वो रहस्यमय बाबा, जो चमत्कार से रानी के करीब पहुंचा... न गोली से मरा और जहर से! खुद की अपनी मौत की भविष्यवाणी

नई दिल्ली: सर्दियों की वह ठिठुरती रात, जब सेंट पीटर्सबर्ग की बर्फीली हवाओं ने शहर को अपनी आगोश में लिया हुआ था... एक ऐसी रहस्यमयी घटना लेकर आई, जिसकी गूंज आज भी इतिहास में सुनाई देती है। रूस की ये अजीबो-गरीब रहस्यमयी कहानी है ग्रिगोरी रासपुतिन क

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नई दिल्ली: सर्दियों की वह ठिठुरती रात, जब सेंट पीटर्सबर्ग की बर्फीली हवाओं ने शहर को अपनी आगोश में लिया हुआ था... एक ऐसी रहस्यमयी घटना लेकर आई, जिसकी गूंज आज भी इतिहास में सुनाई देती है। रूस की ये अजीबो-गरीब रहस्यमयी कहानी है ग्रिगोरी रासपुतिन की। एक ऐसे व्यक्ति की कहानी, जो एक साधारण किसान था और उसने रूस के शाही दरबार को हिलाकर दिया। उसकी मौत, जितनी खौफनाक और रहस्यमयी थी, उतनी ही अनसुलझी भी। रासपुतिन का अंत साधारण तरीके से नहीं हुआ।
रासपुतिन की कहानी आज तक लोगों के जहन में है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, ग्रिगोरी यफिमोविच रासपुतिन का जन्म साल 1869 में रूस के सुदूर सिबेरियाई गांव में हुआ था। बचपन में ही वह सामान्य बच्चों से अलग था। उसका झुकाव धार्मिक तौर तरीकों में ज्यादा था। इसी की वजह से ग्रामीणों के बीच उसकी अलग पहचान बन गई। वह रहस्यमयी जिंदगी जीने लगा था।

लोग कहते थे कि उसके पास चमत्कारी शक्तियां हैं। इन्हीं बातों ने उसे चर्च और आसपास के लोगों में काफी मशहूर कर दिया। मगर इसके बाद लोगों को हैरानी तब और ज्यादा हुई, जब उसने रूस की रानी एलेक्जेंड्रा फ्योदरोवना का विश्वास हासिल कर लिया। दरअसल, एलेक्जेंड्रा का बेटा अलेक्सी एक दुर्लभ और जानलेवा बीमारी हीमोफिलिया से पीड़ित था। जब तमाम डॉक्टरों ने हार मान ली, तो रासपुतिन ने दावा किया कि वह अलेक्सी को ठीक कर सकता है।

रासपुतिन मतलब डार्क पावर

इसके बाद रासपुतिन ने न जाने ऐसा क्या किया कि अलेक्सी की हालत में सुधार दिखने लगा। यह देखकर रानी एलेक्जेंड्रा का भरोसा रासपुतिन पर बढ़ गया। इस अनोखी घटना ने रासपुतिन को शाही परिवार के करीब ला दिया। वह एक असाधारण शक्तिशाली व्यक्ति बन चुका था। रासपुतिन जब रूस की शाही फैमिली के काफी करीब हो गया तो ये बात कुछ लोगों को पसंद नहीं आई और उसके खिलाफ आवाजें भी उठने लगीं।

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रासपुतिन सिर्फ धार्मिक या आध्यात्मिक वजह से मशहूर नहीं हुआ था, इसके पीछे राजनीतिक और सामाजिक वजहें भी थीं। रूस में उस समय अराजकता फैलने लगी थी। प्रथम विश्व युद्ध ने रूस की सैन्य और आर्थिक स्थिति को कमजोर कर दिया था। रासपुतिन के असर को लोग 'डार्क पावर' मानने लगे। तमाम लोग उससे ईर्ष्या रखने लगे। उसके आलोचक मानते थे कि वह न केवल रूस की राजनीति में हस्तक्षेप कर रहा है, बल्कि देश को भी कमजोर कर रहा है।

शराब की लत और महिलाओं से संबंध

दरबार से जुड़े लोगों को रासपुतिन का रूस के शाही परिवार पर प्रभाव बर्दाश्त नहीं हो रहा था। उसे एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जाने लगा, जो रूस की राजनीतिक दिशा को गलत तरीके से मोड़ रहा था। उसके साथ अनैतिक व्यवहार, शराब की लत और महिलाओं के साथ कथित संबंधों की कहानियां जुड़ने लगीं। रासपुतिन को लेकर कई तरह की अफवाहें भी उड़ाई जाने लगीं। उन्हीं में एक अफवाह ये भी थी कि रासपुतिन के अवैध संबंध एलेक्जेंड्रा के साथ हैं।

साल 1916 के अंत तक रासपुतिन के खिलाफ षड्यंत्र चरम पर पहुंच चुका था। उसका अंत तय माना जा रहा था, लेकिन सवाल था- कैसे? रूस के प्रमुख अभिजात्य वर्ग ने उसकी हत्या की साजिश रची। इस साजिश के पीछे मुख्य रूप से प्रिंस फेलिक्स यूसुपोव का नाम सामने आता है, जो रूस के सबसे धनी और शक्तिशाली परिवारों में से एक थे।

केक में मिलाकर दिया जहर

प्रिंस फेलिक्स के साथ सांसद व्लादिमीर पुरिश्केविच और कुछ अन्य साथी भी शामिल थे। इनका एक ही मकसद था- रासपुतिन को मारना। प्रिंस फेलिक्स यूसुपोव ने रासपुतिन को 30 दिसंबर 1916 की रात अपने महल में बुलाया। रासपुतिन को यह विश्वास दिलाया गया कि यूसुपोव की पत्नी इरीना उससे मिलना चाहती हैं। हालांकि इरीना उस समय सेंट पीटर्सबर्ग में नहीं थीं।

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जैसे ही रासपुतिन वहां पहुंचा, तो उसे तहखाने में ले जाया गया। वहां पर यूसुपोव ने रासपुतिन को जहर मिलाकर मीठा केक और वाइन दी। यूसुपोव का प्लान था कि रासपुतिन जहर की वजह से वहीं दम तोड़ देगा, लेकिन किस्मत थी या चमत्कारी शक्ति कि रासपुतिन पर जहर का कोई असर ही नहीं हुआ। रासपुतिन शायद इस धोखे को भांप चुका था।

गोली लगते ही गिरा और फिर खड़ा हो गया

वह बार-बार इरीना से मिलने की जिद करता रहा। ऊपर यूसुपोव और उसके साथी एक नकली पार्टी का शोर कर रहे थे, ताकि रासपुतिन को लगे कि ऊपर जश्न मनाया जा रहा है, लेकिन नीचे तहखाने में रासपुतिन और यूसुपोव के बीच एक अलग ही कहानी चल रही थी। जब रासपुतिन पर जहर का असर नहीं हुआ तो यूसुपोव ने बंदूक निकाली और रासपुतिन पर गोली चलाई। गोली लगते ही रासपुतिन गिर गया, लेकिन कुछ ही देर बाद वह फिर खड़ा हो गया।

यूसुपोव के लिए यह क्षण किसी बुरे सपने जैसा था। रासपुतिन को गोली मारने के बावजूद उसकी मौत नहीं हुई थी। रासपुतिन जैसे एक जिंदा लाश की तरह उठ खड़ा हुआ और यूसुपोव को पकड़ने के लिए आगे बढ़ा। यह देखकर यूसुपोव का साथी व्लादिमीर पुरिश्केविच भी आगे बढ़ा। उसने रासपुतिन पर चार गोलियां और दागीं। रासपुतिन गिर पड़ा, इस बार वह फिर से नहीं उठा।

तो कैसे हुई थी रासपुतिन की मौत

गोलियां मारने के बाद भी षड्यंत्रकारी उसकी मौत को लेकर पूरी तरह से निश्चिंत नहीं थे। उन्होंने रासपुतिन के शरीर को नदी में फेंकने का फैसला किया, ताकि कोई भी सबूत न बचे। मोइका नदी के बर्फीले पानी में रासपुतिन के शरीर को डाल दिया गया और यह मान लिया गया कि इस रहस्यमयी चमत्कारी व्यक्ति का अंत हो गया है।

रासपुतिन की मौत के बाद उसकी हत्या को लेकर कई मिथक और कहानियां सामने आईं। सबसे चर्चित मिथक यह था कि रासपुतिन को नदी में डुबोकर मारा गया। कहा गया कि उसने बर्फीले पानी में भी अपनी जान बचाने की कोशिश की, लेकिन सच यह था कि वह पहले ही मारा जा चुका था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट सामने आई कि रासपुतिन की मौत गोली लगने से हुई थी। उसके फेफड़ों में कोई पानी नहीं था। इसका मतलब था कि नदी में फेंके जाने से पहले ही उसकी मौत हो चुकी थी।

पहले ही कर दी अपनी मौत की भविष्यवाणी

इसके अलावा जहर का असर न होने की कहानी भी संदेहास्पद मानी जाती है। कई लोग मानते हैं कि हो सकता है रासपुतिन ने मीठा खाने से मना कर दिया हो, क्योंकि वह मानता था कि मीठी चीजें उसकी ‘चमत्कारी शक्तियों’ के लिए ठीक नहीं हैं। यूसुपोव ने रासपुतिन की मौत के बारे में जो कहानियां सुनाईं, उनमें भी कई बातें संदिग्ध लगती हैं।

रासपुतिन ने अपनी मौत की भविष्यवाणी की थी। उसने निकोलस द्वितीय को लिखे एक पत्र में कहा था कि अगर उसकी हत्या रईस परिवारों से जुड़े लोगों ने की तो यह रूस की राजशाही के अंत की शुरुआत होगी। और ठीक यही हुआ। रासपुतिन की हत्या के कुछ ही महीने बाद साल 1917 में रूसी क्रांति हुई, जिसने न केवल निकोलस द्वितीय के शासन को समाप्त कर दिया, बल्कि पूरी राजशाही को खत्म कर दिया।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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