आशीष शुक्ल, पटना। छह बहनें। पिता की छह लाडली बिटिया। कोई भाई नहीं। रस्म-रिवाज, जहां समाज ढूंढ़ता है बेटों को। यह परिस्थिति इस घर में भी आई। पिता का निधन हो गया। बेटियां कंधे पर उठाकर उनकी अंतिम यात्रा को चल पड़ीं। इनमें पूजा ने मुखाग्नि दी। मुंडन की एक रस्म होती है। इस बेटी ने तत्क्षण अपने सिर के सारे बाल उतरवा दिए। समाज में बेटे को सौंपा गया दायित्व अदा करती बेटी, इसलिए तो कहते हैं- लक्ष्मी मेरी लाडो।
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