अंग्रेजों के शासन में कौन करता था तिरुपति मंदिर की देख-रेख, ईस्ट इंडिया कंपनी ने इनको सौंपी थी कमान

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तिरुपति बालाजी मंदिर हिन्दुओं के लिए सबसे पवित्र स्थानों में से एक है. अब एक लैब रिपोर्ट में ये पता चला है कि मंदिर का प्रसाद बनाने में जानवरों की चर्बी और मछली का तेल इस्तेमाल होता है. हिन्दू धर्म में प्रसाद भगवान का भोग होता है. इसी वजह से तिरुपति बालाजी मंदिर इन दिनों चर्चाओं में बना हुआ है. फिलहाल इस मंदिर की देख-रेख आंध्र प्रदेश सरकार रखती है लेकिन क्या आपको पता जब देश में अंग्रेजों का शासन था तब इस मंदिर को कौन संचालित करता था? आइए जानते हैं.

यह बात पांच हज़ार साल पुरानी है, भगवान श्री वेंकटेश्वर, जिन्हें श्रीनिवास, बालाजी और वेंकटचलपति के नाम से भी जाना जाता है. उन्होंने तिरुमाला में अपना निवास स्थान बनाया था. यह भारत के आंध्र प्रदेश के तिरुपति जिले के तिरुमाला पहाड़ी शहर तिरुपति में स्थित है. भगवान वेंकटेश्वर भगवान विष्णु के अवतार हैं और माना जाता है कि वे कलियुग के कष्टों और परेशानियों से मानवता को बचाने के लिए यहां प्रकट हुए थे. इसलिए इस स्थान का नाम कलियुग वैकुंठ भी पड़ा है और यहां के देवता को कलियुग प्रत्यक्ष दैवम कहा जाता है.

तिरुपति के इतिहास को लेकर विभिन्न इतिहासकारों के बीच कुछ मतभेद हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि 5वीं शताब्दी तक यह एक प्रमुख धार्मिक केंद्र है. कहा जाता है कि चोल, होयसल और विजयनगर के राजाओं ने इस मंदिर के निर्माण में महत्वपूर्ण आर्थिक योगदान दिया था. 1933 में इस मंदिर का प्रबंधन मद्रास सरकार ने अपने हाथ में ले लिया और एक स्वतंत्र प्रबंधन समिति 'तिरुमाला-तिरुपति' के हाथ में इस मंदिर का प्रबंधन सौंप दिया. आंध्रप्रदेश के राज्य बनने के पश्चात इस समिति का पुनर्गठन हुआ और एक प्रशासनिक अधिकारी को आंध्रप्रदेश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया.

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माना जाता है कि मंदिर के भवन का निर्माण 300 ई. से शुरू होने वाले समय में हुआ था.मंदिर की वेबसाइट के अनुसार, भगवान श्री वेंकटेश्वर के सामने रखी ये तीन मूर्तियां उनके प्रति उनकी भक्ति को दर्शाती हैं. ऐसा कहा जाता है कि श्री कृष्णदेवरायलु ने स्वयं 2 जनवरी 1517 ई. को इन मूर्तियों की स्थापना की थी और तब से यह मंडप कृष्णदेवरायलु मंडप के नाम से प्रसिद्ध हो गया. इन मूर्तियों के कंधे के बैज पर उनके नाम अंकित हैं.

1843 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने छोड़ दी थी मंदिर की कमान
1843 में, ईस्ट इंडिया कंपनी ने तिरुपति मंदिर का प्रशासन हाथीरामजी मठ के महंतों को सौंपा दिया खा. 1933 यानी अगली छह पीढ़ियों तक हाथीरामजीयों ने ही इस मंदिर को संभाला. इसके बाद टीटीडी अधिनियम के तहत तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम की स्थापना हुई थी. इसके बाद 1951 में इस व्यव्स्था को भी बदल दिया गया था. 1951 में मद्रास हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम द्वारा इसे हटाया गया था. साल 1966 में मंदिर को आंध्र प्रदेश के धर्मार्थ और हिंदू धार्मिक संस्थानों के कानून के तहत राज्य के बंदोबस्ती विभाग के सीधे नियंत्रण में रखा गया.

अब कौन करता है तिरुपति मंदिर का संचालन
इसके बाद 1979 में, 1966 का कानून बदलकर नया तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम अधिनियम बनाया गया। आज, तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) आंध्र प्रदेश सरकार के नियंत्रण में है, और टीटीडी के प्रमुख की नियुक्ति भी सरकार करती है। इस मंदिर से मिलने वाला पैसा आंध्र प्रदेश सरकार के विभिन्न कामों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. यानी कि अबमंदिर तिरुमला तिरुपती देवस्थानम (टीटीडी) द्वारा संचालित है, जो आंध्र प्रदेश सरकार के अधीन आता है. टीटीडी के प्रमुख की नियुक्ति आंध्र प्रदेश सरकार करती है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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