Rataul Aam- भारत के इस आम ने कर दी पाकिस्तान की फजीहत, इंदिरा गांधी ने खोला था ऐसा राज

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'यूं ही रसीला नहीं है आम. फलों का राजा कहलाया है. खाकर इसके गुणों को जानो बाकी सब मोहमाया है' आम में जरूर कोई खास बात है. तभी तो ये राजा होकर भी गरीबों को मयस्सर हो जाता है. थोड़ी सी कीमत पर सबके हिस्से में आ जाता है. ऐसा ही एक आम भारत और पाकिस्तान के हिस्से में भी आया. जिस पर कश्मीर और सिंधु नदी के पानी की तरह बहस छिड़ गई. इस विवाद की नींव तब पड़ी, जब 80 के दशक में पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक ने भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को आम भेंट किए. बस यहीं से दोनों देशों के बीच एक नई तकरार शुरू हो गई. वजह थी एक खास प्रजाति का आम. जिस पर पाकिस्तान सालों से दावा करता रहा है. जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक गांव इसे अपनी विरासत कहता है.

दिल्ली से करीब 20 किलोमीटर दूर बागपत जिले का एक छोटा सा गांव है- रटौल. करीब 35 हजार आबादी वाला यह गांव आम की एक खास किस्म के लिए मशहूर है. गांव के नाम पर ही आम का नाम रखा गया है. आम के सीजन में खेती करने वाले किसानों से लेकर मंडियों में आढ़तियों और विक्रेताओं जैसे हजारों लोगों का घर यही आम चलाता है.

रटौल आम को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच सालों से खींचतान चल रही है. दरअसल, पाकिस्तान बहुत सालों से दावा करता रहा है कि रटौल भारत का नहीं बल्कि पाकिस्तान का आम है और विदेश में रटौल आम की भारी डिमांड को देखते हुए भारत इस पर अपना हक जताने लगा है. हालांकि इसे लेकर आज तक पाकिस्तान कोई मजबूत दावा पेश नहीं कर पाया है.

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भारत-पाक की बीच कैसे छिड़ी बहस?
जनरल जिया उल हक ने इंदिरा गांधी को जब आम भेंट किए तो उनका नाम रटौल बताया था और कहा था कि यह किस्म सिर्फ पाकिस्तान में पाई जाती है.

यह वाकया अखबारों में छपकर जब रटौल गांव पहुंचा तो यहां के लोग हैरान रह गए. गांव के कुछ लोग फौरन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलने दिल्ली आ पहुंचे और बताया कि यह आम पाकिस्तान का नहीं, बल्कि भारत का है. इसकी पैदावार का मुख्य केंद्र बागपत का रटौल गांव है. तब बागपत मेरठ जिले की तहसील हुआ करता था.

रटौल मैंगो प्रोड्यूसर एसोसिएशन के सचिव और स्थानीयनगर पंचायतचेयरमैन जुनैद फरीदी बताते हैं कि उस वक्त मेरे चाचा जावेद फरीदी और गांव के कुछ लोग कैबिनेट मिनिस्टर चौधरी चांदराम से मिले थे और उन्हें पूरा घटनाक्रम समझाया. हमने बताया कि 'रटौल आम' पर पाकिस्तान का दावा झूठा है. आम की यह किस्म केवल हमारे गांव रटौल में पैदा होती है और हमारे दादा ने अपनी मेहनत से इसे विकसित किया है.

इसके बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तुरंत एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलवाई और पूरी दुनिया के सामने पाकिस्तान के झूठ का पर्दाफाश कर दिया और इस तरह पूरी दुनिया के सामने पाकिस्तान की किरकिरी हुई. तब इंदिरा गांधी ने रटौल से आए लोगों को एक लेटर पर शुक्रिया भी कहा था. एक और दिलचस्प बात ये है कि इंदिरा गांधी का टाइपिस्ट लेटर पर आम के साथ रटौल लिखना भूल गया था. तब तत्काल प्रधानमंत्री ने लेटर पर अपने हाथ से रटौल लिखा और हस्ताक्षर भी किए थे. यह वो मौका था, जब हर कोई रटौल आम के बारे में जानने के लिए उत्सुक था. इस आम से ही गांव को एक खास पहचान भी मिली.

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तत्काल प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ जुनैद फरीदी और उनके चाचा जावेद फरीदी
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ जुनैद फरीदी के चाचा जावेद फरीदी और रटौल के स्थानीय लोग

रटौल आम कैसे पहुंचा पाकिस्तान?
रटौल गांव ऐसे दर्जनों साक्ष्य दे चुका है, जो साबित करते हैं कि यह आम असल में उसकी विरासत है. जावेद फरीदी कहते हैं, 'रटौल आम को पहले लोग 'अनवर रटौल' के नाम से जानते थे. मेरी दादी का नाम अनवार खातून था. उन्हीं के नाम पर मेरे दादा ने आम को अनवार रटौल नाम दिया, जिसे पाकिस्तान में अनवर रटौल कहा जाने लगा.'

अब सवाल उठता है कि आखिर आम पाकिस्तान पहुंचा कैसे? जावेद फरीदी ने बताया कि रटौल आम आजादी से पहले ही पाकिस्तान जा चुका था. मेरे दादा अफाक फरीदी ने ही रटौल से कुछ पौधे मुल्तान और मीरपुर की नर्सरी भेजे थे. ये पौधे हामिद खान दुर्रानी और दामोदर स्वरूप नाम के लोगों को दिए गए थे. तब देश का विभाजन नहीं हुआ था, इसलिए वहां की नर्सरीज से नए पौधों की नस्लों का लेन-देन खूब होता था. बाहरहाल, पाकिस्तान के जलवायु परिवेश में पौधा ढल गया और खूब फलने-फूलने लगा.

आम को मिल चुका GI टैग
रटौल में पैदा होने वाले इस अनोखे आम को अब जीआई टैग मिल चुका है. इसलिए इसकी लोकप्रियता और मांग विदेश में भी बढ़ रही है. जावेद फरीदी के बेटे उमर फरीदी कहते हैं कि रटौल आम को जीआई टैग मिलना हमारे लिए गर्व की बात है. ये हमारे 10 साल के कड़े प्रयासों का ही नतीजा है. रटौल आम को जीआई टैग उमर फरीदी ऑर्गेनाइजेशन के नाम पर ही मिला है. यह टैग मिलने के बाद साफ हो गया है कि आम असल में हमारी विरासत है.

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Rataul Aam
रटौल आम को 2021 में मिल चुका है GI टैग

कैसे पैदा हुआ रटौल आम?
रटौल आम के स्वाद और सुगंध की तरह इसके पैदा होने की कहानी भी बहुत दिलचस्प है. उमर फरीदी कहते हैं, 'रटौल आम को मेरे परदादा अफाक फरीदी ने विकसित किया था. वो पेड़-पौधों की नस्लों को बहुत बारीकी से समझते थे. उनके पास देखने, सूंघने और स्वाद को पहचानने की बेमिसाल कला थी. एक बार उन्होंने बाग से एक पत्ती तोड़ी और उसे चबाने लगे. उन्हें पत्ती का स्वाद थोड़ा अलग लगा. इसमें उन्हें आम और गाजर का मिलाजुला स्वाद व सुगंध महसूस हुई. तब उन्होंने इस पर कई वर्षों तक शोध किया और रटौल आम की कई नस्लें तैयार कर दीं.'

'देखते ही देखते गांव की अनुकूल जलवायु में इसका पौधा तेजी से पनपने लगा. कुछ ही सालों में हर तरफ रटौल आम के बाग दिखने लगे. उनके इसी करिश्मे के चलते लोग उन्हें द मैंगो किंग (आम का राजा) भी कहने लगे थे.'

मैंगों किंग कहे जाने वाले अफाक फरीद ने सालों मेहनत से तैयार की थी रटौल आम की नस्ल
मैंगो किंग कहे जाने वाले अफाक फरीदी ने सालों मेहनत से तैयार की थी रटौल आम की नस्ल

रटौल आम की खासियत
कहते हैं कि रटौल आम की दो खासियतें लोगों को अपनी तरफ खींचती हैं. पहला स्वाद और दूसरी खुशबू. इसका स्वाद आम की हर नस्ल से जुदा है. और खुशबू मन पर जादू बिखेरती है. उमर फरीदी कहते हैं कि रटौल आम की पेटी अगर किसी कमरे में रख दी जाए तो उसकी खुशबू करीब तीन दिन तक नहीं जाती है. रटौल आम दूसरे आमों की तुलना में थोड़ा छोटा होता है. बाजार में इसका भाव 150 रुपये से 200 रुपये किलोग्राम तक रहता है. हर साल जब आम का सीजन शुरू होता है तो यहां रटौल आम का स्वाद चखने विदेशी सैलानी भी जुटते हैं.

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उमर फरीदी ने हंसते हुए बताया, 'एक बार मैं फ्लाइट से आम की पेटी किसी दोस्त को देने जा रहा था. तो पूरी फ्लाइट में आम की खुशबू फैल गई. सब एक दूसरे को देखकर आम की बातें करने लगे. फ्लाइट अटेंडेंट पता करने लगे कि खुशबू कहां से आ रही है. तब मैंने उन्हें बताया कि मैं अपने गांव से दोस्त के लिए आम लेकर जा रहा हूं. मेरे बगल में बैठे वहां हर शख्स ने मुझसे इस आम के बारे में पूछा था.'

कैसे अपनी जमीन खो रहा आम?
रटौल आम के जिस स्वाद और सुगंध की दुनिया दीवानी है, बदकिस्मती से आज वो अपनी मूल जमीन ही खो रहा है. शहरीकरण का विस्तार और प्रदूषित जलवायु आम के बागों को खत्म कर रहे हैं. इस परनगर पंचायत, रटौल के अधिशासी अधिकारी विराज कुमार त्रिपाठी कहते हैं कि रटौल आम हमारी सांस्कृतिक विरासत है. इस आम से पूरे कस्बे की पहचान है. अगर इस आम का संरक्षण नहीं किया गया तो यह विश्व प्रसिद्ध आम बहुत जल्द विलुप्त हो जाएगा.

उन्होंने बताया कि दिल्ली से रटौल की दूरी बहुत कम है. इसलिए शहर का प्रदूषण गांव में भी शिफ्ट हो रहा है. हवा-पानी दूषित होने से आम के बागों और इसकी फसलों पर बुरा असर पड़ा है. दूसरा, रटौल में बड़े पैमाने पर ईंटों का कारोबार होता है. ईंट बनाने के लिए जो भट्टे लगाए जाते हैं, उनका धुआं भी आम की पैदावार को नष्ट करने के लिए जिम्मेदार है. पहले तो भट्टों में जलावन के लिए टायरों का भी प्रयोग होता था. भट्टों से उठता धुआं और राख दोनों हवा में जहर घोलते हैं.

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रटौल गांव के लोग बताते हैं कि साल 1975 में आम की पैदावार को देखते हुए इस पूरे इलाके को 'मैंगो एरिया' घोषित किया गया था. तब तत्कालीन कृषि मंत्री चौधरी नरेंद्र सिंह ने आम की फसल को नुकसान से बचाने के लिए कई चीजों को बैन किया था. लेकिन इसके बाद यह क्षेत्र फिर से अनदेखी का शिकार होने लगा. नतीजन बागों की हरियाली सिकुड़ने लगी और लोगों का चहेता आम विलुप्ति की कगार पर पहुंच गया.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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