साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10- नए कथाकारों की धमक से समृद्ध रहा वर्ष 2024; हिंदी के 10 श्रेष्ठ उपन्यास हैं ये

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हिंदी उपन्यास का फलक वर्ष 2024 में नए कथाकारों की दस्तक से समृद्ध रहा. विषयों की विविधता, भाषा की सरसता और शिल्प के साथ अपने कथ्य से लंबे समय तक प्रभावी बने रहने वाले ये उपन्यास साहित्य तक: बुक कैफे टॉप 10' में वर्ष 2024 की श्रेष्ठ कृति में शामिल हैं. पिछले वर्ष में इस सूची में जहां स्थापित साहित्यकारों की भरमार रही, वहीं इस वर्ष इस सूची में कई ऐसे रचनाकार शामिल हैं, जिनकी प्रथम कृति ने ही इस सूची में जगह बनाई है. सभी कथाकारों, प्रकाशकों, संपादकों और अनुवादकों को बधाई ...
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शब्द की दुनिया समृद्ध हो, हर दिन साहित्य आपके पास पहुंचे और पुस्तक-संस्कृति बढ़े, इसके लिए इंडिया टुडे समूह ने डिजिटल चैनल 'साहित्य तक' की शुरुआत की थी. साहित्य, कला, संस्कृति और संगीत के प्रति समर्पित इस चैनल ने वर्ष 2021 में पुस्तक-चर्चा पर आधारित कार्यक्रम 'बुक कैफे' की शुरुआत की थी... आरंभ में सप्ताह में एक साथ पांच पुस्तकों की चर्चा से शुरू यह कार्यक्रम आज अपने वृहद स्वरूप में सर्वप्रिय है.
भारतीय मीडिया जगत में जब 'पुस्तक' चर्चाओं के लिए जगह छीजती जा रही थी, तब 'साहित्य तक' के 'बुक कैफे' में लेखक और पुस्तकों पर आधारित कई कार्यक्रम प्रसारित होते हैं. इनमें 'एक दिन, एक किताब' के तहत हर दिन पुस्तक चर्चा, 'शब्द-रथी' कार्यक्रम में किसी लेखक से उनकी सद्य: प्रकाशित कृतियों पर बातचीत और 'बातें-मुलाकातें' कार्यक्रम में किसी वरिष्ठ रचनाकार से उनके जीवनकर्म पर संवाद शामिल है.
'साहित्य तक' पर हर शाम 4 बजे प्रसारित हो रहे 'बुक कैफे' को प्रकाशकों, रचनाकारों और पाठकों की बेपनाह मुहब्बत मिली है. अपने दर्शक, श्रोताओं के अतिशय प्रेम के बीच जब पुस्तकों की आमद लगातार बढ़ने लगी, तो हमने 'बुक कैफे' को प्राप्त पुस्तकों की सूचना भी- हर शनिवार और रविवार को- सुबह 10 बजे 'नई किताबें' कार्यक्रम में देनीं शुरू कर दी है.
'साहित्य तक के 'बुक कैफे' की शुरुआत के समय ही इसके संचालकों ने यह कहा था कि एक ही जगह बाजार में आई नई पुस्तकों की जानकारी मिल जाए, तो पुस्तकों के शौकीनों के लिए इससे लाजवाब बात क्या हो सकती है? अगर आपको भी है किताबें पढ़ने का शौक, और उनके बारे में है जानने की चाहत, तो आपके लिए सबसे अच्छी जगह है साहित्य तक का 'बुक कैफे'.
'साहित्य तक' ने वर्ष 2021 से 'बुक कैफे टॉप 10' की शृंखला शुरू की तो उद्देश्य यह रहा कि उस वर्ष की विधा विशेष की दस सबसे पठनीय पुस्तकों के बारे में आप अवश्य जानें. 'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' की यह शृंखला अपने आपमें अनूठी है, और इसे सम्मानित लेखकों, साहित्य जगत, प्रकाशन उद्योग और पाठकों का खूब आदर प्राप्त है. हमें खुशी है कि वर्ष 2021 में 'साहित्य तक- बुक कैफे टॉप 10' की शृंखला में केवल 5 श्रेणी- अनुवाद, लोकप्रिय, कहानी, उपन्यास, कहानी की टॉप 10 पुस्तकें चुनी गई थीं.
वर्ष 2022 और 2023 में लेखकों, प्रकाशकों और पुस्तक प्रेमियों के अनुरोध पर कुल 17 श्रेणियों में टॉप 10 पुस्तकें चुनी गईं. इस वर्ष 2024 में कुल 12 श्रेणियों में 'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' की यह सूची आपके सामने आ रही है.
'बुक कैफे' पुस्तकों के प्रति हमारी अटूट प्रतिबद्धता और श्रमसाध्य समर्पण के साथ ही हम पर आपके विश्वास और भरोसे का द्योतक है. बावजूद इसके हम अपनी सीमाओं से भिज्ञ हैं. संभव है कुछ बेहतरीन पुस्तकें हम तक न पहुंची हों, यह भी हो सकता है कुछ श्रेणियों की बेहतरीन पुस्तकों की बहुलता के चलते या समयावधि के चलते चर्चा न हो सकी हो... फिर भी अध्ययन का क्षेत्र अवरुद्ध नहीं होना चाहिए. पढ़ते रहें, किताबें चुनते रहें, यह सूची आपकी पाठ्य रुचि को बढ़ावा दे, आपके पुस्तक संग्रह को समृद्ध करे, यही कामना.
पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने की 'साहित्य तक' की कोशिशों को समर्थन, सहयोग और प्यार देने के लिए आप सभी का आभार.
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साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10: वर्ष 2024 के श्रेष्ठ उपन्यास
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* तुम्हें जाना कहां है | संत
- एक आध्यात्मिक शख्सियत के आशीष से पूर्वांचल के पिछड़े इलाके सकलडीहा में लगभग सात दशक पहले एक लड़के का जन्म हुआ. माता-पिता ने नाम रखा संत. जैसे-जैसे उम्र बढ़ी लड़के में संतत्व के गुण दिखने लगे. उसके लिए जाति, समाज, क्षेत्र, भाषा, उम्र, लिंग, रंग की कोई सीमा न रही. सत्य उसका सबसे बड़ा वाहक बना. चाहे वह प्राथमिक पढ़ाई हो, या काशी हिंदू विश्वविद्यालय के दिन, उस लड़के के लिए दबंगई का अर्थ था न्याय, ध्यान का अर्थ था कल्याण और संदेश का अर्थ था प्रेम... यह प्रेम उस लड़के ने अध्यापक बनने के बाद भी बांटा. शायद यही वजह थी कि उनकी कक्षाओं में विज्ञान, तकनीक और अर्थ के छात्र बाहर खड़े होकर सुनते थे. संत ने बहुतों के जीवन को बदल दिया. ऐसे लोगों में उनके छात्र, सहपाठी, संबंधी, पड़ोसी ही नहीं दूरदराज के अनगिनत लोग शामिल हैं. उसी संत के जीवन की यह आत्मकथानुमा गाथा, कहने के लिए उपन्यास है, पर इसका एक-एक शब्द सच है. यह कथ्य अपनी संवेदना और भावों के साथ जितनी जमीनी है, उतना ही अध्यात्मिक भी. समाज और मेलमिलाप का रंग, कब संत के पास, समर्पण, भक्ति और प्रेम में बदल जाता है, पता ही नहीं चलता. संत की इसी जीवनयात्रा का नाम है 'तुम्हें जाना कहां है'...
- प्रकाशक: सर्व भाषा ट्रस्ट
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* 'पूर्व-राग' | अरुण प्रकाश
यह मैथिली- संस्कृत के कवि, संगीतकार, लेखक, दरबारी और राज पुरोहित विद्यापति को लेकर सर्वाधिक नई दृष्टि से लिखी गई एक कृति है. यह विद्यापति की आत्मकथा या जीवनी न होकर औपन्यासिक शैली में विद्यापति के विद्यापति बनने की कथा को उनके समय-समाज के परिप्रेक्ष्य में उनके ही समकालीनों के नजरिए से उन्हीं की ही जुबानी कहलवाती है. इसीलिए इसमें जिस विद्यापति का चित्र उभरता है वह अलग है. युवराज शिवसिंह और कुमरि लखिमा से लेकर विद्यापति और उनके अंतकाल तक लोक में कए तरह के अविश्वसनीय मिथक बिखरे पड़े हैं. मिथिला का कुलीन समाज अमूमन प्राचीनता, विद्वता और जगद्गुरु होने के गौरवबोध से ग्रस्त होकर जिन सच्चाईयों का उल्लेख करने से बचता रहा है, अरुण प्रकाश ने उन कथाओं को सहज घटित करते हुए अपने पात्रों को तार्किक ढंग से कहने की छूट दे रखी है. यही वजह है कि इस कृति से मिथिला समाज का नग्न सत्य दिखता है, जिनसे तत्कालीन जनता परेशान थी. बाढ़-सूखा और क्रूर कर-वसूली प्रणाली से पीड़ित किसानों के जीवन में व्याप्त दुख, दैन्य और भुखमरी का खुला वर्णन, पंजीप्रथा, जातिगत और लैंगिक भेदभाव, सत्ता-सामंत और व्यापारियों के गठजोड़ के साथ बौद्ध और सनातन के संघर्ष की पृष्ठभूमि में बौद्ध मठों के शिवालय में बदले जाने की बेबाक गाथा इस कृति को खास बनाती है.
- प्रकाशक: अंतिका प्रकाशन
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* 'काँस' | भगवानदास मोरवाल
- यह कृति भारतीय समाज की जनपदीय गंध और लोक-संस्कृति को व्यक्त करती है, और इस बात पर सवाल उठाती है कि राजधानी से सटे होने के बावजूद हरियाणा के पिछड़े जिले मेवात का मेव समुदाय अब भी आधुनिक बयार से क्यों दूर है. यह कृति मेवात में मर्दवादी क़ानून अर्थात रिवाज़े-आम यानी कस्टमरी लॉ जैसे अमानुषिक और बर्बर कानूनों की भोथरी धार से लहूलुहान होती चाँदबी, जैतूनी, जैनब, शाइस्ता, समीना, अरस्तून आदि की चीत्कार भरी दास्तान कहता है. यहां एक ऐसा प्रचलित क़ानून है, जिसे न केवल वैधानिकता प्राप्त है, बल्कि आज़ाद भारत के संविधान के विरुद्ध खुलेआम इसका इस्तेमाल हो रहा है. आदिम क़ानूनों की तरह, इनके आगे न शास्त्र की चलती है, न शरा की. यदि चलती है तो सिर्फ़ उस विधान की जो स्त्री को 'केवल और केवल' दूसरे दर्जे का नागरिक मानने में यक़ीन करता. इस क़ानून की आड़ में अनगिनत बेटियों को पैतृक सम्पत्ति से वंचित कर, दर-दर की ठोकर खाने पर विवश करता है. काँस का अर्थ है एक ऐसी अनचाही घास जो चौमासे के बाद धरती की सख़्त देह को फोड़ अपने आप उग आती है. क्या यह काँस कभी खत्म होगी.
- प्रकाशक: वाणी प्रकाशन
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* 'खारकीव के खंडहर' | डॉ अजय शर्मा
- रूस और यूक्रेन युद्ध पर आधारित यह कृति मानव जाति की हिंसक तबाही की चेतावनी के साथ पाठकों के सामने आती है. मेडिकल की पढ़ाई के लिए यूक्रेन गया युवक वासुदेव युद्ध की विभीषिका से घिर जाता है. भारत सरकार के प्रयासों से वह और उसके जैसे अन्य युवा भारत तो आ जाते हैं, पर यहां भी उनकी स्थिति सहज नहीं है. उनकी पढ़ाई, भविष्य, सरकारी व्यवस्था और ऐसे अनचाही स्थितियों से जूझने के लिए वे जिस मनोवैज्ञानिक संघर्ष से जूझते हैं, वह अंततः युद्ध के ज़हर को बयान करता है. आखिर भारतीयों या दुनिया के अन्य हिस्सों में रहने वाले छात्रों, किशोरों, युवक-युवती, बच्चे और बुजुर्गों के लिए सरहदों का क्या अर्थ है? इसी तरह भारतीय छात्रों के लिए अपनी जमीन से बाहर की भूमि विदेशी ही है. शिक्षालय चाहे रूस के हों या यूक्रेन के, युद्ध का शिकार किसी भी मनुष्य को क्यों होना चाहिए? यह कृति वर्तमान समय से आगे की बात करती है और युद्ध की त्रासदी को लेकर चेताते हुए मानवीय संबंधों को सुदृढ़ करने पर बल देती है.
- प्रकाशक: साहित्य सिलसिला पब्लिकेशन
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* 'शहंशाह अकबर: एक अनमोल विरासत' | प्रदीप गर्ग
- इन दिनों अकबर की महानता को लेकर भी सवाल उठाए जाते हैं और उनकी छवि को हिंदू स्त्रियों की अस्मिता के दुश्मन के तौर पर दिखाई जाती है. पर क्या आप जानते हैं कि अकबर को मुसलमान, हिंदू और अंग्रेज, तीनों पसंद नहीं करते? आखिर इसकी क्या वजह है? उत्तर देती है यह कृति. यह कृति इस महान शासक का सच दिखाने की कोशिश करती है. उपन्यास होकर भी यह इतिहास के तानेबाने के साथ चलती है, इसीलिए लेखक पहले ही यह स्पष्ट कर देता है कि यह उस शख़्स की कहानी है जिसके बारे में छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने पत्र में मुग़ल बादशाह औरंगजेब को लिखा था- साम्राज्य का वह शिल्पकार जिसने सभी धर्मों के लिए सद्भाव की सुलह-कुल नीति अपनाई; उसके उदारचेता हृदय की चाहत थी सभी लोगों का पोषण करना व उन्हें सुरक्षा देना. लिहाजा वह जगत गुरु के नाम से मशहूर हुआ. उसी अकबर के बारे में मुंशी प्रेमचन्द ने लिखा था- यह उसके प्रयासों का ही का सुफल था कि हिन्दू-मुसलमान कई शताब्दियों तक बहुत ही मेल-मिलाप के साथ रहे. उसी अकबर का ज़िक्र करते हुए महापंडित राहुल सांकृत्यायन यह दावा करते हैं: अशोक और गांधी के बीच में उनकी जोड़ी का एक ही पुरुष हमारे देश में पैदा हुआ वह 'अकबर' था.
- प्रकाशक: लोकभारती प्रकाशन
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* 'टिप टिप बरसा पानी' | डॉ अभिज्ञात
- यह उपन्यास युवाओं की प्रेम संबंधी आकांक्षाओं और सपनों को स्वर देता है व उनके अंदर की बेचैनी को पारदर्शी तरीके से प्रस्तुत करता है. इसमें अपने प्रिय-व्यक्ति को पाने के लिए आदर्शों और मूल्यों को ताक पर रखने की कोशिश करने वाले पात्र हैं, तो ऐसे पात्र भी हैं, जो प्रेम के लिए चुपचाप बलिदान देते हैं. प्रेम के दोनों रूप इस उपन्यास में एक तनाव और द्वंद्व रचते हैं. चौदह अध्यायों में बंटे इस उपन्यास का हर खंड ऐसे मोड़ पर पहुंच कर समाप्त होता है, जो अगले अध्याय को पढ़ने की उत्सुकता जगाता है. यह प्रौढ़ हो चले अंग्रेजी के एक चर्चित उपन्यासकार और एक युवा महिला प्रोफेसर की प्रेम-कथा है, जिसका घटनाक्रम भारत से लेकर अमेरिका तक फैला हुआ है. लेखक और उस प्रोफेसर के प्रेम के बीच लेखक की पत्नी और प्रेमिका युवती का विवाहित छात्र मित्र इस प्रेमगाथा को कई मोड़ देते हैं. कथानक की गतिशीलता, भाषा की सरलता, सहजता और प्रवाहमयता इसे विशेष बनाती है.
- प्रकाशक: आनन्द प्रकाशन
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* 'अजायबघर' | केशव चतुर्वेदी
- घर! केवल दीवारें और खंडहर, वर्तमान, भविष्य और अतीत से ही नहीं बनते. पत्रकार-लेखक चतुर्वेदी का यह पहला उपन्यास अपने नाम 'अजायबघर' की तरह ही पाठकों के मन पर भी अजीबोगरीब छाप छोड़ता है. इनमें अतीत भी है और वर्तमान भी. यह अजायबघर किसी भी गांव, शहर, कस्बे का कोई भी पुराना महलनुमा 'घर' हो सकता है. यह और बात है कि उस घर के किस्सों को आपने उन नजरों से न देखा हो जैसे यह कृतिकार देखता है. यह उपन्यास एक घर और उसमें रह रही चार पीढ़ियों की दास्तां बयां करता है. सौ वर्ष की यह कहानी हजार उतार-चढ़ाव से बनती है... इसी घर में व्यक्ति और व्यक्तित्व बने, किस्से- कहानी और किवदंतियां विकसित हुईं लेकिन एक दिन यह घर आहिस्ता-आहिस्ता अजायबघर हो गया. पाठक इसमें अपने स्वयं के घर की झलक देख सकता है. निर्धनता से जूझते वंशज अपने परिश्रम, और आकांक्षा से संपन्न अग्रजों के सहयोग से धीरे-धीरे आत्मनिर्भर बनते जाते हैं और फिर अतीत के उस बड़े घर की जीवंतता केवल स्मृतियों में बचती है. चालीस के दशक से पचहत्तर के आसपास के कालखंड तक फैला यह कथानक सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक और आर्थिक हालातों और बदलावों का भी चित्रण करता है.
- प्रकाशक: काव्यांश प्रकाशन
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* 'बिन ड्योढ़ी का घर' भाग-तीन | उर्मिला शुक्ल
- प्रकृति, प्रेम, स्त्री स्वाभिमान, आदिवासी, परंपरा और साहस 'बिन ड्योढ़ी का घर' का मूल स्वर है. यह उपन्यास का तीसरा भाग है, पर हर भाग अपने आपमें स्वतंत्र होते हुए भी एकदूसरे से जुड़े हुए हैं. यह कृति बिना किसी नारे के सरकारी व्यवस्था, आधुनिकता, नक्सलवाद और परंपरा की पोल खोलते हुए, अंततः मनुष्यता और मानव मन से जुड़े संबंधों को स्थापित करती है. यह कृति स्त्री की ज़िन्दगी पर लागू नियमों की कसावट के विरुद्ध अपने आप को परिभाषित करती है कि कैसे कोई स्त्री किसी दूसरे के स्वीकार या नकार को झेलते निबाहते जीवन से न केवल सामंजस्य बिठाती है, बल्कि समाज के बदलाव में भी अपनी भूमिका निभाती है. समाज के हिसाब से गड़बड़ यह है कि औरत के मन में सामाजिक कठघरों के ख़िलाफ़ अगर सवाल उठते हैं तो वह दोषी और अपराधी करार दी जाती है. लेखिका की इस बात के लिए भी सराहना की जानी चाहिए कि अपने आप में परिपूर्ण कथानकों के बावजूद वे बिना किसी दोहराव और उबाऊपन के इस उपन्यास को न केवल तीसरे भाग तक ले आईं बल्कि इसकी नायिका कात्यायनी ने जंगल और जमीन पर निर्भर समाज के लिए जो स्वप्न देखा था, उसे उनकी अगली पीढ़ी और उत्तराधिकारियों की मार्फत यथार्थ के धरातल पर उतारने में कामयाब हुईं.
- प्रकाशक: अनुज्ञा बुक्स
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* 'तलाश खुद की' | एकता सिंह
- खुद को जानने की थोड़ी सी कोशिश हमें जीवन की राह में कहीं बहुत आगे ले जा सकती है. हममें से कोई प्रोफेसर है, कोई छात्र, कोई डॉक्टर, इंजीनियर या आईएएस है. किसी का अपना बिज़नेस है तो कोई होम मेकर है. प्रोफेशन कोई भी हो पर हम सभी अपना-अपना जीवन जी रहे हैं. जीवन जीना बड़ी कला है. एक छोटे से सफर पर जाने के लिए हम ढेरों तैयारियां करते हैं, सारी जानकारी इकट्ठी करते हैं. जिन्दगी का सफर जो कई दशकों का है उसकी कोई तैयारी हम नहीं करते हैं. औरों से सलाह लेना ठीक है, परन्तु अपने जीवन की पहेलियां हमें खुद सुलझानी होती हैं. यदि हम कुछ आधारभूत तथ्य जान लेते हैं तो जीवन बेहतर, खुशहाल और आसान हो सकता है. हम उन ऊंचाइयों को सहजता से छूने लगते हैं जिन पर कभी औरों को देख हम अचरज और प्रशंसा से भर जाते थे. अन्यथा हम में से कुछ तो जीवन से हार कर उसे खत्म करने तक का सोच लेते हैं. लेखिका ने अपने जीवन में तमाम उपलब्धियों के बीच भी उदासी, अवसाद और एकाकीपन का जो अनुभव किया थी, उसी से यह मनोवैज्ञानिक कृति लिखी. जो जितना औपन्यासिक है, उतना ही प्रेरक भी.
- प्रकाशक: राजकमल पेपरबैक्स
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* 'हीरा मंडी' | राजेन्द्र राजन
- तन में सुलगती जवान उमंगें और मन में इश्क-मोहब्बत की चाह लिये जवानी की दहलीज पर खड़े दो युवकों की मुलाकात होती है नारी-देह व्यापार के एक अनुभवी दलाल से, जो उन्हें ले जाता है हीरा मंडी की गलियों में. हीरा मंडी- लाहौर की वह बदनाम बस्ती, जहां हर खिड़की, हर दरवाज़े के पीछे से बुलाते हैं बदन...बदन जो कुछ घंटों के लुत्फ़ के लिए खरीदे जा सकते हैं.... अविभाजित हिन्दुस्तान में लाहौर संगीत, नृत्य, कला, साहित्य, संस्कृति, व्यापार, समृद्धि और फ़ैशन का केन्द्र था और हीरा मंडी वहां की बदनाम लेकिन चमकती बस्ती थी, जो अपनी चकाचौंध से हर किसी को आकर्षित करती. लाहौर का वह कालखंड अपने अनूठे मिजाज और नज़ाकत के लिए दुनिया भर में मशहूर था, जिसकी तुलना पेरिस की रंगीनियत से की जाती थी. पर रंगीनियत की उन्हीं गलियों में सिनेमा, संगीत के बीच क्रांति की लौ भी कभी-कभी चमकती थी. आखिर संयुक्त भारत की वह मंडी आजादी के बाद तरक्की की राह में इतनी धुंधला क्यों गई.
- प्रकाशक: राजपाल एंड संस
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वर्ष 2024 के 'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' में शामिल सभी पुस्तक लेखकों, प्रकाशकों, अनुवादकों और प्रिय पाठकों को बधाई!
हम स्पष्ट कर दें, यह क्रमानुसार रैंकिंग नहीं है. टॉप 10 सूची में स्थान बनाने वाली सभी पुस्तकें आपकी 'हर हाल में पठनीय' पुस्तकों में शामिल होनी चाहिए. वर्ष 2024 में कुल 12 श्रेणियों की टॉप 10 पुस्तकों की चर्चा हुई. यह क्रम वर्ष 2025 में भी जारी रहे, और आप सबके लिए शुभ हो यह साल... साहित्य तक की ओर से हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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