महाराष्ट्र में जीतने के लिए BJP का हरियाणा वाला दांव! क्या राज्य में फिर खिलेगा कमल

BJP strategy on Maharashtra elections: महाराष्ट्र में होने जा रहे असेंबली चुनाव में बीजेपी ने हरियाणा वाला दांव चल दिया है. जिस रणनीति के तहत पार्टी ने लगातार तीसरी बार हरियाणा की सत्ता कब्जाई, अब उसी रणनीति को महाराष्ट्र में अपनाया जा रहा है. इसक

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BJP strategy on Maharashtra elections: महाराष्ट्र में होने जा रहे असेंबली चुनाव में बीजेपी ने हरियाणा वाला दांव चल दिया है. जिस रणनीति के तहत पार्टी ने लगातार तीसरी बार हरियाणा की सत्ता कब्जाई, अब उसी रणनीति को महाराष्ट्र में अपनाया जा रहा है. इसकी छाप चुनाव के लिए घोषित बीजेपी उम्मीदवारों की पहली सूची से साफ मिल रही है. इस सूची में बीजेपी ने 99 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम घोषित किए हैं. जबकि दूसरी लिस्ट कुछ दिनों बाद जारी होगी. पार्टी रणनीतिकारों को पूरी उम्मीद है कि हरियाणा वाला दांव महाराष्ट्र में भी सटीक बैठेगा और पार्टी फिर से सत्ता में वापसी करेगी.

क्या है बीजेपी का हरियाणा वाला दांव?

हरियाणा की राजनीति जाट वर्सेस नॉन जाट वाली मानी जाती है. करीब दस साल पहले जब से बीजेपी राज्य की सत्ता में आई, उसने गैर- जाट नेता को वहां का सीएम बनाया. इसे वहां के जाट अपना अधिकार छीनने की तरह देख रहे थे. इसके साथ ही इस बार जवान, किसान और पहलवानों के मुद्दे पर भी बीजेपी के प्रति बेरुखी थी. कांग्रेस ने जाटों के इस रुख को देखते हुए 90 में से 52 टिकट उन्हें दिए, जिससे जाट एकतरफा उसके पाले में आ जाए.

वहीं बीजेपी ने जाटों को सम्मानित संख्या में टिकट तो बांटे लेकिन उनका तुष्टिकरण नहीं किया. इसके बजाय बीजेपी ने गैर- जाट समुदायों को साथ जोड़ने के लिए उन्हें ज्यादा टिकट बांटे. इन गैर- जाट समुदायों ने भी खुलकर बीजेपी का साथ दिया और चुनाव में लगातार तीसरी बार उसकी सरकार बनवा दी. अब हरियाणा के इसी सफल फॉर्मूले को बीजेपी ने महाराष्ट्र में भी अपनाया है.

महाराष्ट्र में बेहद ताकतवर हैं मराठा

महाराष्ट्र में सबसे प्रभावी समुदाय मराठा है. जमीन, कारोबार, नौकरी, राजनीति, सभी क्षेत्रों में इसी समुदाय का बोलबाला रहा है. राज्य में अब तक हुए सभी मुख्यमंत्रियों में आधे से ज्यादा इसी समुदाय से रहे हैं. इतना कुछ होने के बावजूद यह समुदाय अपने लिए ओबीसी कोटे की मांग करता रहा है. मराठा नेता मनोज जरांगे पाटिल पिछले कई सालों से इस मुद्दे को लेकर मुखर हैं और सरकार के खिलाफ विरोध- प्रदर्शन करते रहे हैं.

जरांगे के इसी आंदोलन की वजह से बीजेपी को लोकसभा चुनावों में खासा नुकसान उठाना पड़ा और कई जीती हुई सीटें भी उसके हाथ से निकल गईं. इससे बीजेपी रणनीतिकार समझ चुके हैं कि असेंबली चुनावों में भी उसे जरांगे फैक्टर का सामना करना ही होगा यानी मराठा समुदाय का उसे विशेष साथ नहीं मिलने जा रहा. ऐसे में बीजेपी ने बारीकी से सोशल इंजीनियरिंग को अंजाम देते हुए सभी समुदायों को साधते हुए टिकट बांटे हैं.

जरांगे के दबाव में नहीं आई बीजेपी?

बीजेपी की पहली सूची में जहां मराठा समुदाय के कई दिग्गज नामों को टिकट दिए गए हैं. वहीं जरांगे के दबाव में आने के बजाय ओबीसी समुदाय से जुड़े नेताओं को ज्यादा टिकट बांटे गए हैं. ऐसा करके बीजेपी ने महाराष्ट्र में मराठा और ओबीसी उम्मीदवारों के बीच संतुलन साधने की कोशिश की है. अहिल्यानगर में विखे पाटिल, मराठवाड़ा से अशोक चव्हाण की बेटी और रावसाहेब दानवे के बेटे, जबकि कोंकण से नितेश राणे को पार्टी उम्मीदवार बनाया गया है. ये सभी मशहूर मराठा नेता हैं.

इसी तरह राज्य भाजपा अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले, कैबिनेट मंत्री सुधीर मुनगंटीवार और तुषार राठौड़ जैसे ओबीसी नेताओं को टिकट देकर बीजेपी ने साफ कर दिया है कि वह सभी समुदायों को साथ लेकर चलने में यकीन रखती है. जबकि अगड़ी जातियों में उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को उम्मीदवार बनाकर बीजेपी ने मैसेज दिया है कि वह जाति के बजाय काम और वफादारी को महत्व देती है.

क्या काम कर पाएगी पार्टी की ये रणनीति?

भाजपा के एक सीनियर लीडर के मुताबिक, टिकट वितरण में 'मनोज जारांगे फैक्टर' पर बहुत विचार किया गया, जिसने महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया. जरांगे ने अपने आंदोलन के जरिए राज्य में महायुति के खिलाफ वोटों को एकजुट किया. ऐसे में गहन विचार- विमर्श के बाद तय किया गया कि जरांगे के दबाव में ज्यादा मराठा उम्मीदवार उतारने के बजाय सभी समुदायों को बराबरी के आधार पर टिकट बांटे जाएंगे, जिससे फायदे की संभावनाएं ज्यादा बढ़ सकें.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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