इच्छा मृत्यु पर नरम रुख! लाइफ सपोर्ट सिस्टम कब हटेगा, सरकार की नई गाइडलाइंस में किन बातों का जिक्र?

नई दिल्ली: स्वास्थ्य मंत्रालय ने पैसिव यूथनेसिया यानी निष्क्रिय इच्छामृत्यु पर ड्राफ्ट गाइडलाइंस जारी की हैं। यह ऐसी स्थिति है जब मरीज गंभीर और न ठीक होने वाली बीमारी से जूझ रहा हो। उसके ठीक होने की कोई उम्मीद न बची हो। भारत सरकार ने महत्वपूर्ण

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नई दिल्ली: स्वास्थ्य मंत्रालय ने पैसिव यूथनेसिया यानी निष्क्रिय इच्छामृत्यु पर ड्राफ्ट गाइडलाइंस जारी की हैं। यह ऐसी स्थिति है जब मरीज गंभीर और न ठीक होने वाली बीमारी से जूझ रहा हो। उसके ठीक होने की कोई उम्मीद न बची हो। भारत सरकार ने महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए लाइलाज बीमारियों से पीड़ित मरीजों के लिए लाइफ सपोर्ट हटाने संबंधी दिशानिर्देश जारी किए हैं। इन दिशानिर्देशों के अनुसार, यदि एक लाइलाज बीमारी से पीड़ित मरीज के लिए लाइफ सपोर्ट जारी रखना बेमानी हो और मरीज के परिवार या प्रतिनिधि भी इस बात से सहमत हों, तो अस्पताल के मेडिकल बोर्ड की अनुमति से लाइफ सपोर्ट हटाया जा सकता है।
लाइफ सपोर्ट हटाने से पहले क्या जरूरी
स्वास्थ्य मंत्रालय ने 20 अक्टूबर तक इस ड्राफ्ट पर राय मांगी है। हालांकि, इस निर्णय को लेकर कई तरह की प्रतिक्रियाएं भी सामने आ रही हैं। कुछ लोग इस निर्णय का स्वागत कर रहे हैं क्योंकि इससे मरीजों को अनावश्यक पीड़ा से बचाया जा सकता है। वहीं, कुछ लोग इस बात को लेकर चिंतित हैं कि इस निर्णय का गलत इस्तेमाल हो सकता है। इसके लिए 4 शर्तें तय की गई हैं।

परिवार पर भी पड़ता है बोझ
जब लाइफ सपोर्ट से मरीज को कोई लाभ न मिल रहा हो। उसे पीड़ा हो रही है। जब मरीज को ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया हो। मरीज या उसके परिजन लिखित में लाइफ सपोर्ट जारी रखने से मना कर दें। यह निर्णय उन मरीजों पर लागू होगा जिनके लिए वेंटिलेटर, सर्जरी या कोई और मेडिकल ट्रीटमेंट भी फायदेमंद नहीं हैं। सरकार का मानना है कि ऐसे मामलों में लाइफ सपोर्ट जारी रखना न केवल मरीज के लिए बल्कि उसके परिवार के लिए भी एक भावनात्मक और आर्थिक बोझ होता है।

मरीज की ओर से कौन करेगा फैसला
इस फैसले पर पहुंचने से पहले एक प्राइमरी मेडिकल बोर्ड और फिर एक अन्य मेडिकल बोर्ड द्वारा मरीज की स्थिति जांची जाएगी। सरकार ने यह भी सुनिश्चित किया है कि इस प्रक्रिया में मरीज और उसके परिवार की स्वायत्तता का सम्मान किया जाए। यह निर्णय निश्चित रूप से एक जटिल मुद्दे पर एक महत्वपूर्ण कदम है। वहीं मरीज की ओर से इस पर फैसला कौन करेगा जब मरीज खुद ऐसा नहीं कर पा रहा। ऐसी स्थिति में सरोगेट पर निर्भर करेगा। यह निर्णय लाइफ सपोर्ट हटाने के बारे में हो सकता है। सरोगेट कौन होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि मरीज ने पहले से कोई निर्देश दिया है या नहीं।

कैसे इसे और बनाया जा सकता है आसान
दिशानिर्देशों का मसौदा तैयार करने वाले डॉक्टरों में से एक, डॉ आर के मणि ने बताया कि टिप्पणी प्रस्तुत करने की अंतिम तिथि 20 अक्टूबर है। उन्होंने कहा, उठाए गए किसी भी मुद्दे को स्वास्थ्य मंत्रालय की एक्सपर्ट कमेटी के सामने रखा जाएगा। वहीं होली फैमिली अस्पताल में क्रिटिकल केयर विभाग के प्रमुख डॉ सुमित रे ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्ति की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है, लेकिन दुर्भाग्य से इसने प्रक्रिया को बहुत जटिल और लागू करने में कठिन बना दिया है। लेकिन, यह निश्चित रूप से एक कदम आगे है और उम्मीद है कि इस प्रक्रिया के साथ कुछ अनुभव के बाद निकट भविष्य में इसकी समीक्षा की जाएगी, ताकि इसे आसान और कम जटिल बनाया जा सके।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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