राहुल गांधी कन्फ्यूज हैं या बेहद चालाक? इन 5 मुद्दों पर उनके बदलते रुख से समझिये

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कांग्रेस नेता राहुल गांधी बुधवार को जम्मू कश्मीर में थे. उन्होंने रामबन और अनंतनाग जिले में कश्मीरी अवाम से कांग्रेस की सरकार बनने पर स्टेटहुड लौटाने की बात कही. लेकिन राहुल गांधी ने अनुच्छेद 370 के मुद्दे पूरी तरह से चुप्पी बरतते हुए यह दिखाने की कोशिश की है कि जैसे वह इस मुद्दे को वो जानते ही नहीं हैं. राहुल गांधी जब से नेता प्रतिपक्ष बने हैं,वो जो कुछ भी बोल रहे हैं जनता उस पर गौर कर रही है. राजनीतिक गलियारों में उनकी हर बात पर कांग्रेस को लगता है कि उन्होंने मैदान मार लिया है. दूसरी तरफ बीजेपी यह साबित करने में लग जाती है कि राहुल गांधी अभी अपरिपक्व राजनेता जैसी बातें करते हैं. पर कुछ भी हो राहुल गांधी को कम से कम अब भारतीय राजनीति में गंभीरता से लिया जाने लगा है. पर देश के प्रमुख मुद्दों पर कांग्रेस और राहुल गांधी ने इतने तरह का बयान दे दिया है कि आम लोगों का समझना मुश्किल हो जाता है कि कांग्रेस किस ओर है. कम से कम इन 5 मुद्दों के बारे में तो यही सही है. सवाल यह उठता है कि राहुल गांधी ऐसा क्यों कर रहे हैं?

1-अनुच्छेद 370 पर क्यों है राहुल गांधी काढुलमुल रवैया

कश्मीर में स्टेटहुड की डिमांड करने वाले राहुल गांधी की अनुच्छेद 370 को लेकर मौन आम लोगों की समझ में नहीं आ रहा है.एक हफ्ते पहले भी जब राहुल गांधी जम्मू कश्मीर के दौरेपर पार्टी नेताओं का फीडबैक लेने पहुंचे थे, तब भी वे अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर साइलेंट मोड में दिखे थे. हालांकि कांग्रेस जिस दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही उसका इस मुद्दे पर मत कुछ अलग है. नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने घोषणा पत्र में साफ कर दिया है कि अगर हमारी सरकार बनती है तो अनुच्छेद 370 और 35 ए की बहाली की जाएगी. हालांकि नेशनल कान्फ्रेंस किस आधार पर अनुच्छेद 370 की वापसी की बात कर रही है वो समझ में नहीं आ रहा है. क्योंकि यह साधारण सी बात है कि केंद्र में सत्ता मिलने पर ही अनुच्छेद 370 की वापसी संभव हो सकती है. जाहिर सी बात है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस को केंद्र में बहुमत नहीं मिलने जा रहा है.

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दूसरी बात उनकी सहयोगी पार्टी कांग्रेस ने 370 पर चुप्पी साध रखी है.यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी को आरोप लगाने का मौका मिल रहा है. साधारण सी बात है कि क्या नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस में कोई गुप्त समझौता हुआ है? क्योंकि जब 370 खत्म किया गया था कांग्रेस इसे लेकर कन्फ्यूज नहींथी. पार्टी में जरूर 2 तरह की विचारधारा थी पर कांग्रेस अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का विरोध कर रही थी. पर सुप्रीम कोर्ट के 370 को खत्म करने के पक्ष में फैसला आने के बाद कांग्रेस कन्फ्यूज है कि इस मुद्दे पर क्या रुख रखना है.

जब नरेंद्र मोदी सरकार ने अगस्त 2019 में संसद में जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन कानून पारित करके अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया और जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया, तो कांग्रेस इस फैसले का विरोध कर रही थी. तब पार्टी ने संसद में अपना कड़ा विरोध जताया था. 6 अगस्त, 2019 को एक बैठक में, कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने जिस तरह से निरस्तीकरण किया गया, उसके लिए सरकार पर जबरदस्त हमला बोला था.

सीडब्ल्यूसी ने तर्क दिया कि 1947 में जम्मू-कश्मीर और भारत के बीच विलय पत्र की शर्तेंअनुच्छेद 370 के रूप में संवैधानिक मान्यता का प्रतीक थी. 4 अगस्त, 2019 को, केंद्र द्वारा अनुच्छेद 370 को हटाने के कदम से एक दिन पहले, पीडीपी और कांग्रेस सहित कई जम्मू-कश्मीर दलों ने श्रीनगर के गुपकार रोड पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला के आवास पर मुलाकात की. उन्होंने अनुच्छेद 370 के बचाव पर एक संयुक्त बयान जारी किया था. जाहिर सी बात है कि अब कांग्रेस को कुछ भी याद नहीं है या कांग्रेस राजनीतिक खेल खेल रही है.

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2-राज्यों में ओल्‍ड पेंशन स्‍कीम का वादा पर केंद्र में पता नहीं

दूसरे नंबर परबात करते हैं ओल्ड पेंशन स्कीम यानि पुरानी पेंशन योजना की. कांग्रेस यूपीए सरकार के अपने 10 साल के कार्यकाल में तो इसे वापस नहीं ला सकी, पर जबसे केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार है कांग्रेस ओल्ड पेशन स्कीम की राग अलापने लगी है. पर विधानसभा के चुनावों में ही कांग्रेस यह वादा करती है. हिमाचल, राजस्थान , छत्तीसगढ़ , मध्यप्रदेश में एक साल पहले हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में ओपीएस को फिर से लागू करने का वादा किया था. पर लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने जो घोषणा पत्र जारी किया उसमें कहीं भी ओपीएस की चर्चा तक नहीं की गई.कांग्रेस ने जिन राज्यों में ओपीएस का वादा किया और चुनाव जीत गए वहां भी ओपीएस लागू करने में सफलता नहीं हासिल हो सकी है. जाहिर है कि आम जनता यह समझ नहीं पा रही है कि कांग्रेस का इस ओपीएस स्कीम्स के बारे में क्या राय है. पर कांग्रेस ने ओपीएस समर्थक दल की छवि आम लोगों के बीच बनाकर यह साबित कर दिया है कि किसी भी मुद्दे पर मौन हो जाना राहुल की रणनीतिक होशियारी सफल साबित हो रही है.

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3-सीएए पर मौका देखकर बदलता रहा रुख

2019 में केंद्र सरकार ने सिटिजनशिप अमेंटमेंट एक्ट लागू किया . उसके बाद राहुल गांधी और कांग्रेस का सीएए को लेकर रुख हमेशा बदलता रहा है. जनता को कन्फ्यूज करने के लिए केंद्र में कुछ और कहा जाता है और राज्यों में जाकर कुछ और कह देते हैं.दिसंबर 2019 में सीएए के खिलाफ कांग्रेस बहुत बड़ा प्रदर्शन आयोजित करती है. जिसमें सोनिया गांधी, पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह और राहुल गांधी सहित सैकड़ों पार्टी समर्थक राजघाट पर सत्याग्रह पर बैठे थे. राहुल गांधी ने ट्वीट करते हुए कहा, ''मोदी-शाह द्वारा देश के विभाजन के विरोध में राजघाट पर आयोजित 'एकता सत्याग्रह' को सफल बनाने के लिए भारत के छात्रों-युवाओं और कांग्रेस पार्टी के सभी कार्यकर्ताओं को बहुत-बहुत धन्यवाद.
लेकिन सीएए लागू होने के बाद चुनावों को देखते हुए कांग्रेस और राहुल गांधी इस मुद्दे पर चुप्पी साध लेते हैं. लोकसभा चुनावों के दौरान केरल में सीएए एक बहुत बड़ा मुद्दा था. केरल के मुख्यमंत्री पिनराय विजयन चुनाव अभियान के दौरान लगातार यह साबित करने में लगे रहे कि राहुल गांधी सीएए पर क्यों नहीं बोल रहे हैं. विजयन ने एक बार यहां तक कहा था कि केरल विधानसभा ने सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पास किया पर कांग्रेस की जिन राज्यों में सत्ता है वहां की विधानसभाओं में क्यों नहीं सीएए के खिलाफ कुछ किया गया. पर केरल में चुनाव अभियान के दौरान राहुल गांधी ने सीएए को लेकर चुप्पी साधे ऱखी. दरअसल केरल में कांग्रेस का सबसे बड़ा वोट बैंक हिंदुओं का है. बीजेपी के अभी उभार न होने के चलते केरल में कांग्रेस हिंदुओं की पार्टी है. जबकि वाममोर्चा वहां मुसलमानों के तुष्टिकरण के लिए जाना जाता है. राहुल गांधी नहीं चाहते थे कि सीएए पर बोलकर वो हिंदुओं के वोट पाने से वंचित हो जाएं.

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4-दलित सब कोटा पर राहुल का रुख अब तक नहीं पता चला

दलित सब कोटा पर सुप्रीम कोर्ट में आए फैसले के बाद देश की राजनीति में तूफान के पहले का भूचाल आया हुआ है. सभी पार्टियां कन्फ्यूज हैं कि इस फैसले पर क्या रुख अपनाया जाए. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करने में सबसे आगे कांग्रेस शासित राज्य तेलंगाना और कर्नाटक के मुख्यमंत्रियों ने तुरंत दलित सब कोटा बनाने के फैसले का स्वागत किया. इन दोनों राज्यों ने यहां तक कहा कि उनके यहां आने वाली भर्तियों में इस फैसले के अनुसार ही विज्ञापन निकाले जाएंगे. पर कांग्रेस की ओर से कोई ऑफिशियल स्टेटमेंट अभी तक नहीं आईहै. अभी तक पार्टी विचार ही कर रही है. भारतीय जनता पार्टी में भी इस फैसले को लेकर बहुत कन्फ्यूजन था पर पार्टी के दलित सांसदों ने पीएम मोदी से मिलकर इस फैसले के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की मांग की. बाद में केंद्र सरकार ने पीसी करके यह बताया कि इस फैसले के क्रियान्वयन का सरकार का कोई इरादा नहीं है.

5-जाति जनगणना देश भर में कराएंगे, पर कर्नाटक-तेलंगाना और हिमाचल पर चुप्पी

जाति जनगणना को लेकर राहुल गांधी लगातार बयानबाजी कर रहे हैं. संसद से लेकर सड़क तक देश का कोई भी मंच ऐसा नहीं होगा जहां पिछले साल से ही राहुल गांधी जाति जनगणना की बात न कर रहे हों. बार-बार जाति जनगणना की बात करने के चलते वे इस मुद्दे के ब्रैंड एंबेस्डर बन गए हैं. यहां तक कि जाति जनगणना का मुद्दा उठाने वाली मंडली बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भी वो पीछे छोड़ चुके हैं. पर जिस तरह जाति जनगणना के मुद्दे पर काम नीतीश कुमार ने किया, राहुल गांधी उस तरह कुछ करते हुए नजर नहीं आते हैं. देश भर में राहुल गांधी जाति जनगणना की बात करते हैं. पर जिस तरह नीतीश कुमार ने बिहार में जनगणना करवाकर वंचित तबकों के लिए कानून बनाने का काम किया उस तरह राहुल गांधी नहीं कर रहे हैं. कांग्रेस शासित राज्यों हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना या कर्नाटक में कहीं भी जाति जनगणना के नाम पर कुछ भी नहीं हो रहा है. कर्नाटक में तो जाति जनगणना कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार में ही हो चुका है, केवल रिपोर्ट ही सार्वजनिक करनी है. पर यह भी काम राहुल के वश में नहीं है या वो करना ही नहीं चाहते हैं.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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