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नई दिल्ली : दो बड़े राज्य। महाराष्ट्र और झारखंड। दोनों ही जगह चुनावी फिजा। दोनों ही जगह इंडिया गठबंधन टूटने के कगार पर था। महाराष्ट्र में महा विकास अखाड़ी ही I.N.D.I.A है। गठबंधन में सीट शेयरिंग का पेच ऐसा फंसा था कि कभी उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना तो कभी कांग्रेस कसमसा रही थी। अकेले चुनाव लड़ने की बातें होने लगी थीं। यही हाल झारखंड में था। तेजस्वी यादव आरजेडी के लिए सम्मानजनक सीटों पर अड़े थे। बात बनती नहीं दिख रही थी। लेकिन तभी सियासत के दो मंझे खिलाड़ियों की सीन में एंट्री होती है। ऐसी एंट्री कि पूरा सीन ही बदल जाता है। गठबंधन जो टूटने के कगार पर खड़ा था, उसमें सीट शेयरिंग पर सहमति बन जाती है। खिलाड़ियों के खिलाड़ी ये दोनों दिग्गज कोई और नहीं बल्कि शरद पवार और लालू प्रसाद यादव हैं।
सबसे पहले बात महाराष्ट्र की। 288 विधानसभा सीटों वाले सूबे में 20 नवंबर को वोटिंग है। महाविकास अघाड़ी में सीट शेयरिंग का पेच ऐसा फंसा था कि उद्धव ठाकरे की शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत बार-बार सार्वजनिक तौर पर संकेत दे रहे थे कि सीटों पर बात नहीं बनी तो एकला चलेंगे। एकला चलो रे का राग महाराष्ट्र कांग्रेस के भीतर भी गूंजने लगा था।
कांग्रेस नेताओं को लगानी पड़ी खरगे से गुहार
समझौते की कोई गुंजाइश बनते नहीं देखकर राज्य कांग्रेस के नेताओं ने राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से गुहार लगाई। आनन-फानन में हाई कमान ने राज्य के नेताओं को चर्चा के लिए दिल्ली तलब किया। खरगे ने कांग्रेस विधायक दल के नेता बाला साहेब थोराट को जिम्मेदारी दी कि मामले को सुलझाने के लिए वह शरद पवार और उद्धव ठाकरे से बात करें।
मल्लिकार्जुन खरगे के निर्देश पर थोराट ने पवार और ठाकरे दोनों से संक्षिप्त मुलाकात भी की लेकिन बात नहीं। इसके बाद तो कांग्रेस नेताओं को लगने लगा कि अब वक्त आ गया है कि एमवीए से बाहर होकर अकेले चुनाव लड़ा जाए। उधर, शिवसेना यूबीटी पहले से ही सीट शेयरिंग पर अधीर हुए जा रही थी।
गठबंधन टूटना तो महायुति के लिए 'वॉकओवर' होता!
गठबंधन के सहयोगियों के बीच एकला चलो रे की बढ़ती गूंज के बीच एंट्री होती है शरद पवार की। इसलिए कि अगर एमवीए के साथी अलग-अलग चुनाव लड़ेंगे तो बीजेपी की अगुआई वाली महायुति के लिए पूरी तरह मैदान साफ करने जैसा होता।
शरद पवार की एंट्री और सुलझ गया पेच
शरद पवार ने संजय राउत, थोराट और उद्धव ठाकरे से बात की। उसके बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले, शिवसेना यूबीटी के संजय राउत, एनसीपी (एसपी) के जयंत पाटिल और कांग्रेस के विधायक दल के नेता बालासाहेब थोराट संग शरद पवार ने बैठक की। उनके हस्तक्षेप के बाद बिगड़ती दिख रही बात बन गई। 255 सीटों का मसला तो चुटकियों में सुलझ गया।
तय हुआ कि गठबंधन की तीनों प्रमुख पार्टियां यानी कांग्रेस, शिवसेना यूबीटी और एनसीपी एसपी 85-85 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी। 18 सीटें गठबंधन की छोटी पार्टियों के लिए छोड़ दी गईं। बाकी बचीं 15 सीटों का मसला हल नहीं हो पाया है। इनमें से 3 सीटें मुंबई और 12 विदर्भ में हैं।
शरद पवार ने समझाया कि और ज्यादा देरी ठीक नहीं है। जिन पर सहमति बन गई, वहां उम्मीदवार तय करने, पर्चा दाखिल करने का काम चले। बाकी 15 सीटों को लेकर बातचीत चलती रहेगी। वैसे इससे पहले जिस फॉर्म्युले की चर्चा चल रही थी, उसके मुताबिक कांग्रेस 105, एनसीपी-एसपी 84 और शिवसेना-यूबीटी को 95 सीटें मिलनी थीं। साफ है कि फायदे में एनसीपी-एसपी दिख रही है जिसे 85 सीटों पर उम्मीदवारी तो अभी मिल गई है।
झारखंड में भी टूटने के कगार पर था गठबंधन
अब बात झारखंड की। 81 विधानसभा सीटों वाले झारखंड में 13 और 20 नवंबर को दो चरणों में वोटिंग होनी है। बिहार के विभाजन के बाद बने झारखंड में वैसे तो आरजेडी की कोई खास ताकत नहीं है लेकिन वहां उसके वजूद से इनकार नहीं किया जा सकता। तेजस्वी यादव अपनी पार्टी के लिए सम्मानजनक सीटें चाहते थे। आरजेडी को सीट देने का मतलब है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस के लिए उतनी सीटों का कम होना।
अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान करने ही वाले थे तेजस्वी
आरजेडी के राज्यसभा सांसद मनोज झा दावा कर रहे थे कि झारखंड में कम से कम 15 से 18 सीट ऐसी हैं जहां उनकी पार्टी अपने दम पर बीजेपी को पटखनी दे सकती है। ये और बात है कि पिछली बार उनकी पार्टी 7 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और सिर्फ एक ही सीट जीत पाई थी।
सीटों का पेच ऐसा फंसा कि तेजस्वी यादव नाराज हो गए। अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान करने ही वाले थे कि उनके पिता लालू प्रसाद यादव को भनक लग गई।
लालू का सोरेन को कॉल और बन गई बिगड़ी बात
'द हिंदू' की रिपोर्ट के मुताबिक, गठबंधन को बिखरता देख लालू ने जेएमएम नेता और सीएम हेमंत सोरेन को फोन घुमा दिया। उनके दखल देते ही बिगड़ती दिख रही बात बन गई। आरजेडी अब इंडिया गठबंधन के बैनर तले ही चुनाव लड़ेगी। उसके खाते में 6 सीटों पर उम्मीदवारी आई है।
गठबंधन में गूंजने लगा था 'एकला चलो' का रागसबसे पहले बात महाराष्ट्र की। 288 विधानसभा सीटों वाले सूबे में 20 नवंबर को वोटिंग है। महाविकास अघाड़ी में सीट शेयरिंग का पेच ऐसा फंसा था कि उद्धव ठाकरे की शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत बार-बार सार्वजनिक तौर पर संकेत दे रहे थे कि सीटों पर बात नहीं बनी तो एकला चलेंगे। एकला चलो रे का राग महाराष्ट्र कांग्रेस के भीतर भी गूंजने लगा था।
कांग्रेस नेताओं को लगानी पड़ी खरगे से गुहार
समझौते की कोई गुंजाइश बनते नहीं देखकर राज्य कांग्रेस के नेताओं ने राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से गुहार लगाई। आनन-फानन में हाई कमान ने राज्य के नेताओं को चर्चा के लिए दिल्ली तलब किया। खरगे ने कांग्रेस विधायक दल के नेता बाला साहेब थोराट को जिम्मेदारी दी कि मामले को सुलझाने के लिए वह शरद पवार और उद्धव ठाकरे से बात करें।
मल्लिकार्जुन खरगे के निर्देश पर थोराट ने पवार और ठाकरे दोनों से संक्षिप्त मुलाकात भी की लेकिन बात नहीं। इसके बाद तो कांग्रेस नेताओं को लगने लगा कि अब वक्त आ गया है कि एमवीए से बाहर होकर अकेले चुनाव लड़ा जाए। उधर, शिवसेना यूबीटी पहले से ही सीट शेयरिंग पर अधीर हुए जा रही थी।
गठबंधन टूटना तो महायुति के लिए 'वॉकओवर' होता!
गठबंधन के सहयोगियों के बीच एकला चलो रे की बढ़ती गूंज के बीच एंट्री होती है शरद पवार की। इसलिए कि अगर एमवीए के साथी अलग-अलग चुनाव लड़ेंगे तो बीजेपी की अगुआई वाली महायुति के लिए पूरी तरह मैदान साफ करने जैसा होता।
शरद पवार की एंट्री और सुलझ गया पेच
शरद पवार ने संजय राउत, थोराट और उद्धव ठाकरे से बात की। उसके बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले, शिवसेना यूबीटी के संजय राउत, एनसीपी (एसपी) के जयंत पाटिल और कांग्रेस के विधायक दल के नेता बालासाहेब थोराट संग शरद पवार ने बैठक की। उनके हस्तक्षेप के बाद बिगड़ती दिख रही बात बन गई। 255 सीटों का मसला तो चुटकियों में सुलझ गया।
तय हुआ कि गठबंधन की तीनों प्रमुख पार्टियां यानी कांग्रेस, शिवसेना यूबीटी और एनसीपी एसपी 85-85 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी। 18 सीटें गठबंधन की छोटी पार्टियों के लिए छोड़ दी गईं। बाकी बचीं 15 सीटों का मसला हल नहीं हो पाया है। इनमें से 3 सीटें मुंबई और 12 विदर्भ में हैं।
शरद पवार ने समझाया कि और ज्यादा देरी ठीक नहीं है। जिन पर सहमति बन गई, वहां उम्मीदवार तय करने, पर्चा दाखिल करने का काम चले। बाकी 15 सीटों को लेकर बातचीत चलती रहेगी। वैसे इससे पहले जिस फॉर्म्युले की चर्चा चल रही थी, उसके मुताबिक कांग्रेस 105, एनसीपी-एसपी 84 और शिवसेना-यूबीटी को 95 सीटें मिलनी थीं। साफ है कि फायदे में एनसीपी-एसपी दिख रही है जिसे 85 सीटों पर उम्मीदवारी तो अभी मिल गई है।
झारखंड में भी टूटने के कगार पर था गठबंधन
अब बात झारखंड की। 81 विधानसभा सीटों वाले झारखंड में 13 और 20 नवंबर को दो चरणों में वोटिंग होनी है। बिहार के विभाजन के बाद बने झारखंड में वैसे तो आरजेडी की कोई खास ताकत नहीं है लेकिन वहां उसके वजूद से इनकार नहीं किया जा सकता। तेजस्वी यादव अपनी पार्टी के लिए सम्मानजनक सीटें चाहते थे। आरजेडी को सीट देने का मतलब है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस के लिए उतनी सीटों का कम होना।
अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान करने ही वाले थे तेजस्वी
आरजेडी के राज्यसभा सांसद मनोज झा दावा कर रहे थे कि झारखंड में कम से कम 15 से 18 सीट ऐसी हैं जहां उनकी पार्टी अपने दम पर बीजेपी को पटखनी दे सकती है। ये और बात है कि पिछली बार उनकी पार्टी 7 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और सिर्फ एक ही सीट जीत पाई थी।
सीटों का पेच ऐसा फंसा कि तेजस्वी यादव नाराज हो गए। अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान करने ही वाले थे कि उनके पिता लालू प्रसाद यादव को भनक लग गई।
लालू का सोरेन को कॉल और बन गई बिगड़ी बात
'द हिंदू' की रिपोर्ट के मुताबिक, गठबंधन को बिखरता देख लालू ने जेएमएम नेता और सीएम हेमंत सोरेन को फोन घुमा दिया। उनके दखल देते ही बिगड़ती दिख रही बात बन गई। आरजेडी अब इंडिया गठबंधन के बैनर तले ही चुनाव लड़ेगी। उसके खाते में 6 सीटों पर उम्मीदवारी आई है।
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