर्यात से वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रहा है, उसका इस बदलते सप्लाई चेन समीकरण पर ध्यान देना जरूरी है.
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