कोई समझ पाएगा... दिल्ली में केजरीवाल ने चुनाव से पहले आखिर क्यों चला इस्तीफे वाला दांव?

लेखक: आर.जगन्नाथन
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने पद से इस्तीफा देने का ऐलान किया है। इसी के साथ ही उन्होंने दिल्ली की जनता से नए सिरे से जनादेश मांगा है। उनका कहना है कि जब तक जनता फैसला नहीं सुनाती, वो मुख्यमंत्री की

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लेखक: आर.जगन्नाथन
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने पद से इस्तीफा देने का ऐलान किया है। इसी के साथ ही उन्होंने दिल्ली की जनता से नए सिरे से जनादेश मांगा है। उनका कहना है कि जब तक जनता फैसला नहीं सुनाती, वो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठेंगे। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट से उन्हें जमानत मिलने के दो दिन बाद आया है। केजरीवाल पर शराब घोटाले में शामिल होने के आरोप लगे हैं और उनके करीबी नेता मनीष सिसोदिया इस मामले में 17 महीने जेल में बिता चुके हैं। केजरीवाल ने इस्तीफे के ऐलान करके नया दांव खेला है, जिसके जरिए वो अपनी छवि सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। पिछले कुछ समय से केजरीवाल और उनकी पार्टी की छवि को नुकसान हुआ है।

केजरीवाल के इस्तीफे के दो पक्ष


यह फैसला चौंकाने वाला जरूर है, लेकिन अगर गहराई से देखें तो इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है। मीडिया के अलावा, केजरीवाल का यह कदम शायद ही कहीं और सुर्खियां बना पाएगा। एक तरफ तो आम आदमी पार्टी इसे एक ऐसे नेता का फैसला बताएगी जो सत्ता से ज्यादा नैतिकता को अहमियत देता है। दूसरी तरफ, जिस नेता ने 6 महीने पहले जेल जाने पर पद से इस्तीफा नहीं दुया, वो अब नैतिकता की दुहाई नहीं दे सकता।

लोकसभा चुनाव में मिला था झटका

कोर्ट ने केजरीवाल को लोकसभा चुनाव में प्रचार करने की इजाजत दी थी, लेकिन जनता ने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और बीजेपी ने दिल्ली की सभी सात सीटें जीत लीं। हालांकि 2019 के मुकाबले जीत का अंतर कम था। पंजाब में भी, जहां 2022 के विधानसभा चुनावों में AAP की शानदार जीत हुई थी, पार्टी अब पीछे हटती दिख रही है। जून में हुए लोकसभा चुनावों में पंजाब की 13 सीटों में से AAP सिर्फ तीन पर ही जीत दर्ज कर पाई थी। इससे पहले, 2022 के दिल्ली नगर निगम चुनावों में AAP ने 250 में से 134 सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया था, लेकिन आप और बीजेपी के वोट शेयर में बस तीन प्रतिशत का ही अंतर था।

आप को सत्ता विरोधी लहर का करना पड़ रहा सामना

आज की आम आदमी पार्टी 2013-14 वाली नहीं है। पार्टी को उसी सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है जो एक दशक या उससे ज्यादा समय तक सत्ता में रहने वाली किसी भी पार्टी का पीछा नहीं छोड़ती।

लगातार खराब हो रही आप की छवि

इसके अलावा आप के साथ एक दिक्कत ये भी है कि ये पार्टी ऐसी पार्टी है, जो भ्रष्टाचार विरोधी लहर की सवारी करके सत्ता में आई थी, उसने अपनी चमक खो दी है। खुद मुख्यमंत्री के कामों ने इस गिरावट को और बढ़ावा दिया है। पहले तो उन्हें एक आलिशान सरकारी आवास बनवाने के लिए आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। फिर, ईडी और सीबीआई ने शराब घोटाले में उनकी कथित भूमिका का आरोप लगाते हुए उनकी छवि को और धूमिल कर दिया। उनके उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया इस घोटाले में अपनी कथित भूमिका के लिए 17 महीने जेल में रहे। एक अन्य पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन और विधायक अमानतुल्लाह खान अभी भी जेल में हैं।

मान भी लें कि आप नेताओं के खिलाफ सभी मामले सिर्फ राजनीतिक उत्पीड़न का नतीजा थे, फिर भी यह सवाल तो उठता ही है कि अदालतें बिना किसी वजह के इतने लंबे समय तक इस एजेंडे का साथ क्यों देती रहीं?

एलजी से लड़ने में कई साल कर दिए बर्बाद

यह कहना गलत नहीं होगा कि आप की 'आम आदमी' के हितैषी और दिल्ली के नागरिकों को अच्छा शासन और सकारात्मक परिणाम देने वाली पार्टी की पुरानी छवि अब धूमिल पड़ चुकी है। हाल ही में हमने देखा कि कैसे जेल में बंद मुख्यमंत्री के साथ, दिल्ली सरकार गर्मियों में पानी के संकट से या उसके बाद आई बाढ़ से प्रभावी ढंग से निपटने में विफल रही। पार्टी ने कहीं न कहीं यह संदेश दिया है कि उनके लिए सत्ता में बने रहना शासन से ज्यादा मायने रखता है। आप ने दिल्ली की पिछली सरकारों की तरह उपराज्यपाल के साथ मिलकर काम करने के बजाय, उनसे लड़ाई लड़ने में कई साल बर्बाद कर दिए, जबकि पिछले मुख्यमंत्री बिना किसी मनमुटाव के शासन करने में कामयाब रहे थे।

अपनी छवि सुधारने की आखिरी कोशिश

ऐसे में केजरीवाल के इस्तीफा देने और नए जनादेश की मांग करने के फैसले को उनकी छवि सुधारने की आखिरी कोशिश के तौर पर देखा जाना चाहिए। लेकिन उनकी यह कोशिश बहुत देर से की गई है। अगले चुनाव की सामान्य तारीख से बमुश्किल से पांच महीने पहले दिया गया इस्तीफा शायद ही कोई राजनीतिक बलिदान कहा जा सकता है। जाहिर है कि यह कोशिश केजरीवाल और उनकी पार्टी को विश्वसनीयता के और नुकसान से बचाने की है।

सत्ता में वापसी की ये होगी वजह

इसका मतलब यह नहीं है कि पार्टी सत्ता में वापस नहीं आएगी, लेकिन ऐसा इसलिए होगा क्योंकि कोई और बेहतर विकल्प नजर नहीं आ रहा है। 1998 से, जब से बीजेपी शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली कांग्रेस से विधानसभा चुनाव हार गई थी, उसके पास दिल्ली में कोई मजबूत मुख्यमंत्री उम्मीदवार नहीं रहा है। 2014 में केजरीवाल द्वारा शीला दीक्षित (और बीजेपी) को हराने के बाद से कांग्रेस का प्रदर्शन भी कुछ खास नहीं रहा है।

केजरीवाल ने अब तक क्यों नहीं दिया इस्तीफा?

केजरीवाल के इस बयान कि 'वह इस्तीफा देंगे और चुनाव होने तक एक नया मुख्यमंत्री नियुक्त किया जाएगा' की एक और व्याख्या यह भी हो सकती है कि वह लंबे समय के लिए पार्टी के भीतर किसी अन्य नेता को कमान सौंपने का जोखिम नहीं उठा सकते। जब जयललिता या लालू प्रसाद जैसे अन्य लोकप्रिय मुख्यमंत्रियों को गिरफ्तार किया गया था, तो उनके स्थान पर नए मुख्यमंत्री नियुक्त किए गए थे। हाल ही में, हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद भी झारखंड में एक कार्यवाहक मुख्यमंत्री था। सिर्फ दिल्ली ही सत्ता के इस परंपरा से अलग रही, जो शायद केजरीवाल की ओर से थोड़ी असुरक्षा की भावना को दर्शाता है।

आज केजरीवाल एक कमजोर नेता हैं। यह इस्तीफा उनकी हार को कम करने और अपनी खोई हुई चमक को फिर से हासिल करने का एक हताश प्रयास है।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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