क्या इंदिरा गांधी रूसी खुफिया एजेंसी केजीबी की एजेंट थीं... रूस-भारत के रिश्तों पर ये दाग कितने अच्छे हैं?

नई दिल्ली: 2005 में एक किताब छपी-‘द मित्रोखिन आर्काइव II’। कैंब्रिज के इतिहासकार क्रिस्टोफर एंड्रयू की इस किताब के छपते ही भारत समेत पूरी दुनिया में तहलका मच गया। दरअसल, इस किताब में यह सनसनीखेज दावा किया गया था कि भारत में नेता से लेकर नौकरशाह

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नई दिल्ली: 2005 में एक किताब छपी-‘द मित्रोखिन आर्काइव II’। कैंब्रिज के इतिहासकार क्रिस्टोफर एंड्रयू की इस किताब के छपते ही भारत समेत पूरी दुनिया में तहलका मच गया। दरअसल, इस किताब में यह सनसनीखेज दावा किया गया था कि भारत में नेता से लेकर नौकरशाह तक पैसों के लिए देश के हितों से समझौता करने को तैयार थे। यहां तक कि शीत युद्ध के जमाने में जब अमेरिका और रूस के बीच तनातनी चल रही थी, उस वक्त पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को केजीबी का एजेंट भी बताया गया था। रूस की खुफिया एजेंसी KGB के दस्तावेजों को संभालने वाले वैसिली मित्रोखिन ने केजीबी की कुछ फाइलों को लेकर 1992 में ब्रिटेन में शरण ले रखी थी। मित्रोखिन और उनके एक सहयोगी और खुफिया मामलों के विशेषज्ञ क्रिस्टोफर एंड्रयू ने मिलकर यह किताब लिखी। वैसे तो यह किताब 2005 में आई मगर, इससे पहले मित्रोखिन आर्काइव्स के कुछ अंश 1999 में छपे थे। उस वक्त भी तहलका मचा था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए इस वक्त रूस के दौरे पर हैं। रूस के साथ भारत के संबंध सदियों पुराने हैं। मगर, एक वक्त वो भी था, जब रूस की खुफिया एजेंसी केजीबी का भारत में काफी दखल था। यह दावा खुद केजीबी के एक अधिकारी की फाइलों में किया गया। जानते हैं वो कहानी।

इंदिरा गांधी को वानो कहकर बुलाता था केजीबी

केजीबी फाइल्स के हवाले से मित्रोखिन आर्काइव्स के एक दावे में कहा गया था कि इंदिरा गांधी को केजीबी की ओर से VANO नाम दिया गया था। फाइल्स के अनुसार, केजीबी ने कांग्रेस पार्टी के लिए सूटकेस में भरकर पैसे भेजे थे। एक मौके पर रूस के पोलित ब्यूरो की ओर से कांग्रेस (आर) को 20 लाख रुपए का का गुप्त उपहार भारत में केजीबी प्रमुख लियोनिद शेबरशिन की ओर से निजी तौर पर दिया गया था।
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1978 में भारत में 30 से अधिक एजेंट KGB के थे

1978 में जनता पार्टी के सरकार के दौरान केजीबी भारत में 30 से अधिक एजेंटों को चला रहा था, जिनमें से 10 भारतीय खुफिया अधिकारी थे। 1977 में केजीबी फाइलों ने 21 गैर-कम्युनिस्ट राजनेताओं (चार केंद्रीय मंत्रियों) की पहचान की, जिनके चुनाव अभियानों को केजीबी द्वारा सब्सिडी दी गई थी। सीपीआई को कई तरीकों से वित्त पोषित किया गया था, जिसमें दिल्ली की सड़कों पर कार की खिड़कियों से पैसे बांटे गए थे।

इंदिरा के विरोधियों को कमजोर करने पर 10.6 मिलियन रूबल खर्च

1975 के दौरान भारत में इंदिरा गांधी के लिए समर्थन को मजबूत करने और उनके राजनीतिक विरोधियों को कमजोर करने के लिए डिजाइन किए गए सक्रिय उपायों पर कुल 10.6 मिलियन रूबल खर्च किए गए थे। 2004 में मित्रोखिन की मृत्यु हो गई थी।
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मेनन को सोवियत मिग खरीदने के लिए राजी किया गया

रक्षा मंत्री के रूप में वीके कृष्ण मेनन को ब्रिटिश लाइटनिंग्स नहीं, बल्कि सोवियत मिग खरीदने के लिए राजी किया गया था। 1962 और 1967 में उनके चुनाव अभियानों को केजीबी की ओर से पैसे मुहैया कराए गए थे।

केजीबी ने मनचाहे लेख भारत में छपवाए

मित्रोखिन आर्काइव्स के अनुसार, 1973 तक केजीबी के पेरोल पर 10 भारतीय समाचार पत्र और एक प्रेस एजेंसी थी। 1975 के दौरान केजीबी ने भारतीय समाचार पत्रों में 5,510 लेख प्रकाशित करवाए।

तीसरी दुनिया में केजीबी घुसपैठ का मॉडल भारत

रूसी खुफिया जांच एजेंसी ने भारत को तीसरी दुनिया की सरकार के केजीबी घुसपैठ का मॉडल करार दिया था। एजेंसी के पास इतने सारे एजेंट और स्रोत थे कि तत्कालीन केजीबी प्रमुख यूरी एंड्रोपोव ने सूचना के बदले 50,000 डॉलर के भुगतान के एक भारतीय कैबिनेट मंत्री के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।


तीसरी दुनिया पर केंद्रित थे केजीबी के आपॅरेशन

पहली किताब यूरोप और अमेरिका में केजीबी के खुफिया मिशनों के बारे में थी। क्रिस्टोफर एंड्रयू ने भी मित्रोखिन के साथ यह किताब लिखी थी। भारत के साथ विशेष संबंध शीर्षक वाले दो अध्याय भारत में केजीबी संचालन के पैमाने और पैठ की सीमा का विवरण देते हैं। पुस्तक में दावा किया गया है कि शीत युद्ध के दौरान तीसरी दुनिया के किसी देश में केजीबी के सबसे अधिक ऑपरेशन भारत में किए गए।

नेहरू के दौर से केजीबी की भारत सरकार पर पकड़

KGB ने नेहरू के दौर से ही भारत पर अपनी पकड़ बना ली थी। हालांकि, न तो नेहरू और न ही आईबी को यह एहसास हुआ कि मॉस्को में भारतीय दूतावास में हनी ट्रैप की कहानी को अंजाम दिया जा रहा है और KGB की घुसपैठ बढ़ रही है। 1950 के दशक में नेवरोवा कोडनेम वाली एक महिला ने प्रोखोर कोडनेम वाले भारतीय राजनयिक को अपनी गिरफ्त में ले लिया था।

ब्रिटेन और इटली में केजीबी फाइल्स पर बिठाई गई जांच

वैसिली मित्रोखिन अपने साथ छह ट्रकों में केजीबी की फाइलों का जखीरा भी ब्रिटेन लेकर गए। इसमें 1954 से लेकर 1990 के दशक तक केजीबी के अलग-अलग देशों में किए गए ऑपरेशन की डिटेल थी। इन्हीं दस्तावेजों के आधार कैंब्रिज के इतिहासकार क्रिस्टोफर एंड्रयू ने दो किताबें लिखीं- किताब ‘द मित्रोखिन आर्काइव I’ और ‘द मित्रोखिन आर्काइव II’ लिखी। इन किताबों में छपे रिपोर्ट्स ने इतनी सनसनी बचाई कि भारत, इटली और ब्रिटेन में तो संसदीय जांच भी बिठा दी गई।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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