एक दिन पहले राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का नया मेयर चुनने के लिए मतदान हुआ. आम आदमी पार्टी के पास जीत के लिए जरूरी संख्या से अधिक नंबर था और एकतरफा जीत तय मानी जा रही थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं. जरूरी नंबर से अधिक संख्याबल होने के बावजूद आम आदमी पार्टी कड़े मुकाबले में फंस गई. आम आदमी पार्टी महापौर की कुर्सी बचा तो ले गई लेकिन जीत का अंतर महज तीन वोट का ही रहा. आम आदमी पार्टी के मेयर कैंडिडेट महेश खींची ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के किशन लाल को तीन वोट के करीबी अंतर से हराया.
एमसीडी चुनाव में किस पार्टी के पास थे कितने वोट
एमसीडी में राजनीतिक दलों की वर्तमान स्ट्रेंथ देखें तो 250 सदस्यों वाले निगम सदन की कुल सदस्य संख्या 249 है. इसमें आम आदमी पार्टी के 125, बीजेपी के 113 और कांग्रेस के आठ, तीन निर्दलीय पार्षद शामिल थे. मेयर चुनाव में 14 विधायक और लोकसभा-राज्यसभा के सांसदों को भी वोटिंग का अधिकार होता है. इस लिहाज से देखें तो मेयर चुनाव के लिए कुल 273 वोट थे जिनमें से 265 वोट ही पोल हुए. राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल ने मतदान नहीं किया जबकि कांग्रेस के सात पार्षदों ने वोटिंग का बहिष्कार किया.
किस पार्टी के उम्मीदवार को मिले कितने वोट
आम आदमी पार्टी के पास 125 पार्षदों के साथ ही 13 विधायकों और तीन राज्यसभा सांसदों का वोट था. पार्टी के पास कुल 141 वोट थे. तीन राज्यसभा सांसदों में से एक स्वाति मालीवाल पिछले कुछ समय से आम आदमी पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोले चल रही हैं. ऐसे में उनको हटा दें तो भी पार्टी के पास 140 वोट थे जो जीत सुनिश्चित करने के लिए जरूरी 137 के आंकड़े से कहीं अधिक हैं.
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जब वोटों की गिनती हुई, आम आदमी पार्टी के महेश को 133 वोट ही मिले. बीजेपी के पास 114 पार्षद, एक विधायक और सात लोकसभा सदस्यों, यानि कुल 122 वोट थे लेकिन किशन लाल को 130 वोट मिले. कांग्रेस के आठ पार्षदों में से सात पार्षदों ने चुनाव बहिष्कार किया और एक पार्षद ने आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को वोट किया.
कड़े मुकाबले में कैसे फंसी AAP?
सवाल है कि मेयर चुनाव में आम आदमी पार्टी क्लियर मेजॉरिटी रहते हुए भी कड़े मुकाबले में कैसे फंस गई? आम आदमी पार्टी के आठ पार्षदों ने बीजेपी उम्मीदवार के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की और पार्टी के दो पार्षदों के वोट रद्द हो गए. इस तरह देखें तो आम आदमी पार्टी को अपने 140 में से 130 वोट ही मिले.
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बीजेपी के अपने 122 वोट पोल हुए ही, आम आदमी पार्टी के आठ पार्षदों के वोट ने उसे बराबरी पर ला खड़ा किया. ऐसी स्थिति में निर्दलीय पार्षदों और कांग्रेस का रोल निर्णायक हो गया था. कांग्रेस ने मतदान का बहिष्कार कर दिया. वह तो निर्दलीय पार्षद थे जिन्होंने मेयर चुनाव में आम आदमी पार्टी की नैया पार लगा दी.
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