राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पिछले तीन दिन सियासी उथल-पुथल भरे रहे. आतिशी कैबिनेट में मंत्री पद से इस्तीफा देकर कैलाश गहलोत ने आम आदमी पार्टी से भी करीब 10 साल पुराना नाता तोड़ लिया. कैलाश गहलोत विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल हो गए हैं. वहीं, आम आदमी पार्टी ने आतिशी कैबिनेट में रिक्त हुई सीट के लिए नए मंत्री के नाम का भी ऐलान कर दिया है. नांगलोई जाट विधानसभा सीट से दूसरी बार के विधायक रघुविंदर शौकीन मंत्रिमंडल में कैलाश गहलोत की जगह लेंगे.
कैलाश की जगह रघुविंदर क्यों
अब सवाल ये भी है कि आम आदमी पार्टी ने कैलाश गहलोत की जगह मंत्री पद के लिए रघुविंदर शौकीन को ही क्यों चुना? आम आदमी पार्टी के इस फैसले के पीछे भी अपना सियासी गणित है. आम आदमी पार्टी के फैसले के पीछे जाट पॉलिटिक्स है. आम आदमी पार्टी के फैसले को चार पॉइंट में समझा जा सकता है.
1- जाट के बदले जाट
कैलाश गहलोत जाट समाज से नाता रखते हैं. आतिशी कैबिनेट का जाट चेहरा रहे कैलाश के इस्तीफे से रिक्त हुई जगह भरने के लिए आम आदमी पार्टी ने रघुविंदर के रूप में जाट चेहरा ही चुना है. यह जाट वोटबैंक को बैलेंस करने की रणनीति के तहत लिया गया फैसला है. पेशे से वकील कैलाश की जगह मंत्री बनने जा रहे रघुविंदर भी पढ़े-लिखे नेता हैं, पेशे से सिविल इंजीनियर हैं. आम आदमी पार्टी ने इस एक दम से जाट वोटबैंक के साथ ही प्रबुद्ध वर्ग को भी एक संदेश देने की कोशिश की है.
2- जाट वोटबैंक
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में जाट वर्ग की आबादी करीब 10 फीसदी है. जाट वोटर दिल्ली की ग्रामीण सीटों, खासकर बाहरी दिल्ली में निर्णायक स्थिति में हैं. ग्रामीण इलाकों में 25 विधानसभा सीटें हैं और इन सीटों पर जाट और गुर्जर मतदाता जीत-हार तय करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. दिल्ली में जाटवर्ग आम आदमी पार्टी का कोर वोटर माना जाता है.
यह भी पढ़ें: दिल्ली चुनाव से पहले कैलाश गहलोत ही नहीं, एक साल में ये नेता भी छोड़ चुके हैं AAP, स्वाति मालीवाल भी हैं बागी
चुनावी मौसम में कैलाश गहलोत के इस्तीफे के बाद किसी गैर जाट नेता को मंत्री बनाने केफैसले से आम आदमी पार्टी को लेकर जाट समाज में नकारात्मक संदेश जा सकता था. विधानसभा चुनाव में जब कुछ ही महीने का वक्त बचा है, दिल्ली की सत्ताधारी पार्टी कैबिनेट की सोशल इंजीनियरिंग से छेड़छाड़ का रिस्क नहीं लेना चाहती.
3- जाट सीटें
दिल्ली विधानसभा में कुल 70 सीटें हैं जिनमें से आठ सीटें जाट बाहुल्य हैं. इन आठ जाट सीटों में से पांच सीटों पर पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार जीते थे. तीन सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी. आम आदमी पार्टी की कोशिश अपनी सीटें बचाए रखते हुए विपक्षी पार्टी के कब्जे वाली सीटों पर भी जीत हासिल करने की है. आंकड़ों के लिहाज से देखें तो दिल्ली विधानसभा में जाट सीटों की संख्या करीब 10 फीसदी पहुंचती है. एक-एक सीट के मुकाबले में यह बड़ा नंबर होता है.
यह भी पढ़ें: 'उनकी मर्जी है, जहां भी जाएं', कैलाश गहलोत के बीजेपी में जाने के सवाल पर बोले केजरीवाल
4- बीजेपी की आक्रामक रणनीति
जाट के बदले जाट मंत्री के पीछे एक वजह बीजेपी की जाट पॉलिटिक्स की पिच पर आक्रामक रणनीति भी वजह मानी जा रही है. बीजेपी पिछले कुछ महीनों से ग्रामीण दिल्ली पर फोकस किए हुए हैं जहां जाट मतदाताओं का बाहुल्य है. कैलाश गहलोत का मंत्री पद और आम आदमी पार्टी छोड़ने के बाद बीजेपी जॉइन करना भी विपक्षी दल की जाट फोकस्ड पॉलिटिक्स से जोड़कर ही देखा जा रहा है. आम आदमी पार्टी ने विरोधी दल की रणनीति को काउंटर करने की कोशिश में रघुविंदर शौकीन को मंत्री बनाने का फैसला लिया ही, कांग्रेस के पूर्व विधायक रहे सोमेश शौकीन को भी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण करा दी.
+91 120 4319808|9470846577
स्वर्णिम भारत न्यूज़ हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.