Read Time5
Minute, 17 Second
नई दिल्ली: यह बात तब की है‚ जब चित्तौड़गढ़ का किला साजिश की आग में जल रहा था। मेवाड़ की गद्दी के असली वारिस राणा उदय सिंह के पिता को चाचा बनवीर ने मरवा दिया था। उदय सिंह को मारने के लिए बनवीर ने साजिश रची। इसी दौरान उदय सिंह की मां को इस साजिश की भनक लग गई। उन्होंने उदय सिंह का ख्याल रखने वाली एक दासी पन्ना से कहा कि पन्ना चितौड़ का किला अब मेरे बेटे की रक्षा करने में असमर्थ है। तू इसे अपने साथ ले जा और किसी तरह कुंभलगढ़ भिजवा दे। पन्ना का बेटा चंदन और उदय सिंह साथ-साथ बड़े हुए थे। जानते हैं मेवाड़ रियासत में एकलिंगजी मंदिर और तुलजा भवानी माता मंदिर (चित्तौड़गढ़ दुर्ग) की क्या अहमियत है। जिसके बारे में कहा जाता है कि इसी मंदिर में बनवीर ने महाराणा विक्रमादित्य की हत्या की थी। हाल ही में मेवाड़ राजपरिवार के बीच एक बार फिर विवाद हो गया।हाल ही में महाराणा महेंद्र सिंह के बेटे विश्वराज सिंह को मेवाड़ के पूर्व राज परिवार का मुखिया नियुक्त किया गया था। अंगूठा चीरकर उनका खून से राजतिलक भी हुआ। गद्दी पर बैठने के लिए पगड़ी दस्तूर की रस्म भी हुई। मगर, चित्तौड़गढ़ के उत्तराधिकारी घोषित किए जाने के बाद वह उदयपुर सिटी पैलेस में धूणी माता स्थल के दर्शन के लिए नहीं जा पाए। दरअसल, मौजूदा ट्रस्ट के मुखिया और चाचा अरविंद सिंह मेवाड़ ने उनको भीतर जाने से रोक दिया, जिसके बाद दोनों पक्षों के समर्थकों ने एक-दूसरे पर पथराव शुरू कर दिया। इलाके में पुलिस फोर्स तैनात कर दी गई है।
उस काली रात को जब बनवीर ने पन्ना के बेटे को मार डाला
बनवीर ने पहले तो एक भव्य आयोजन किया और उस शोर में उसने रात में महाराजा विक्रमादित्य की हत्या कर दी। फिर वह उदयसिंह को मारने के लिए आया। मगर, बनवीर के आने से पहले पन्ना ने उदयसिंह को एक बांस की टोकरी में सुलाकर उसे झूठी पत्तलों से ढककर एक विश्वास पात्र सेवक के साथ कुंभलगढ़ की ओर रवाना कर दिया। उदय सिंह की जगह उसने अपने बेटे चंदन को उनके पलंग पर सुला दिया। बनवीर तलवार लिए उदयसिंह के कक्ष में आया और उसके बारे में पूछा। पन्ना ने उदयसिंह के पलंग की ओर संकेत किया जिस पर उसका पुत्र सोया था। बनवीर ने पन्ना के पुत्र को उदयसिंह समझकर मार डाला। बनवीर को पता न लगे इसलिए पन्ना ने अपने आंसू रोक लिए। पन्ना का नाम इसीलिए इतिहास में अमर है, जिसने अपने पुत्र का बलिदान देकर मेवाड़ राजवंश को बचाया।
क्या है एकलिंगजी का मंदिर और क्या है अहमियत
माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण लगभग 734 ई. में बाप्पा रावल ने निर्माण करवाया था। यह मंदिर एक चार-मुखी मूर्ति के चलते पूरे भारत में चर्चित है और यह भगवान शिव को समर्पित है। माना जाता है कि एकलिंगजी मेवाड़ रियासत के शासक देवता (कुल देवता) हैं और शाही राजवंश के महाराणा उनके दीवान (मंत्री) के रूप में शासन करते हैं। चूंकि, एकलिंगजी महाराणा के कुल देवता हैं, इसलिए बिना इनके दर्शन और आशीर्वाद के राजतिलक अधूरा माना जाता है।
राजशाही खत्म, मगर प्रतीकों में निभाई जाती है रस्म
देश के आजाद होने के बाद से राजशाही खत्म हो गई। मगर, आज भी यह रस्म प्रतीकात्मक रूप से निभाई जाती है। उदयपुर जिला प्रशासन के मुताबिक, नए महाराणा के राजतिलक के बाद धूणी दर्शन की परंपरा है। इसके बाद राजा को एकलिंगजी मंदिर में भी दर्शन करने होते हैं। राजतिलक की रस्म के बाद विश्वराज सिंह मेवाड़ भी धूणी दर्शन और एकलिंग मंदिर जाने के लिए मेवाड़ सिटी पैलेस पहुंचे थे। हालांकि, उन्हें सिटी पैलेस में घुसने से रोक दिया गया।
अरविंद सिंह ने दस्तूर कार्यक्रम के तहत विश्वराज के एकलिंग नाथ मंदिर और उदयपुर में सिटी पैलेस में जाने के खिलाफ सार्वजनिक नोटिस जारी किया है। अरविंद सिंह मेवाड़ का कहना है कि मेवाड़ राजघराना एक ट्रस्ट के जरिए चलता है, जिसका संचालन उनके पिता ने उन्हें दे रखा है। ऐसे में राजगद्दी का अधिकार मेरा और मेरे बेटे लक्ष्यराज सिंह का है।
महाराणा प्रताप ने अकबर के माथे पर ला दिया था पसीना
मेवाड़ रियासत राजस्थान के दक्षिण-मध्य में स्थित थी। आजादी से पहले इसे 'उदयपुर राज्य' या 'चित्तौड़गढ़ राज्य' के नाम से भी जाना जाता था। मेवाड़ की स्थापना गुहिला राजवंश ने की थी और फिर बाद में सिसोदिया राजवंश ने शासन किया था। मेवाड़ की प्राचीन राजधानी चित्तौड़ थी और अब उदयपुर है। शिवि, प्राग्वाट और मेदपाट मेवाड़ के कई पुराने नाम थे। मेवाड़ पर गुहिल और सिसोदिया वंश के राजाओं ने 1200 सालों तक राज किया। मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप ही इतने वीर थे कि उन्होंने मुगल बादशाह अकबर की भारत विजय के सपने को चकनाचूर कर दिया था। वह कभी अकबर के आगे झुके नहीं। जबकि उस वक्त तक राजपूताना के कई बड़े-बड़े शूरमाओं ने अकबर के आगे घुटने टेक दिए थे।
मेवाड़ में बना था देश का पहला संविधान
मेवाड़ रियासत में देश का पहला संविधान बना था। इस संविधान में भगवान एकलिंग को मेवाड़ का सर्वेसर्वा माना गया था। मेवाड़ प्रजामंडल की स्थापना श्री माणिक्यलाल वर्मा ने 24 अप्रैल, 1938 को की थी। मेवाड़ प्रजामंडल ने भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया था। मेवाड़ प्रजामंडल ने राजस्थान के व्यापारियों, किसानों और ग्रामीण जनता में राष्ट्रवादी स्वाभिमान जगाया और उन्हें आजादी की लड़ाई के लिए प्रेरित किया। मेवाड़ राजवंश के अंतिम शासक महाराणा भागवत सिंह थे। मान्यता है कि सिसोदिया क्षत्रिय भगवान राम के कनिष्ठ पुत्र लव के वंशज हैं।
मेवाड़ में 84 किले, इनसे होती है अरबों की कमाई
मेवाड़ का एकलिंगजी मंदिर मेवाड़ राजपरिवार के कुलदेवता शंकर भगवान का मंदिर है। यह मंदिर उदयपुर से नाथद्वारा, हल्दीघाटी, कुम्भलगढ़ की ओर जाने वाले रास्ते पर कैलाशपुरी नामक स्थान पर स्थित है। मेवाड़ में कुल 84 किले हैं। इनसे आज के समय में अरबों की कमाई होती है। ज्यादातर महल शादी-पार्टी जैसे बड़े और भव्य आयोजनों में इस्तेमाल होते हैं। कई आलीशान होटलों में तब्दील हो चुके हैं। इनसे अरबों की कमाई होती है और स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता है।
क्या है मेवाड़ की गद्दी का विवाद, अड़चनें कौन सी हैं
उदयपुर के आखिरी महाराणा भगवत सिंह 1963 से 1983 तक राजघराने की कई प्रॉपर्टी को लीज पर दे दिया था। कुछ प्रॉपर्टी में हिस्सेदारी बेच दी। इनमें लेक पैलेस, जग निवास, जग मंदिर, फतह प्रकाश, शिव निवास, गार्डन होटल, सिटी पैलेस म्यूजियम जैसी बेशकीमती प्रॉपर्टीज शामिल थीं। ये सभी प्रॉपर्टी राजघराने की ओर से बनाई एक कंपनी को ट्रांसफर हो गई थीं। इसका उनके बड़े बेटे महेंद्र सिंह ने विरोध किया था।
जब महेंद्र सिंह ने पिता पर ही कर दिया मुकदमा
महेंद्र सिंह ने पिता के फैसले से नाराज होकर 1983 में मुकदमा कर दिया। उस वक्त महेंद्र सिंह ने कोर्ट में कहा कि रूल ऑफ प्रोइमोजेनीचर प्रथा को छोड़कर पैतृक संपत्तियों को सब में बराबर बांटा जाए। दरअसल, रूल ऑफ प्राइमोजेनीचर आजादी के बाद लागू हुआ था, इसका मतलब था कि जो परिवार का बड़ा बेटा होगा, वो राजा बनेगा। स्टेट की सारी संपत्ति उसी के पास होगी।
भगवंत सिंह ने महेंद्र को अपनी प्रॉपर्टी से बेदखल कर दिया
बेटे के मुकदमा दायर करने से नाराज होकर भगवत सिंह ने 15 मई 1984 को अपनी वसीयत में संपत्तियों का एग्जीक्यूटर छोटे बेटे अरविंद सिंह मेवाड़ को बना दिया और महेंद्र सिंह मेवाड़ को प्रॉपर्टी और ट्रस्ट से बाहर कर दिया था। 3 नवंबर 1984 को भगवत सिंह का निधन हो गया। तभी से यह विवाद चला आ रहा है। राजघराने से जुड़े 9 ट्रस्ट हैं, जिन पर अरविंद सिंह मेवाड़ का कब्जा है।
उस काली रात को जब बनवीर ने पन्ना के बेटे को मार डाला
बनवीर ने पहले तो एक भव्य आयोजन किया और उस शोर में उसने रात में महाराजा विक्रमादित्य की हत्या कर दी। फिर वह उदयसिंह को मारने के लिए आया। मगर, बनवीर के आने से पहले पन्ना ने उदयसिंह को एक बांस की टोकरी में सुलाकर उसे झूठी पत्तलों से ढककर एक विश्वास पात्र सेवक के साथ कुंभलगढ़ की ओर रवाना कर दिया। उदय सिंह की जगह उसने अपने बेटे चंदन को उनके पलंग पर सुला दिया। बनवीर तलवार लिए उदयसिंह के कक्ष में आया और उसके बारे में पूछा। पन्ना ने उदयसिंह के पलंग की ओर संकेत किया जिस पर उसका पुत्र सोया था। बनवीर ने पन्ना के पुत्र को उदयसिंह समझकर मार डाला। बनवीर को पता न लगे इसलिए पन्ना ने अपने आंसू रोक लिए। पन्ना का नाम इसीलिए इतिहास में अमर है, जिसने अपने पुत्र का बलिदान देकर मेवाड़ राजवंश को बचाया।क्या है एकलिंगजी का मंदिर और क्या है अहमियत
माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण लगभग 734 ई. में बाप्पा रावल ने निर्माण करवाया था। यह मंदिर एक चार-मुखी मूर्ति के चलते पूरे भारत में चर्चित है और यह भगवान शिव को समर्पित है। माना जाता है कि एकलिंगजी मेवाड़ रियासत के शासक देवता (कुल देवता) हैं और शाही राजवंश के महाराणा उनके दीवान (मंत्री) के रूप में शासन करते हैं। चूंकि, एकलिंगजी महाराणा के कुल देवता हैं, इसलिए बिना इनके दर्शन और आशीर्वाद के राजतिलक अधूरा माना जाता है।राजशाही खत्म, मगर प्रतीकों में निभाई जाती है रस्म
देश के आजाद होने के बाद से राजशाही खत्म हो गई। मगर, आज भी यह रस्म प्रतीकात्मक रूप से निभाई जाती है। उदयपुर जिला प्रशासन के मुताबिक, नए महाराणा के राजतिलक के बाद धूणी दर्शन की परंपरा है। इसके बाद राजा को एकलिंगजी मंदिर में भी दर्शन करने होते हैं। राजतिलक की रस्म के बाद विश्वराज सिंह मेवाड़ भी धूणी दर्शन और एकलिंग मंदिर जाने के लिए मेवाड़ सिटी पैलेस पहुंचे थे। हालांकि, उन्हें सिटी पैलेस में घुसने से रोक दिया गया।अरविंद सिंह ने दस्तूर कार्यक्रम के तहत विश्वराज के एकलिंग नाथ मंदिर और उदयपुर में सिटी पैलेस में जाने के खिलाफ सार्वजनिक नोटिस जारी किया है। अरविंद सिंह मेवाड़ का कहना है कि मेवाड़ राजघराना एक ट्रस्ट के जरिए चलता है, जिसका संचालन उनके पिता ने उन्हें दे रखा है। ऐसे में राजगद्दी का अधिकार मेरा और मेरे बेटे लक्ष्यराज सिंह का है।
महाराणा प्रताप ने अकबर के माथे पर ला दिया था पसीना
मेवाड़ रियासत राजस्थान के दक्षिण-मध्य में स्थित थी। आजादी से पहले इसे 'उदयपुर राज्य' या 'चित्तौड़गढ़ राज्य' के नाम से भी जाना जाता था। मेवाड़ की स्थापना गुहिला राजवंश ने की थी और फिर बाद में सिसोदिया राजवंश ने शासन किया था। मेवाड़ की प्राचीन राजधानी चित्तौड़ थी और अब उदयपुर है। शिवि, प्राग्वाट और मेदपाट मेवाड़ के कई पुराने नाम थे। मेवाड़ पर गुहिल और सिसोदिया वंश के राजाओं ने 1200 सालों तक राज किया। मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप ही इतने वीर थे कि उन्होंने मुगल बादशाह अकबर की भारत विजय के सपने को चकनाचूर कर दिया था। वह कभी अकबर के आगे झुके नहीं। जबकि उस वक्त तक राजपूताना के कई बड़े-बड़े शूरमाओं ने अकबर के आगे घुटने टेक दिए थे।मेवाड़ में बना था देश का पहला संविधान
मेवाड़ रियासत में देश का पहला संविधान बना था। इस संविधान में भगवान एकलिंग को मेवाड़ का सर्वेसर्वा माना गया था। मेवाड़ प्रजामंडल की स्थापना श्री माणिक्यलाल वर्मा ने 24 अप्रैल, 1938 को की थी। मेवाड़ प्रजामंडल ने भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया था। मेवाड़ प्रजामंडल ने राजस्थान के व्यापारियों, किसानों और ग्रामीण जनता में राष्ट्रवादी स्वाभिमान जगाया और उन्हें आजादी की लड़ाई के लिए प्रेरित किया। मेवाड़ राजवंश के अंतिम शासक महाराणा भागवत सिंह थे। मान्यता है कि सिसोदिया क्षत्रिय भगवान राम के कनिष्ठ पुत्र लव के वंशज हैं।मेवाड़ में 84 किले, इनसे होती है अरबों की कमाई
मेवाड़ का एकलिंगजी मंदिर मेवाड़ राजपरिवार के कुलदेवता शंकर भगवान का मंदिर है। यह मंदिर उदयपुर से नाथद्वारा, हल्दीघाटी, कुम्भलगढ़ की ओर जाने वाले रास्ते पर कैलाशपुरी नामक स्थान पर स्थित है। मेवाड़ में कुल 84 किले हैं। इनसे आज के समय में अरबों की कमाई होती है। ज्यादातर महल शादी-पार्टी जैसे बड़े और भव्य आयोजनों में इस्तेमाल होते हैं। कई आलीशान होटलों में तब्दील हो चुके हैं। इनसे अरबों की कमाई होती है और स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता है।क्या है मेवाड़ की गद्दी का विवाद, अड़चनें कौन सी हैं
उदयपुर के आखिरी महाराणा भगवत सिंह 1963 से 1983 तक राजघराने की कई प्रॉपर्टी को लीज पर दे दिया था। कुछ प्रॉपर्टी में हिस्सेदारी बेच दी। इनमें लेक पैलेस, जग निवास, जग मंदिर, फतह प्रकाश, शिव निवास, गार्डन होटल, सिटी पैलेस म्यूजियम जैसी बेशकीमती प्रॉपर्टीज शामिल थीं। ये सभी प्रॉपर्टी राजघराने की ओर से बनाई एक कंपनी को ट्रांसफर हो गई थीं। इसका उनके बड़े बेटे महेंद्र सिंह ने विरोध किया था।जब महेंद्र सिंह ने पिता पर ही कर दिया मुकदमा
महेंद्र सिंह ने पिता के फैसले से नाराज होकर 1983 में मुकदमा कर दिया। उस वक्त महेंद्र सिंह ने कोर्ट में कहा कि रूल ऑफ प्रोइमोजेनीचर प्रथा को छोड़कर पैतृक संपत्तियों को सब में बराबर बांटा जाए। दरअसल, रूल ऑफ प्राइमोजेनीचर आजादी के बाद लागू हुआ था, इसका मतलब था कि जो परिवार का बड़ा बेटा होगा, वो राजा बनेगा। स्टेट की सारी संपत्ति उसी के पास होगी।भगवंत सिंह ने महेंद्र को अपनी प्रॉपर्टी से बेदखल कर दिया
बेटे के मुकदमा दायर करने से नाराज होकर भगवत सिंह ने 15 मई 1984 को अपनी वसीयत में संपत्तियों का एग्जीक्यूटर छोटे बेटे अरविंद सिंह मेवाड़ को बना दिया और महेंद्र सिंह मेवाड़ को प्रॉपर्टी और ट्रस्ट से बाहर कर दिया था। 3 नवंबर 1984 को भगवत सिंह का निधन हो गया। तभी से यह विवाद चला आ रहा है। राजघराने से जुड़े 9 ट्रस्ट हैं, जिन पर अरविंद सिंह मेवाड़ का कब्जा है।ये तीन प्रॉपर्टी हैं राजघराने के बीच झगड़े की जड़
उदयपुर के पूर्व राजपरिवार में झगड़े की जड़ उदयपुर सिटी पैलेस से जुड़ी तीन अलग-अलग प्रॉपर्टी है। इनमें राजघराने का शाही पैलेस शंभू निवास, बड़ी पाल और घास घर शामिल हैं। बेदखल किए जाने के बाद से महेंद्र सिंह मेवाड़ समोर बाग में रहने लगे। वहीं, अरविंद सिंह मेवाड़ शंभू निवास में रहते हैं। नाथद्वारा विधायक विश्वराज सिंह और राजसमंद सांसद महिमा कुमारी महेंद्र सिंह मेवाड़ के बेटे-बहू हैं। शंभु निवास को 1865 में महाराणा शंभु सिंह ने बनवाया था। अरविंद सिंह मेवाड़ इसी में रहते हैं। हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब शंभू निवास, घास घर और बड़ी पाल तीनों अरविंद सिंह मेवाड़ के पास ही हैं।
+91 120 4319808|9470846577
स्वर्णिम भारत न्यूज़ हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.