NAIDU 4.0- अपने चौथे टर्म में चंद्रबाबू नायडू पहले से कैसे बदले-बदले नजर आ रहे हैं

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आंध्र प्रदेश में सुनामी जैसे जनादेश से अगर कोई बात स्पष्ट है तो वह यह कि चंद्रबाबू नायडू अपने चौथे टर्म में अपनी पिछली तीन पारियों से बहुत अलग नजर आ रहे हैं. ऐसा मालूम पड़ता है कि उन्हें जनादेश का महत्व समझ में आ गया है और वो अगले पांच वर्षों में राज्य पर निर्णायक प्रभाव छोड़ने के लिए कोई कोताही बरतने के मूड में नहीं हैं. 1995 में जब उन्होंने मुख्यमंत्री का पद संभाला, तो उन्हें अपने ससुर और तेलुगु देशम के सुप्रीमो एनटी रामा राव द्वारा बीते साल हासिल किए गए जनादेश को हड़पने वाले शख्स के रूप में देखा गया. इस दौरान उन्होंने अपने पहले कार्यकाल का अधिकांश समय हैदराबाद को एक आईटी डेस्टिनेशन के रूप में विकसित करने और 'पीठ में छुरा घोंपने' वाली छवि को खत्म करने में लगाया. भाजपा के साथ मिलकर 1999 के चुनाव में मिली सफलता का श्रेय कारगिल युद्ध के बाद देशभक्ति की लहर को दिया गया. जबकि 2014 का जनादेश विभाजन से हुए नुकसान के बाद आंध्र प्रदेश के पुनर्निर्माण के लिए था. इसके विपरीत, 2024 का जनादेश पूरी तरह से नायडू के पास एक बार फिर वापस जाने, उनके ट्रैक रिकॉर्ड और विजन पर भरोसा करने के बारे में है.

अपनी पिछली पारियों में नायडू ज्यादातर समय 'आई, मी, माईसेल्फ' मोड में रहते थे और हैदराबाद में उन्होंने जो हासिल किया उसके बारे में अंतहीन बातें करते रहते थे. इस बार वे सरकार में अपने डिप्टी पवन कल्याण को सम्मान और महत्व देने में हद से ज्यादा आगे बढ़ गए हैं. इस्तेमाल करके फेंकने की राजनीति करने वाले व्यक्ति की छवि रखने वाले नायडू के लिए, पवन के साथ तालमेल इस बात का संकेत है कि टीडीपी प्रमुख को गठबंधन की सफलता में अभिनेता के योगदान का महत्व मालूम है. 74 वर्षीय नायडू को पवन के साहस और बड़े दिल की पहचान है, जिन्होंने राजनीतिक रूप से उनसे तब संपर्क किया जब वे सितंबर 2023 में न्यायिक हिरासत में भेजे जाने के बाद अपने राजनीतिक जीवन के सबसे निचले स्तर पर थे. इसके साथ ही एक अनुभवी नेता के रूप में वे यह भी जानते हैं कि पवन के अंदर आंध्र की राजनीति में एक प्रमुख प्लेयर के रूप में उभरने की क्षमता है और वह प्रतिद्वंद्वी की तुलना में एक करीबी सहयोगी के रूप में अधिक बेहतर साबित होंगे.

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चुनाव में कई वरिष्ठ नेताओं को जीत मिलने के बावजूद नायडू ने टीडीपी के शासन करने के मॉडल में बदलाव करने का फैसला किया और अपने मंत्रिमंडल में 17 नए चेहरों को मंत्री बनाया. हालांकि, इससे टीडीपी के कुछ पुराने नेता नाराज हो गए लेकिन नायडू ने नई गतिशीलता और विचारधारा के लिए जोखिम भरा कदम उठाया. पार्टी के अंदर कोई असहमति न हो यह सुनिश्चित करने के लिए नायडू ने पर्याप्त संख्या बल होने के बावजूद कुछ नेताओं को अपने फैसले के बारे में समझाया.

भारतीय राजनीति में टीडीपी और वाईएसआरसीपी के बीच संबंध सबसे खराब माने जाते हैं और 4 जून (चुनाव परिणाम) के बाद लोगों को टीडीपी द्वारा राजनीतिक `RRR' - Revenge (बदला), Retaliation (प्रतिशोध), Retribution (प्रतिकार) की उम्मीद थी. ऐसा हुआ भी. स्थानीय स्तर पर बदला लेने के लिए वाईएसआरसीपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया गया. लेकिन, राजनेता के रूप में अपनी छवि को देखते हुए नायडू ने अपने पार्टी सहयोगियों को सदन में वाईएसआरसीपी को उचित सम्मान देने का निर्देश दिया. हालांकि, बाहर एनडीए सरकार ने अनियमितताओं का हवाला देते हुए ताडेपल्ली में अपने निर्माणाधीन पार्टी कार्यालय को ध्वस्त करने के लिए वाईएसआरसीपी की कड़ी आलोचना की. साथ ही इनके सोशल मीडिया विंग ने वाईएसआरसीपी पर बहुत कम कीमत पर जमीन हड़पने का आरोप भी लगाया.

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राष्ट्रीय स्तर पर 2024 के नायडू वाजपेयी के समय वाले नायडू से अलग हैं, जहां वे अपनी राजनीतिक ताकत का प्रदर्शन करते थे और आंध्र प्रदेश के लिए काम करवाते थे. इस बार टीडीपी ने स्पीकर पद के लिए लॉबिंग करने में रुचि नहीं दिखाई जैसा कि 1999 में के दौरान हुआ था. इसके बजाय आंध्र के मुख्यमंत्री ने अब जो किया है वह यह है कि उन्होंने अपने 16 सांसदों (दो मंत्रियों को छोड़कर) में से प्रत्येक को तीन मंत्रालय सौंपे हैं और उनसे राज्य के लिए काम करवाने के लिए संबंधित मंत्रियों के साथ समन्वय करने को कहा है. इससे सांसदों (जिनमें से कई पहली बार सांसद बने हैं) को विशिष्ट मंत्रालयों से संबंधित मुद्दों को समझने का अनुभव प्राप्त तो होगा ही, साथ ही एक तरह से आंध्र प्रदेश से संबंधित कार्यों के लिए दिल्ली में एक अगल तरह की व्यवस्था का निर्माण होगा.

अतीत के विपरीत, नायडू आंध्र प्रदेश को कम्मा समुदाय- नौकरशाही के सहारे चलाने पर ध्यान केंद्रित नहीं कर रहे हैं. नीरभ कुमार प्रसाद को मुख्य सचिव नियुक्त करने और उन्हें छह महीने का सेवा विस्तार देने के क्रम में उन्होंने वरिष्ठता (seniority) के आधार पर काम किया. जबकि जगनमोहन रेड्डी ने प्रसाद सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को दरकिनार करते हुए केएस जवाहर रेड्डी को मुख्य सचिव नियुक्त किया था.

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हालांकि, जब वाईएसआरसीपी शासन के करीबी माने जाने वाले आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की बात आती है, तो वे उनसे बिना झिझक पूछते हैं कि उन्होंने जगनमोहन रेड्डी के आदेशों का पालन क्यों किया, वो भी ये जताए बिना की ये फैसले गलत भावना से लिए जा रहे हैं? उन्होंने विशेष मुख्य सचिव वाई श्रीलक्ष्मी से गुलदस्ता लेने से इनकार कर दिया जबकि पूर्व खुफिया प्रमुख पीएसआर अंजनेयुलु को सीएम से मिलने का समय देने से मना कर दिया गया. कई वरिष्ठ नौकरशाहों को अबतक कोई भूमिका नहीं दी गई है और उन्हें इंतजार करवाया जा रहा है.

लेकिन प्रशासक के रूप में अपने लंबे अनुभव के बावजूद नायडू इस बात को नजरअंदाज कर रहे हैं कि रजत भार्गव और प्रवीण प्रकाश जैसे आईएएस अधिकारी जिन्हें उन्होंने दरकिनार कर दिया है, वे बेहद सक्षम पेशेवर हैं जिन्होंने वित्त और शिक्षा विभागों में अच्छा काम किया है. चूंकि वे राज्य से नहीं आते हैं, इसलिए उनके पास किसी समुदाय या पार्टी के पक्ष या विपक्ष में कोई शिकायत नहीं है. इसके अलावा, वाईएसआरसीपी का राजनीतिक नेतृत्व ऐसा था कि केवल जगन का ही बोलबाला था और वे कई मौकों पर ऐसी सलाह को खारिज करने के लिए जाने जाते हैं जिससे वे सहमत नहीं होते. नायडू को जगन शासन के दौरान सत्ता के लीवर को नियंत्रित करने वाले गुट और आईएएस अधिकारियों के बीच अंतर करने की ज़रूरत है, जिनके पास चुने हुए राजनीतिक नेतृत्व के हुक्म को मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.

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एक क्षेत्र जहां नायडू में कोई बदलाव नहीं आया वह है अधिक आधुनिक दृष्टिकोण (modern approach) को अपनाना. नायडू-पवन शासन ने आंध्र प्रदेश में कौशल जनगणना करने का आदेश दिया है, जबकि कांग्रेस जाति जनगणना पर जोर दे रही है. प्रधानमंत्री मोदी अब नायडू को अपना "मित्र" कहते हैं, लेकिन दोस्ती की असली परीक्षा तब होगी जब आंध्र के सीएम लिबरल फंड्स के लिए दिल्ली का रुख करेंगे. नायडू को चुनाव अभियान के दौरान किए गए वादों को पूरा करने के लिए धन की आवश्यकता है. उन्हें अपने राज्य में उद्योग को आकर्षित करने के लिए आधार तैयार करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि आंध्र प्रदेश को एक आकर्षक निवेश संभावना बनाने में मदद करने के लिए प्रोत्साहन प्रदान किए जाएं.

इस महीने की शुरुआत में विजयवाड़ा में शपथ ग्रहण समारोह में मोदी-नायडू की दोस्ती देखने को मिली. खुशनुमा तस्वीरों ने 2018-19 के कलह को दूर करने में मदद की. अतीत के विपरीत, जब नायडू अक्सर यह कहते थे कि एक प्रशासक के रूप में वे मोदी से वरिष्ठ हैं, अब वे पीएम के बाद दूसरे स्थान पर रहकर खुश हैं. कम समय में यह आंध्र प्रदेश के लिए दीर्घकालिक फायदे में तब्दील हो सकता है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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