राजनीति में गैर-राजनीतिक होना करीब करीब नामुमकिन ही होता है. ममता बनर्जी ने भी एक बार कहा था, जब दो राजनीतिक लोग मिलेंगे... तब बात तो राजनीति पर होगी ही - लेकिन राहुल गांधी ऐसी बातों से बिलकुल इत्तेफाक नहीं रखते. हाल फिलहाल की उनकी बातों से तो ऐसा ही लगता है.
लोकसभा में विपक्ष का नेता बनने के बाद से राहुल गांधी जगह जगह जाकर लोगों के दुख-दर्द बांटने की कोशिश कर रहे हैं. वो खुद को पीड़ितों के भाई और शुभेच्छु के तौर पर पेश कर रहे हैं, और ये भरोसा दिलाते हैं कि वो उनकी समस्याएं संसद में भी उठाएंगे.
लेकिन ऐन उसी वक्त राहुल गांधी का ये भी दावा होता है कि वो मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं करना चाहते - यूपी के हाथरस से लेकर गुजरात और असम होते हुए मणिपुर तक हर जगह राहुल गांधी का इस बात पर खास जोर देखने को मिला है.
अब राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी मणिपुर जाने की सलाह दी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फिलहाल रूस के दौरे पर हैं. राहुल गांधी का कहना है कि मोदी को तो बहुत पहले ही मणिपुर का दौरा करना चाहिये था, और ये भी याद दिलाना नहीं भूलते कि मई, 2023 की हिंसा के बाद से वो तीसरी बार मणिपुर के लोगों से मिल कर उनकी पीड़ा सुन चुके हैं.
हाथरस से लेकर मणिपुर तक राहुल गांधी बार बार कह रहे हैं कि वो ऐसे ऐसे मुद्दों का राजनीतिकरण नहीं करना चाहते - और इसी के नाम पर वो मीडिया के सवालों का भी जवाब देने से मना कर देते हैं.
मोदी से राहुल गांधी की अपील, मणिपुर के लोगों की मन की बात सुनें
जिस बात के लिए राहुल गांधी अब तक प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना किया करते थे कि वो मीडिया से बात नहीं करते, वही काम वो खुद क्यों करने लगे हैं? क्या ये उनके नेता प्रतिपक्ष बन जाने का असर है?
प्रेस कांफ्रेंस में जब राहुल गांधी ने अपनी बात पूरी कर ली तो पत्रकारों ने सवाल पूछना चाहा, लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया. राहुल गांधी का कहना था कि जो कुछ कहना वो अपना मैसेज दे चुके हैं. जो बोलना था बोल चुके हैं - और ये कहा कि वो ऐसे सवालों का जवाब नहीं देना चाहते जिससे मुद्दा रास्ते से भटक जाये?
प्रेस कांफ्रेंस में ही राहुल गांधी ने कहा था, 'मैं प्रधानमंत्री से रिक्वेस्ट करता हूं... प्रधानमंत्री को बहुत पहले विजिट करना चाहिये था, मगर... मणिपुर को जरूरत है कि हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री यहां आयें... और जो यहां हो रहा है, उसको समझने की कोशिश करें... इससे मणिपुर की जनता में कॉन्फिडेंस आएगा... पूरा देश चाहता है कि प्रधानमंत्री यहां आकर जनता की बात सुनें.' राहुल गांधी ने अपनी तरफ से भरोसा दिलाया है कि मणिपुर में शांति बहाली के लिए केंद्र सरकार जो भी कदम उठाएगी, विपक्षी दल उसका पूरा सपोर्ट करेंगे.
विपक्ष का नेता बनने के बाद से राहुल गांधी लगातार दौरे पर हैं. कांग्रेस नेता के हर दौरे में दो बातें खासतौर पर सामने आ रही हैं. राहुल गांधी कहते हैं कि वो लोगों का दुख दर्द बांटने आये हैं, और मीडिया से बातचीत में ये समझाने की कोशिश जरूर करते हैं कि लोग उनके दौरे को बिलकुल गैर-राजनीतिक समझें.
कांग्रेस नेता के दौरे की शुरुआत यूपी के हाथरस से हुई थी. राहुल गांधी ने कहा कि वो मामले का राजनीतिकरण नहीं करना चाहते - और मणिपुर में भी मीडिया के सवालों के जवाब में वैसा ही दिखाने की कोशिश की.
अपनी बात पूरी कर लेने के बाद राहुल गांधी ने मीडिया को साफ किया कि जो कुछ कहा है वही उनका बयान है. सवाल-जवाब के जरिये वो मुद्दे को डिरेल नहीं होने देना चाहते - कहने का मतलब वो किसी भी सूरत में मुद्दे् का राजनीतिकरण नहीं होने देना चाहते.
क्या मीडिया के सवालों का राहुल गांधी के जवाब देने से मुद्दे का राजनीतिकरण हो जाता है?
अगर वास्तव में ऐसा ही है, तो राहुल गांधी बार बार ये क्यों कहते रहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी प्रेस से बात नहीं करते. अगर प्रेस के सवालों के जवाब देने से कोई महत्वपूर्ण मुद्दा रास्ते से भटक जाये, और उसकी जगह अन्य गैरजरूरी चीजें ले लें, फिर तो ये किसी को भी अच्छा नहीं लगेगा.
अगर ये कोई पैमाना है तो राहुल गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनो ही इस मामले में एक दूसरे को सही ठहरा रहे हैं, फिर तो सारा झगड़ा ही खत्म. सारी राजनीति ही खत्म - फिर तो कोई भी मान आसानी से मान लेगा कि सब कुछ गैर-राजनीतिक है.
ऐसे में ये भी सवाल पैदा हो रहा है कि राहुल गांधी का प्रधानमंत्री मोदी को मणिपुर का दौरा करने की सलाह देना - राजनीतिक मामला है या फिर गैर-राजनीतिक?
राहुल गांधी पहले कहते रहे कि प्रधानमंत्री मोदी मणिपुर पर चुप्पी साधे हुए हैं. जब मोदी ने मणिपुर पर संसद में अपना बयान दे दिया, तो कह रहे हैं कि उनको मणिपुर का दौरा करना चाहिये - जब मणिपुर के मुद्दे पर दोनों अपनी अपनी पॉलिटिक्स कर रहे हैं तो मुद्दा गैर-राजनीतिक कैसे हो सकता है?
राजनीति में गैर-राजनीतिक होना क्या कहलाता है?
'राहुल गांधी 2004 से 2014 के बीच कभी भी प्रधानमंत्री बन सकते थे,' ये बयान तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी का है. रेवंत रेड्डी ने ये बात आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे वाईएसआर रेड्डी की 75वीं जयंती के मौके पर कही. वाईएसआर रेड्डी आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी के पिता थे.
वाईएसआर रेड्डी के ही एक बयान का जिक्र करते हुए रेवंत रेड्डी ने कहा, मुझे वाईएसआर की वो बात भी याद है जब वो 2009 में दोबारा आंध्र प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद बोले थे... राहुल गांधी देश के प्रधानमंत्री बनेंगे... राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने से पहले ही वाईएसआर हम सब को छोड़कर चले गये. लिहाजा सभी कांग्रेस कार्यकर्ताओं की कोशिश अब ये होनी चाहिये कि पूरी मेहनत से राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने में जुट जायें.
वाईएसआर रेड्डी भी पहली बार 2004 में ही पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, और राहुल गांधी सांसद. तब कांग्रेस ने सोनिया गांधी के नेतृत्व में एनडीए के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को हरा कर सत्ता हासिल की थी, और तभी सोनिया गांधी के विदेशी मूल को मुद्दा बनाकर उनके प्रधानमंत्री बनने का बीजेपी विरोध कर रही थी.
रेवंत रेड्डी की बात अपनी जगह है, लेकिन 2004 में राहुल गांधी के लिए प्रधानमंत्री बनने का वैसा मौका नहीं था, जैसे राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाया गया था. 1984 में राजीव गांधी प्रधानमंत्री बनने से पहले दूसरी बार सांसद बन चुके थे.
रेवंत रेड्डी की ये बात मानी जा सकती है कि 2009 में प्रधानमंत्री बन सकते थे, लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि वाईएसआर रेड्डी ने भी राहुल गांधी के तत्काल प्रभाव से प्रधानमंत्री बन जाने की बात नहीं कही थी.
निश्चित तौर पर यूपीए के 2009 में सत्ता में वापसी कर लेने के बाद राहुल गांधी के पास प्रधानमंत्री बनने का मौका तो था ही, लेकिन उनके विपक्ष का नेता बनने से पहले तक यही धारणा बनी कि राहुल गांधी कि सत्ता की राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है.
हां, राहुल गांधी के विपक्ष का नेता बन जाने के बाद पुरानी धारण बदल सकती है, ऐसा लगने लगा है - लेकिन अगर राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनने का मन बना रहे हैं तो अपनी गतिविधियों को गैर-राजनीतिक बताकर भला क्या हासिल कर सकते हैं?
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