संभल हिंसा में दर्ज FIR में अज्ञात कौन है, क्या आपको भी आरोपी बना सकती है पुलिस?

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में संभल की मस्जिद को लेकर हुए सर्वे के बाद भड़की हिंसा को लेकर रोज नए-नए खुलासे हो रहे हैं। हिंसा में जमकर पत्थरबाजी हुई। इस मामले में पुलिस ने सात मामले दर्ज किए हैं, जिनमें दो दर्जन से अधिक लोगों को नामजद किया गया है,

4 1 6
Read Time5 Minute, 17 Second

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में संभल की मस्जिद को लेकर हुए सर्वे के बाद भड़की हिंसा को लेकर रोज नए-नए खुलासे हो रहे हैं। हिंसा में जमकर पत्थरबाजी हुई। इस मामले में पुलिस ने सात मामले दर्ज किए हैं, जिनमें दो दर्जन से अधिक लोगों को नामजद किया गया है, जबकि लगभग 2,750 अज्ञात हैं। संभल की मस्जिद के मंदिर होने का दावा किया जा रहा है। संभल की मस्जिद के हिंदू मंदिर होने के दावे को लेकर सर्वे के दौरान यह हिंसा भड़की थी। एक्सपर्ट से समझते हैं कि मामले में अज्ञात रिपोर्ट, नामजदगी या शिकायत क्या होती है। विस्तार से समझते हैं।

अपराधों की दो कैटेगरी, FIR या NCR

साकेत कोर्ट में एडवोकेट शिवाजी शुक्ला कहते हैं कि भारत में अपराध को 2 कैटेगरी में बांटा गया है। पहला संज्ञेय अपराध और दूसरा असंज्ञेय अपराध। संज्ञेय अपराध का मतलब हत्या, लूट, रेप, दहेज प्रताड़ना जैसे जघन्य अपराधों से है। ऐसे अपराधों के संबंध में FIR दर्ज होती है। वहीं, गैर संज्ञेय अपराध वो होते हैं जो जघन्य ना हों। यानी हल्की-फुल्की मारपीट, झगड़े, गाली गलौच जैसे अपराधों के संबंध में NCR दर्ज की जाती है। पुलिस डायरी में एनसीआर का मतलब है, नॉन-कोग्निजेबल रिपोर्ट यानी गैर-संज्ञेय अपराध सूचना। यह एक रजिस्टर में दर्ज की जाने वाली सूचना होती है।
संभल हिंसा के बाद अमेठी में भी हाई अलर्ट, धारा 144 लागू

FIR क्या होती है और इसे क्या कहा जाता है

शिवाजी शुक्ला के अनुसार, प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) को प्राथमिकी, First Information Report (FIR ), मुकदमा और अभियोग के नाम से भी जाना जाता है। प्रथम सूचना रिपोर्ट या एफआईआर किसी (आपराधिक) घटना के संबंध में एक लिखित दस्तावेज है। पुलिस किसी संज्ञेय अपराध (cognizable offence) की सूचना प्राप्त होने पर एफआईआर लिखती है। यह सूचना अक्सर अपराध के पीड़ित व्यक्ति की ओर से पुलिस के पास एक शिकायत के रूप में दर्ज कराई जाती है। किसी अपराध के बारे में पुलिस को कोई भी व्यक्ति मौखिक या लिखित रूप में FIR दर्ज करा सकता है।

अज्ञात के खिलाफ एफआईआर का क्या मतलब है

दिल्ली के साकेत कोर्ट में एडवोकेट शिवाजी शुक्ला के अनुसार, अज्ञात के ख़िलाफ एफआईआर का मतलब है कि अपराध करने वाले की पहचान नहीं पता होने पर भी पुलिस ने अपराध के बारे में जानकारी दर्ज कर ली है। एफ़आईआर यानी प्रथम सूचना रिपोर्ट आपराधिक न्याय प्रक्रिया की शुरुआत का प्रतीक है। यह एक लिखित दस्तावेज होता है। इसमें अपराध से जुड़ी जानकारी जैसे कि तारीख, समय, जगह और आरोपी की पहचान (अगर पता हो) शामिल होती है।

अज्ञात की हमेशा रिपोर्ट दर्ज होती है, एफआईआर नहीं

शिवाजी शुक्ला के अनुसार, अज्ञात का मतलब है, घटना के बारे में रिपोर्ट करना होता है। सीआरपीसी की धारा 155 के तहत अज्ञात की रिपोर्ट होती है, मुकदमा नहीं दर्ज होता है। क्योंकि, उसमें यह पता नहीं होता है कि घटना को अंजाम देने वाला कौन है। मुकदमा दर्ज तब होगा, जब वह संज्ञेय अपराध हो। तब धारा 156 के तहत एफआईआर दर्ज होती है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के तहत एफ़आईआर दर्ज करने के लिए भारतीय न्याय संहित की धारा 173 का इस्तेमाल किया जाता है। बीएनएस की धारा 173 में संज्ञेय अपराध से जुड़ी जानकारी, महिलाओं और विकलांगों के लिए विशेष प्रावधान, दर्ज की गई सूचना की कॉपी देना, प्रारंभिक जांच और अनुसंधान जैसे प्रावधान हैं।
Shivaji Shukla Advocate


क्यों अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज करती है पुलिस

दिल्ली के साकेत कोर्ट में एडवोकेट शिवाजी शुक्ला कहते हैं कि अज्ञात के ख़िलाफ़ मुकदमा इसलिए होता है क्योंकि किसी अपराध के मामले में अपराधी की पहचान न होने पर भी मुकदमा दर्ज किया जा सकता है। अगर कोई व्यक्ति झूठी शिकायत करता है, तो उसे कानूनी सजा हो सकती है। अगर कोई व्यक्ति किसी ऐसे साक्ष्य को भ्रष्ट तरीके से सच्चे साक्ष्य के तौर पर पेश करता है, जिसके बारे में उसे पता है कि वह झूठा है, तो उसे भी सज़ा हो सकती है। अगर कोई व्यक्ति पुलिस और अदालत का समय और साधन बर्बाद करने के लिए झूठी शिकायत करता है, तो उसे सात साल तक की जेल हो सकती है या उस पर आर्थिक दंड लगाया जा सकता है।

FIR किन धाराओं में दर्ज कराई जाती है, क्या है प्रक्रिया

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure code) 1973 की धारा 154 के तहत FIR दर्ज कराई जाती है। प्रथम सुचना रिपोर्ट (First Information Report ) संज्ञेय अपराध (Cognizable offence) घटित होने पर दर्ज की जा जाती है। सीआरपीसी की धारा 154(1) में एफआईआर दर्ज करने की प्रक्रिया के बारे में बताया गया है। मौखिक या लिखित रूप से रिपोर्ट किए जाने वाले संज्ञेय अपराधों को पुलिस अधिकारी की ओर से लिखा जाना चाहिए। अब भारतीय न्याय संहिता में इस प्रक्रिया में मामूली बदलाव किया गया है। यह धारा 173 में दर्ज की जाती है।

कैसे दर्ज होती है एफआईआर, विवेचना क्या है

एफआईआर या एनसीआर दो प्रकार से दर्ज की जाती है एक नामजद और दूसरा अज्ञात। ऐसी परिस्थिति में जब हमें घटना को अंजाम देने वाले का नाम पता मालूम होता है तो हम उस आदमी का नाम पता के साथ मुकदमा कर सकते हैं। वहीं, ऐसी स्थिति में जब हमें अपराधी का नाम पता ना मालूम हो तो अज्ञात एफआईआर दर्ज कराई जाती है जैसे कि कहीं लूट हो जाए तो ऐसी स्थिति में जब यह नहीं पता होता है कि अपराधी कौन है तो सबसे पहले पुलिस अज्ञात एफआईआर दर्ज करती है। इसके बाद पुलिस जांच यानी विवेचना शुरू करती है। इससे यह विवेचना के कॉलम में पुलिस साक्ष्य जुटाकर यह सुनिश्चित करती है कि वास्तव में अपराधी कौन है।

नामजदगी क्या होती है, किसके खिलाफ होती है

शिवाजी शुक्ला बताते हैं कि नामजद का मतलब यह है कि अगर किसी A ने B की हत्या कर दी तो A के खिलाफ नामजद FIR दर्ज की जाएगी। मतलब यह है कि जब अपराधी का नाम हमें पता हो और FIR करते समय उसमें अपराधी का नाम दर्ज किया जाए तो वह नामजद माना जाता है।

FIR में कुछ भी जोड़ या घटा नहीं सकती है पुलिस

दिल्ली के साकेत कोर्ट में एडवोकेट शिवाजी शुक्ला के अनुसार, पुलिस अधिकारी अपनी तरफ से इस रिपोर्ट यानी एफआईआर में कुछ भी जोड़ या घटा नहीं सकता है। शिकायत करने वाले व्यक्ति का अधिकार है कि उस FIR को उसे पढ़कर सुनाया जाए। पंजीकरण के बाद पीड़ित को FIR की कॉपी फ्री दी जाती है। इस पर शिकायतकर्ता का हस्ताक्षर कराना भी अनिवार्य है। साथ ही पुलिस अज्ञात में किसी को भी आरोपी नहीं बना सकती है। अज्ञात में आरोपी बनाने का मतलब होगा कि उसे इस बात को आरोपपत्र में लिखना होगा, जो कि गलत होगा। ऐसे केस कोर्ट में नहीं टिक पाते हैं। कुछ मामलों में पुलिस ऐसा धमकी के लिए कर सकती है।

एफआईआर दर्ज नहीं करने पर कहां जा सकते हैं

एफ़आईआर दर्ज कराना संवैधानिक अधिकार है। पुलिस को किसी भी तरह के अपराध की सूचना मिलने पर तुरंत एफ़आईआर दर्ज करनी चाहिए। एफ़आईआर दर्ज होने के बाद पुलिस मामले की जांच शुरू करती है। एफ़आईआर की कॉपी पर पुलिस स्टेशन की मुहर और पुलिस अधिकारी के हस्ताक्षर होने चाहिए। अगर पुलिस एफ़आईआर दर्ज करने से इनकार करती है, तो वरिष्ठ अधिकारियों के पास लिखित में शिकायत करनी चाहिए। अगर वरिष्ठ अधिकारी के कहने के बाद भी एफ़आईआर नहीं दर्ज की जाती, तो अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3) के तहत मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत में अर्जी दी जा सकती है।

शिकायत और एफआईआर में क्या अंतर है

सीआरपीसी के अनुसार, मजिस्ट्रेट को दिए गए किसी भी लिखित या मौखिक आरोप के रूप में शिकायत दी जाती है। इसमें पुलिस रिपोर्ट शामिल नहीं है। वहीं, एफआईआर एक रिकॉर्ड है जिसे पुलिस शिकायत के तथ्यों की पुष्टि करने के बाद बनाती है। एफआईआर में अपराध और आरोपी अपराधी के बारे में जानकारी हो सकती है।

\\\"स्वर्णिम
+91 120 4319808|9470846577

स्वर्णिम भारत न्यूज़ हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.

मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Laptops | Up to 40% off

अगली खबर

Live: अमित शाह के घर पहुंचे फडणवीस, अजित पवार और शिंदे, महाराष्ट्र सीएम पर होगा फैसला, जानें अपडेट

मुंबई: महाराष्ट्र में सरकार बनाने की प्रक्रिया तेज हो गई है। कार्यवाहक मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, देवेंद्र फडणवीस, अजित पवार और केंद्रीय मंत्री अमित शाह के बीच गुरुवार रात दिल्ली में महत्वपूर्ण बैठक हो रही है। ऐसी खबरें आई हैं कि फडणवीस का तीसरी ब

आपके पसंद का न्यूज

Subscribe US Now