तीन सीटें 'इंडिया' गठबंधन की, एक एनडीए की
रामगढ़ और बेलागंज सीटों पर आरजेडी का कब्जा रहा है, जबकि तरारी सीट सीपीआई (एमएल) के कब्जे में रही है। सिर्फ इमामगंज सीट हम (HAM) के खाते में रही है। सीपीआई (एमएल) पिछले विधानसभा चुनाव से आरजेडी के नेतृत्व वाले गठबंधन का हिस्सा है। आरजेडी के साथ रहने का लाभ भी सीपीआई (एमएल) को मिला है। इस साल हुए लोकसभा चुनाव में एमएल का भी एक सदस्य संसद पहुंच गया है। विधायकों की संख्या तो 2020 के विधानसभा चुनाव में ही बढ़ गई थी।किस सीट पर कौन सी पार्टी का था विधायक, अब कौन प्रत्याशी?
रामगढ़ सीट: रामगढ़ सीट से आरजेडी के सुधाकर सिंह विधायक होते थे। लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद यह सीट खाली हुई है। उपचुनाव में उनके भाई अजित सिंह इस सीट आरजेडी के प्रत्याशी हैं। अजित सिंह आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे हैं। भाजपा ने पूर्व विधायक अशोक सिंह को उम्मीदवार बनाया है। 2020 में वे सुधाकर सिंह से मामूली अंतर से चुनाव हार गए थे। जन सुराज ने सुशील कुमार कुशवाहा को उम्मीदवार बनाया है। सुशील कुशवाहा की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने बक्सर सीट से चुनाव लड़ कर एक लाख से अधिक वोट हासिल किया था।बेलागंज सीट: आरजेडी के विधायक सुरेंद्र यादव के सांसद बनने के बाद बेलागंज सीट रिक्त हुई है। इस सीट पर तकरीबन तीन दशक से आरजेडी का कब्जा रहा है। इस बार उपचुनाव में आरजेडी ने सुरेंद्र यादव के बेटे विश्वनाथ यादव को उम्मीदवार बनाया है। एनडीए में सीट बंटवारे के बाद यह सीट जेडीयू के खाते में गई है। जेडीयू ने मनोरमा देवी को उम्मीदवार बनाया है। मनोरमा देवी एमएलसी रह चुकी हैं। जन सुराज ने भी अपना उम्मीदवार यहां उतारा है। इससे संघर्ष तिकोना हो गया है।
इमामगंज सीट: इमामगंज सीट से जीतन राम मांझी विधायक हुआ करते थे। उनके सांसद चुने जाने के बाद यह सीट खाली हुई है। एनडीए ने जीतन राम मांझी की बहू को यहां से उम्मीदवार बनाया है। जन सुराज ने मोहम्मद अमजद को अपना उम्मीदवार बनाया है।
तरारी सीट: इंडियागठबंधन ने सीपीआई (एमएल) को दी है। जन सुराज ने किरण देवी को प्रत्याशी बनाया है, जबकि भाजपा ने सुनील पांडेय के बेटे विशाल प्रशांत को उम्मीदवार बनाया है। यह सीट सीपीआई (एमएल) के कब्जे में रही है। सीपीआई (एमएल) ने राजू यादव को उम्मीदवार बनाया है। प्रशांत किशोर ने भी अपना उम्मीदवार उतारा है।
नीतीश को लोकसभा चुनाव जैसे नतीजे की है उम्मीद
जिन तीन नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है, उनमें एक नीतीश कुमार हैं। बिहार में एनडीए का नेतृत्व वे ही कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि जिस तरह उनके काम से प्रभावित होकर लोगों ने लोकसभा चुनाव में एनडीए का समर्थन किया, उपचुनाव में भी लोग उनके काम के आधार पर जरूर वोट करेंगे। उपचुनाव से यह भी पता चलेगा कि लोकसभा चुनाव में एनडीए को 30 सीटों पर मिली जीत के पीछे नरेंद्र मोदी का मैजिक था या यह नीतीश कुमार के काम का इनाम था।नौकरी देने की छवि से तेजस्वी को आस
तेजस्वी यादव बिहार का सीएम बनने का सपना 2020 से ही देख रहे हैं। वैसे पिछले विधानसभा चुनाव में तत्कालीन महागठबंधन को मिली सफलता का ट्रेंड बरकरार रहता है तो तेजस्वी की उम्मीद को बेमानी नहीं माना जाएगा। इस बीच 17 महीने तक सरकार में रह कर तेजस्वी ने अपनी छवि नौकरी देने वाले व्यक्ति की बनाई है। इसे वे और आरजेडी के समर्थक खूब प्रचारित भी करते हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि उनके नेतृत्व में 'इंडिया' गठबंधन इस बार पिछली जीत को रिपीट करता है या नहीं। अगर तीन सीटों में कमी आई तो यह तेजस्वी की छवि पर बट्टा माना जाएगा। लोकसभा चुनाव में तेजस्वी का कोई खास कमाल नहीं दिखा। 'इंडिया' गठबंधन के समर्थन के बावजूद आरजेडी को कोई खास कामयाबी नहीं मिली।प्रशांत किशोर को है अपनी रणनीति पर पूरा भरोसा
प्रशांत किशोर के लिए तो उपचुनाव पहली परीक्षा है। इस परीक्षा के परफार्मेंस से ही उनकी पार्टी का भविष्य तय होगा। उन्होंने बिहार को बदलने का बीड़ा उठाया है। उपचुनाव में चारों सीटों पर वह मुकाबले में तो दिखते हैं, लेकिन मतदान के दिन लोग उनका कितना साथ देते हैं, यह देखने वाली बात होगी। प्रशांत अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की बात कहते हैं। इसलिए उनके लिए इस चुनाव में अपना दम दिखाना जरूरी होगा। उम्मीदवारों का चयन तो उन्होंने ठीक किया है, पर जातीय गणित में उनके उम्मीदवार कैसा प्रदर्शन करते हैं, यह देखने वाली बात होगी।
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