जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने राष्ट्रीय गवर्निंग काउंसिल की बैठक में स्कूलों के अंदर हिंदू धार्मिक प्रथाओं को बढ़ावा देने के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया है. इस प्रस्ताव का नाम 'स्कूलों में विशेष धार्मिक प्रथाओं की निंदा' रखा गया है. प्रस्ताव में कहा गया है- जमीयत उलेमा-ए-हिंद राज्य सरकारों की ओर से शिक्षा प्रणाली को भगवा रंग में रंगने और स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को शिर्क (अल्लाह के अलावा किसी अन्य ईश्वर को मानना) के काम करने के लिए मजबूर करने के प्रयासों की कड़ी निंदा करती है.
प्रस्ताव में कहा गया है कि किसी को भी इस बात में कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि इस्लाम धर्म की मूल मान्यता तौहीद (एकेश्वरवाद) है और कोई भी मुसलमान किसी भी कीमत पर किसी भी परिस्थिति में अल्लाह के अलावा किसी और की इबादत स्वीकार नहीं कर सकता और न ही वह ऐसे किसी व्यक्ति की इबादत स्वीकार करेगा जो गैर-धार्मिक लोगों की प्रथा और पहचान है.
इसमें कहा गया है कि हमारे देश का संविधान यहां रहने वाले सभी निवासियों को अपनी-अपनी धार्मिक मान्यताओं और प्रथाओं का पालन करने की खुली अनुमति देता है. अतः सरकार की ओर से स्कूली छात्र-छात्राओं को सूर्य नमस्कार, सरस्वती पूजा, हिंदू गीत, श्लोक या तिलक लगाने के लिए बाध्य करने का आदेश धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप और धर्मनिरपेक्ष संविधान का उल्लंघन है, जिसे मुसलमान या कोई भी न्यायप्रिय भारतीय स्वीकार नहीं कर सकता.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने प्रस्ताव में कहा कि हम सरकार से अपील करते हैं कि वह ऐसे सभी भड़काऊ कार्यों से दूर रहे और सभी मुसलमानों से भी अनुरोध करते हैं कि वे अपने छात्र-छात्राओं के मन में तौहीद के प्रति आस्था को मजबूत करने का प्रयास करें. उनमें ऐसा रवैया पैदा करें कि वे शिक्षण संस्थानों में होने वाले किसी भी शिर्क को बर्दाश्त न करें.
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