महिलाओं, बच्चों को सड़क पर देखना अच्छा नहीं, अवैध निर्माण तोड़ने से पहले मिले पर्याप्त समय, बुलडोजर केस में SC की टिप्पणी

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सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को एक बार फिर बुलडोजर एक्शन के मामले में सुनवाई हुई. कोर्ट का कहना था कि वो संपत्तियों को गिराने के मुद्दे पर दिशा-निर्देश जारी करेंगे. कोई भी शख्स आरोपी या दोषी है, यह डेमोलेशन का आधार नहीं हो सकता है. घर टूटने के बाद महिलाओं और बच्चों को सड़क पर देखना अच्छा नहीं है. इसलिए अवैध निर्माण तोड़ने से पहले पर्याप्त समय मिलना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि हम अवैध निर्माण हटाने के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इसके लिए गाइडलाइंस जारी करेंगे. चूंकि, हमारा देश धर्म निरपेक्ष है, इसलिए सभी नागरिकों की रक्षा के लिए निर्देश जारी किया जाएगा. इसके साथ ही कोर्ट ने उन याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिनमें आरोप लगाया गया कि अपराध के आरोपियों समेत उनकी संपत्तियों को ध्वस्त किया जा रहा है. कई राज्यों में संपत्तियों को ध्वस्त कर दिया गया है.

'हम अवैध निर्माण की रक्षा नहीं करेंगे'

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा, 'हम जो कुछ भी निर्धारित कर रहे हैं, हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं. हम इसे सभी नागरिकों के लिए और सभी संस्थानों के लिए रख रहे हैं, किसी विशेष समुदाय के लिए नहीं. किसी विशेष धर्म के लिए अलग कानून नहीं हो सकता है. बेंच ने कहा, हम सार्वजनिक सड़कों, सरकारी भूमि या जंगलों में किसी भी तरह के अनधिकृत निर्माण की रक्षा नहीं करेंगे. हम यह सुनिश्चित करेंगे कि हमारे आदेश से किसी भी सार्वजनिक स्थान पर अतिक्रमण करने वालों को मदद ना मिले.

मामले में सुनवाई समाप्त होने के बाद बेंच ने कहा, आदेश आने वाला है. जब बेंच ने कहा कि वो इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख रहे हैं तो याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील ने सुप्रीम कोर्ट के 17 सितंबर के आदेश का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि एक अक्टूबर तक हमारे आदेश के बिना देश में आपराधिक मामले के आरोपियों समेत उनकी संपत्तियों की ध्वस्तीकरण की कार्रवाई नहीं की जाएगी. अगर अवैध रूप से ध्वस्तीकरण का एक भी मामला है तो यह संविधान के मूल्यों के खिलाफ है. इस पर मंगलवार को बेंच ने कहा, यह आदेश तब तक जारी रहेगा, जब तक हम इस मामले पर फैसला नहीं सुना देते.

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आज सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा..

- सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में बुलडोजर कार्रवाई पर रोक के अंतरिम आदेश को आगे बढ़ा दिया है. कोर्ट ने साफ किया कि कानून, किसी धर्म पर निर्भर नहीं है. कोई भी मंदिर या दरगाह तोड़फोड़ की कार्रवाई में बाधा नहीं बन सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि अगर एफआईआर दर्ज हो जाए तो कोई व्यक्ति आरोपी है या दोषी, यह बुलडोजर कार्रवाई का आधार नहीं हो सकता है.
- सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि अनधिकृत निर्माण साबित होने पर भी वैकल्पिक व्यवस्था करने के लिए पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए. महिलाओं और बच्चों को सड़क पर देखना अच्छा नहीं है. यानी तत्काल एक्शन नहीं लेना चाहिए और प्रोसेस को फॉलो करना चाहिए.
- राज्यों ने सुझाव दिया कि रजिस्टर्ड पत्रों के जरिए ही नोटिस जारी हो, ना कि सिर्फ संपत्ति पर नोटिस चिस्पा कर दिए जाएं. सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि नोटिस सिर्फ संबंधित या संबद्ध संपत्ति के मालिकों को ही जारी किए जाने चाहिए.
- सुप्रीम कोर्ट ने एक ऑनलाइन पोर्टल बनाने का सुझाव दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और दिशानिर्देश सभी के लिए होंगे. किसी विशेष समुदाय के लिए नहीं.
- बेंच ने कहा, सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है. सड़क के बीच में कोई भी धार्मिक संरचना हो, हम इसकी अनुमति नहीं देंगे.
- जस्टिस विश्वनाथन ने कहा, अगर 2 अवैध ढांचे हैं और आप किसी अपराध के आरोप को आधार बना कर उनमें से सिर्फ 1 को गिराते हैं तो सवाल उठेंगे ही.
- जस्टिस गवई ने कहा कि मैं जब मुंबई में जज था तो खुद भी फुटपाथ से अवैध निर्माण हटाने का आदेश दिया था, लेकिन हमें यह समझना होगा कि अपराध का आरोपी या दोषी होना मकान गिराने का आधार नहीं हो सकता.

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पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने स्पष्ट किया था कि ये आदेश सिर्फ आरोपियों की निजी संपत्ति पर एक्शन लिए जाने के खिलाफ है. यानी कोई मामला ऐसा है जो सरकारी जमीन पर कब्जा करने से जुड़ा है और निर्माण अवैध है. सरकारी नोटिस के बाद भी सार्वजनिक जगह खाली नहीं की जा रही है तो सरकार उस पर एक्शन ले सकती है. सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि सड़क, रेलवे लाइन, फुटपाथ और जलस्रोत (नदियों और तालाबों के क्षेत्र शामिल) पर बने अनाधिकृत ढांचा ढहाने पर यह आदेश लागू नहीं होगा. यानी ऐसी जगहों पर सरकार बुलडोजर से कार्रवाई कर सकती है और अवैध ढांचे गिरा सकती है. इस पर कोर्ट की रोक नहीं रहेगी. बशर्ते वह सार्वजनिक/ सरकारी संपत्तियों को प्रभावित करते हों. सुप्रीम कोर्ट ने अंत में कहा, हम अवैध निर्माण के बीच में नहीं आएंगे.

'हम अवैध अतिक्रमण के बीच में नहीं आ रहे'

दरअसल, बुलडोजर एक्शन को लेकर जमीयत-उलेमा-ए-हिंद समेत अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. इस याचिका में कहा गया था कि कोई केस कोर्ट में होने के बावजूद बुलडोजर के जरिए घर ढहाए जा रहे हैं. वहीं, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट के आदेश पर आपत्ति जताई और कहा, अधिकारियों के इस तरह हाथ नहीं बांधे जा सकते हैं. मेहता ने कहा, याचिकाकर्ता एक भी उदाहरण पेश करे, जिसमें कानून का पालन नहीं किया गया है. बेंच ने कहा, हम किसी अवैध अतिक्रमण के बीच नहीं आ रहे लेकिन अधिकारी जज नहीं बन सकते. हम अनुच्छेद 142 के तहत विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए यह निर्देश दे रहे हैं. मेहता ने यह भी जोड़ा कि किसी भी प्रभावित व्यक्ति ने याचिका दाखिल नहीं की है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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