दिल्‍ली की सभी 70 सीटों पर चुनाव क्‍यों लड़ना चाहते हैं केजरीवाल? | Opinion

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अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में फिर से सरकार बनाने के लिए आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं को कई टिप्स दी है, और उनमें सबसे बड़ी सलाहियत है - '70 की 70 सीटों पर मानकर चलिये कि केजरीवाल ही चुनाव लड़ रहा है.'

ये बात अरविंद केजरीवाल आम आदमी पार्टी के हर कार्यकर्ता सम्मेलन में कह रहे हैं, खासकर मंडल अध्यक्षों से. किराड़ी और तिलक नगर की बैठकों में इस बात पर खास जोर देखने को मिला था - और रविवार शाम यानी 17 नवंबर, 2024 को मंडल अध्यक्षों की मीटिंग में भी अरविंद केजरीवाल अपने तरीके से अपनी बात समझाने की कोशिश कर रहे थे.

अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा चुनाव को आम आदमी पार्टी के लिए धर्मयुद्ध जैसा बताया, और वो धर्मयुद्ध क्यों मान रहे हैं ये भी समझाया. अरविंद केजरीवाल ने बताया कि ये बात उनको मेयर के चुनाव के दौरान समझ आई.

कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए अरविंद केजरीवाल ने कहा, दोस्तों... सदियों पहले कुरुक्षेत्र में धर्म युद्ध हुआ था, कौरवों और पांडवों के बीच. कौरवों के पास अथाह शक्ति, सेना और पैसा था. आने वाला दिल्ली चुनाव भी धर्मयुद्ध है... पांडवों के पास श्रीकृष्ण भगवान थे... हमारे पास भी भगवान हैं, मैं ये साबित करना चाहता हूं... दिल्ली के अंदर कमोबेश यही स्थिति है.

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वो कह रहे थे, बीजेपी मानकर चल रही थी कि वो मेयर का चुनाव जीत जाएगी. और पूरा हाउस सिविक सेंटर से उठकर रैली के लिए बीजेपी दफ्तर पहुंच जाएगा. फिर प्रधानमंत्री वहां पहुंचेंगे, और सोशल मीडिया X पर पोस्ट करेंगे कि वो अभी अभी दिल्ली जीते हैं. लेकिन, भगवान श्रीकृष्ण हमारे साथ हैं. वो ऐसा सुदर्शन चक्र चलाये कि हम तीन वोट से जीत गये. ईश्वर का हमारे साथ होना ही हमारी सबसे बड़ी शक्ति है.

कैसे 70 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे केजरीवाल?

अरविंद केजरीवाल को भी मालूम है कि किसी को भी ये समझाना मुश्किल है कि एक अकेला आम आदमी नेता दिल्ली की सभी 70 सीटों पर कैसे चुनाव लड़ सकता है. लिहाजा, पहले ही समझा देते हैं, मान कर चलो कि सामने खड़ा आम आदमी पार्टी का उम्मीदवार कोई और नहीं, अरविंद केजरीवाल ही हैं.

आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल कार्यकर्ताओं से कहते हैं, 'बस ये समझो आपके सामने केजरीवाल है... सभी 70 सीटों पर केजरीवाल है.

लगे हाथ ये भी कार्यकर्ताओं को ये भी समझाते हैं, 'आपको केजरीवाल बनना पड़ेगा.'

ऐसा लगता है जैसे मैथ्स की क्लास की तरह टीचर समझा रहा हो, मान लो... एबीसी एक ट्रांएगल है. फिर तो कार्यकर्ताओं को भी मान कर चलना पड़ेगा, '70 की 70 सीटों पर मानकर चलिये कि केजरीवाल ही चुनाव लड़ रहा है.'

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लेकिन अरविंद केजरीवाल ऐसा क्यों बोल रहे हैं? अगर आपके मन में भी सवाल है कि केजरीवाल 70 सीटों पर पर क्यों चुनाव लड़ना चाहते हैं, या ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं, तो ये उनकी रणनीति का हिस्सा है. असल में, वो पहले ही कह चुके हैं कि बहुत सारे मौजूदा विधायकों का टिकट कट सकता है - और वैसा करने के लिए ही वो पहले से ही माहौल बना रहे हैं.

मंडल अध्यक्षों की एक मीटिंग में अरविंद केजरीवाल बता रहे थे, बड़ी सोच समझ के टिकट देंगे हम लोग... जिसको भी टिकट दें, उसकी तरफ नहीं देखना है... मेरी तरफ देखना है... जो भी टिकट देंगे... जिसको भी टिकट देंगे, सोच समझ कर देंगे... आपकी निष्ठा किसी एमएलए या काउंसलर के प्रति नहीं होनी है... जिसे टिकट मिलता है, उसका प्रचार करना है.

और यही अरविंद केजरीवाल की बातों का सार है. और, इस तरह आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता समझ सकते हैं - हेंस प्रूव्ड, या इति सिद्धम्. जैसे भी समझना चाहें.

निश्चित तौर पर निशाने पर कांग्रेस ही रही होगी, जब अरविंद केजरीवाल समझाते हैं, मैं आपको पूरी गारंटी देता हूं... टिकट किसी भी परिवार के सदस्य या भाई-भतीजावाद के आधार पर नहीं दिया जाएगा... टिकट केवल उस व्यक्ति को मिलेगा, जिसका काम अच्छा है... और जिसकी क्षेत्र की जनता में सकारात्मक छवि है.

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केजरीवाल के दिल्ली फतह का फॉर्मूला

अरविंद केजरीवाल के दिल्ली एक्शन प्लान में मोदी-शाह के चुनाव कैंपेन की साफ झलक देखी जा सकती है. कोविड संकट के दौरान, दूसरे प्रसंग में ही सही, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को लेकर केजरीवाल कह भी चुके हैं, बहुत कुछ सीखने को मिला.

अमित शाह की बूथ मैनेजमेंट की रणनीति और मोदी के कैंपेन की स्टाइल. ये दोनो ही खास बातें अरविंद केजरीवाल की रणनीति से समझ में आती हैं.

2014 और 2019 के आम चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण सुना ही होगा, भाइयों और बहनों... मेरी तरफ देखो... मुझे वोट दो.'

प्रधानमंत्री मोदी के लोगों से ऐसे संवाद का मकसद था, अगर लोग अपने इलाके के सांसदों से नाराज भी हों, तो मोदी के चेहरे पर फोकस हो जायें, और बाकी बातें भूल जायें - आखिर, अरविंद केजरीवाल भी तो ऐसी ही बातें समझा रहे हैं. मानकर चलना होगा, चुनाव प्रचार के दौरान भी अरविंद केजरीवाल अपने लिए मोदी स्टाइल में ही वोट मांगते देखने को मिलेंगे.

मंडल अध्यक्षों की हर बैठक में अरविंद केजरीवाल मैथ्स की क्लास लेते देखे जा सकते हैं, एक मंडल अध्यक्ष के पास में 5 बूथ हैं... एक बूथ पर 200 से 250 परिवार हैं... हर परिवार पर कम से कम एक मीटिंग करनी है... एक बूथ पर 4 से 5 मीटिंग हो गई... 13 हजार बूथ हैं... एक बूथ पर 5 मीटिंग कर लेंगे तो 65 हजार मीटिंग हुई... 15 दिन में ये कर लिया, तो कोई हरा सकता है आप को? ये तैयारी करनी है... इससे तो भगवान भी खुश हो जाएंगे.

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अरविंद केजरीवाल, जाहिर है, वोटर को भगवान मान कर चल रहे हैं. वो वोटर को खुश करना चाहते हैं. दिल्लीवालों का फिर से दिल जीतना चाहते हैं, ताकि अगली बार भी मौका मिले और शपथग्रहण के दौरान 2020 की तरह फिर से बोल सकें, दिल्लीवालों आई लव यू.

दिल्ली के वोटर से री-कनेक्ट होने के लिए अरविंद केजरीवाल समझाते हैं, जब हम मीटिंग करेंगे, कोई हमारी कमी निकाले तो उससे बहस नहीं करनी है... आप में से किसी को लड़ाई नहीं करनी है... बल्कि, कहना है कि कई काम किये हैं... और कई काम रह भी गये हैं... बस एक और मौका चाहिये.

और सबसे बड़ी बात, 'आप बहस को हार जाओ, लेकिन दिल जीत लो.'

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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