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नई दिल्ली: नई दिल्ली: तपती गर्मी के बीच 2024 लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा सियासी पारा चढ़ता जा रहा। सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच जुबानी जंग तेज है। इसी बीच कांग्रेस नेतृत्व ने राहुल गांधी को वायनाड के बाद उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट से भी कैंडिडेट घोषित कर दिया। नामांकन के आखिरी दिन राहुल गांधी ने यहां से पर्चा भी भर दिया। इस सियासी घटनाक्रम पर बीजेपी ने करारा अटैक किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी के दो सीटों से चुनाव लड़ने पर तंज कसा। उन्होंने एक चुनावी रैली में राहुल गांधी का नाम लिए बिना कहा कि वायनाड से अपनी हार सुनिश्चित देख उन्होंने तीसरा ठिकाना ढूंढा है। वो अमेठी से भी इतना डर गए कि वहां से भागकर अब रायबरेली में रास्ता खोज रहे हैं। बीजेपी की ओर से भले ही राहुल गांधी पर हमले किए जा रहे हों लेकिन ये कोई पहली बार नहीं है जब कोई नेता दो सीटों पर दावेदारी कर रहा है। बीजेपी के ही दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने तो एक साथ तीन सीटों से चुनाव लड़ा था। जानिए वो चुनावी किस्सा।इस नियम के तहत एक से ज्यादा सीट पर चुनाव लड़ते हैं कैंडिडेट
रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल ऐक्ट, 1951 के सेक्शन 33 में यह व्यवस्था दी गई कि व्यक्ति एक से अधिक जगह से चुनाव लड़ सकता है। हालांकि, इसी अधिनियम के सेक्शन 70 में कहा गया कि वह एक बार में केवल एक ही सीट का प्रतिनिधित्व कर सकता है। ऐसे में साफ है कि एक से ज्यादा जगहों से चुनाव लड़ने के बावजूद प्रत्याशी को जीत के बाद एक ही सीट से प्रतिनिधित्व स्वीकार करना होता है। 1996 में रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल ऐक्ट, 1951 में संशोधन किया गया और यह तय किया गया कि अधिकतम सीटों की संख्या दो होगी।
अटल बिहारी वाजपेयी से शुरू हुई थी परंपरा
एक से अधिक सीट से चुनाव लड़ने की परंपरा में पहला नाम अटल बिहारी वाजपेयी का है। उन्होंने लखनऊ सीट पर साल 1952 के उपचुनाव में हारने के बाद 1957 के चुनाव में तीन जगह से चुनाव लड़ा था। भारतीय जनसंघ के टिकट पर लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर सीट से लड़े। लखनऊ और मथुरा में हार गए, लेकिन बलरामपुर सीट से जीतने में सफल रहे। वो 1957 का आम चुनाव था।
जब एक साथ तीन सीटों पर चुनावी रण में उतरे अटल
1952 के चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ सीट से हार गए थे। ऐसे में उनकी पार्टी जनसंघ किसी भी सूरत में उनकी जीत के लिए फिक्रमंद थी। इसीलिए पार्टी ने उन्हें एक नहीं बल्कि तीन सीटों पर उतारने का फैसला लिया। पार्टी ने अटल बिहारी वाजपेयी के लिए इस बार लखनऊ सीट से उम्मीदवारी का फैसला लिया। इसके साथ ही बलरामपुर (अब श्रावस्ती) और मथुरा से भी चुनाव मैदान में उतारा गया। ऐसा करने के पीछे पार्टी की खास रणनीति थी।
इस नियम के तहत एक से ज्यादा सीट पर चुनाव लड़ते हैं कैंडिडेट
रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल ऐक्ट, 1951 के सेक्शन 33 में यह व्यवस्था दी गई कि व्यक्ति एक से अधिक जगह से चुनाव लड़ सकता है। हालांकि, इसी अधिनियम के सेक्शन 70 में कहा गया कि वह एक बार में केवल एक ही सीट का प्रतिनिधित्व कर सकता है। ऐसे में साफ है कि एक से ज्यादा जगहों से चुनाव लड़ने के बावजूद प्रत्याशी को जीत के बाद एक ही सीट से प्रतिनिधित्व स्वीकार करना होता है। 1996 में रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल ऐक्ट, 1951 में संशोधन किया गया और यह तय किया गया कि अधिकतम सीटों की संख्या दो होगी।अटल बिहारी वाजपेयी से शुरू हुई थी परंपरा
एक से अधिक सीट से चुनाव लड़ने की परंपरा में पहला नाम अटल बिहारी वाजपेयी का है। उन्होंने लखनऊ सीट पर साल 1952 के उपचुनाव में हारने के बाद 1957 के चुनाव में तीन जगह से चुनाव लड़ा था। भारतीय जनसंघ के टिकट पर लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर सीट से लड़े। लखनऊ और मथुरा में हार गए, लेकिन बलरामपुर सीट से जीतने में सफल रहे। वो 1957 का आम चुनाव था।जब एक साथ तीन सीटों पर चुनावी रण में उतरे अटल
1952 के चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ सीट से हार गए थे। ऐसे में उनकी पार्टी जनसंघ किसी भी सूरत में उनकी जीत के लिए फिक्रमंद थी। इसीलिए पार्टी ने उन्हें एक नहीं बल्कि तीन सीटों पर उतारने का फैसला लिया। पार्टी ने अटल बिहारी वाजपेयी के लिए इस बार लखनऊ सीट से उम्मीदवारी का फैसला लिया। इसके साथ ही बलरामपुर (अब श्रावस्ती) और मथुरा से भी चुनाव मैदान में उतारा गया। ऐसा करने के पीछे पार्टी की खास रणनीति थी।इसलिए पार्टी ने लिया था ये फैसला
पार्टी नेतृत्व हर हाल में चाहता था कि वाजपेयी लोकसभा पहुंचें, इससे पार्टी की नुमाइंदगी मजबूत होगी। दूसरा अटल बिहार वाजपेयी जिन-जिन सीट से लड़ेंगे तो ज्यादा से ज्यादा लोग उन्हें सुनने के लिए पहुंचेंगे। इससे पार्टी की उन क्षेत्रों में पकड़ मजबूत होगी। इसका असर भी हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी जहां-जहां से भी चुनाव लड़े वहां उनकी पार्टी को फायदा मिला। नए कार्यकर्ता जुड़ने से पार्टी संगठन का सपोर्ट बेस बढ़ा। इसके साथ अटल बिहारी वाजपेयी की इमेज भी जननेता के तौर पर उभरी।
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