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नई दिल्ली : महाराष्ट्र के 64 सालों के सियासी इतिहास में वह महज दूसरे ऐसे नेता हैं जिन्होंने मुख्यमंत्री के तौर पर अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा किया। वसंतराम नाइक के बाद दूसरे नेता। ऐसा करिश्मा जिसे महाराष्ट्र की राजनीति का चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार भी कभी नहीं कर पाए जो 4 बार मुख्यमंत्री बने। 47 साल बाद महाराष्ट्र के किसी मुख्यमंत्री ने अपना पूरा कार्यकाल पूरा किया था। इतना ही नहीं, सूबे का दूसरा सबसे युवा मुख्यमंत्री। इस मामले में सिर्फ शरद पवार से पीछे। एक ऐसा नेता जिसने लगातार तीन बार बीजेपी की विधानसभा चुनाव में सेंचुरी लगवाई। संयोग देखिए कि करीब 5 दशक में पहली बार कार्यकाल पूरा करने वाला मुख्यमंत्री पार्टी के फैसले को खुशी-खुशी स्वीकार करते हुए डेप्युटी सीएम बन जाता है। ये अपने आप में पार्टी के लिए उनके त्याग और समर्पण की कहानी बयां करता है।अबतक तो आप समझ ही गए होंगे कि यहां बात हो रही है देवेंद्र फडणवीस की। महाराष्ट्र में महायुति की जीत कितनी अभूतपूर्व है, कितनी प्रचंड है, इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि विपक्ष में किसी पार्टी को इतनी सीट तक नहीं मिलती दिख रही कि वह आधिकारिक तौर पर नेता प्रतिपक्ष का पद भी हासिल कर सके। बीजेपी और महायुति की इस जीत का शिल्पी बनकर उभरे हैं देवेंद्र फडणवीस।
2019 में जब बीजेपी और अविभाजित शिवसेना ने जीत हासिल की तो वो जीत फडणवीस के नेतृत्व में ही आई थी। वह अक्टूबर 2014 से नवंबर 2019 तक मुख्यमंत्री रहे थे। उनके नेतृत्व में गठबंधन की जीत के बाद सीएम पद पर उनका स्वाभाविक दावा था, लेकिन अचानक उद्धव ठाकरे की सीएम पद की लालसा हिलोरे मारने लगी। उनके पिता बाल ठाकरे ने शिवसेना-बीजेपी गठबंधन की जीत के बावजूद भी कभी मुख्यमंत्री पद पर दावा नहीं ठोका। वह किंगमेकर की भूमिका में रहते थे। वह अपनी पहचान सीएम की नहीं, बल्कि सीएम बनाने वाले की रखते थे। लेकिन उद्धव ठाकरे में सीएम बनने की हसरत जागी। इसी पर रार हुआ और उन्होंने बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ दिया।
आज से ठीक 5 साल पहले यानी 23 नवंबर 2019 को सूरज निकलने से पहले ही, जब ज्यादातर लोग अभी नींद से जगे भी नहीं होंगे तब फडणवीस ने सीएम पद की शपथ ले ली। उनके साथ डेप्युटी सीएम के तौर पर शपथ ली शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने। तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने आधी रात के बाद और दिन उगने से पहले दोनों नेताओं को शपथ दिलाई थी। अजीत ने दावा किया कि ये बीजेपी-एनसीपी गठबंधन की सरकार है लेकिन शरद पवार ने साफ कर दिया कि वह बीजेपी के साथ नहीं हैं। अजीत ने बगावत की है। सियासी उठापटक और नाटक बहुत तेजी से चले। अजीत पवार बाद में चाचा शरद पवार के साथ हो लिए। फडणवीस सरकार गिर गई। उनकी बहुत किरकरी हुई।
सकते में आए उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और शरद पवार की शरण ली। एक नया गठबंधन वजूद में आया- महाविकास अघाड़ी। उद्धव ठाकरे ने शिवसेना को कांग्रेस और एनसीपी के साथ बेमेल गठबंधन में बांध दिया। खुद मुख्यमंत्री बने लेकिन एकनाथ शिंदे की अगुआई में अपने ही विधायकों की बगावत से उन्हें अपनी कुर्सी खोनी पड़ी। तब शिंदे की बगावत के पीछे भी फडणवीस का बड़ा हाथ माना गया। शिवसेना का बागी गुट बीजेपी के साथ आ गया। तब सभी ने यही सोचा कि फडणवीस ही सीएम बनेंगे, कोई दूसरा दावेदार भी तो नहीं था। लेकिन बीजेपी आलाकमान ने तय किया कि शिंदे सीएम बनेंगे और फडणवीस उनके डेप्युटी। फडणवीस ने कहा कि वह सरकार में शामिल नहीं होंगे लेकिन आखिरकार पार्टी के आदेश को सिर माथे पर रखते हुए उन्होंने डिमोशन को भी स्वीकार कर लिया। डेप्युटी सीएम बने।
ढाई साल बाद अब फिर ये सवाल खड़ा हुआ है, क्या देवेंद्र फडणवीस फिर मुख्यमंत्री बनेंगे? इस सवाल का जवाब कुछ दिन में मिल ही जाएगा लेकिन अभी तो 5 साल पहले फडणवीस द्वारा विधानसभा के भीतर बोले वे चर्चित शब्द एक बार फिर चर्चा में हैं- मेरा पानी उतरता देख मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना, मैं समंदर हूं लौटकर वापस आऊंगा! फडणवीस ने अपने इस शब्दों को साकार तो कर ही दिया है। वैसे ही जैसे कभी वर्षों पहले अमित शाह ने ठीक यही शब्द कहे थे। तब कहे थे जब वह सिर्फ गुजरात की राजनीति तक सीमित थे। कथित फर्जी मुठभेड़ और दंगों को लेकर मुकदमों में उलझे हुए थे। शाह न सिर्फ लौटे बल्कि इतने ताकतवर होकर लौटे कि बीजेपी के चाणक्य कहलाने लगे। अब क्या फडणवीस भी अमित शाह की तरह देश और प्रदेश पर छाने वाले हैं? ये देखना दिलचस्प होगा।
2019 में जब बीजेपी और अविभाजित शिवसेना ने जीत हासिल की तो वो जीत फडणवीस के नेतृत्व में ही आई थी। वह अक्टूबर 2014 से नवंबर 2019 तक मुख्यमंत्री रहे थे। उनके नेतृत्व में गठबंधन की जीत के बाद सीएम पद पर उनका स्वाभाविक दावा था, लेकिन अचानक उद्धव ठाकरे की सीएम पद की लालसा हिलोरे मारने लगी। उनके पिता बाल ठाकरे ने शिवसेना-बीजेपी गठबंधन की जीत के बावजूद भी कभी मुख्यमंत्री पद पर दावा नहीं ठोका। वह किंगमेकर की भूमिका में रहते थे। वह अपनी पहचान सीएम की नहीं, बल्कि सीएम बनाने वाले की रखते थे। लेकिन उद्धव ठाकरे में सीएम बनने की हसरत जागी। इसी पर रार हुआ और उन्होंने बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ दिया।
आज से ठीक 5 साल पहले यानी 23 नवंबर 2019 को सूरज निकलने से पहले ही, जब ज्यादातर लोग अभी नींद से जगे भी नहीं होंगे तब फडणवीस ने सीएम पद की शपथ ले ली। उनके साथ डेप्युटी सीएम के तौर पर शपथ ली शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने। तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने आधी रात के बाद और दिन उगने से पहले दोनों नेताओं को शपथ दिलाई थी। अजीत ने दावा किया कि ये बीजेपी-एनसीपी गठबंधन की सरकार है लेकिन शरद पवार ने साफ कर दिया कि वह बीजेपी के साथ नहीं हैं। अजीत ने बगावत की है। सियासी उठापटक और नाटक बहुत तेजी से चले। अजीत पवार बाद में चाचा शरद पवार के साथ हो लिए। फडणवीस सरकार गिर गई। उनकी बहुत किरकरी हुई।
सकते में आए उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और शरद पवार की शरण ली। एक नया गठबंधन वजूद में आया- महाविकास अघाड़ी। उद्धव ठाकरे ने शिवसेना को कांग्रेस और एनसीपी के साथ बेमेल गठबंधन में बांध दिया। खुद मुख्यमंत्री बने लेकिन एकनाथ शिंदे की अगुआई में अपने ही विधायकों की बगावत से उन्हें अपनी कुर्सी खोनी पड़ी। तब शिंदे की बगावत के पीछे भी फडणवीस का बड़ा हाथ माना गया। शिवसेना का बागी गुट बीजेपी के साथ आ गया। तब सभी ने यही सोचा कि फडणवीस ही सीएम बनेंगे, कोई दूसरा दावेदार भी तो नहीं था। लेकिन बीजेपी आलाकमान ने तय किया कि शिंदे सीएम बनेंगे और फडणवीस उनके डेप्युटी। फडणवीस ने कहा कि वह सरकार में शामिल नहीं होंगे लेकिन आखिरकार पार्टी के आदेश को सिर माथे पर रखते हुए उन्होंने डिमोशन को भी स्वीकार कर लिया। डेप्युटी सीएम बने।
ढाई साल बाद अब फिर ये सवाल खड़ा हुआ है, क्या देवेंद्र फडणवीस फिर मुख्यमंत्री बनेंगे? इस सवाल का जवाब कुछ दिन में मिल ही जाएगा लेकिन अभी तो 5 साल पहले फडणवीस द्वारा विधानसभा के भीतर बोले वे चर्चित शब्द एक बार फिर चर्चा में हैं- मेरा पानी उतरता देख मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना, मैं समंदर हूं लौटकर वापस आऊंगा! फडणवीस ने अपने इस शब्दों को साकार तो कर ही दिया है। वैसे ही जैसे कभी वर्षों पहले अमित शाह ने ठीक यही शब्द कहे थे। तब कहे थे जब वह सिर्फ गुजरात की राजनीति तक सीमित थे। कथित फर्जी मुठभेड़ और दंगों को लेकर मुकदमों में उलझे हुए थे। शाह न सिर्फ लौटे बल्कि इतने ताकतवर होकर लौटे कि बीजेपी के चाणक्य कहलाने लगे। अब क्या फडणवीस भी अमित शाह की तरह देश और प्रदेश पर छाने वाले हैं? ये देखना दिलचस्प होगा।
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