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वॉशिंगटन: अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ईरान को कमजोर करने के लिए नए प्लान पर काम कर सकते हैं। डोनाल्ड ट्रंप का नया प्रशासन क्षेत्रीय प्रॉक्सी को फंडिंग और परमाणु हथियार बनाने की ईरान की क्षमता को 'दिवालिया' करने के लिए 'अधिकतम दबाव' की नीति पर काम करने का विकल्प चुनने जा रहा है। फाइनेंशियल टाइम्स ने ट्रंप के नए एडमिनिस्ट्रेशन से परिचित सूत्रों के हवाले से ये दावा किया है।रिपोर्ट के मुताबिक, अगले साल जनवरी में राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद ट्रंप की विदेश नीति की टीम तेहरान पर प्रतिबंधों को बढ़ाने की कोशिश करेगी, इसमें महत्वपूर्ण तेल निर्यात भी शामिल है। एक सूत्र ने कहा कि ट्रंप जल्द से जल्द ईरान को 'दिवालिया' बनाने के लिए बहुत ज्यादा दबाव की रणनीति को फिर से लागू करने के लिए दृढ़ हैं। यह पश्चिम एशिया में अमेरिकी विदेश नीति में बदलाव को दिखाएगी।
बाइडन प्रशासन के दौरान भी ईरान प्रतिबंध लागू रहे। हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि इस दौरान प्रतिबंध उतनी सख्ती से लागू नहीं किए गए, जितना ईरान के साथ परमाणु समझौते को पुनर्जीवित करने और संकट को कम करने के लिए किया जाना था। अमेरिकी ऊर्जा सूचना एजेंसी के अनुसार, ईरान के कच्चे तेल के निर्यात में पिछले चार वर्षों में तीन गुना से अधिक की वृद्धि हुई है। ये 2020 के 400,000 बैरल प्रति दिन से बढ़कर 2024 में 1.5 मिलियन से अधिक हो गया है।
कंसल्टेंसी रैपिडन एनर्जी के अध्यक्ष और जॉर्ज डब्ल्यू बुश प्रशासन के पूर्व ऊर्जा सलाहकार बॉब मैकनेली का कहना है कि तेल ईरान की आय का मुख्य स्रोत है। ईरान की अर्थव्यवस्था पहले से ही नाजुक हालात में है। ईरान पर प्रतिबंध लगे तो ईरान के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। इससे वह घुटनों पर आ सकता है।
ट्रंप की एक और नीति ईरान को अपनी सेना बनाने या क्षेत्र में प्रॉक्सी समूहों को निधि देने के लिए राजस्व से वंचित करना है। इसमें ईरान पर दबाव बनाकर उसे नए परमाणु समझौते पर बातचीत करने और अपनी क्षेत्रीय नीतियों को बदलने के लिए राजी करना है। हालांकि इसकी सफलता पर अभी कई तरह के सवाल बाकी हैं।
ट्रंप बीते कार्यकाल में भी रहे ईरान पर हमलावर
गाजा में बीते साल शुरू हुए युद्ध ने ईरान और इजरायल को आमने-सामने ला दिया है। ट्रंप अपने चुनाव अभियान के दौरान भी ईरान पर आक्रामक दिखे थे। ट्रंप ने पहले कार्यकाल में 'अधिकतम दबाव' की नीति के तहत विश्व शक्तियों के साथ ईरान द्वारा हस्ताक्षरित 2015 के परमाणु समझौते को खत्म करते हुए तेहरान पर कड़े प्रतिबंध लगाए थे। इसके जवाब में तेहरान ने अपनी परमाणु गतिविधि को बढ़ा दिया।बाइडन प्रशासन के दौरान भी ईरान प्रतिबंध लागू रहे। हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि इस दौरान प्रतिबंध उतनी सख्ती से लागू नहीं किए गए, जितना ईरान के साथ परमाणु समझौते को पुनर्जीवित करने और संकट को कम करने के लिए किया जाना था। अमेरिकी ऊर्जा सूचना एजेंसी के अनुसार, ईरान के कच्चे तेल के निर्यात में पिछले चार वर्षों में तीन गुना से अधिक की वृद्धि हुई है। ये 2020 के 400,000 बैरल प्रति दिन से बढ़कर 2024 में 1.5 मिलियन से अधिक हो गया है।
ट्रंप की टीम तैयार कर रही आदेश
सूत्रों का दावा है कि ट्रंप की टीम एक आदेश तैयार कर रही है, जिसे वह ओवल ऑफिस में अपने पहले दिन तेहरान को लक्षित करने के लिए जारी करेगी है। इसमें ईरानी तेल निर्यात पर नए प्रतिबंधों को कड़ा करना शामिल है। ऐसा कर वह ईरान के तेल निर्यात को घटाकर कुछ सौ हजार बैरल प्रतिदिन कर सकते हैं।कंसल्टेंसी रैपिडन एनर्जी के अध्यक्ष और जॉर्ज डब्ल्यू बुश प्रशासन के पूर्व ऊर्जा सलाहकार बॉब मैकनेली का कहना है कि तेल ईरान की आय का मुख्य स्रोत है। ईरान की अर्थव्यवस्था पहले से ही नाजुक हालात में है। ईरान पर प्रतिबंध लगे तो ईरान के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। इससे वह घुटनों पर आ सकता है।
ट्रंप की एक और नीति ईरान को अपनी सेना बनाने या क्षेत्र में प्रॉक्सी समूहों को निधि देने के लिए राजस्व से वंचित करना है। इसमें ईरान पर दबाव बनाकर उसे नए परमाणु समझौते पर बातचीत करने और अपनी क्षेत्रीय नीतियों को बदलने के लिए राजी करना है। हालांकि इसकी सफलता पर अभी कई तरह के सवाल बाकी हैं।
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